केला खाने के फायदे
केवल असम में ही पन्द्रह किस्म के केले होते हैं।
लोटन, चंपाचीनी, रामकला केले, इलायची केले, तिकोन, खासडिए और मोटी छालवाले केले-वगैरह केले की प्रमुख किस्में हैं। इसके अलावा रंगभेद से पीली (सुनहरी) छालवाले, हरी छालवाले और लाल छालवाले केले भी होते हैं। इलायची केले कद में छोटे होते हैं, परंतु खूब मीठे होते हैं। सफेद किस्म के इलायची केले तो मानों शर्करा के टुकड़े ही होते हैं।
पके और कच्चे दोनों प्रकार के केलों का उपयोग होता है। पके केलों को छिलका निकालकर सीधे ही खा सकते हैं, जबकि कच्चे केलों का साग बनाया जाता है। केले के फूल का भी साग बनता है। मैसूर व मदास (तमिलनाडु) में साग के अलावा कच्चे केलों से भाकरी भी बनती है। केलों से पकोड़े, रायता आदि चीजें भी बनती हैं।
कैलाश सुबह में खाया जाए तो उसकी कीमत तांबे जितनी दोपहर में खाने पर चांदी जितनी और शाम को खाने पर उसकी कीमत सोने के बराबर है ।” यह आयुर्वेद की मान्यता है।
केले की मिठास उसमें रहे हुए ग्लुकोज तत्त्व पर आधारित है। ग्लुकोज कुदरती शर्करा है। यह स्वाद में मिठास के उपरांत स्नायुओं को पोषण और शक्ति प्रदान करता है।
पके केले स्त्रियों के लिए भी बहुत लाभकारी हैं। प्रदर और रक्तवात में तो स्त्रियों को पके केले विशेष रूप से खाने चाहिए। दूध और केलों को पूर्ण आहार माना जाता है। दूध और केले बच्चों के लिए भी उत्तम आहार है। (यद्यपि आयुर्वेद दूध और केलों को विरुद्ध आहार मानता है।) यदि जठराग्नि मंद न हो तो, दुर्बल व अशक्त बच्चों के लिए केला सर्वोत्तम आहार है।
पोषक तत्त्वों की दृष्टि से केला कीमती खाद्य पदार्थ है। केलों में खनिज द्रव्य भी भारी मात्रा में हैं। अतः जो लोग अपने शरीर को नित्य विकसित रखना चाहते हैं। उनके लिए केले आशीर्वादरूप हैं।
कुछ लोगों की मान्यता है कि रात में केले खाने से पचते नहीं, परंतु यह मान्यता गलत है। पके केले सरलता से पचते हैं। एकदम पीले और जिनके ऊपर कत्थई या बादामी रंग के छीटें से पड़े हों, ऐसे केलों को ही पके केले समझें। इन केलों में शर्करा ग्लुकोज की मात्रा अधिक होने के कारण, इनका सेवन करने के दूसरे दिन दस्त साफ आता है। बच्चों व बड़ी उम्रवालों एवं कब्ज से पीड़ित लोगों को रात में पके केले खाने से लाभ होता है। उन्हें फिर जुलाब या रेच लेने की जरूरत नहीं पड़ती।
केल के पत्ते, छाल तथा केलों के छाल की राख का रंगकार्य में उपयोग होता है। केल के तने के पानी में पापड़ का आटा गूँदने से वह ज्यादा दिन तक टिकता है, ऐसी मान्यता है। केल के पानी का औषधि के रूप में भी उपयोग होता है। केल के मूल, तने और पत्तों का भी औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है।
