नारंगी या संतरा खाने के फायदे

नारंगी या संतरों की दो किस्में होती हैं-खट्टी और मीठी। लड्डू, कलवा, रेशमी, नागपुरी, खानदेशी, सीलहटी और सहारनपुरी-इस प्रकार नारंगी या संतरे की कई किस्में होती हैं।नारंगी अत्यंत स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है।

नारंगी या संतरा वर्षभर उपलब्ध होनेवाला फल है। इस फल का रस भोठा खटमीठा और गुणकारी होता है। इसका रस तृषा, दाह और अरुचि मिटाता है। यह पेय के रूप में उत्तम है। इससे रक्तशुद्धि होती है, भूख खुलती है और पाचन शक्ति बढ़ती है। इसके रस का शरबत बनता है। यह गर्मियों में शीतलता के लिए पिया जाता है। नारंगी का अचार और मुरब्बा भी बनता है।

Benefits Of Orange

नारंगी सुपाच्य, स्फूर्तिप्रद, कृत्रिम गर्मी को दूरकर शीतलता प्रदान करनेवाली एवं रक्त को शुद्ध करने व बढ़ानेवाली है। नारंगी उपवासी व्यक्ति को शक्ति प्रदान करती है, उसके प्रत्येक पाचक अंग की शुद्धि करती है तथा उसे आराम देती है। भोजन के बाद इसका सेवन करने से किसी प्रकार का विकार नहीं होता।

नारंगी का रस ज्वरहर, तृषाशामक, ग्राही, रक्तपित्तशामक और रक्त-पौष्टिक है। यह बुखार में अत्यंत लाभकारक है। बुखार में प्रतिदिन दस-बारह नारंगी खा लेने पर भी नुकसान नहीं होता। इन्फ्लुएज्झा दूर करने में नारंगी सहायता करती है। नारंगी का रस उच्च रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) को कम करता है और लाभप्रद है। उच्च रक्तचाप का रोगी यदि दो-तीन उपवास कर ले और इन दिनों केवल नारंगी के रस का ही सेवन करे तो लाभ होता है। नारंगी में साढ़े सत्तासी प्रतिशत पानी होता है, अतः इसका रस पचने में खूब हल्का है। करीब एक घंटे से भी कम समय में इसके रस को शरीर शोष लेता है, अत्यंत सरलता से रस का पाचन हो जाता है। अतः थके-माँदे या बीमार व्यक्तियों को नारंगी का रस देने से बहुत लाभ होता है। बीमार व्यक्तियों के लिए मीठी नारंगी ही हितकारी है, खट्टी नारंगी नुकसान करती है।
नारंगी में अवस्थित ठंडक उष्णता दूर करती है और बार-बार लगनेवाली प्यास मिटाती है। नारंगी के रस में प्यास मिटाने का सर्वोत्तम गुण है। ज्वर तथा गर्मी में इसके समान तृप्तिकारक दूसरी कोई चीज नहीं है। यह पेशाब का पीलापन और दाह दूर करता है एवं आँखों की गयीं को मिटाकर ठंडक और शांति प्रदान करता है। नारंगी के रस में दुगनी चीनी मिलाकर शरबत बनाया जाता है। गर्मी के दिनों में, गर्मी की व्याकुलता दूर करने के लिए तथा मस्तिष्क को शान्त करने के लिए इस शरबत का उपयोग किया जाता है। यह शरबत दो-तीन महीनों तक खराब नहीं होता।

गरिष्ठ भोजन एवं अत्यधिक आहार से जठर कमजोर हो जाता है, फलतः आहार पूर्ण रूप से पचता नहीं और सड़ने लगता है अर्थात् उसमें से गैस उत्पन्न होती है। इस प्रकार बिगड़े हुए जठर एवं आँतों की शुद्धि करने के लिए नारंगी बहुत उपयोगी है। यह जठर तथा आँतों के मार्ग साफ करती है और दोनों की पाचनशक्ति बढ़ाती है, फलतः रोगी को राहत मिलती है। नारंगी उपलब्ध न होने पर नारंगी के स्थान पर पके टमाटरों का उपयोग हो सकता है। ऐसा डॉक्टरों का अभिप्राय है। परंतु टमाटरों का नारंगी की अपेक्षा अधिक मात्रा में सेवन करना पड़ता है। (टमाटर में विटामिन ‘ए’ नारंगी की अपेक्षा अत्यंत अधिक होता है, जबकि विटामिन ‘सी’ नारंगी की तुलना में केवल आधा ही होता है।)

