कोढ़ या कुष्ठ रोग के उपचार

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  • रोग फैलानेवाले दण्डाणुओं के शरीर में प्रवेश करने में कई माह बाद इसके लक्षण प्रकट होते हैं। रोग के दण्डाणु त्वचा की ग्रन्थियों, रक्त नाड़ियों, यकृत, प्लीहा आदि में विषक्रमण कहते हैं।
  • रोग के प्रारम्भ में मांसपेशियों में दर्द होता है और रोगी को ज्वर हो जाता है। शरीर के विभिन्न अंगों में खुजली हो जाती है।
  • त्वचा चिकनी-सी लगती हैं। थोड़ी-सी धूप और परिश्रम से त्वचा में जलन होने लगती है। त्वचा सुन्न हो जाती है। लाल-लाल चकन्ते बनने लगते हैं। पीप का स्राव होने लगता है। नाक, गले व चेहरे पर गाठें बनकर गलने लगती है। स्पर्श का अनुभव नहीं होता।
  • प्रायः सामान्यजन कोढ़ या कुष्ठ रोगियों के सम्बन्ध में यहीं अनुमान लगाते हैं कि उनके अंग गल जाते हैं परन्तु ऐसा नहीं होता है। लगभग 20 प्रतिशत रोगियों में ही ऐसा होता है कि उनके नाक, कान, हाथ, पैर, उंगलियों, पैरों की उंगलियां गल जाती हैं। पहले इसे असाध्य रोगों की श्रेणी में रखा जाता था, परन्तु अब इसकी समुचित चिकित्सा सम्भव है।
  • यह वंशानुगत रोग नहीं है और न ही कोई संक्रामक रोग है। इसके बैक्टीरिया को दण्डाणु कहते हैं। दणडाणु विकृत अंग से निकलते रहते हैं। प्रायः निर्धन लोग इससे अधिक प्रभावित होते हैं।
  • कोढ़ रोग का उपचार नीम की पत्तियों का रस पीते रहना इस रोग में गुणकारी होता है।
  • कटेली के एक कप रस में एक चम्मच नींबू का रस खाली पेट धीरे-धीरे चुस्कियां लेते हुए पीना चाहिए। यदि इसका उपयोग 4-6 महीने किया जाए तो कुष्ठ रोग नियंत्रण में रहता है।
  • रोगी को नीम के पेड़ के नीचे बैठकर स्वास्थ्य लाभ करना चाहिए।
  • कुष्ठाश्रमों में अधिक से अधिक नीम के पेड़ लगाए जाएं। नीम वातावरण को प्रदूषण मुक्त रखने में अत्यन्त सहायक होता है।
  • नीम के तेल की मालिश करने से रोग लाभ होता है।
  • कुष्ट रोगी यदि जिमीकन्द की सब्जी नियमित रूप से खाता रहे तो अवश्य लाभ होता है।
  • लहसुन के रस के प्रयोग से भी रोग में आराम मिलता है।
  • आंवले का चूर्ण या आंवले के रस का सेवन कुष्ट रोग में लाभ करता है।
  • नीम और लाल मोगरा का तेल समान मात्रा में मिलाकर रखें। इसे कुष्ठ घावों पर लगाने से लाभ होता है।

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