Category: Healthy Routine

  • बच्चों के सही विकास के लिए जरुरी बातें

    बच्चों के सही विकास के लिए जरुरी बातें

    हर पालक के मन में यह सवाल उठता रहता है कि बच्चों के सही विकास कैसे हो , तो आइये इस पर हम चर्चा करते हैं ,

    बच्चों के सही विकास संबंधित जानने योग्य बातें :-

    बच्चों के सही विकास

    बच्चों के विभिन्न आयु स्तरों के साथ उनमें में होने वाली शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों की जानकारी माता पिता के लिए आवश्यक है ताकि विकास की किसी भी तरह की अवरुद्धता का पता तुरंत लगाया जा सके तथा आवश्यक कदम उठाया जा सके क्योंकि ऐसा ना करने से स्थाई हो सकती है

    शारीरिक विकास के लिए आवश्यक अवयव :-

    1‌) गर्दन संभावना ; गर्दन ऊपर उठाना।

    2) बैठना , करवट लेना

    3) पेट के बल से रखना

    4) घुटने चलना, खड़ा होना

    5) चलना शुरू करना

    6) भागना, सीढ़ियां चढ़ना, कूदना

    7) अपने कपड़े पहनने में मां की सहायता लेना

    दिमागी विकास :-

    1) मुस्कुराना

    2) माता-पिता की आवाज पहचानना

    3 अजनबीयो से डरना

    4) बोलने का प्रयास करना

    5) जानवरों को पहचानना

    6) रिश्तेदारों को पहचानना

    7) आदेशों को पूरा करना

    8) अपने आप से कुछ निर्णय लेना

    बच्चों के विकास के महत्वपूर्ण स्तर

    1 माहरंगीन वस्तुओं पर आंखें स्थिर करना, आवाज करने पर आंखें घुमा लेना या हाथ पैर सिकोड़ लेना।
    1.5 माहहाथ पैर उठाना
    3 माह –देख कर मुस्कुराना
    6 माह –सिर को गर्दन पर संभाल लेना वह आवाज होने पर सिर घुमा कर देखना, मां को पहचान लेना
    9 माह –सारे के साथ बैठना, एक हाथ से दूसरे हाथ वस्तु बदलना और हंसना
    1 वर्ष –बिना सहारे के बैठ जाना, गर्दन को इधर-उधर घुमा लेना, किसी वस्तु को पकड़ लेना, टाटा या बाय बाय कर लेना
    1.5 वर्ष –स्वयं खड़े हो जाना है व चलना, छोटे-छोटे शब्द बोल लेना, स्वयं चम्मच पकड़ कर खा लेना।

    बच्चों के विकास संबंधी जिज्ञासा :-

    बच्चे ने चलना शुरू नहीं किया

    बच्चे आमतौर पर 12 से 14 महीने पर चलना शुरू कर देते हैं। बच्चे की चलने में देर होने से तात्पर्य उसकी शारीरिक विकास का ठीक नहीं होना है।कुछ बच्चों में चलने की प्रक्रिया कुछ देर से भी शुरू हो सकती है। इसके लिए बच्चों के पैरों की ताकत सामान्य बच्चों के बराबर होनी चाहिए। यह इस चीज से पता लगेगा कि बच्चे पैरों को अच्छी तरह से आगे पीछे चला सकता है। बच्चा किसी चीज का सहारा लेकर खड़ा हो सकता है। दोनों हाथ पकड़ कर चलने की कोशिश करे तो कोई चिंता की बात नहीं है।

    कब्ज की समस्या :-

    बच्चों में कब्ज की समस्या केवल दूध पीने से हो सकती है। बच्चे की खुराक में भूत मात्रा में दाल, चावल,खिचड़ी, सूजी, साबूदाना और चावल की खीर मौसमी फल और सब्जियां उपयोग करें।

    बच्चा कमजोर हो गई है :-

    बच्चे का शारीरिक विकास नहीं हो रहा है। इस तरह के बच्चों में वजन और लंबाई के विस्तार पूर्वक विवरण (जन्म से लेकर अब तक की आयु) की जरूरत है ताकि यह पता चल सके कि बच्चे का विकास की दर कैसी है और उसी के अनुसार आवश्यक जांच पड़ताल करने की जरूरत है

    बच्चे की आंख में फर्क है :-

    मेरी बच्ची की आंख में फर्क है और डॉक्टर कहते हैं कि ऑपरेशन जल्द से जल्द कराएं या सात आठ साल का होने के पश्चात आराम से ऑपरेशन कराएं। इस तरह की स्थिति में आंखों में फर्क का ऑपरेशन सामान्यतः बच्चे की स्कूल जाने से पूर्व की उम्र 4 से 5 वर्ष में करा लेना चाहिए क्योंकि इस उम्र के बाद बच्ची चीजों को समझने लगता है और अगर कोई उसे उसके लिए टोकेगा तो उसे बुरा लगेगा और उसमें हीन भावना उत्पन्न होगी।

    बच्चों का आहार :-

    बच्चों को दुधारू पशुओं से प्राप्त आहार जैसे दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे पनीर, दही आदि प्रदान करना लाभदायक होता हैं। साथ ही इस आयु-अवधि के दौरान बच्चों को ताजे फल, फलों का रस, दाल, दाल का पानी, हरी पत्तेदार सब्जियां, दलिया आदि देने से उनकी पोषक संबंधी जरूरते पूरी होती हैं।

