पपीता खाने के फायदे

पपीता खाने के फायदे

पपीता खाद्य फल भी है और औषध भी। इसका मूल वतन अमेरिका है। लगभग चार सौ वर्ष पूर्व यह भारत में आया था। आजकल यह भारत में सर्वत्र होता है। काली और रेतीली अथवा नरम लाल या पीली रेतीली जमीन इसके लिए अनुकूल रहती है। बंद या चिकनी जमीन इसके लिए प्रतिकूल रहती है। बीज में से पनीरी करके इसकी बोआई की जाती है। इसके पौधे मध्यम कद के, आठ से पंद्रह फीट ऊँचे होते हैं। इसके मूल जमीन में हाथ-डेढ़ हाथ की गहराई तक ही जाते हैं।

पपीते के पौधे का रंग हल्का सफेद होता है। इसके पौधे ढँप, पत्तों व कच्चे फलों से विशेष प्रकार का दूधिया रस निकलता है। इसके पौधे केवल एक तनेवाले और सीधे होते हैं। इस पर आड़ी-तिरछी शाखाएँ नहीं फूटतीं। पौधे की लकड़ी नरम और पोली होती है। इसके पौधे दो किस्म के होते हैं-नर और मादा। मादा किस्म के पौधे को ही केवल (पपीते) लगते हैं। फिर भी खेतों में नर-मादा दोनों किस्म के पौधे होना जरूरी है।

पपीते के पत्ते एरंड वृक्ष के पत्तों से मिलते-जुलते, इनके समान आकारवाले और बड़े-बड़े होते हैं। एरंड-पर्ण की तरह इसके पत्ते की डाँड़ी लंबी और पोली होती है। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं।

पपीते के फल गोल या लंबगोल होते हैं। कच्चे पपीतों का रंग हरा होता है। जब ये पकने लगते हैं तब इनका रंग पीलापन लिए हुए हरा या पीला हो जाता है। पके पपीते का गर्भ हाफूस आम के समान सिंदूरिया लाल रंग के सदृश होता है। पपीतों के बीज पर आँवल-सी पतली परत होती है। बीज का आकार (देखने में) काली मिर्च के समान होता है। अच्छी किस्म के बीज के तैयार किए गए पपीते ही उत्तम होते हैं। पपीतों के उत्पादन के लिए गुजरात की अपेक्षा सौराष्ट्र की जमीन ज्यादा अनुकूल है।

पपीते वर्ष में दो बार लगते हैं। पौष-माघ या फरवरी-मार्च मास पपीते का सही मौसम है। कुछ पपीते मई से अक्तूबर महीने तक पकते हैं। कुछ पपीते बारहों मास फल देते रहते हैं। पपीते की मिठास का धूप के साथ गहरा संबंध होता है। मई से अक्तूबर तक पके हुए पपीतों में
सख्त गर्मी के कारण शर्करा और मिठास की मात्रा ज्यादा होती है। पपीतों के पालन-पोषण में विशेष देशभाल की आवश्यकता नहीं पड़ती, अतः यदि पानी की सुविधा हो तो किसान इसकी बोआई जरूर करते हैं। पपीतों की बोआई के साथ-साथ मिर्च आदि की बोआई कर किसान एक साथ दो फसल ले सकते हैं।

पपीतों के अनेक किस्में हैं-लोटन, पूरी, बड़वानी, रांची, बेंगलौरी, सिलोनी, सिंगापुरी, वॉशिंग्टन और मधुबिन्दु आदि। पपीते छोटे-बड़े, गोल-लंबगोल इत्यादि रूप से भी अनेक किस्म के होते हैं।

पपीतों की वॉशिंग्टन और बड़वानी नामक किस्में खूब स्वादिष्ट होती हैं। इसके फल लंबे और बड़े होते हैं। बड़वानी पपीते बहुत लंबे और हरे छिलकेवाले होते हैं। मधुबिन्दु कद में छोटे किन्तु स्वाद में अत्यंत मधुर होते हैं। राँची में बीज कम और गर्भ ज्यादा होता है। सिंगापुरी पपीते एक हाथ लंबे, कम बीजवाले और ज्यादा मीठे होते हैं। वॉशिंग्टन और मधुबिन्दु पपीते सबसे ज्यादा मीठे होते हैं। गोल या लंबगोल पपीतों की अपेक्षा पतले-लंबे पपीते ज्यादा मीठे होते हैं। मध्यप्रदेश के बड़वानी पपीते मशहूर हैं।

