मानसिक विकारों के साथ-साथ कब्ज, पेट में वायु तथा पाचन क्रिया में विकार जैसे कुछ कारण भी इस रोग को बढ़ाने में सहायक हैं इसमें एक प्रकार के दौरे होते हैं।
गिलहरी काटकर उसका टका भर रक्त रोगी की नाक में डाल दें तो फिर कभी उसे दौरा नहीं उठेगा।
प्याज का बीज और नकछिकनी एक-एक तोले पीसकर सेवन करें।
जूते के तले से रोगी की नाक रगड़ते रहने से यानि सुंघाते रहनेसे भी रोगी को होश आ जाता है।
इस रोग में आयुर्वेदिक चिकित्सक प्रायः ब्राह्मी तथा क्वाथ नामक वनस्पतियों का प्रयोग औषधि के रूप में करते हैं। ये दोनों ही पौधे दलदलीय स्थानों, खासकर छोटी-छोटी नदियों और झरनों के आस-पास मिलते हैं।
किसी रोगी को मिर्गी का दौरा पड़ा हो तो उसकी हथेलियों पर नमक रखें तथा प्याज का रस नाक में डालें। मिर्गी का दौरा दूर होगा, होश आ जाएगा।
अपस्मार के रोग में गाय के घी का सेवन बहुत उपयोगी माना गया है। रोगी की नाक घी की कुछ बूंदें डालकर उसमें गहरी नसवार लेने से बहुत शीघ्र लाभ मिलता है। तिक्त खाद्य पदार्थ इस रोग के लिए हानिकारक हैं।
मदार के फूल एक माशा, पुराना गुड़ तीन माशा पीसकर गोली बनाकर 40 दिन दोनों वक्त रोगी को सेवन करायें। यह मिर्गी के रोग को हमेशा के लिए दूर कर देगा।