    बीमारी के दौरान बच्चों का आहार :-

    स्तनपान करने वाले बच्चे कम बीमार होते हैं और पोषित होते हैं। छः माह से अधिक आयु के शिशुओं के लिए बीमारी के दौरान स्तनपान एवं पूरक पोषण दोनों ही जारी रहने चाहिए। आहार में आने वाली कमी को रोकना चाहिए। बीमार बच्चे द्वारा पर्याप्त भोजन करने में सहायतार्थ समय एवं ध्यान देना चाहिए।

    इन्हें भी पढ़ें : टीबी का देशी इलाज अब होगा तुरंत

    स्वास्थ्य जगत से जुड़े हुए सभी समस्याओं के मुफ्त समाधान के जानकारी के लिए Freeilaj.com पर विजिट करते रहें और शीघ्र नोटिफिकेशन के लिये हमारे टेलीग्राम चैनल @freeilaj को जॉइन करें और नीचे लिंक से सब्सक्राइब कर लें । धन्यवाद.

  • बच्चों में स्वर विकास कैसे करे

    बच्चों में स्वर विकास कैसे करे

    सभी पालको को यह चिंता रहती है कि उनका बच्चा बोलता नहीं,तुतलाता है, कम बोलता है तो आज हम इसके बारे में चर्चा करेंगे कि बच्चों में स्वर विकास कैसे करें।

    बच्चों के स्वर विकास संबंधित समस्याओं का निवारण :-

    बच्चों में स्वर विकास

    बच्चा बोलता नहीं :-

    बच्चे के मानसिक और शारीरिक आज का पता लगना जरूरी है। अगर बच्चे की मानसिक एवं शारीरिक विकास ढाई वर्ष की उम्र में संतुल्य है और बच्चा अगर नहीं बोलता है तो यह एक सामान्य प्रक्रिया हो सकती है क्योंकि कुछ बच्चे 3 से 4 वर्ष की उम्र तक बोलना शुरू कर देते हैं। इसके अलावा बच्चे में कुछ हैबिट प्रॉब्लम भी लगती है। आप अपने बच्चे की किसी योग्य विशेषज्ञ से पूरी तरह से जांच पड़ताल कराएं ताकि आपको सही वजह का पता लग सके

    बच्चा बोलना कब सीखेगा :-

    16 महीने के बच्चे के लिए एक सामान्य बात है। बच्चे अक्सर 13 माह से 3 या 4 वर्ष की उम्र तक बोलना सीखते हैं। कोई बच्चा डेढ़ व्हाट्सएप पर ही अच्छी तरह से बोल सकता है तो कोई बच्चा यह काम ढाई वर्ष या 3 वर्ष पर भी कर सकता है। यहएक सामान्य विविधता है। बच्चे के विकास की दर ठीक होनी चाहिए। अगर बच्चा इशारे से सब कुछ समझता है। इसलिए यह सामान्य रूप होना चाहिए प्रोग्राम वैसे इस उम्र में बच्चे की हर दो या तीन माह के बाद किसी बाल रोग विशेषज्ञ से जांच पड़ताल करते रहना चाहिए प्रोग्राम आज का जुबान पर तेंदुआ जैसी किसी भी परिस्थिति को मान्यता नहीं है

    बच्चा साफ नहीं बोलता :-

    बच्चे का साथ तरह से बोलना तकरीबन 4 वर्ष की आयु तक हो सकता है अगर बच्चा इस उम्र के बाद भी ठीक से नहीं बोल पाता तो बाल रोग विशेषज्ञ एवं स्पीच थेरेपिस्ट से परामर्श करना चाहिए।

    बच्चा तूतलाता है :-

    बच्चे में तूतलाने के प्रमुख कारण – बच्चे में आत्मविश्वास की कमी, सख्त अध्यापक या माता-पिता, बच्चे की सही तरह से देखभाल का भाव, बच्चे को अधिक लाड प्यार, बच्चे में अपने आप को अन्य सपाटी और भाई-बहन की तुलना में निम्न समझना। अगर आपके बच्चे में ऐसा कुछ है तो किसी विशेषज्ञ की मदद से इस को दूर करना होगा। इसमें आपको किसी स्पीच थैरेपिस्ट की मदद भी लेनी चाहिए। दूसरे समस्या के लिए यह जानना जरूरी है कि बच्चे का वजन और लंबाई कितना है। अगर यह बच्चे की उम्र के अनुपात में है तो कोई चिंता की बात नहीं है। बच्चे की खुराक में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और मिनरल उपयुक्त मात्रा में होनी चाहिए प्रोग्राम इसके लिए बच्चे को दूध फल सब्जियां आदि उपयुक्त मात्रा में लेनी चाहिए ।

    बच्चा हकलाता है :-

    बच्चे में शब्दों का सही उच्चारण 4 वर्ष की उम्र तक होता है। क्योंकि बच्चे की उम्र अगर इससे कम है तो इसे हकलाना नहीं कहेंगे। इससे कम उम्र की अधिकतर बच्चे हकला कर ही बोलते हैं। तकरीबन 4 वर्ष की आयु तक बच्चे का बोलना ठीक हो जाएगा अगर तब भी बच्चा का कल आता है तो किसी स्पीच थैरेपिस्ट की मदद लेनी जरूरी है।