उत्तर प्रदेश के मेरठ के पपीते सुगंध, मिठास और स्वाद के लिए प्रसिद्ध हैं। रांची, देवधर, पुणे, बैंगलौर और मुंबई के पपीते भी प्रसिद्ध हैं। सबसे ज्यादा पपीतों का उत्पादन बिहार में होता है। अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, वेस्टइंडीज टापू, फ्लोरिड़ा आदि में पपीते भारी मात्रा में होते हैं।

गुजरात में अहमदाबाद, खेड़ा, बड़ौदा और भड़ौंच जिले में एवं सौराष्ट्र में जूनागढ़ भावनगर तथा अमरेली-धारी क्षेत्र में पपीतों की फसल बड़ी तादाद में होती है। सौराष्ट्र के बोटाद और राणपुर के पपीते दलदार एवं स्वाद में मधुर होते हैं। धारी और अमरेली के पपीते इनसे भी बड़े, ज्यादा दलदार, कम बीजवाले और ज्यादा मीठे होते हैं।

पके पपीते के टुकड़े कर, उसमें थोड़ा-सा नमक, काली मिर्च और नींबू का रस डालकर खाने से खूब स्वादिष्ट लगते हैं। पके पपीते में थोड़ा-सा नीबू का रस निचोड़ने पर आम के समान विलक्षण स्वाद आता है।
कच्चे पपीते के साग की अपेक्षा अधपके पपीते का साग अधिक स्वादिष्ट बनता है। कच्चे पपीते का अचार भी बनता है। पके पपीते से चटनी, कचूमर आदि भी बनते हैं। केले, ककड़ी, टमाटर और पपीते का कचूमर अधिक स्वादिष्ट लगता है। पके पपीते का सलाद भी बनता है। बंगाल में पके पपीते का हलुवा बनाया जाता है। इस्टइण्डीज टापुओं में अधपके पपीते में शक्कर डालकर उसका हलुवा बनाया जाता है।

कच्चे पपीते के छिलके और बीज निकालकर, अच्छी तरह उबालें। उसे पत्थर पर पीसकर, लाल होने तक घी में सेंकें। इसे चीनी की चासनी में डालकर हलुवा बनाया जाता है। पके पपीते का भी घी, चीनी और दूध के साथ हलुवा बनता है।

पेट के विकारों को दूर करने के लिए पपीते का सेवन सर्वोत्तम माना जाता है। पपीते के सेवन से पाचनक्रिया में सुधार होता है, भूख लगती है और शरीर की कार्यशक्ति बढ़ती है। पपीता अन्य आहार को पचाने में सहायक भी बनता है।

पपीते का रस अथवा दूध आहार की अरुचि, अनिद्रा, शिरःशूल आदि अजीर्णसंबंधी विकारों को दूर करता है। पेट में संचित आँव का नाश करने की इसमें अद्भुत शक्ति है। बच्चों की अपेक्षा बड़ों के अजीर्ण में यह ज्यादा लाभ करता है। इसके रस के सेवन से अम्लपित्त (खट्टी डकारें) मिट जाता है। कच्चे पपीते के दूध में दो-तीन प्राकृतिक लवण होते हैं, जो अजीर्ण, प्लीहा, यकृतदोष और अर्श में गुणकारी हैं।

पपीते का बड़ा, कच्चा फल लेकर उस पर खड़े शिगाफ बनाकर, उसमें से टपकने वाला दूध चीनी मिट्टी की रकाबी या प्याले में लेकर तुरंत उसे सूर्य की धूप में सुखाइए। इसका सफेद चूर्ण बनाकर अच्छे ढक्कनवाली काँच की बोतल में भर दीजिए। इस चूर्ण (पपैन) का उपयोग आमवात और आँतों के (पाचन संस्थान के) रोगों में किया जाता है। इंग्लैण्ड में यह चूर्ण राजमान्य है। इसकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। इससे किसी प्रकार की हानि नहीं होती। इस चूर्ण के सेवन से आमाशय का दाह, व्रण अर्बुद, अम्लपित्त और अपच आदि तकलीफें दूर होती हैं।

पपीता उदररोग व हृदयरोग के लिए उत्तम औषध है। कब्जियत, आँतों की कमजोरी और हृदय के लिए तो पपीतों से बढ़कर कोई औषधि नहीं है। पके या कच्चे पपीतों का साग बनाकर खाने से उदररोग और हृदयरोग के रोगियों को खूब लाभ होता है। हृदयरोग की पेटंट दवाओं की अपेक्षा पपीते का दूध (सत्त्व) ही अधिक उपयोगी औषधि है। शौचादि क्रिया से निवृत्त होकर, चवन्नीभर चीनी लेकर उसमें, पौधे पर लगे कच्चे पपीते से नोंकदार सूआ भोंककर दूध की पंद्रह-बीस बूँदें मिलाइए। पपीते का ताजा दूध मिली यह चीनी खाने से हृदय रोग में लाभ होता है।