केले मधुर, ठंडे, मल को रोकनेवाले, भारी और स्निग्ध हैं। ये कफ, पित, रक्तविकार या रक्तपित्त, दाह, क्षत, क्षय और वायु को मिटाते हैं। पक्के केले मधुर, ठंडे, पाक में भी मधुर, वीर्यवर्धक, पुष्टिदायक, कवि-उपादक और मांस को बढ़ानेवाले एवं भूख, प्यास, नेत्ररोग और प्रमेह को मिटानेवाले हैं।
इन केले के फूल स्निग्ध, मधुर, कसैले, गुरु, ग्राही, कटु, अग्नि-प्रदीपक, वातनाशक एवं कुछ उष्ण भी हैं। ये रक्तपित्त, कृमि, क्षय और कोढ़ को मिटाते हैं।
विटामिन ‘सी’ के अभाव में होनेवाले स्कर्वी नामक रोग में मोसंबी के रस का उपचार महँगा पड़ता है। विटामिन ‘सी’ से युक्त सस्ते केले मोसंबी के समान ही गुणकारी हैं। इसमें विटामिन ‘ए’ ज्यादा होने से दाँतों के लिए एवं विटामिन ‘एच’ होने से खर्जु और चमड़ी के अन्य रोगों के लिए बहुत उपयोगी हैं।
केलों में आहार के अन्य घटकों में लोह, तांबा, मेंग्नीज, फॉस्फोरस, कॅल्शियम (चूना) सदृश खनिज तत्त्व हैं। अन्य फलों की अपेक्षा केलों में इन तत्त्वों की मात्रा अधिक है। इसमें अवस्थित लोह ऐसे रासायनिक पदार्थों के साथ सम्बद्ध है कि जिनका रक्त के तत्त्व में शीघ्र रूपांतर होता है। केलों की यह विशेषता है।
पके केलों को छाया में सुखाकर, कूटकर, कपड़े से छानकर दूध में मिलाने से छोटा बच्चा भी इसे सरलतापूर्वक पी सकता है। छः दिन के छोटे बच्चे को भी यह निःसंकोचं दिया जा सकता है। यह आहार देने से बच्चे की भूख शांत होती है, बच्चा तेजी से बढ़ता है और लालिमायुक्त तथा सुदृढ़ शरीरवाला बनता है। पर्याप्त आहार और पोषण के अभाव में दुबले-पतले बने बच्चों के लिए अथवा बालशोष (जिसमें बच्चों के हाथ-पैर और शरीर सूख जाता है) नामक रोग के शिकार बने बच्चों के लिए आहार और उपचार की दृष्टि से केले महत्त्वपूर्ण खाद्य हैं। आलू और बेलों में कार्बोहाइड्रेट और खनिज तत्त्व समान मात्रा में हैं। परंतु आलू को बिना पकाये नहीं खा सकते। उपरांत, आलू को पकाने से उसमें अवस्थित विटामिन ‘सी’ सुरक्षित रहता है। केलों के आहार की यह भी एक विशेषता है।
केलों में पोषण और गर्मी की आपूर्ति कर शरीर की वृद्धि करनेवाले तत्त्व-प्रोटीन और चरबी अल्प मात्रा में हैं। प्रोटीन और चरबी की रि की पूर्ति करने के लिए ही केले और दूध का सेवन करना चाहिए। दूध में प्रोटीन और चरबी अधिक मात्रा में हैं। आधुनिक आहारावि दूध भी केलों व दूध के आहार को, उनके पोषक तत्वों के कारण, मानव-शरीर के लिए युक्ताहार कहा है। (दूध और केलों के सेवन-काल में तीन घंटों का अंतर आवश्यक है।)