    आवाज फट गई है :-

    आवाज का फटना एक गंभीर समस्या है इसका तात्पर्य है कि बच्चे की सांस की नली में या नली के मुंह के आसपास कुछ गड़बड़ है। बच्चे को तुरंत किसी योग्य विशेषज्ञ से जांच कराना जरूरी है। विशेष उम्र की ज्यादातर बच्चे में ज्यादा चीखने चिल्लाने की वजह से भी सांस की नली में सूजन आ जाती है जो कि बच्चे को बाप इत्यादि दिलाने से 7 से 8 दिन में समाप्त हो जाती है।

    बच्चा हकलाने लगा है :-

    कई बार बच्चे सफ बोलने के बाद भी हकलाते हैं। इसका कारण संगति से हो सकता है यदि कोई उसके साथ खेलने वाला व्यक्ति अगर आता है तो बच्चा उसकी नकल करने लगता है जिससे वह भी हकलाने लगता है इसके लिए बच्चे को उस व्यक्ति के साथ खेलने से रोकना चाहिए तथा किसी स्पीच थैरेपिस्ट की मदद लेनी चाहिए।

    बच्चा अक्ल आता है :-

    स्कूल जाने वाले बच्चे मित्र बनाना या हकलाना बच्चे के विकास के लिए एक समस्या बन सकती है। सर्वप्रथम आप बच्चे को किसी स्पीच थैरेपिस्ट को दिखाएं ताकि जिस शब्दों को बोलने में समस्याएं वह उसकी सही तरह से अभ्यास करा सके। ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। था आपको यह ध्यान रखना होगा कि बच्चे की आदत का जिक्र पड़ोसियों के सामने ना करें। बच्चे को कभी भी इस आदत के लिए डांटना नहीं चाहिए। बच्चे को हमेशा प्रेरित करना चाहिए कि इस तरह की समस्या एक सामान्य चीज है और कुछ महीनों में यह ठीक हो जाएगी । इसके अलावा बच्चे को समझाएं कि कोई भी वह वाक्य आराम से धीरे धीरे बोले क्योंकि कई बार जल्दी बोलने के चक्कर में भी हकलाना शुरू हो सकता है।

    इसे भी पढ़ें : बच्चों के सही विकास के लिए जरुरी बातें

  • बच्चों की बुरी आदतों का निवारण :-

    बच्चों की बुरी आदतों का निवारण :-

    बच्चों की आदतें कई बार माता-पिता के लिए परेशानियों का सबब बन जाती है। यहाँ बच्चों की बुरी आदतों का निवारण बताने की कोशिश करेंगे

    बच्चों में स्वर विकास
    बच्चों की बुरी आदतों का निवारण

    बच्चों की बुरी आदतों का निवारण – रात को दांत किटकिटाता है [Bites teeth at night] :-

    बच्चे का दांत किटकिटाना एक आदत है। बच्चे गहरी नींद में सोते समय दांत किटकिटाना है लेकिन यह तथ्य सभी माता-पिता को मालूम होना चाहिए कि दांत का किटकिटाना कीड़े की वजह से नहीं होता है। यादव जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है कम होती जाती है। इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं है।

    किसी का कहना नहीं मानता [no one obeys] :-

    बच्चों की जिद्दी स्वभाव बच्चों में ज्यादा लाड प्यार करने की वजह से होता है। ऐसे बच्चों की काउंसलिंग करने की जरूरत पड़ती है। यह काम बच्चे के अध्यापक या नियमित डॉक्टर के द्वारा किया जा सकता है। ऐसे बच्चों को अनुशासित रखने की जरूरत है। उसकी केवल जायज मांगों को ही मानना चाहिए। अगर बच्चा कोई गलत काम करता है तो उसे डांटना चाहिए । डॉक्टर समय आपको गंभीर रहना है ताकि बच्चा इसकी अहमियत को महसूस कर सके।

    बच्चा शैतानी करता है [child is evil] :-

    अगर बच्चे को ज्यादा लाड प्यार किया जाए तथा उसकी हर बात को माना जाए तो इन बच्चों की माता-पिता से अपेक्षा काफी बढ़ जाती है। इसलिए जरा जरा सी बात नहीं मानने पर भी यह गुस्सा हो जाएंगे और चीजों को इधर-उधर फेंक कर घर वालों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करेंगे। अगर इन बच्चों को प्यार के साथ-साथ थोड़ा सा अनुशासन मेरा जाए तो सही रहता है। माता-पिता और दादा-दादी बच्चों की हरकतों के बारे में अन्य लोगों को बहुत खुशी के साथ बच्चे के सामने बताते हैं इससे बच्चे को प्रोत्साहन मिलता है। आवश्यकतानुसार बच्चे को ऐसी हरकतों के लिए डांटना भी चाहिए तथा किसी भी हालत में इस तरह की बातों की प्रशंसा पड़ोसियों या रिश्तेदारों में नहीं करनी चाहिए। कुछ बच्चों में इस तरह का व्यवहार एक बीमारी होती है जो हाइपर एक्टिव सिंड्रोम की वजह से भी हो सकती है। इन बच्चों में दिमागी कमजोरी के भी लक्षण होते हैं। ऐसे बच्चों के बारे में किसी विशेषज्ञ से अवश्य विचार विमर्श करना चाहिए।

