ककड़ी खाने के फायदे [Benefits of cucumber]

कोमल ककड़ी को छीलकर, खड़ी चीरकर,काली मिर्च और नमक डालकर खाने से मीठी लगती है।

तरकारी के अलावा ककड़ी का उपयोग कचूमर, रायता और बड़ी बनाने में भी होता है। इसके बीज के गर्भ का औषधि के रूप में उपयोग होता है। मानसिक रोगों में भी ककड़ी के बीज का उपयोग किया जाता है।

गेहूँ, ज्वार, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द आदि मांसल और गरिष्ठ आहार करने से होनेवाले अपच पर ककड़ी का कचूमर भोजन के साथ या भोजन के बाद लिया जाता है।

benefits of cucumber

अपच के कारण उल्टी हो तो ककड़ी के बीज का गर्भ मढे में पीसकर दिया जाता है। पित्त, दाह, तृषा, मूत्रकृच्छ, पथरी आदि रोगों में भी ककड़ी उपयोगी है। ककड़ी का रस पाँच तोले तक और उसके बीज का गर्भ एक तोले तक की मात्रा में लिया जाता है।

कच्ची ककड़ी रुक्ष, मल को रोकनेवाली, मधुर, भारी, रुचिकारक और पित्तनाशक है। पकी ककड़ी तृषा, अग्नि तथा पित्त करनेवाली है। ककड़ी के मूल ग्राही तथा शीतल हैं।

ककड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े कर, उस पर शक्कर छिड़ककर सेवन करने से गर्मी का दाह मिटता है। ककड़ी के टुकड़ों पर खड़ी शक्कर की चुकनी छिड़ककर सात दिन तक सेवन करने से गर्मी दूर होती है।

ककड़ी के बीज का गर्भ एक तोला और सफेद कमल की कलियाँ एक तोला पीसकर, उसमें जीरा तथा शक्कर मिलाकर एक सप्ताह तक

सेवन करने से स्त्रियों का श्वेतप्रदर रोग मिटता है। कबाड़ी और नीबू के रस में थोड़ा-सा जीरा तथा शक्कर डालकर पीने से पेशाब की जलन मिटती है।

आधा हेर दूध और आपा सेर पानी एकत्र कर, उसमें ककड़ी के बीज का गर्भ पाव तोता और मुराखार हे माशा मिलाकर पीने से पेशाब का रेच लगता है। एवं मूत्राशय की गर्मी, प्रमेह आदि के विकार दूर होते

हैं। (ये पेव खड़े-खड़े ही पीएँ और चलते-फिरते रहे।) ककड़ी के बीज, जीरा और शर्करा पीसकर, पानी में मिलाकर पीने से सूत्रधात मिटता है।
ककड़ी के बीज का गर्भ मुलेठी और दारु हल्दी का चूर्ण चावल के

माँड़ में पीने से मूत्रकृच्छ्र और मूत्रघात मिटता है।

ककड़ी के बीज और कबूतर की विष्ठा पीसकर, चावल के माँड में सेवन करने से पेशाब की पथरी निकल जाती है।

ककड़ी खाने से अथवा ककड़ी और प्याज का रस पीने से शराब का नशा उतर जाता है।

वर्षा और शरद् ऋतु ककड़ी खाने के लिए उचित नहीं मानी जातीं। इन ऋतुओं में अधिक मात्रा में ककड़ी का सेवन पीड़ाकारक होता है।

वैज्ञानिक मत के अनुसार ककड़ी शीतल, पाचक और मूत्रल है। इसके बीज शीतल, मूत्रल और बल्य (बलवर्धक) हैं। अनन्नास और पपीते की तरह ककड़ी प्रत्यक्ष पाचक है। ककड़ी के पत्ते की राख कफ-निःसारक है।