शरीर को गर्मी-कॅलरी प्रदान करने की शक्ति दूसरे फलों की अपेडा केलों में अधिक है और प्रोटीन तत्त्व कम है, अतः मूत्राशय के रोगों में आहार के रूप में यह गुणकारी है। इसमें आल्ब्युमिन कम मात्रा में होने से मधुमेह के रोगियों के लिए आहार के रूप में यह अत्यंत उपयोगी है। केले आँतों में विशेष प्रकार के जीवाणुओं को पुष्टि प्रदान करते हैं। ये जीवाणु हानिकारक अन्य जीवाणुओं का नाश करते हैं। आँतों की सड़न को ये रोकते हैं। अतः इसके सेवन से आंत्र-रोग नहीं होते। खनिज तत्वों का परिपाक आम्ल आल्केलाइन होने से जठर में खटाई नहीं बढ़ती, इसलिए, जिनके जठर में आवश्यकता से अधिक खटाई हो, उन रोगियों को भी केले बहुत अनुकूल रहते हैं। इसमें सरलता से पचनेवाले पोषक तत्त्व खूब रहते हैं। अतः बीमारी में दवाई के रूप में इनका इस्तेमाल होता है। संग्रहणी और अतिसार में जब आहार का सेवन करने पर प्रतिबंध हो तब केले आहार के तौर पर अति उत्तम हैं। केले में पोषक तत्त्व ज्यादा होने पर भी चरबी की मात्रा अल्प है, अतः वजन कम करने के लिए केलों का आहार दिया जाता है।
पके केले और घी खाने से पित्तरोग मिटता है।
पके केले खाने से तृषारोग मिटता है, प्यास दूर होती है। शहद मिलाकर पीने से उल्टी बंद होती है।
कदली वृक्ष का रस जंगली कदली के पत्तों की राख एक माशा एक तोला शहद में मिलाकर चाटने से हिचकी फौरन बंद हो जाती है।
कदलीवृक्ष के भुट्टों का केसरयुक्त हिस्सा कुतरकर उसमें रात को
काली मिर्च का चूर्ण भर दें। प्रातः यह भुट्टा घी में तलकर खाने से श्वासरोग शीघ्र दूर होता है। (श्वासरोग के लिए यह प्रयोग उत्तम है।)
भोजन करने के बाद तीन पके केले कुछ महीनों तक खाने से दुर्बल व्यक्ति का शरीर पुष्ट-मांसल बनता है। पके केले शहद के साथ खाने से पीलिया मिटता है।
एक पका केला आधा तोला घी के साथ सुबह-शाम (दिन में दो बार) एक सप्ताह तक खाने से धातुविकार मिटता है। (ठंडी महसूस हो तो उसमें चार-पाँच बूँद शहद मिलाइए ।)
कच्चे केलों को सुखाकर चूर्ण बनाइए। आधा तोला चूर्ण दूध के साथ प्रतिदिन लेने से प्रमेह में बहुत लाभ होता है।
कदलीवृक्ष के तने का बीचवाला गोल हिस्सा काटकर, धूप में सुखाकर, उसका चूर्ण बनाइए। इस चूर्ण का शर्करा और पानी के साथ सेवन करने से शरीर की गर्मी एवं प्रमेह दूर होता है।
कदलीवृक्ष का रस गोमूत्र में पीने से मूत्रकृच्छ्र और पेशाब की गर्मी दूर होती है।
कदलीवृक्ष का चार-पाँच तोला पानी गर्म घी में डालकर पीने से बंद पेशाब फौरन छूट जाता है।
केले खाने से मधुमेह के रोगियों को बार-बार पेशाब के लिए नहीं जाना पड़ता।
एक पका केला आधा तोला घी के साथ सुबह-शाम दिन में दो बार स्त्रियों को खिलाने से सप्ताह में प्रदर मिटता है।
कदलीवृक्ष के कोमल पत्तों को बारीक पीसकर, दूध में डालकर, खीर बनाकर, स्त्रियों को पिलाने से प्रदर मिटता है।
पके केले, आँवलों का रस और शर्करा एकत्र कर स्त्रियों को पिलाने से प्रदर और सोम (बहुमूत्र) रोग मिटते हैं।
केले नीबू के साथ खाने से पेचिश मिटता है और आहार शीघ्र पचता है। केले में दही मिलाकर खाने से भी पेचिश और दस्त में लाभ होता है।
