इनकार, खान-पान की आदतों और आहार के कारण बुखार पुराना हो जाता है और लंबे समय तक बना रहता है। जीर्ण बुखार के लक्षण हर समय बीमार पड़े रहते हैं।
जीर्ण ज्वर का उपचार
मोती 2 भाग, सिंगरक 3 भाग, काली मिर्च 4 माशा – इन सबको बारीक पीसकर गाय के मक्खन में मिला लें। इसके बाद नींबू के रस में तब तक मिलाएँ जब तक इसकी चिकनाई दूर न हो जाए। इसके बाद एक या दो रत्ती की मात्रा में पीपल और शहद के साथ दें। इस उपचार से जीर्ण ज्वर दूर हो जाता है।
केवल बकरी के दूध का झाग भी जीर्ण ज्वर को ठीक कर देता है। बसंतमालती इस जीर्णता को दूर करने में सक्षम है। इसका मिश्रण इस प्रकार है – गिलोय, कटेली और सोंठ का काढ़ा रोगी को 10 दिन तक देने से जीर्ण ज्वर ठीक हो जाता है।
दो छोटी पीपल डालकर दूध को उबालें। दूध उबलने के बाद पीपल को निकालकर फेंक दें। आवश्यकतानुसार सुबह-शाम मिश्री के साथ दूध का सेवन करने से जीर्ण ज्वर में आराम मिलता है।
सात तुलसी के पत्ते, चार दाने काली मिर्च और एक पीपल को बारीक पीसकर, 10 ग्राम मिश्री को 50 ग्राम पानी में मिलाकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट रोगी को पिलाएं। महीनों पुराना जीर्ण ज्वर ठीक हो जाएगा। दो से तीन सप्ताह तक पिलाएं। गिलोय, कटेली और सोंठ का काढ़ा 10 दिन तक रोगी को पिलाने से जीर्ण ज्वर ठीक हो जाएगा। पित्तपापड़ा, कचूर, सोंठ, नागरमोथा, कुटकी, कटैया और चिरायता को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और दो-दो टंकियों का काढ़ा लगातार 11 दिन तक पिलाएं। ऐसा करने से जीर्ण ज्वर और विषम ज्वर दूर हो जाता है।