खिरनी खाने के फायदे


खिरनी मधुर होने से तरोताजा और सुखाकर दोनों रूप में खाई जाती है। ताजा फलों को घी लगाकर, दो दिनों तक रहने दें। फिर खाने से इसके दूध का शोषण होकर यह स्वादिष्ट बनती है। खिरनी के सुखाये हुए फलों को खिरनी-कुकड़ी कहते हैं। प्राचीन काल से भारत में इसका उपयोग होता है। चरक और सुश्रुत ने भी इसके औषधीय गुणों का उल्लेख किया है। खिरनी पौष्टिक है, हृदय के लिए हितकारी है, कुष्ठरोग पर भी यह उपयोगी है। खिरनी खाने से गर्मी कम लगती है। इसके थोड़े-से फल खाने से भूख संतुष्ट हो जाती है। खिरनी स्थूलतावर्धक है। खिरनी खाने से वजन बढ़ता है। खिरनी पचने में दुगुना समय लगता है। खिरनी के वृक्ष से लालिमा लिए गोंद निकलता है। इसके बीज से तेल निकलता है।

Khirni

खिरनी की लकड़ी भी खूब सख्त, मजबूत और चिकनी एवं वजन में अत्यंत भारी होती है। यह लकड़ी खूब मजबूत होती है, अतः इसका उपयोग गन्ने पेलने की मशीनें, कोल्हू और बैलगाड़ी के पहिए बनाने में होता है। इसकी लकड़ी से कपड़े रंगने की कुंडियाँ भी बनाई जाती हैं। इसकी लकड़ी जलाने के काम में भी आती है। इसके पत्ते चौपायों को चारे के रूप में खिलाये जाते हैं। इसके फलों और पत्तों का औषधि के रूप में उपयोग होता है।

खिरनी वीर्य तथा बल को बढ़ानेवाली, स्निग्ध, ठंडी और भारी है। यह तृषा, मूर्च्छा, मद, भ्रांति, क्षय, त्रिदोष और रक्तविकार मिटाती है। खिरनी की कुकड़ियाँ (सूखे फल) उष्ण, पौष्टिक और अधिक मात्रा में खाने पर दस्त लाती हैं।

खिरनी रस में मधुर, विपाक में अम्ल, शीतवीर्य, रुचिकर, वातशामक, पित्तशामक, गुरु, तृप्तिकर, वृष्य, बृहण हृद्य, स्निग्ध और प्रमेहनाशक है। इसकी छाल बकुल की तरह ग्राही है। इसके बीजों का तेल स्नेहन, कामोत्तेजक और पौष्टिक है।

एक सेर अच्छी पकी खिरनी को बीज समेत कूट-मसल डालिए। उसमें पावभर घी डालकर आग पर ठीक से सेंक लीजिए। इसके बाद उसमें सफेद मुसली, काली मुसली, क्रौंचा बीज, गोखरू, बारीक लाल साँदनी की कुकड़ी, सोंठ, काली मिर्च, तगर, जायफल, जावित्री, इलायची दारचीनी और लौंग-ये सब चीजें आधा-आधा तोला लेकर, उनका चूर्ण बनाइए। फिर दस तोला शर्करा की चासनी बनाकर, उसमें यह चूर्ण डालकर पाक तैयार कीजिए। यह पाक रोज सुबह डेढ़-दो तोला लेने से शरीर की शक्ति, बल और वीर्य की वृद्धि होती है, मस्तिष्क पुष्ट होता है तथा कमर का दर्द दूर होता है।

खिरनी के वृक्ष के तने पर उत्पन्न गाँठों को आग में सेककर अथवा पुटपाक-विधि से उसका रस निकालकर, उसमें शहद और पीपर का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पीने से मिरगी (मूच्छा) का ताजा रोग एक-दो महीने में दूर होता है।

खिरनी के पत्ते दूध में पीस, कल्क बनाकर, एक तोला कल्क घी में सेंककर सुबह-शाम खाने से थोड़े ही दिनों में रक्तपित्त एवं स्त्रियों का पित्तप्रदर-रक्तप्रदर रोग मिट जाता है।

खिरनी के पत्तों और कैथ (कपित्थ) के पत्तों को पीसकर, उसका कल्क बनाकर, उसे घी में सेंककर देने से प्रदर, वातपित्त और रक्तपित्त में लाभ होता है।

खिरनी के पत्तों का रस स्त्रियों के धातुस्राव (प्रदर) में लाभदायक है।

खिरनी के बीज का गर्भ पीसकर, निम्बफल जितनी पुटली बनाकर, उससे एक लंबी डोर बाँधकर, डोर का एक छोर बाहर की ओर लटकता रखकर, उस पुटली को योनिमार्ग में कुछ दिनों तक रखने से बीजाशय अवरुद्ध होकर बंद पड़ा हुआ स्त्रियों का मासिक धर्म पुनः चालू होता है। खिरनी के पत्तों को दूध में पीसकर, उसका कल्क बनाकर, रात को

मुँह पर बाँधने से थोड़े ही दिनों में मुँह पर के काले दाग दूर हो जाते हैं। खिरनी का दूध दुखती दाढ़ पर लगाने से दाँतों का दर्द (दंतशूल) मिटता है।

खिरनी के बीज को पानी में घिसकर बिच्छू के डंक पर लेप करने से बिच्छू का जहर उतर जाता है।

खिरनी को धोकर खाइए। बिना धोये खाने से मुँह चिकना हो जाता है। कभी-कभी खिरनी खाने से सांसत होती है। इसके निवारण के लिए छाछ में नमक डालकर पिलाई जाती है। अपक्व या जिसे दबाने पर दूध निकले इस प्रकार की ताजा खिरनी कसैली होती है। जीभ पर उसके रस की तह जमा हो जाए इस प्रकार की खिरनी खाकर यदि ऊपर पानी पी लिया जाए तो छाती और हृदय में विशेष प्रकार की घबराहट उत्पन्न होती है। ऐसा होने पर नमक की डली मुँह में रखकर दो-तीन मिनट तक चूस लें। इससे साँसत-घबराहट दूर हो जाती है।