बवासीर का उपचार
कोष्ठबद्धता होने पर अजवायन और विडलवण को मट्ठे में डालकर रोगी को देने से मल का निष्कासन सरलता से होता है।
अर्शकुठार रस 2 ग्राम मात्रा में मट्ठे के साथ सुबह और शाम को रोगी को सेवन कराने से अर्श रोग कुछ सप्ताह में नष्ट हो जाता है। नाराच चूर्ण भोजन से पहले 5 ग्राम मात्रा में मधु मिलाकर सेवन करने से वातज व वात-श्लेष्मिक अर्श नष्ट होती है।
कोष्ठबद्धता को नष्ट करने के लिए इच्छा भेदी रस की एक गोली रात्रि में शीतल जल से सेवन कराने पर सुबह सरलता से शौच होती है। इच्छाभेदी रस के सेवन के बाद जितनी बार शीतल जल पिलाया जाएगा, रोगी को उतनी बार दस्त होगा। गर्म जल पिलाने से दस्त बंद हो जाता है।
हरण का चूर्ण गुड़ के साथ सेवन कराने के प्रकुपित पित्त और कफ विकृति तथा खुजली नष्ट होने के साथ अर्श का भीनिवारण होता है।
हरड़, काले तिल, आंवला, किशमिश और मुलहठी का चूर्ण बनाकर फालसे के रस के साथ सेवन करने से अर्श रोग नष्ट होता है।
प्राणदा गुटिका 6 ग्राम मात्रा में भोजन से पहले या पश्चात शीतल जल से लेने पर वात, पित्त, कफ और सन्निपात से उत्पन्न अर्श रोग नष्ट होते हैं। रक्तार्श के लिए गुणकारी औषधि है।
सोंठ, शुद्ध भिलावा और विधारा तीनों को बराबर मात्रा में लेकर गुड़ के साथ मोदक (लड्डू) बनाकर सेवन करने से सभी तरह के अर्श नष्ट होते हैं।
घी में भुनी हुई हरड़ों का चूर्ण बनाकर उसमें पिप्पली चूर्ण गुड़ मिलाकर सेवन करने से अर्श रोग नष्ट होता है।
गौमूत्र में रात्रि को डालकर रखी हरड़ों को सुबह गुड़ के साथ चबाकर खाने से बवासीर नष्ट होती है।
विजयचूर्ण 2 ग्राम मात्रा में हल्के उष्ण जल से सेवन करने से और बवासीर, शोध, भगंदर, पार्श्वशूल नष्ट होते हैं।
इंद्रयव का क्वाथ सोंठ का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से अर्श में रक्तस्राव नष्ट होता है।
गिलोय, कलिहारी, काकड़ासिंगी, मुण्डी, रत्ती, केवड़ा-इन सबके पत्तों और कच्चे मिलते के बीजों को दो दिन खरल में घोटकर आधा ग्राम मात्रा को जल के साथ सेवन करने से पित्तार्श नष्ट हो जाता है।
कुटजाघंघृतम अर्श की विकृति को देखते हुए 3 से 6 ग्राम तक बकरी के दूध या चावलों के माण्ड के साथ सेवन करने पर रक्तार्श शीघ्र नष्ट होता है।
कटहल के अंदर का गूदा, मुसलीक्षार, गोरोचन, जल के साथ पीसकर वस्त्र द्वारा मिश्रण का रस निकालकर बवासीर पर लेप करने से लाभ होता है।
रक्तार्श में तीव्र जलन होने पर मुक्तापिष्टी 60 मिग्रा. मक्खन के साथ सुबह-शाम सेवन करने से बहुत लाभ होता है।
अभयारिष्ट या उसीरासव 20 मिग्रा. मात्रा में जल के साथ सेवन करने से रक्तार्श नष्ट होती है।