    बेटी मिट्टी खाती है [daughter eats clay] :-

    लोगों में यह अंधविश्वास है कि बच्चे कैल्शियम की कमी की वजह से मिट्टी खाते हैं। ऐसा सर्वथा गलत है। इसमें कैल्शियम देने से कोई फायदा नहीं होगा। बच्चे में मिट्टी खाने की सबसे प्रमुख वजह है – मनोवैज्ञानिक कारण जैसे बच्चे का अकेलापन, माता-पिता द्वारा बच्चे का अपेक्षित महसूस करना, माता-पिता या अन्य किसी परिवारिक सदस्य का बच्चे के साथ शक्ति से बर्ताव करना, भाई बहन या दोस्त से अनबन। दूसरे वजह है बच्चे में आयरन की कमी से एनीमिया, जिससे बच्चे को खाने की आदत में विकार हो जाता है, बच्चे मिट्टी, काजल, कपड़ा इत्यादि खाने लगता है। धीरे धीरे राजा बढ़ जाती है। आप अपने बच्चों को पूरी तरह से जांच पड़ताल करके या निश्चित करें की क्या वजह है। उसके अनुसार ही बच्चे के इलाज की दिशा तय होगी।

    बच्चा नाखून खाता है :-

    बच्चे में मिट्टी या नाखून खाने की आदत के प्रमुख कारण है – एनीमिया और मनोवैज्ञानिक कारण है जैसे बच्चे का अकेलापन, बच्चे का अपने आप को उपेक्षित महसूस करना, भाई बहन या दोस्तों से अनबन इत्यादि। बच्चे की पूरी जांच पड़ताल करने के पश्चात ही कुछ निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। आपके द्वारा बताई गई बच्चे की अन्य समस्या उसकी प्रतिरोधक क्षमता कम होने की तरह इशारा करती है। इस उम्र के बच्चों का हर एक तीन माह पर किसी विशेषज्ञ द्वारा परीक्षण होना चाहिए

    अंगूठा चूसने की आदत है:-

    1 वर्ष के बच्चे में अंगूठा चूसने की आदत सामान्य है। यह आदत प्राकृतिक प्रक्रिया की तरह विकसित होती है क्योंकि बच्चा 4 या 5 माह की उम्र के बाद अंगूठे और उंगलियों को मुंह में ले जाता है। अगर उस समय बच्चे का उचित ध्यान न रखा जाए तो बचा अधिक से अधिक समय अंगूठा और उंगली को मुंह में रखकर एक आदत का महसूस करता है। प्राचीन काल से इस आदत को छुड़ाने के लिए माता-पिता बहुत तरह के उपाय करते आए हैं जैसे अंगूठे पर कड़वे पदार्थ का तेल रखना, अंगूठे पर पट्टी बांधना आदी। लेकिन इन सब पायो शिवबचा अंगूठा सूचना नहीं छोड़ता बल्कि इससे बच्चे के विकास पर प्रतिकूल असर भी पड़ सकता है। इसलिए यह सब नहीं करना चाहिए पूर्णविराम इससे प्रमुख बात यह है कि इस तरह के बच्चों को सारा दिन किसी न किसी खेल प्रक्रिया में व्यस्त रखना चाहिए ताकि बच्चा अंगूठा चूसने के बारे में सोच ही ना पाए प्रोग्राम इसके बावजूद अगर कभी कभार अंगूठा मुंह में जाता है तो उसे प्यार से निकाल देना चाहिए। इस तरह अगर बच्चे की बोरियत दूर कर दी जाए तो बच्चा कुछ समय में अंगूठा जोशना छोड़ देगा।

    बच्ची बाल खाती है :-

    बच्चों में या आजाद ट्रकाकेटिलो मेनिया का लाती है । यह परेशानी यह आदत की वजह से बच्चे को है। इसका मुख्य कारण है भावनात्मक रूप से बच्चे को संतुष्ट ना मिलना। माता-पिता दोनों घर से बाहर काम करते हैं और बच्चे को समय नहीं दे पाते, आप माता पिता मैं अनबन की वजह से बच्चे की सभी देखभाल नहीं होती किसी बीमारी की वजह से किसी दो दोस्त भाई बहन के बिछड़ने से जरूरत की चीजें ना मिल पाने से उपेक्षित बच्चे एकाकीपन अध्यापक या माता-पिता का बहुत सख्त व्यवहार आदि। अब आपके कुछ ही सावधानीपूर्वक यह देखना है कि इसमें से कौन सा कारण है और फिर उस वजह को ठीक करना है । किसी बाल रोग विशेषज्ञ से मिलकर बच्चे की पूरी जांच पड़ताल भी करा ले क्योंकि कई बार इस तरह के बच्चे में और भी कोई बीमारी हो सकती है।

    बेटा कागज खाता है :-

    बच्चे में कागज खाना एक आदतन समस्या है पूर्णविराम आपके बच्चे की उम्र और बच्चे कागज कितने समय से खा रहा है इसका जिक्र नहीं किया है पूर्णविराम इससे आदत की गंभीरता का पता चल सकता है पूर्णविराम इस तरह के कागज खाने वाले बच्चों में कुछ मनोवैज्ञानिक समस्या होती है। जैसे माता-पिता द्वारा ध्यान ना दें या या अधिक लाड प्यार, भाई बहन या दोस्त से अनुबंध अध्यापक का अधिक यदि सख्त होना बच्चे का अकेलापन आदि।

    बच्चा उखड़ा उखड़ा रहता है :-

    जेअधिकतर बच्चे जो किसी लंबी बीमारी से गुजरती है जिद्दी स्वभाव के हो जाते हैं। क्योंकि बीमारी के समय घर घर वाले बच्चे की हर फरमाइश को तुरंत पूरा कर देते हैं प्रोग्राम उस समय यह आदत एवं सामान्य सी चीज लगती है। लेकिन बीमारी ठीक हो जाने के बाद यह आदत असमान लगती है। या आपके बच्चे के साथ है। सर्वप्रथम बच्चे को थोड़ा अनुशासन में रखें पूर्णविराम अगर बच्चा कुछ गलती करता या आपके बच्चे के साथ है। सर्वप्रथम बच्चे को थोड़ा अनुशासन में रखें पूर्णविराम अगर बच्चा कुछ गलती करता है तो उसे डांटे फोटोग्राफी से बच्चे का यह आभास होगा कि क्या गलती, क्या सही है। आवश्यकता से ज्यादा लाड प्यार बच्चे को जिद्दी बनाता है।

    इसे भी पढ़े :बच्चों में स्वर विकास कैसे करे

  • What to do to stay fit / फिट रहने के लिए क्या करें?

