सेम की बेल बहुत ही बड़ी होती है और चार-पाँच वर्ष तक टिकती है। इसे त्रिदल पत्ते लगते हैं। इस बेल को वृक्ष या मंडप पर चढ़ा देने से सेम-फलियाँ अच्छी आती हैं। अच्छे निथारवाली जमीन इसको अनुकूल आती है। इसके बीज सामान्यतः ज्येष्ठ या आषाढ़ में बोये जाते हैं।

सँकरी, चौड़ी, लंबी, चौधारी, सफेद रंग की, काले रंग की, इस प्रकार सेम की अनेक किस्में होती हैं। किसी सेम में हरे रंग के, तो किसी सेम में काले रंग के बीज होते हैं। बोने के चार-पाँच महीने बाद फलियाँ लगती हैं।

Benefits of beans

सेमफली के फायदे [Benefits of beans]


सेम की नरम फलियों एवं उसके अंदर के दानों का साग होता है। यह साग स्वादिष्ट होता है। सेमफली और उसके दाने सामान्यतः वातल माने जाते हैं। परंतु यह अपने विलक्षण स्वाद से मनुष्य का सदाकाल आकर्षण करती रही है। सेम का वातल गुण कम करने के लिए इसके साग में काफी मात्रा में लहसुन डालना चाहिए।

सेमफली रस तथा पाक में मधुर, शीतल, भारी, बलप्रद, दाहक, कफ करनेवाली एवं वायु तथा पित्त को जीतनेवाली है। काली और चौड़ी सेमफली वायु को दूर करनेवाली, गरिष्ठ, गर्म, कफ तथा पित्त करनेवाली, वीर्य तथा अग्नि को कम करनेवाली, रुचि उत्पन्न करनेवाली, मल को बाँधनेवाली और भारी है।

बड़ी सेमफली रुचिकर, वातल, अग्निदीपक और मुख को प्रिय है। काली सेमफली, कंठ्य मेध्य, अग्निदीपक, कसैली, रसकाल में मधुर, रुचिकर और ग्राहक है। सफेद सेमफली वात तथा कफ करनेवाली और विषनाशक है। पीली सेमफली ज्यादा गुणवाली है।

सात वर्ष पुरानी सेम के मूल की जमीन के भीतर रही हुई गाँठ को गाय के ताजा दूध में घिसकर पिलाने से एवं फोड़े पर उसका लेप करने से फोड़ा मिट जाता है।

सेम के पत्तों का रस बिच्छू के डंक पर लगाया जाता है।