गाजर के फायदे

गाजर कुदरत की अमूल्य भेंट और शक्ति का भंडार है। गाजर फल भी है और साग भी। इसकी पैदावार भारत में सभी स्थानों में होती है। मूली की तरह गाजर भी जमीन के भीतर होती है। इसके पौधे डेढ़-दो फीट ऊँचे होते हैं। गाजर के लिए ऐसी जमीन अनुकूल रहती है जो न रेतीली हो और न बेसर, पर अच्छे निथारवाली नर्म-भुरभुरी एवं कुछ-कुछ खारापन लिए हुए हो। अम्लतावाली जमीन में गाजर की फसल अच्छी नहीं होती। गाजर जमीन में से अधिक मात्रा में पोषक तत्त्वों व पोटाश को चूस लेती है। गाजर को अगस्त के मध्य से दिसम्बर के प्रारंभ तक अथवा भाद्रपद से कार्तिक मास तक की समयावधि में बोया जाता है।

Benefits of carrot

गाजर की अनेक किस्में होती हैं। देशी गाजर का रंग लाल और विलायती गाजर का रंग गुलाबी होता है। अमुक किस्म की गाजर छोटी और अमुक किस्म की गाजर बड़ी होती है। लाल और काले रंग की गाजर अच्छी मानी जाती है। लाल रंग और शंकु आकार की गाजर अत्यंत मीठी होती है। दिल्ली के आसपास की गाजर श्रेष्ठ मानी जाती है। गाजर कच्ची खाई जाती है तथा उसकी तरकारी भी बनती है। गाजर के ऊपर की पतली छाल और बीचवाला पीला हिस्सा निकालकर, बारीक टुकड़े कर, उसमें आवश्यकतानुसार मिठास और खटाई डालने से स्वादिष्ट तरकारी बनती है। रोटी के साथ यह तरकारी बहुत मीठी लगती है। कच्ची गाजर का कचूमर भी बनाया जाता है। गाजर का अचार, मिठाई (हलुवा) आदि भी बनाये जाते हैं।

काले गाजर की काँजी बनाई जाती है। भूख को जागृत करने के लिए यह एक उत्तम पेय माना जाता है। यदि गाजर का उचित मात्रा में सेवन किया जाए तो इसमें से बहुत पोषक तत्त्व उपलब्ध होते हैं। महँगे फलों और महँगी साग-भाजी की अपेक्षा सस्ती गाजर उत्तम है। इसका कच्चा कचूमर वायु-गैस को दूर करता है। गाजर का ठीक से लाभ प्राप्त करने के लिए इसका कचूमर बनाकर अथवा इसको बारीक काटकर, इसमें नमक, हल्दी, धनिया-जीरा आदि डालकर खाना चाहिए। ताजा-हरी गाजर खाने से उसका पूरा-पूरा लाभ मिलता है। मौसम में आबालवृद्ध सभी को गाजर का यथेष्ट उपयोग करना चाहिए। गाय, भैंस आदि मवेशियों को गाजर खिलाने से वे पुष्ट होते हैं और ज्यादा दूध देते हैं। गाजर एवं इसके पौधे के ऊपर के पत्तों का उपयोग पशुओं के, विशेषकर घोड़ों के घास-चारे के लिए किया जाता है।

गाजर मधुर, तीक्ष्ण, कटु, गर्म, अग्नि को प्रदीप्त करनेवाली, हल्की, मल को रोकनेवाली एवं रक्तपित्त, अर्श, ग्रहणी, कफ और वायु मिटानेवाली है। यह कृमिनाशक, हृद्य, रुक्ष, विदाही और शुक्र को बिगाड़नेवाली है। इसके बीज उष्ण हैं, अतः गर्भपात करने वाले माने जाते हैं।