घी में पके केले खाने से अथवा कदलीवृक्ष या रस पीने से भस्मक रोग मिटता है।
केलों के छिलके गले के ऊपर (बाहर की ओर) बाँधने से गले की सूजन मिटती है और टॉन्सिल्स में भी फायदा होता है।
केले और कमल के पत्तों पर सोने से शरीर का दाह शान्त होता है। कदलीवृक्ष के गर्भ का रस निकालकर पीने से पेट में पहुँचे हुए किस का नाश होता है।
कच्चे केले (अपक्व स्टार्चवाले) पचने में भारी होते हैं। कच्चे केले खाने से पेट में भार महसूस होता है और पेट में दबाव बढ़ता है। ये पेर में दर्द करते हैं। पके केले भी खूब चबा-चबाकर खाने चाहिए। सर्दी-जुकाम होने पर केले खाना हितावह नहीं है। एकदम पके हुए या अत्यंत गीले केले कभी न खाएँ। पेटू की तरह भी केले मत खाइए। केले खाकर तुरंत ऊपर पानी न पीएँ। इससे जुकाम होता है। मंदाग्निवाले लोगों को केले खाने से अनेक प्रकार के रोग होते हैं, यह बात ध्यान में रखकर, समझदारीपूर्वक केलों का सेवन करें। केलों का सेवन करने के बाद इलायची खा लेनी चाहिए।
यूनानी वैदक के मतानुसार केले अनुष्णशीत तथा संग्राही हैं। ये शरीर को पुष्ट करनेवाले, चिरपाकी, अनाहकारी, वायु बढ़ाकर अफरा लानेवाले और तेज जठराग्निवाले व्यक्तियों के लिए हितकारी हैं। मंदाग्निवाले लोग केलों को जल्दी पचा नहीं सकते। केलों में वाजीकरण गुण है। सूखी खाँसी में केलों का सेवन करने से लाभ होता है। केलों में अंशतः लेखनीय गुण हैं, अतः उन्हें नीबू के रस के साथ मसलकर खुजली और दाद पर पतला लेप करने से लाभ होता है। अग्निदग्ध स्थान पर केले लगाने से जलने की वेदना शान्त होती है।
वैज्ञानिक मतानुसार केले स्टार्च से भरपूर हैं। केलों में कार्बोहाइड्रेट 20 से 22 प्रतिशत है, जो अन्य फलों की तुलना में अधिक है। इसमें ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘इ’, ‘जी’ और ‘एच’ विटामिन भारी मात्रा में हैं। इसमें क्लोरिन, ताँबा, लोह, मैग्नीज, पोटेशियम, सोडियम, गंधक सिल्का वगैरह अत्यंत उपयोगी और पौष्टिक खनिज पदार्थ हैं। इसके अलावा कैल्शियम और मॅग्नेशियम की मात्रा फॉस्फोरस से अधिक है। इसलिए यह ज्यादा पौष्टिक और गुणकारी है। केलों में अवस्थित कैल्शियम (चूना) और कॉस्फोरस अस्थियों के गठन एवं विकास के लिए आवश्यक है। केलों में रक्तवृद्धि करनेवाले तत्त्व-लौह, ताँबा और मेंग्नीज हैं। ये तीनों खनिज एकमा गोलोबीन की रचना में उपयोगी हैं। रक्त में यदि हेमोग्लोबीन कम हो तो उसकी लालिमा कम हो जाती है और शरीर फीका पड़ जाता है। इनों में लौह है। यह रक्त को लाल और निर्मल रखता है। बच्चों के दिन-प्रतिदिन विकसित गठन के लिए कैल्शियम और फॉस्फोरस नामक तत्व अत्यंत उपयोगी हैं। बच्चों के शरीर पर फीकापन न आने पाए इसके लिए उन्हें केले खिलाना जरूरी है।