    आज हम स्वस्थ रहने के कुछ टिप्स के बारे में बात करेंगे, सर्दी के लिए प्राकृतिक उपचार, चिकन सूप, सूखी अदरक की चाय, अदरक-लहसुन, प्राकृतिक विटामिन और जड़ी-बूटियाँ बहुत आरामदायक हैं।

    स्वस्थ रहने के लिए इनका प्रयोग अवश्य करें

    सूप पियें

    जिन लोगों को अस्थमा की शिकायत है उनके लिए सर्दियों में सूप बहुत फायदेमंद होता है। चिकन सूप में यह अमीनो एसिड होता है, जो सर्दियों के दौरान अस्थमा में राहत देता है। इसकी भाप लेने से भी राहत मिलती है। बुखार होने पर भी सूप बहुत फायदेमंद होता है। पौष्टिक होने के साथ-साथ यह बुखार में मुंह का स्वाद नहीं बदलने देता और भूख की कमी को दूर करता है।

    हर्बल चाय पिएं

    औषधीय चाय गरम होती है. इसके सेवन से गले की खराश और दर्द से राहत मिलती है। दालचीनी, काली मिर्च, जायफल, लौंग, अदरक या तुलसी के पत्ते डालकर बनी चाय सर्दी-जुकाम में फायदेमंद होती है। इसके अलावा ग्रीन टी और ब्लैक टी भी सेहत के लिए काफी फायदेमंद साबित होती है। दर्द से राहत मिलने के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।

    विटामिन C लें –

    सर्दी या अन्य मौसमी समस्याओं में भी विटामिन सी फायदेमंद होता है। रोजाना विटामिन सी की 100 मिलीग्राम खुराक लेने से सर्दी में राहत मिलती है। लेकिन इसे अधिक मात्रा में लेने से नुकसान भी हो सकता है और पाचन शक्ति कमजोर हो सकती है। इसलिए सीमित उपयोग से ही यह फायदेमंद है। विटामिन सी प्राकृतिक रूप से आंवला, नींबू, संतरा आदि फलों में पाया जाता है।

    फल

    फल खाओ –

    मौसमी बीमारियों में फलों का सेवन जरूर करना चाहिए। यह आपको जरूरी पोषण देता है, कमजोरी दूर करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। प्रतिदिन सेब या अन्य मौसमी फलों का सेवन करने से आप बीमार होने से बचते हैं और शरीर की कार्यक्षमता बढ़ती है।

    सूखे मेवे खाएं-

    कई बार बीमारी में कुछ भी खाने की इच्छा नहीं होती या कुछ खाने के बाद तबीयत खराब लगने लगती है। ऐसे में कुछ मात्रा में ड्राई फ्रूट्स का सेवन भी आपको अंदरूनी ताकत देता है। इससे आपको बिल्कुल भी कमजोरी महसूस नहीं होगी और आपकी भूख भी मिट जाएगी.

    सूखे मेवे

    हमेशा खुश और स्वस्थ रहने के लिए अपनाएं ये खास फॉर्मूला

    1. जल्दी बिस्तर छोड़ें अगर आप जल्दी उठते हैं तो आप कई बीमारियों से दूर रह सकते हैं। ,
    2. यह भी पढ़ें: क्या आप जानते हैं नग्न सोने के 7 स्वास्थ्य लाभ?
    3. प्रतिदिन नाश्ता करें…
    4. स्वास्थ्य को महत्व दें…
    5. साफ करने की जरूरत है…
    6. गहरी नींद सोएं…
    7. दोपहर का भोजन संतुलित करें

    स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छ भोजन करें।

    • फल और सब्ज़ियां खाएं…
    • मांस का सेवन सीमित मात्रा में करें…
    • अधिक अनाज खायें…
    • प्रोसेस्ड फूड और रिफाइंड कार्ब्स न खाएं…
    • सोडियम और चीनी वाली चीजों का कम सेवन करें

    हल्का भोजन

    हल्का भोजन जो पचाने में आसान हो और नींद आने में कठिनाई न हो, जैसे मूंग और चावल का दलिया। …दोपहर के भोजन में चावल या चपाती भोजन के रूप में ली जा सकती है। आप दाल और एक सब्जी ले सकते हैं.

