कटहल खाने के फायदे

कटहल दूधवाला पेड़ है, अतः इसे कलम करके रोपा जाता है। इसके पत्ते लंबे और हरे रंग के होते हैं। कटहल को उगाने के बाद यह पाँच-छः वर्ष में फल देता है। इस पेड़ को जमीन से कुछ ऊँचाई पर ही फल आ जाते हैं। कटहल के पेड़ बहुत बड़े होते हैं। इस पेड़ की लकड़ी पीली सुंघनी के रंग की होती है। कटहल के वृक्ष से करीब पाँच सौ-छः सौ फल उपलब्ध होते हैं।

कटहल पर मोटे काँटे होते हैं। ऊपर की काँटों की मोटी छाल निकाल लेने पर अंदर से कटहल की पेशियाँ निकलती हैं। इन पेशियों में काले अथवा लालिमा लिए हुए बीज होते हैं। ये बीज सेंककर भी खाये जाते हैं। बीजों को सेंककर खाने से ये आम की गुठली से भी ज्यादा अच्छे लगते हैं। बीजों का साग भी होता है और इन्हें दाल में भी डाला जाता है।

Jackfruit

कटहल ताकत और तन्दुरुस्ती देनेवाला, जठराग्नि को तेज करनेवाला और वायुदोष को शांत करनेवाला गुणकारी फल है। तरोताजा कटहल का साग होता है। बैंगलोर, गोवा, कोंकण, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में इसके साग का विशेष माहात्म्य है। पके कटहल का भी मजेदार साग बनता है। कटहल पकने पर उसका भीतरी गर्भ खाया जाता है।

कोंकण के लोग कटहल के गर्भ को सुखाकर, उसे कूट-पीसकर, उसकी पतली रोटी या पूड़ी बनाकर खाते हैं। उसे ‘पनस-पोली’ कहते हैं। कटहल के गर्भ की खीर और कढ़ी भी बनती है। गर्भ के भीतर के बीज भी खाने के काम आते हैं। बीज तरोताजा हों तब उन्हें चीरकर साग बनाते हैं अथवा सेंक या उबालकर गुठली की तरह खाते हैं। कटहल के बीज को सेंकने से पहले उसमें थोड़ा-सा छेद करना पड़ता है, अन्यथा यह भारी आवाज के साथ फटता है। इसको सुखाने के लिए इस पर मिट्टी लगा दी जाती है। इन बीजों को कूटने या पीसने पर जो आटा बनता है वह सिंघाड़े के आटे के समान होता है।

कटहल के वृक्ष की छाल पशुओं को खिलाई जाती है। दुधारू गाय-भैंस को इसकी छाल खिलाने से वे ज्यादा दूध देती हैं। इसके पत्तों से पत्तलें भी बनाई जाती हैं। कटहल की लकड़ी सागौन के समान टिकाऊ होती है। अतः यह इमारती काम में और गृहोपयोगी साधन-सामग्री बनाने में खूब उपयोगी है। इसकी लकड़ी से पेटियाँ, कुर्सियाँ, पलंग आदि चीजें बनती हैं। इसके वृक्ष की छाल के रेशे से रस्सियाँ बनती हैं। इसके वृक्ष से जो दूध निकलता है उससे रबड़ बनता है। इसके फल (कटहल) और छाल का औषधि के रूप में उपयोग होता है।

पका कटहल शीतल, स्निग्ध, पित्त तथा वायु को मिटानेवाला, तृप्तिदायक, पौष्टिक, मधुर, मांसवर्धक, कफवर्धक, बलप्रद तथा वीर्यवर्धक है। यह रक्तपित्ता, क्ष्क्षत और व्रणों को नष्ट करता है।

कच्चा कटहल मल को रोकनेवाला, वायु करनेवाला, कसैला, भारी, दाह करनेवाला, मधुर, बलप्रद एवं कफ और मेद को बढ़ानेवाला है।
कटहल का गर्भ वीर्य बढ़ाता है और वात, पित्त एवं कफ को मिटाता है। कटहल के बीज वीर्यवर्धक, मधुर भारी, मल को रोकनेवाले और मूत्रवर्धक हैं। कटहल के बीज की गुठली मधुर, वृष्य, जड़ और विष्टंभक 1일

कटहल की प्रत्येक शाखा के अंतिम भाग में नोंकदार कलियाँ रहती हैं। इन्हें कूटकर, इनकी गोली बनाकर मुँह में रखने से अथवा कलियों को पीसकर, उनका रस निकालकर, थोड़ा-थोड़ा रस गले में उतारने से कंठरोग दूर होता है।

पके कटहल के अंकुर और खर्खनी की छाल को पानी के साथ पीसकर, दस तोला रस निकालकर पीने से और पथ्य-पालन करने से शोफोदर नामक उदररोग मिटता है।

कच्चे कटहल और आम्रवृक्ष की छाल बराबर-बराबर लेकर, पानी मिलाकर, कूटकर रस निकालें। इस रस में चूने का निथारवाला पानी मिलावें। यह पेय बच्चे की शक्ति के अनुसार एक से तीन तोला तक पिलाने से बच्चों का आम-संग्रहणी रोग मिटता है।

कटहल व आम्रवृक्ष की छाल का रस निकालकर, उसमें चूने का निथारवाला पानी मिलाकर पीने से रक्तातिसार एवं विषूचिका (हैजा) में लाभ होता है।

कटहल के अंकुर घिसकर चुपड़ने से, मुँह यदि फटा हो तो, लाभ होता है।

गुल्म के रोगियों तथा मंदाग्निवालों को कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए; क्योंकि यह पचने में भारी है। कटहल का गर्भ खाने के बाद नागरबेल का पान खाने से अफरा चढ़ता है और खूब पीड़ा होती है। कभी-कभी पेट के फूल जाने से व्यक्ति मर भी जाता है। कटहल पर पान खाने से पेट फूल गया हो तो खट्टे बेर खाने से अथवा अन्य किस्म की खटाई लेने से उतर जाता है। कटहल अधिक मात्रा में खाने से अजीर्ण हो तो उस पर खोपरा खाना चाहिए।