अंजीर खाने के फायदे
अंजीर गूलर की जाति का फल है और हरे तथा सूखे मेवे के रूप में इसका उपयोग होता है। इसके फल की आकृति और गर्भ भी गूलर के फल के सदृश ही है। इसके वृक्ष गूलर की तरह क्षीरीवृक्ष (जिसमें से दूध निकलता है इस प्रकार के) हैं।
अंजीर के वृक्ष चूने और नमीवाली जमीन में होते हैं। काली, नरम, अतुई, कुछ लाल या पीली जमीन इसे ज्यादा अनुकूल नहीं आती। यदि सावधानी बरती जाए तो रेतीली जमीन में अंजीर अच्छे होते हैं। अंजीर के वृक्ष विशेषतः गर्म प्रदेश में होते हैं। गर्म जलवायु इसे खूब अनुकूल आती है। अतः अरबस्तान, ईरान, तुर्किस्तान, ग्रीस और अफ्रीका के दक्षिणी भागों में अंजीर खूब होते हैं। भारत में कश्मीर, पुणे, नासिक और पूर्व खानदेश में भारी मात्रा में इसका उत्पादन होता है। उत्तर प्रदेश, बैंगलोर तथा मैसूर में भी इसकी अच्छी मात्रा में बोआई होती है। गुजरात में सूरत जिले में भी अंजीर का उत्पादन होता है।
“अंजीर के वृक्ष की लंबाई पंद्रह-सोलह फीट होती है। गूलर के पत्तों की अपेक्षा इसके पत्ते बड़े होते हैं। इसके वृक्ष की शाखाएँ और पर्ण रॉयेदार होते हैं। ये पान अंतर से स्थित, हृदयाकार, ऊपर की ओर खुरदरे, किनारे पर दानेदार, गाढ़े और तीन-चार खंडवाले होते हैं। गूलर की तरह इसे भी प्रकट फूल नहीं आते। इसके फल कच्चे होने पर हरे रंग के और पकने पर रक्ताभ (लाल-आसमानी रंग के) होते हैं।
इसके वृक्ष की शाखाओं को टुकड़े करके रोपा जाता है। लगाने के दो वर्ष बाद उस पर फल आते हैं। इसके फल स्वाद में मधुर होते हैं। अंजीर की वर्ष में दो फसलें आती हैं-एक वर्षाऋतु में और दूसरी ग्रीष्मऋतु में। वर्षा की अपेक्षा गर्मियों की फसल रसपूर्ण और विशेष स्वादिष्ट होती है।
भारत में होनेवाले अंजीर बहुत बड़े और स्वादिष्ट नहीं होते। भारत के पहाड़ी इलाकों में इसके वृक्ष उगाये जाते हैं। परंतु उत्तम प्रकार के सूखे अंजीर के फल तो यहाँ अरबस्तान से ही आते हैं। सूखे अंजीर वर्षभर बाजार में उपलब्ध होते हैं।
अंजीर की अनेक किस्में होती हैं-गुलाबी, लाल, काली, सफेद, बड़ी, छोटी, तुर्की आदि। फाल्गुन और ज्येष्ठ-आषाढ़ में अंजीर पकते हैं। हरे अंजीर में पोषक तत्त्व विशेष मात्रा में होते हैं।
अंजीर के कच्चे फल का साग बनता है। परंतु यह स्वादिष्ट नहीं होता । पके अंजीरों का मुरब्बा बनता है। यह पित्तशामक और रक्तवर्धक होता है।
सूखे अंजीर में अनेक प्रकार के उपयोगी क्षार और विटामिन होते हैं। अंजीर में विशेषतः लौहतत्त्व सबसे ज्यादा है। अंजीर खाने से जठर तेज होता है। फलतः जोर से खूब भूख लगती है। जिन लोगों की शारीरिक शक्ति क्षीण हो गई हो, पांडुरोग-सी स्थिति हो गई हो, थकावट महसूस होती हो, ऐसे लोगों के लिए प्रतिदिन दो चार अंजीर खाना हितावह है। अंजीर को खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए। ताकि पचने में सरलता रहेगी। सूखे अंजीरों को खाने के एक-एक घंटे पहले यदि पानी में भिगोकर रखा जाए तो उन्हें चबाने में सुगमता रहती है।
क्षयरोग में अंजीर पथ्य आहार माना जाता है। अंजीर रक्तवृद्धि करते हैं। अंजीर के मूल और डालियों की छाल का उपयोग कुष्ठहरघृत बनाने में होता है। अंजीर की लाख से सर्वोत्कृष्ट महावर बनता है। अंजीर के सूखे फलों का उपयोग औषधि के रूप में होता है। खाने के लिए दो से चार अंजीर उचित मात्रा है।
