चीकू खाने के फायदे

चीकू मुख्यतः तीन किस्म के होते हैं-लंबगोल, साधारण लंबगोल और गोल । उपरान्त, पत्ते, रंग, आकार और बढ़ने की पद्धति पर आधारित इसकी अनेक किस्में हैं। अमरीका में चीकू की भाँति-भाँति की किस्में उगाई जाती हैं। इनमें से कुछ किस्में बिना बीज के फल देनेवाली हैं, जब कि कुछ किस्मों के फल का वजन एक पौंड से भी अधिक होता है।

कच्चे चीकू बेस्वाद और पके चीकू अत्यंत मीठे तथा स्वादिष्ट लगते हैं। खाने में गोल चीकू की अपेक्षा लंबगोल चीकू श्रेष्ठ माने जाते हैं। पके चीकू का नाश्ते और फलाहार में उपयोग होता है। कुछ लोग पके चीकू का हलुआ बनाकर खाते हैं। यह हलुआ अत्यंत स्वादिष्ट बनता है। दक्षिण अमरीका, क्यूबा और ब्राजिल में पके चीकू के गर्भ से स्वादिष्ट शरबत बनाया जाता है। सिंध (पाकिस्तान) में कच्चे चीकू का साग भी बनाया जाता है। यूरोपियन लोग भी चीकू को खूब पसंद करते हैं। यूरोप-अमरीका के लोग जलपान के रूप में चीकू का बहुतायत से उपयोग करते हैं।

Chickoo

आहार के रूप में चीकू बहुत लाभदायक है। चीकू खाने से शरीर में विशेष प्रकार की ताजगी और फुर्ती आती है। इसमें शर्करा की मात्रा अधिक है। यह रक्त में घुल-मिलकर ताजगी देती है। चीकू खाने से आँतों की शक्ति बढ़ती और वे ज्यादा मजबूत होती हैं।

चीकू के वृक्ष से ‘चिकल’ नामक पदार्थ निकलता है। चीकू के पेड़ की छाल से चिकना, दूधिया ‘रस-चिकल’ नामक गोंद निकाला जाता है और उसमें से चबाने का गोंद ‘च्युइंगम’ बनता है। यह छोटी-छोटी बस्तुओं को जोड़ने के काम आता है। उपरांत, दंतविज्ञान से संबंधित शस्त्रक्रिया (डेण्टल सर्जरी) में ‘ट्रान्समिशन बेल्ट्स’ बनाने में इसका उपयोग होता है। ‘गटापर्चा’ नामक पदार्थ के बदले भी इसका उपयोग होता है।

चीकू की लकड़ी लाल-भूरी, सख्त एवं अत्यंत टिकाऊ होती है। चीकू की छाल बाधक, शक्तिवर्धक और ज्वरनाशक है। इस छाल में टेनिन होता है। दक्षिण लूजोन के मछुए नौकाओं के पाल और मछलियाँ पकड़ने के साधन रंगने के लिए इसकी छाल का उपयोग करते हैं।

चीकू के फल शीतल, पित्तशामक, पौष्टिक, मीठे और रुचिकारक हैं। इसमें शर्करा का अंश ज्यादा है। यह पचने में भारी है। चीकू रुचिकर
स्वाद के होने से ज्वर के रोगियों के लिए पथ्यकारक हैं। भोजन के पश्चातु यदि चीकू का सेवन किया जाए तो निश्चित रूप से लाभ करते हैं। ताजे और पके चीकू शरीर के लिए बहुत लाभकारी हैं।

चीकू को रातभर मक्खन में भिगोकर प्रातः खाने से पित्तप्रकोप शांत होता है। कोंकण में पित्तप्रकोप और ज्वर के लिए इसे उत्तम उपाय मानते हैं।

चीकू शर्करा के साथ खाने से धातुपुष्टि होती है एवं पेशाब की जलन शांत होती है। चीकू की छाल का काढ़ा दस्तों व ज्वर में दिया जाता है।

चीकू ठीक से पके हुए ही खाने चाहिए। कच्चे चीकू न खाएँ। कच्चे

चीकू कब्ज करते हैं और पेट में भाररूप बनकर दर्द भी करते हैं। अच्छी तरह चबाये बिना या अत्यधिक मात्रा में चीकू खाने से भारी पड़ते हैं। वैज्ञानिक मतानुसार चीकू के फल में अल्प मात्रा में ‘सॅपोटिन’ नामक तत्त्व रहता है। चीकू के बीज मृदुरेचक और मूत्रकारक माने जाते हैं। चीकू के बीज में ‘सोपोनीन’ एवं ‘सॅपोटिनिन’ नामक कडुआ तत्त्व होता है।

चीकू के फल में इकहत्तर प्रतिशत पानी, डेढ़ प्रतिशत प्रोटीन, डेढ़ प्रतिशत चरबी और साढ़े पच्चीस प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट है। उपरांत, इसमें विटामिन ‘ए’ अच्छी मात्रा में तथा विटामिन ‘सी’ कम मात्रा में है। चीकृ के फल में चौदह प्रतिशत शर्करा भी होती है। इसमें फॉस्फोरस और लौह भी काफी मात्रा में होता है एवं क्षार का भी कुछ अंश होता है।