शरीर की बाह्य एवं आंतरत्वचा में एक आस्तरण धातु अवस्थित है। यह शरीर का रक्षण करती है। उपरांत स्राव, शोषण, मल का निष्कासन आदि कार्य भी इसी के कारण होते हैं। जिन्हें विटामिन ‘ए’ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है उनकी आस्तरण धातु आर्द्र और मृदु रहती है। विटामिन ‘ए’ के अभाव में ये आस्तरण-धातुकोष शुष्क और कठोर बन जाते हैं। फलतः शरीर की अनेक स्वाभाविक क्रियाओं में विघ्न उपस्थित होता है और शरीर व्याधिग्रस्त बनता है। शरीर की वृद्धि रुक जाती है होता शरीर की क्षमता घट जाती है। परिणामस्वरूप अनेक प्रकार के रोग होते हैं। अनाज को पचने में देर लगती है, चमड़ी खुरदुरी हो जाती है, होते रोगों का उद्भव होता है, रात में दिखाई नहीं देता, दाँतों के मसूड़ों में पीब उत्पन्न होता है तथा पथरी, क्षय आदि रोग होते हैं एवं अस्थियों नर्म पड़ जाती हैं। विटामिन ‘ए’ की त्रुटि को पूर्ण करने के लिए गाजर सर्वश्रेष्ठ और सस्ता उपाय है। गाजर के सेवन से शरीर मुलायम और सुंदर बनता है, शरीर में शक्ति का संचार होता है और वजन भी बढ़ता है। बच्चों को गाजर का रस पिलाने से उनके दाँत सरलता से निकलते हैं और दूध भी ठीक से हजम होता है। अर्श, क्षयरोग, पित्त आदि में गाजर का सेवन अत्यंत हितकारी है। गाजर का रस मस्तिष्क के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। शारीरिक एवं बौद्धिक विकास के लिए गाजर का सेवन लाभदायक है। रोगों के आक्रमण से व्यक्ति को सुरक्षित रखने का विशेष गुण गाजर में है। गुदा की जलन दूर करने में भी गाजर बेजोड़ है। पेट तथा आँतों के रोगों की यह रामबाण औषधि है।

साफ की हुई गाजर की चार चीरियाँ कर, नमक लगाकर रख छोड़िए। सप्ताह के बाद, उसमें से निकला हुआ पानी फेंक दीजिए और गाजर को धूप में सुखा दीजिए। सूखने के पश्चात् उसमें हल्दी, नमक राई और तेल मिलाकर रख दीजिए। इस प्रकार गाजर का स्वादिष्ट और निर्दोष अचार तैयार होता है।

अधिक दस्त लगने पर गाजर को उबालकर, उसका सूप बनाकर पीना चाहिए।

गाजर का साग घी या तेल में पकाकर, उसमें अनार का रस और दही मिलाकर खाने से रक्तार्थ में लाभ होता है।

नमक और खटाईरहित गाजर का साग रोज खाने से और मिठास का त्याग करने से सूजन के रोगी को बहुत लाभ होता है (केवल गाजर के रस पर भी रह सकते हैं।)

गाजर के बीज पानी में पीसकर पाँच दिन तक पीने से स्त्रियों को ऋतुप्राप्ति होती है।गाजर को उबालकर, उसकी पुल्टीस बनाकर बाँधने से जख्म, फोड़े और हर प्रकार का खराब घाव अच्छा होता है। गाजर के बीचवाला हिस्सा (पीत) उबालकर बाँधने से भी पके हुए तथा पुराने घाव अच्छे होते हैं। कच्ची गाजर को कुचलकर, आटे में मिलाकर बाँधने से फोड़े तथा जलनवाले घाव अच्छे होते हैं।

कद्दकश पर कसी अथवा पेली हुई गाजर में नमक डालकर, बिना पानी डालै गर्म कर, उबालकर खर्जु पर बाँधने से फायदा होता है।

गाजर के पत्तों के दोनों ओर घी लगाकर, गर्मकर, रस निकालकर, एक-एक बूँद रस कान तथा नाक में डालने से आधासीसी मिटता है।

गाजर के रस की चार-पाँच बूँद दोनों नासाछिद्रों में डालने से साँस और हिचकी में लाभ होता है। गाजर को पीसकर सूँघने से भी हिचकी में फायदा करती है।

गाजर खाने के बाद तुरंत पानी पीने से और गाजर के बीच का पीला हिस्सा (पीत) खाने से खाँसी होती है। अधिक गाजर खाने से पेट में पीड़ा होने लगे तो गुड़ खिलाइए। जिनके पेट में वायु होने की शिकायत हो उन्हें गाजर का सेवन करने से अधिक वायु होती है। ऐसे लोगों को गाजर का रस निकालकर अथवा गाजर को उबालकर उसका पानी पीना चाहिए।

वैज्ञानिक मतानुसार गाजर में प्रोटीन, चरबी, कार्बोहाइड्रेट, कॅल्शियम, फॉस्फरस, गंधक और स्टार्च होता है। गाजर की नारंगी रंग की किस्मों में केरोटिन प्रचुर मात्रा में होता है। गाजर को अंग्रेजी में ‘केरट’ कहते हैं। इससे ही ‘केरोटिन’ शब्द बना है। केरोटिन विटामिन ‘ए’ का पुरोगामी है। शरीर में जाने के बाद यकृत में इसका पाचन होने पर विटामिन ‘ए’ उत्पन्न होता है। विटामिन ‘ए’ शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक है। गाजर में फॉस्फरस है, अतः इसके सेवन से आँखों को बहुत लाभ होता है। इसमें लोह होने से इसके सेवन से रक्त बढ़ता है। इसमें गंधक का तत्त्व होने से रक्त की शुद्धि होती है एवं खुजली, दाद, फोड़े-फुन्सियाँ आदि चर्मरोगों में लाभ होता है।