लौकी में दूध के सभी गुण हैं। वास्तव में यह वनस्पति-जन्य दूध ही है इसकी निर्दोषता दर्शाने के लिए इसकी तुलना माता के दूध के साथ की जाती है। लौकी करीब-करीब बारहों महीने उपलब्ध होती है। क्षार-रहित जमीन लौकी के लिए ज्यादा अनुकूल मानी जाती है। इसके बीज सीधे ही बोये जाते हैं।
वर्षाऋतु के आरंभ में इसके दो-दो बीज छः-छः फीट के अंतर पर बोये जाते हैं। ग्रीष्मकालीन फसल के लिए माघ मास में चार-चार फीट के अंतर पर दो-दो फीट चौड़ी नालियाँ बनाकर, तीन-तीन फीट के अंतर पर इसके बीज बोये जाते हैं। इसके पौधे से बेल बनती है। यह बेल लंबाई में फैलती है और उस पर सफेद फूल लगते हैं। भारत में लौकी का उत्पादन भारी मात्रा में होता है।
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लौकी खाने के फायदे [Benefits of bottle gourd]
लौकी की अनेक किस्में हैं-लंबी, तुमड़ी, चिपटी, तूमरा आदि। सामान्यतः लौकी मीठी होती है और तुमड़ी कड़वी। लौकी की एक किस्म को तुमड़ी के आकार के फल लगते हैं। P
उसे ‘मीठी तुमड़ी’ भी कहते हैं और उसका साग बनाने में उपयोग होता है; जबकि कड़वी तुमड़ी के फलों का उपयोग नदी में तैरने के लिए होता है।
लौकी की एक किस्म ‘मगिया लौकी’ के रूप में प्रसिद्ध है। लौकी की एक किस्म का आकार लंबी बोतल जैसा होता है, अतः अंग्रेजी भाषा में इसका bottle gourd नाम पड़ा है। लौकी का गर्भ, उसकी कोमले बेल और उसके पत्तों का वैद्यकीय उपयोग होता है। बुखार की गर्मी मस्तिष्क में न चढ़ जाए, इसके लिए ज्यादा बुखार में लौकी छीलकर सिर और माथे पर बाँधी जाती हैं।
“लौकी कहती-मैं लंबी, चिकनी, मेरे तन पर छाल,
मेरे साग में स्वाद बढ़ाने, मिलाओ मुझमें चने की दाल।”
लौकी के साग में चने की दाल मिलाकर बनाई हुई मिश्र तरकारी स्वादिष्ट और गुणकारी होती है। नरम, चिकनी, सफेद लौकी अच्छी मानी जाती है। लौकी की हलुवा भी अच्छा बनता है। यह खाने में स्वादिष्ट और शीतल होता है।
लौकी गरिष्ठ, रेचक और बलप्रद है। अशक्त और रोगियों के लिए यह लाभदायक है। गर्म प्रकृतिवालों के लिए लौकी का सेवन ठंडक और पोषण देनेवाला एवं अधिक हितकारी है।
सूखी लौकी की तुमड़ी का उपयोग पानी भरने के कूजे के रूप में, घरेलू बर्तन के रूप में, संगीत के वाद्य बनाने के लिए तथा इसी प्रकार के अन्य कार्यों के लिए होता है। सिर में डालने के तेल में, मस्तिष्क को ठंडक देने के लिए भी लौकी का उपयोग होता है। इसके बीज का औषधि के रूप में उपयोग होता है। कड़वी लौकी के फल विषैले होते हैं। उसका उपयोग सख्त जुलाब देने के लिए होता है।
लौकी हृदय के लिए हितकारी, पित्त तथा कफ को नष्ट करनेवाली, गरिष्ठ, वीर्यवर्धक, रुचि उत्पन्न करनेवाली और धातुपुष्टि को बढ़ानेवाली मानी जाती है। लौकी गर्भ की पोषक है। सगर्भा स्त्री के लिए लौकी पुष्टिदायक है। इसके सेवन से सगर्भावस्था की कब्जियत दूर होती है। सुश्रुत लौकी को मल उतारनेवाली, रुक्ष और अत्यंत शीतल मानते हैं।
लौकी को उबालकर उसमें नमक या अन्य तीव्र मसाले न डालकर केवल धनिया, जीरा, हल्दी और हरा धनिया डालकर हृदय रोगी को देने से अच्छी पुष्टि प्राप्त होती है। क्षयरोगी के लिए लौकी अति हितकारी है। लौकी का रस निकालकर थोड़े शहद या शर्करा के साथ देने से शरीर का दाह, गले की जलन, रक्तविकार, फोड़े, शीतपित्त, रक्त में गर्मी का बढ़ जाना, नाक से या गले से रक्त गिरना आदि रोगों में अच्छा लाभ होता है।
लौकी को कद्दूकश पर घिसकर सिर और माये पर बाँधने से वह
बुखार की गर्मी का शोषण करती है। लौकी को चीरकर, दो टुकड़े करके सिर पर बाँधने से मस्तिष्क में यदि गर्मी चढ़ गई हो तो वह उतर जाती है।
लौकी के पत्तों का रस निकालकर अर्श-मस्से पर लगाया जाता है। यूनानी मत के अनुसार, लौकी के बीज मस्तिष्क की गर्मी को दूर करते हैं और मस्तिष्क को पुष्ट करते हैं। मस्तिष्क की गर्मी मिटाने और मस्तिष्क को तर करने के लिए हकीम लौकी के बीज के गर्भ का उपयोग करते हैं।