नारंगी के फल का छिलका कृमि, अग्निमांद्य, अपच, अशक्ति और विषमज्वर पर दिया जाता है। नारंगी के छिलके से तेल निकलता है। यह कीटाणुनाशक और पाचक है। विशेषतः यह स्वादरहित औषधियों में स्वाद लाने के लिए मिलाया जाता है। बच्चों की दवाइयों में भी इसका उपयोग होता है। नारंगी के तेल से अत्तर आदि सुगंधित पदार्थ बनाये जा सकते हैं। कुछ लोगों को यह अत्तर गुलाब के अत्तर से भी ज्यादा अच्छा लगता है। औषधि के रूप में नारंगी के छिलकों का उपयोग उसके रुचिकर गुण के कारण होता है। डॉक्टर रुचि तथा स्वाद के लिए दवाई के मिश्रण में इसके छिलके से निकाले हुए तेल की बूँदें डालते हैं। नारंगी के फल ज्यादा दिन तक नहीं रह पाते। परंतु यदि उन्हें पूरी। तरह पकने से पहले तोड़ लिया जाए तो दीर्घकाल तक टिकते हैं। नारंगी क्षा छिलका सुगंधवाला होता है, इसलिए नारंगी को ‘त्वक् सुगंध’ नाम दिया गया है। नारंगी के फल, फल के रस, फल के छिलके और फूल का औषधि के रूप में उपयोग होता है।

नारंगी खट्टी, अतिशय गर्म तथा वात-पित्त का नाश करनेवाली है। यह सारक, स्वादु, हृद्य, दुर्जर-पचने में भारी और वायुनाशक है।

मोठी नारंगी खट-मीठी होती है अतः अग्नि को प्रदीप्त करती है, उल्टी को रोकती है, पित्त और वायु को नष्ट करती है। यह सारक, उष्ण और मधुर है।

खट्टी नारंगी हृद्य, बलप्रद, विशद, गुरु, रुचिकर, सारक, उष्ण सुगंधयुक्त, वायु को हरनेवाली तथा आम, कृमि, श्रम और शूल को नष्ट करनेवाली है। अजीर्ण और उदर-व्याधि में इसका उचित मात्रा में सेवन आशीर्वादस्वरूप सिद्ध होता है।

नारंगी मधुराम्ल, हृद्य-पौष्टिक, लघु, बलप्रद, अग्नि-प्रदीपक, दाह-शामक, आहार को पचानेवाली, सभी प्रकार की अरुचि का नाश करनेवाली, श्रमहर, वातनाशक, पौष्टिक एवं वायुप्रकोप, उदरकृमि और उदरशूल का नाश करनेवाली है। इसमें दीपन-पाचन गुण है। यह मंदाग्नि, खाँसी, वायु, पित्त, कफ, क्षय शोष, तृषा, दाह, उल्टी अरुचि वगैरह में पथ्य है।

नारंगी के रस में उत्तेजक और पोषक गुण हैं। इसलिए रात को सोते समय और सुबह उठकर एक-एक नारंगी का रस पीने से थके हुए और बीमार लोगों में उत्साह उत्पन्न होता है।

छोटे बच्चों को यदि दूध अनुकूल न हो और बार-बार दस्तें लगती हों तो दूध के साथ नारंगी का रस देने से दस्तें बंद होती हैं, दूध पचता है और बच्चा स्वस्थ रहता है। बालकों के शरीर के गठन के लिए भी नारंगी का रस उत्तम है।