पपीते के पत्तों की क्रिया हृदय पर डिजिटेलिस के समान होती है, क्योंकि पपीते के पत्तों में विषदृव्य-डिजिटेलिस समान है। पपीते के पत्तों के उपयोग से नाड़ी की गति कम होती है और हृदय रोग की धड़कन नियमित होती है, हृदय को आराम मिलता है, पसीना छूटता है और मूत्र की मात्रा बढ़ती है। पपीते के पत्ते हृदयबल्य और ज्वरघ्न हैं। पपीते के पत्ते का आकार एरंडे के पत्ते के समान होने से पपीते को ‘एरंड-ककड़ी’ भी कहते हैं। पपीते के फल, कच्चे फल के दूध और पत्तों का उपयोग औषधि के रूप में होता है।

पके पपीते मधुर, रुचिकर, पित्तनाशक, गुरु, कुछ कटु, वीर्यवर्धक, हृद्य, उन्मादहर, स्निग्ध वातनाशक तथा व्रणनाशक हैं। इसके सेवन से यकृतवृद्धि, प्लीहावृद्धि और अग्निमांद्य दूर होता है। पके पपीते पथ्यकारक व उष्ण हैं। इनमें दस्त और पेशाब साफ लाने का गुण भी है।

कच्चे पपीते ग्राही हैं। ये कफ और वायु का प्रकोप करनेवाले एवं पित्तकारक हैं। कच्चे पपीते में पपैन काफी मात्रा में होता है। पाचन तंत्र संबंधी रोगों में कच्चे पपीते बहुत उपयोगी हैं, क्योंकि पपैन पाचक-रस जैसा ही काम करता है। जिन्हें अजीर्ण रहता हो और जिनका पेट ठीक से काम न करता हो, उनके लिए कच्चे पपीते आशीर्वादरूप हैं। ऐसे रोगियों को कच्चे पपीतों का साग अथवा कद्दूकश पर कसकर बनाया हुआ कचूमर खाना हितावह है।

कच्चे पपीतों का दूध लगाने से चर्म रोग नष्ट होते हैं। (इससे खूब जलन तो जरूर होगी ।) पपीते के बीज कृमिनाशक, स्त्रियों के ऋतुधर्म को नियमित बनानेवाले और गर्भपातकारक हैं।
पपीते का दूध अत्यंत पाचक, कृमिघ्न, वेदनाशामक, स्तन्य (दूध) उत्पन्न करनेवाला, कुष्ठघ्न और उदररोगनाशक है। यह बकरे और सूअर के आमाशय से उपलब्ध होनेवाले पाचक द्रव्य पेप्सिन की अपेक्षा उच्च कोटि का है। यह पाचक द्रव्य आमाशय के अम्लरस के भीतर ही कार्य करता है। जबकि उसकी क्रिया आमाशय के अम्लरस और आँतों के क्षाररस-दोनों में समान रूप से होती है। आँत में भी उसकी क्रिया चलती रहती है। पाचक द्रव्य पेप्सिन से मांस का पाचन होने पर खूब उपद्रव उत्पन्न होता है, जबकि पपीते के दूध से मांस पिघलता है और पचता है, अन्य उपद्रव नहीं होते। पपीते के दूध के सेवन से गोल कृमि का नाश होता है।

बच्चों को नियमित रूप से पपीता खिलाने से उनकी लंबाई बढ़ती है तथा शरीर मजबूत और तंदुरुस्त बनता है। आधा चम्मच कच्चे पपीते का दूध चीनी के साथ लेने से अजीर्ण मिटता है।

प्रतिदिन शाम को आधा-आधा सेर पका पपीता रक्तगुल्मवाली स्त्रियों को खिलाने से रक्तगुल्म शनैः शनैः घुल जाता है।

कच्चे पपीते का एक तोता दूध शर्करा मिलाकर, तीन हिस्सों में, दिन में तीन बार, पानी के साथ सेवन करने से प्लीहावृद्धि और यकृतवृद्धि दूर होती है।

