आलू के फायदे
दुनिया भर में तरकारी के रूप में जितना आलू का उपयोग होता है उतना शायद ही किसी अन्य साग का होता होगा। अतएव कुछ लोग आलू को ‘तरकारियों का राजा’ मानते हैं।
आलू का मूल वतन दक्षिण अमेरिका है। वहाँ से यूरोप में होता हुआ यह भारत में आया है, ऐसा कहा जाता है। एन्डिझ और चीली के उच्च प्रदेशों में हजार वर्षों से भी अधिक समय से इसकी खेती होती है। आलू हर प्रकार की जमीन में होते हैं।
भारत में नीलगिररि, खानदेश, पूना, महाबलेश्वर आदि स्थानों में आलू की खूब फसल होती है। गुजरात की नदियों की तटवर्ती रेतीली भूमि में भी अब आलू की बोआई भारी मात्रा में होती है। सूरत जिले में एवं उत्तर गुजरात की सरस्वती, बनास, साबरमती आदि नदियों के पट में इसका उत्पादन बढ़ रहा है।
गुजरात में गर्मी कम होने पर आश्विन कृष्णपक्ष या कार्तिक शुक्लपक्ष में इसकी बोआई की जाती है। आँखोंवाली गाँठों का आरोपण कर इसकी बोआई करते हैं। फाल्गुन मास में या इसके पहले नये आलू तैयार हो जाते हैं। आलू की बेल होती है। इसके पत्ते लंब-गोल आकार के और रोंयेदार एवं फूल आसमानी अथवा सफेद रंग के और कलगी के रूप में होते हैं।
आलू की लाल, सफेद तथा छोटे-बड़े कद के अनुसार कई किस्में होती हैं। आँखें गहरी न हों ऐसे बड़े, लंबे, गोल और उबालकर काटने से सफेद मालूम पड़नेवाले आलू अच्छे माने जाते हैं। महाबलेश्वर की ओर के आलू बड़े, लाल रंग के और अत्यंत पौष्टिक माने जाते हैं।
सिर्फ आलू का एवं अन्य अनेक तरकारियों के साथ इसका मिश्र
साग होता है। प्याज आलू या बैंगन-आलू का मिश्र साग खूब स्वादिष्ट बनता है। बैंगन-आलू के मिश्रण में तो एक विलक्षण-सा स्वाद आता है।
आलू को उपलों की आग की राख में सेंक या पकाकर खाया जाता है। आलू की कतरन, बेफर, पकोड़े, बड़े, खीर, पूड़ी, हलुवा आदि अनेक बानगियाँ बनती हैं।
आलू को फलाहारी वस्तु माना गया है। उपवास के दिन लोग इसका
यथेच्छ उपयोग करते हैं। आलू को उबालकर, सुखाकर उसका आटा
बनाया जाता है और उससे हलुवा-पूड़ी आदि बनते हैं। गरीब और धनिक सभी वर्ग के लोग आलू का सेवन करते हैं, अतः इसे अनाज के पूरक आहार का स्थान प्राप्त हो गया है।
भारत में अभी आलू के उत्पादन का अपेक्षित मात्रा में विस्तार नहीं हुआ है। पश्चिम के कुछ देशों में आलू का प्रति व्यक्ति वार्षिक उपयोग लगभग चार सौ पौंड़ है।
सभी प्रकार के आलू शीतल, मल को रोकनेवाले, मधुर, गरिष्ठ, मल तथा मूत्र को उत्पन्न करनेवाले, रुक्ष, मुश्किल से पचनेवाले और रक्तपित्त को मिटानेवाले हैं। ये कफ और वायु करनेवाले, बलप्रद, वीर्यवर्धक और
अल्प मात्रा में अग्निवर्धक हैं।
आलू परिश्रमी, परिश्रम के कारण निर्बल बने हुए, रक्तपित्त से पीड़ित, शराबी और तेज जठराग्निवाले लोगों के लिए अत्यंत पोषक हैं।
आलू नरम हो या ऊपर दुर्गंधयुक्त पानी आ गया हो तो उसका उपयोग न करें। मंदाग्निवालों, गैस या मधुमूह के दर्दियों एवं रोगी व्यक्तियों के लिए आलू का सेवन करना हितावह नहीं है। अग्निमांद्य, अफरा, वातप्रकोप, ज्वर, मलावरोध, खुजली वगैरह त्वचारोग, रक्तविकार, अतिसार, प्रवाहिका, आंत्रक्षय, अर्श, अपच और उदरकृमि-इतने रोगों से पीड़ित व्यक्ति आलू का कम सेवन करें।
यूनानी मत के अनुसार आलू रुक्ष, शीतल, कामोत्तेजक, वीर्यवर्धक, पचने में गरिष्ठ और उदरवात-वर्धक हैं।
वैज्ञानिक मत के अनुसार आलू के छिलके निकाल देने पर, उसके साथ कुछ पोषक तत्त्व भी चले जाते हैं। आलू को उबालने पर बचे हुए पानी में भी प्रजीवक तत्त्व-विटामिन रहते हैं। अतः इस पानी को फेंक देने के बजाय अन्य साग-भाजी या दाल में मिला देना चाहिए। आलू में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, फॉस्फरस, पोटेशियम, गंधक, तांबा और लोह कम-अधिक मात्रा में है। इसमें विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ भी थोड़ी मात्रा में है।