नारंगी के पत्तों का काढ़ा पीने से ज्वर हल्का होता है।

नारंगी के रस का सेवन करने से पित्त का शमन होता है और रक्तस्थित अम्लता दूर होती है। नारंगी में अल्कल तत्त्व विशेष मात्रा में है, अतः इसके सेवन से जठर में वृद्धिगत अम्लता दूर होती है और अशुद्ध रक्त शुद्ध होता है। नारंगी के नियमित सेवन से जठर, आँतें, मूत्रपिंड आदि अंग भी शुद्ध होते हैं।

नारंगी खाने से पेट का वायु दूर होता है और आँतें तेज बनती हैं। नारंगी के सेवन से उच्च रक्तचाप कम होता है, सिर चकराता हो तो आराम होता है, शरीर की विकृत गर्मी दूर होती है और फोड़े व चमड़ी के अन्य रोग मिटते हैं।

नारंगी के सेवन से सगर्भा स्त्रियों की उबकाई और उल्टी बंद होती है।
नारंगी का सेवन करने से कृमि नष्ट होते हैं।

रात को सोते समय एक-दो नारंगी खाने से कब्ज दूर होती है। नारंगी का रस पुरानी कब्जियत को भी दूर कर सकता है।

नारंगी का छिलका एक औंस, नीबू का रस एक ड्राम, लौंग आधा ड्राम और खौलता पानी दस औंस-इन सबको एकत्र कर पंद्रह मिनट तक बैंककर रख दीजिए। फिर छानकर, छटांक भर काढ़ा विरेचन द्रव्यों के साथ अनुपान के रूप में दिया जाता है। अतिसार में नारंगी का रस देने से अन्य औषधियाँ शीघ्र असर करती हैं।

नारंगी के फूल का अर्क पीने से स्नायुओं की दुर्बलता और हिस्टीरिया सदृश शिकायतें दूर होती हैं।
चेहरे पर मुँहासें होने पर नारंगी का छिलका रगड़ने से आराम होता है।

खट्टी नारंगी जुकाम-खाँसी व पित्त करती है। इसके फल भी अधिक मात्रा में खाना हितावह नहीं हैं। जिन्हें सर्दी-जुकाम हों वे नारंगी के रस को चीनी मिट्टी के प्याले में कुछ गर्म करके उपयोग में लें। नारंगी के गर्म रस से उन्हें फायदा होगा।

वैज्ञानिक मत के अनुसार नारंगी में विटामिन ‘ए’, ‘बी’ सामान्य मात्रा में, विटामिन ‘सी’ अच्छी मात्रा में और विटामिन ‘डी’ अल्प मात्रा में होता है। इसमें लौह और कैल्शियम अधिक मात्रा में हैं। अतः इसके सेवन से शरीर के वजन तथा रक्त में वृद्धि होती है, रक्त का फीकापन दूर होता है और रक्त लाल रंग का बनता है, दाँतों व हड्डियों की मजबूती बढ़ती है। नारंगी में फॉस्फोरस वगैरह खनिज द्रव्य भी हैं।

नारंगी की अपेक्षा मोसंबी अधिक मीठी होती है, केवल इतना ही, बाकी आरोग्य की दृष्टि से नारंगी भोसंबी से बढ़कर है। नारंगी में 40 प्रतिशत विटामिन हैं। इसमें विटामिन बी, ज्यादा है, यह इसकी विशेषता है। संधिवात सदृश रोगों में यह रामबाण मानी जाती है। जोड़ों का दर्द, हाथ-पैर का शूल आदि में भी इससे लाभ होता है। नारंगी इन्फ्लुएन्जा को दूर करने में सहायक बनती है। इसका रस रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) में कभी कर फायदा देता है। नारंगी के सेवन से सूखी, खुरदरी और काली पड़ी हुई त्वचा में चेतना आती है, उसकी कोमलता बढ़ती है और वह मुलायम बनती है। नारंगी में खनिज क्षार सर्वाधिक मात्रा में है। इससे शरीर की अम्लता कम होती है।