कच्चे पपीते का ताजा दूध एक तोला, शहद एक तोला और खौलता हुआ पानी चार तोला एकत्र कर, ठंडा होने पर पिलाने से एवं दो घंटे के बाद उस पर एरंड-तेल का जुलाब देने से गोल कृमि निकल जाते हैं। (इससे पेट में शूल उत्पन्न हो तो नीबू का रस और चीनी पिलाइए ।) पपीते के पत्तों की चाय बनाकर पीने से हृदयरोग में लाभ होता है।

पपीते के पत्तों का क्वाथ हृदयरोग में बहुत उपयोगी है। इससे घबराहट कम होती है। बुखार में हृदय के अशक्त होने और नाड़ी के अधिक तेज होने पर भी पपीते के पत्तों का क्वाथ देने से नाड़ी की गति शांत होती है और बुखार कम होता है।

पपीते का दूध और सुहागा उबलते पानी में डालकर लेप करने से जीर्ण खर्जू, दाद और खुजली मिटती है।

पपीते के पत्ते के रस में अफीम मिलाकर लेप करने से नारू शीघ्र बाहर निकल जाता है।

पके, अत्यंत गले पपीते को छीलकर, कुचलकर, चेहरे पर कुछ समय तक मालिश करें, (मसलें)। पंद्रह-बीस मिनट के बाद जब वह सूखने लगे, पानी से धो डालें और मोटे तौलिए से मुँह को अच्छी तरह पोंछ लें। इसके तुरंत बाद तिल या खोपरे का तेल लगाएँ। एक सप्ताह तक यह प्रयोग करने से चेहरे के दाग-मुँहासे आदि दूर हो जाते हैं, चेहरा अत्यंत सुंदर दिखता है और चेहरे का तेज बढ़ता है। चेहरे की सिलवटें, कालिमा और मैल दूर होता है, चेहरे पर कोमलता और कान्ति आती है। पाश्चात्य देशों में पपीतों से श्रृंगार-सामग्री-सौन्दर्यवर्धक पावडर, प्रलेप-हॅझलीन (पॉमेड़) आदि तैयार होते हैं। चेहरे की सुन्दरता को बढ़ाने में पपीता श्रेष्ठ है।

सगर्भावस्था में कच्चा या पका पपीता नहीं खाना चाहिए। जिन स्त्रियों को ऋतुधर्म (मासिक) अधिक आता हो, उन्हें भी पपीता नहीं खाना चाहिए। प्रमेह के रोगियों, कोष्ठ-गर्मीवालों और अर्श-मस्सों के रोगियों के लिए कच्चा पपीता अत्युष्ण सिद्ध होता है। इसके सेवन से अर्श से ज्यादा रक्तस्राव होता है। कच्चा पपीता रक्तप्रदरवाली स्त्रियों के लिए भी हानिकारक है।

यूनानी वैदक के मतानुसार पके पीते अग्निदीपक, क्षुधावर्धक, पाचक, आध्माननाशक (अफरा दूर करनेवाले), दुग्धप्रद, मूत्रल, उदरदाह-नाशक, प्लीहा व मूत्राशय के रोगों को नष्ट करनेवाले, पथरी में लाभदायक, मेदनाशक, कफ के साथ आनेवाले, रक्त को रोकनेवाले, रक्तार्श व मूत्रनलिका के व्रण में लाभप्रद हैं।

वैज्ञानिक मतानुसार पपीते में विटामिन ‘ए’, ‘बी’ ‘सी’ और ‘डी’ हैं। विशेषकर विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ पर्याप्त मात्रा में हैं। अन्य फलों की तुलना में पपीते में विटामिन ‘ए’ अधिक मात्रा में है। अतः यह नेत्ररोगों, मूत्राशय व वृक्क-गुर्दे से संबंधित रोगों, शारीरिक वृद्धिरोग आदि से मनुष्य की रक्षा करता है। इसमें विटामिन ‘सी’ अच्छी मात्रा में होने से यह अस्थिरोग, दंतरोग, उच्च रक्तचाप, पक्षाघात, गठिया-वात, उल्टी आदि रोगों से बचाता है।

‘पपीते में ‘कारपेन’ नामक क्षारीय द्रव्य है। उच्च रक्तचाप पर इसका अच्छा असर रहा है आँत्रकृमि, लिवर व तिल्ली संबंधी विकार पपीता खाने से मिटते हैं। आम ज्यों-ज्यों पकता है, विटामिन ‘सी’ उसमें से कम होता जाता है, जबकि पपीता ज्यों-ज्यों पकता है, विटामिन ‘सी’ की मात्रा बढ़ती जाती है। यही इन दोनों फलों में अंतर है।