    Read also: Things related to ethical work


  • बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम दिनचर्या / Best routine for health in children

    बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम दिनचर्या / Best routine for health in children

    बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम दिनचर्या

    बच्चों में स्वास्थ्य एवं स्वच्छता
    बच्चों में स्वास्थ्य एवं स्वच्छता

    बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम दिनचर्या

    बच्चों के स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के लिए बिंदुवार जानकारी दी गई है

    सबेह जल्दी उठें:-

    सुबह की शुद्ध हवा शरीर के लिए टॉनिक का काम करती है, जिससे आप पूरे दिन सक्रिय रहते हैं। देर तक जागने से सुस्ती, आलस्य और सिर में भारीपन जैसी शिकायतें होने लगती हैं।

    प्रतिदिन शौचालय जाएं:-

    दिन में कम से कम एक बार शौचालय अवश्य जाना चाहिए। प्रतिदिन सही समय पर शौच से निवृत्त होने की आदत डालने से शरीर की सभी प्रक्रियाएं सुचारू रूप से चलती हैं। अगर सुबह शौच जाने की आदत नहीं डाली गई तो कब्ज और अपच जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

    दांतों की सफाई:-

    रोज सुबह और रात को सोने से पहले दांत जरूर साफ करें: दांत साफ करने से मुंह बैक्टीरिया से मुक्त रहता है और मुंह से दुर्गंध नहीं आती है. दांतों को सुरक्षित टूथपेस्ट, टूथपेस्ट और टूथपेस्ट से साफ करें। दांतों की सफाई में लापरवाही से मुंह में बैक्टीरिया को पनपने का मौका मिलता है। इससे दांत और मसूड़े कमजोर हो जाते हैं, जिससे बैक्टीरिया संबंधी बीमारियां होती हैं।

    प्रतिदिन स्नान करें:-

    खुद को स्वस्थ रखने के लिए रोजाना नहाना जरूरी है। रोजाना नहाने से त्वचा स्वस्थ रहती है और शरीर के विभिन्न हिस्सों में रक्त का संचार बढ़ता है। यदि रोजाना स्नान करके त्वचा को साफ न किया जाए तो त्वचा पर सूखा पसीना, धूल, ग्रीस और त्वचा की परतें जमा हो जाती हैं, जिससे रोगाणुओं के पनपने की स्थिति बन जाती है।

    दैनिक व्यायाम:-

    • व्यायाम, योग और ध्यान न सिर्फ आपके लिए बल्कि जीवन के हर पड़ाव और हर उम्र के लिए जरूरी हैं।
    • बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए व्यायाम जरूरी है। नियमित खेल, योग, खुली हवा में घूमना, जॉगिंग और साइकिल चलाना अच्छे व्यायाम हैं।
    • व्यायाम खुली हवादार जगह पर करना चाहिए।
    • खाना खाने के तुरंत बाद व्यायाम न करें, 2-3 घंटे का अंतराल दें। हमेशा शारीरिक क्षमता के अनुसार ही व्यायाम करें। व्यायाम ख़त्म करने के बाद उचित आराम अवश्य लें।

    उचित आराम और पर्याप्त नींद लें:-

    आराम के दौरान हमारा शरीर सुधार और मरम्मत का कार्य करता है। बिना आराम किए काम करने का मतलब है शरीर पर अतिरिक्त भार डालना, जिसे हमारा शरीर सहन नहीं कर पाएगा। हमें प्रतिदिन पर्याप्त नींद लेनी चाहिए। छात्रों को हर रात 7 से 8 घंटे सोना चाहिए। आराम का सबसे अच्छा तरीका यह है कि सोने का स्थान साफ, शांत और हवादार होना चाहिए। इसके साथ ही व्यक्तिगत स्वच्छता का भी ध्यान रखें। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति सुबह जल्दी उठता है और रात को जल्दी सोता है वह स्वस्थ, मजबूत और बुद्धिमान होता है।

    बच्चों में स्वास्थ्य एवं स्वच्छता
    बच्चों में स्वास्थ्य एवं स्वच्छता

    बच्चों में स्वच्छता

    बच्चों के स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के लिए बिंदुवार जानकारी दी गई है

    साफ़-सफ़ाई की आवश्यकता:-

    साफ-सुथरा रहना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। वह खुद को और आसपास के क्षेत्र को साफ-सुथरा रखना पसंद करते हैं। वह अपने कार्यस्थल पर गंदगी नहीं फैलाने देते। यदि वह साफ-सफाई नहीं रखेगा तो आपके विद्यालय/घर में सांप, बिच्छू, मच्छर तथा अन्य हानिकारक कीड़े-मकोड़े प्रवेश कर जायेंगे, जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ एवं विषैले कीटाणु विद्यालय/घर के चारों ओर फैल जायेंगे।

    व्यक्तिगत स्वच्छता:-

    1. बाल – बाल साफ न हों तो सिर में खुजली और जुएं हो जाती हैं। रोजाना बालों में कंघी करें और सप्ताह में दो बार बाल धोएं।
    2. आंखें- अगर आंखें साफ न हों तो आंखों से पानी आना, कीचड़ आना, आंखों से पानी आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। दिन में 3-4 बार आंखों को साफ पानी से अवश्य धोएं।
    3. कान – कान साफ न करने से कानों में गंदगी जमा हो जाती है। कान से पानी बहने लगता है। लकड़ी, माचिस, पिन, पेंसिल से कान साफ न करें। अगर आपको कोई परेशानी हो तो डॉक्टर से सलाह लें.
    4. नाक- नाक साफ न होने पर नाक से पानी आने की शिकायत हो सकती है. नाक को हमेशा साफ कपड़े या रुमाल से साफ करें।
    5. नाखून- समय-समय पर नाखून काटें और नाखूनों की सफाई करें, नहीं तो पेट संबंधी रोग हो सकते हैं।
    6. 4 नाक- नाक साफ न होने पर नाक से पानी आने की शिकायत हो सकती है। नाक को हमेशा साफ कपड़े या रूमाल से साफ करें।
    7. नाखून- समय-समय पर नाखून काटें और नाखूनों की सफाई करें, नहीं तो पेट संबंधी रोग हो सकते हैं।
    8. त्वचा- अगर त्वचा साफ न हो तो खुजली, फोड़े-फुन्सियां हो सकती हैं। प्रतिदिन साफ पानी, साबुन या उबटन से स्नान करें। शरीर को साफ तौलिए से पोंछें।