अंजीर ठंडे, स्वादिष्ट, मधुर, गुरु एवं पित्तविकार, रक्तविकार और वायु के नाशक हैं। छोटे अंजीर इसकी अपेक्षा भिन्न गुणवाले होते हैं, अर्थात् पित्तकारक हैं। अंजीर रस में मधुर, विपाक में मधुर, शीतकार्य और सारक हैं। ये पित्तप्रकोप, रक्तविकार, दाह, कफ और वात के नाशक हैं। अंजीर पौष्टिक, कफशामक और गुरु हैं। सूखी खाँसी में ये हितावह हैं। रात को मर्यादित रूप में खाने से उदरशुद्धि होती है।
अंजीर को दूध में उबालकर, उबाला हुआ अंजीर खाकर वह दूध पीने से शक्ति में वृद्धि होती है तथा खून भी बढ़ता है।
सूखे अंजीर के टुकड़ों एवं बादाम के गर्भ को गर्म पानी में भिगोकर रख दीजिए। फिर ऊपर से छिलके निकालकर सुखा दीजिए। उसमें
मिसरी, इलायची-दानों की बुकनी, केसर, चिरोंजी पिश्ते व बलदाने कूटकर डालिए और गाय के घी में आठ दिन तक भिगोकर रखिए। यह भक्षण प्रतिदिन करीब दो तोला खाने से क्षीण शक्तिवालों के धातु और रक्त में वृद्ध होती है। (धातुवृद्धि और रक्तवृद्धि के लिए अंजीर उत्तम औषध है।)
पका हुआ अंजीर लेकर, छीलकर, उसके आमने-सामने दो चीरे लगाइए। इन चीरों में शक्कर भरकर अंजीर को रात में शबनम (ओस) में रख दीजिए। इस प्रकार के अंजीर को पन्द्रह दिन तक प्रतिदिन प्रातः खाने से शरीर की गर्मी निकल जाती है और रक्तवृद्धि होती है।
एक सूखे अंजीर और पाँच-दस बादाम को दूध में डालकर उबालें । इसमें थोड़ी चीनी डालकर रोज सुबह पीने से रक्तशुद्धि होती है, गर्मी शांत होती है, उदरशुद्धि होती है (कब्ज मिटती है) और शरीर बलवान बनता है।
रोज थोड़े-थोड़े अंजीर खाने से पुरानी कब्जियत में मल साफ और नियमित आता है। दो से चार सूखे अंजीर, सुबह-शाम दूध में गर्म करके खाने से कफ की मात्रा घटती है, शरीर में नई शक्ति आती है और दमा मिटता है।
अंजीर और गोरख-इमली (जंगल-जलेबी) आधा-आधा तोला एकत्र कर रोज सुबह लेने से हृदयावरोध तथा श्वासरोग की तकलीफ दूर होती है।
सूखे अंजीर को पानी में उबालकर लेप करने से गले के भीतर की सूजन मिटती है।
अंजीर के वृक्ष की छाल को पानी के साथ पीस, कल्क कर, उस कल्क से चारगुना घी सिद्ध कर, हरताल की भस्म के साथ देने से श्वेतकुष्ठ मिटता है।
अंजीर को चटनी की तरह पीस, गर्म कर, पुल्टीस बनाइए। दो-दो घंटे इस प्रकार गई पुल्टीस बनाकर बाँधने से बद की वेदना शांत होती है एवं अपक्व बद (गिलटी) जल्दी पक जाती है।
अंजीर की पुल्टीस बनाकर फोड़ों पर बाँधी जाती है। इसके फल की पुल्टीस फोड़ों को पकाती है।
अंजीर पचने में भारी होते हैं, अतः इनका उपयोग पाचनशक्ति के अनुसार ही करना चाहिए। ज्यादा अंजीर खाने से पेट में शूल उत्पन्न करते हैं। फलतः पेट में पीड़ा होती है और कभी पेचिश हो जाने की भी संभावना रहती है। अंजीर अधिक खाने से यकृत और आमाशय को नुकसान भी पहुँचाते हैं। (अंजीर से होनेवाली विकृति की शांति बादाम खाने से होती है।)
वैज्ञानिक मत के अनुसार सूखे अंजीर में लौह और विटामिन ‘ए’ है। इसमें लगभग बासठ प्रतिशत द्राक्ष-शर्करा है। इसके अलावा इसमें चूना, सोडियम, पोटेशियम, मॅग्नेशियम, गंधक, फ्लोरिन, सिलिकोन, गोंद, फॉस्फोरिक एसिड, लवण और आल्ब्युमिन है। छोटे बच्चों के मलावरोध में तथा मधुमेह में सूखे अंजीर दिये जाते हैं। बच्चे जब काँच का टुकड़ा निगल जाते हैं तब उसे बाहर निकालने के लिए अंजीर खिलाए जाते हैं। श्वासरोगी को रोज सुबह सूखे अंजीर खिलाते हैं। अंजीर को थोड़े-से पानी में उबालकर फोड़े पर लेप करने से फोड़ा जल्दी पक जाता है।