    जानें हाथ धोने का सही तरीका:-

    हमें बस साबुन का पानी, एक मग और एक साफ कपड़ा/तौलिया चाहिए।
    प्रदर्शनकारी शिक्षक- हाथ धोने की सही प्रक्रिया का प्रदर्शन करें।

    पर्यावरण की स्वच्छता :-

    • व्यक्तिगत स्वच्छता के साथ-साथ पर्यावरण की स्वच्छता भी बहुत जरूरी है।
    • घर के आसपास कूड़ा-कचरा, पॉलिथीन बैग डालने से गंदगी फैलती है।
    • इस गंदगी में मच्छर, मक्खियाँ और बैक्टीरिया पनपते हैं।
    • इनसे मलेरिया, फाइलेरिया, डेंगू, हैजा आदि बीमारियाँ फैलने की संभावना रहती है।
    • हमारा स्वास्थ्य हमारे आस-पास की स्वच्छता पर भी निर्भर करता है।
    • सोचिए, अगर हमारे आसपास पानी से भरे गड्ढे हों, हमारे घर के कूलरों में पानी जमा हो जाए तो हमें क्या नुकसान हो सकता है?
    • घर के आसपास नलों, कुओं या गड्ढों में पानी जमा नहीं होना चाहिए। इससे मच्छर पनपते हैं।
    • घर, स्कूल और सार्वजनिक शौचालयों में गंदगी न फैलाएं। उपयोग के बाद इनकी सफाई का ध्यान रखें।
    • कूड़ा हमेशा कूड़ेदान में ही डालें। विद्यालयों में मध्याह्न भोजन के समय शांति, अनुशासन एवं स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।
    • भोजन करते समय शांत और एकाग्रचित्त होकर भोजन करें।
    • भोजन उतना ही लें जितना आवश्यक हो। थाली में खाना न छोड़ें. अपने बर्तन साफ करें और उन्हें उनकी जगह पर रखें।
    • पॉलिथीन की जगह कपड़े या जूट के थैले का प्रयोग करें। सड़कों और दीवारों पर न थूकें.
    • विद्यालय परिसर में स्वच्छता बनाए रखें। टपकते नल को बंद करें और क्षति होने पर बदलने की व्यवस्था करें। इसके लिए अपने दोस्तों और शिक्षकों की मदद लें।
  • right time to eat

    right time to eat

    right time to eat

    फ्रूट्स fruits

    When and how much to eat?

    If we observe 24 hours, we will find that in 24 hours natural hunger occurs only 2 times a day.

    Stomach works efficiently for 2 hours before sunrise and from 7 am to 9 am before the second sunset.

    Similarly, before sunset the gastric fire in our stomach becomes intense. That’s why food should be finished before sunset.

  • pressure cooker food is harmful

    pressure cooker food is harmful

    According to the rules of Maharishi Vagbhatta, the food which does not get the sunlight and the touch of wind while cooking is like poison. Sunlight does not reach the food while cooking in the pressure cooker.

    Food has to be cooked without covering the utensil to get sunlight while cooking and cooking without cover keeps the air pressure normal as a result of which the proteins do not get spoiled.

    While cooking food inside the pressure cooker, the air pressure doubles from the atmosphere and the temperature reaches 120 degree centigrade, as a result of which proteins of lentils and vegetables become harmful proteins. When Rajeev Bhai got the dal cooked in pressure cooker tested, it was found that 87% of the proteins get destroyed and become injurious to health.

  • ek din me kitna pani pina chahiye

    ek din me kitna pani pina chahiye

    Water must be drunk only after one and a half to two hours of eating food, because after digestion of food it gets converted into a juice. After this juice reaches the small intestine, it is absorbed in the blood and this juice cannot be absorbed if there is no water there. Drinking water immediately after food and immediately before food is like poison.

    drink lukewarm water

    Drink lukewarm water because the temperature of our digestive system is 37 degree Celsius. If we drink cold water, then our stomach and digestive system will have to take extra blood from any of the nearby organs to warm it up to 37 degree Celsius again. As a result, the organ which sends blood more often, that organ (heart, intestine, kidney etc.) will become weak and related diseases will occur. You can definitely drink water from an earthen pot in summer.

    Do not drink water while standing

    Do not drink water while standing, drink it while sitting and drink sip by sip because when we swallow solid food, it is slowly carried from the mouth to the stomach by a peristaltic movement. It does not fall from the mouth into the stomach with a thud. But when the water goes from the mouth to the stomach, there is no one to stop it, it falls like a waterfall falling from the mountain to the ground. Similarly, if we drink water while standing, the stomach tightens the diaphragm to withstand its impact.

    If we keep drinking water like this again and again, then we will definitely have diseases like hernia, piles, prostate, arthritis.

  • how to stay healthy

    how to stay healthy

    Many diseases can be cured by changing the lifestyle and eating habits. By using household items, the body will remain healthy and the expenditure on illness will also be saved.

    how to stay healthy

    Fruit juice, excessive oily things, whey, sour things should not be eaten at night.

    One should not drink water immediately after eating things containing ghee or oil, rather one should drink water after an hour and a half.

    Walking or running too fast immediately after a meal is harmful. That’s why you should go after resting for some time.

    One should take a walk in the fresh air after eating in the evening, sleeping immediately after eating causes stomach problems.

    One should wake up early in the morning and must do exercise or manual labor in the open air.

    One should never drink water after walking in hot sun, after physical exertion or immediately after going to the toilet.

    Honey and ghee alone should not be eaten mixed in equal quantity. It becomes poison.

    Antagonistic substances should not be taken together in food and drink, such as milk and jackfruit, milk and curd, fish and milk, etc. should not be taken together.

    One should never sleep with a cloth tied on the head or wearing socks.

    Reading in very bright or dim light, watching too much TV or cinema, consuming hot and cold things, using more chili spices, walking in strong sunlight should be avoided.

    Even if you have to walk in the hot sun, you should walk by tying a cloth on your head and ears.

    The patient should always be given warm or lukewarm water and the patient should be protected from cold wind, hard work and anger.

    If the juice of the leaves is to be put in the ear due to pain in the ear, then it should be put before sunrise or after sunset.

    It is written in Ayurveda that sleep pacifies bile, massage reduces wind, vomiting reduces phlegm and skipping stops fever. That’s why these things must be kept in mind while doing home remedies.

    In case of burn due to fire or any hot thing, the burnt part should be kept in cold water.

    Any patient should avoid the consumption of oil, ghee or greasy substances.

    Medicines that remove indigestion and dyspepsia should always be taken only after meals.

    In case of stool stagnation or constipation, if diarrhea is to be done, it should be done in the morning only, not at night.

    If a girl child in the house suffers from epileptic seizures, she should not be made to vomit, loose stools or skip.

    If any medicine is to be mixed in a dilute substance, it should be mixed in buttermilk, coconut water or plain water, not in tea, coffee or milk.

    Asafoetida should always be used only after roasting it in desi ghee.

    Raw asafoetida should be applied in the paste.

  • Contribution of sun rays to a healthy life

    Contribution of sun rays to a healthy life

    Contribution of sun rays to healthy living: We have come up with some free remedies for your healthy lifestyle which are going to be very useful for you. You must have come to know from the title itself which topic we are talking about.

    Contribution of sun rays to a healthy life

    To destroy the germs of diseases, the rays of the sun have been considered to have a special contribution to getting a healthy life. That’s why doors and windows should be kept open in the morning. Sun rays should be allowed inside. This is a great way to stay healthy. Naturopaths say that the rays of the sun are helpful in keeping our body healthy, providing strength and flow of energy.

    sun-light
    सूर्य प्रकाश किरण

    Some things about the sun and sun rays

    Sunlight is made up of seven colours. These seven colours obtained from the rays of the sun keep us healthy. We get Vitamin ‘D’ from the sun. Vitamin ‘D’ becomes available in our body as soon as we take in sunlight. Vitamin ‘D’ is necessary to keep bones healthy. The body which is deficient in Vitamin ‘D’, its bones will be weak and they are more likely to break. The reason for crooked bones is also the deficiency of “Vitamin D” in the body. That’s why its need is fulfilled by sunbathing for half an hour daily.

    According to Dr Edmund Tusky of America, nothing in the world has the ability to kill germs in the sun. To prevent cancer, it is necessary to reach sunlight, and sun rays. 98% of the nature and beauty of those living in houses where sunlight enters daily cannot get cancer. The rays made up of seven colors are very beneficial for providing physical and mental health. By the way, each colour has its own special qualities. But green, blue and orange colours play a special role.

    benefits of sun rays

    Exposure of the body to sunlight increases the size and strength of the veins. There are some other substances and particles in the body like sweat, salt, and excess which causes disease. These foreign substances go away by sunbathing! The body becomes tight. Sun rays have a great contribution to making the nervous system healthy. Sunbathing is considered the best. Due to this, germs are automatically removed from the body. Sun rays have a great contribution to making the nervous system healthy.

    Benefits of sunlight from the green bottle

    greenish

    Put mustard oil in a green coloured bottle. Leave it in the sun. After 5-7 days the benefit of sunlight will be present in this oil. Put two drops of this oil in the ear. Ear discharge and pain will be cured. Massaging the head with this oil is very beneficial.

    If there is a complaint of cataract, keeping it in a green-colored bottle, when the water that has received the heat of the sun is at normal temperature, becomes very beneficial. The sprinkling of this water cures diseases.

    Some people complain of pain in the knees. This pain goes away by keeping it in a green bottle and applying oil heated in the sun.

    Keep it in a blue coloured bottle and massage the oil heated in the sun on the head. This sharpens the intellect. Thinking power increases!

    The oil mentioned above is also beneficial for preventing greying of hair and preventing hair fall.

    Those who have complaints of not being able to sleep should massage the sun-warmed coconut oil kept in a blue bottle daily. The nature and beauty of sleeplessness will not be a complaint.

    For those who have complaints of heat during the day, keeping them in a green bottle and massaging them with oil heated in the sun is beneficial.

    Oil kept in a green bottle and heated in the sun is beneficial for skin diseases.

    There is a simple remedy for those who complain of worms in their teeth, take a bottle of dark blue colour and fill it with water. Keep it in sunlight. Gargle with this water 3-4 times a day. There will definitely be profit.

    To run the universe, to maintain nature, to produce fruits and flowers, vegetables and grains, to protect our body, to give it strength and life, no one can do better than the Sun.