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यहाँ पर उत्तर भारत में बारहमासी शाक उत्तर भारत में पाए जाने वाले कुंदरू के बारे में बता रहे है . कुंदरू सेवन के फायदे के साथ यह भी जानेंगे कैसे कुंदरू खाने से आप बच सकते हैं .

कुंदरू सेवन के फायदे | Health Benefits of Kundru

दो से चार इंच व्यास (विस्तार) के और पाँच-पाँच कोनोंवाले पत्तों से युक्त कुँदरू की नर-मादा बेल लगभग समान रूप-रंगवाली होती है। मादा बेल के फूल फल पर दीर्घकाल तक बने रहते हैं। इसके फल दो-ढाई अंगुल लंबे और अँगूठे के बराबर-मोटे-लंबगोल, हरे रंग के और धारियाँवाले होते हैं। फल पकने पर लाल रंग के होते हैं।

गुजरात में इन्हें ‘घिलोड़े’ और सौराष्ट्र में ‘टींडोले’ कहते हैं। ग्रामवासियों में ये घोले के रूप में प्रसिद्ध हैं। इसकी बेल आठ-दस वर्ष तक रहती है। बेल बढ़ने पर कुछ स्थानों पर इनके लिए तार के मंडप बनाये जाते हैं।

कुंदरू दो किस्म के होते हैं- कड़वे और मीठे। हल्के हरे एवं गाढ़े हरे रंग के-इस प्रकार दो किस्म और होती हैं। कड़वे कुंदरू को कोई नहीं खाता। मीठे कुंदरू का साग होता है। नरम-सुकोमल बीजवाले छोटे-छोटे कुंदरू साग के लिए पसंद करने चाहिए। केवल कुंदरू का अथवा अन्य साग-भाजियों के साथ उसका मिश्रण करके साग बनाया जाता है। कुंदरू के साग के अत्यधिक सेवन से जीभ में जड़ता आती है। इसका शाक बुद्धि में जड़ता लाता है, अतः पथ्य नहीं माना जाता। कड़वे कुंदरू के मूल की छाल का रेच के लिए उपयोग होता है। इसकी मात्रा पंद्रह रत्ती है।

कुंदरू मधुर, शीतल और गरिष्ठ हैं, अतः ये पित्त, रक्तविकार या रक्तपित्त और वायु को मिटाते हैं। ये स्तंभक, मल को उखाड़नेवाले, रुचि उत्पन्न करनेवाले, मलावरोध व अफरा करनेवाले हैं।

कड़वे कुंदरू मलहारक हैं, अतः कोढ़, ऊबकाई, अरुचि साँस, खाँसी तथा बुखार मिटाते हैं। पाक में तिक्त होने के कारण यह अग्नि को प्रदीप्त करते हैं। कड़वे कुंदरू वमन करनवाले एवं रक्तविकार, कफ और पांडु का नाश करते हैं। इसके मूल वामक, रेचक और शोथघ्न हैं।

कड़वे कुंदरू के पत्तों का चार-छः माशा चूर्ण मधुमेह में देने से लाभ होता है। मधुमेह (डायाबिटिस) में कुंदरू का शाक हितकारी है।

कड़वे कुंदरू के मूल का क्वाथ पिलाने से पेशाब में सफेद पदार्थ निकलना बंद होता है।

कुंदरू में पंचांग का रस शर्करा मिलाकर पिलाने से सगर्भावस्था में होनेवाला रक्तस्राव मिटता है।

कुंदरू के मूल का चूर्ण स्त्रियों के प्रदर रोग पर दिया जाता है। कुंदरू चबाकर उसका रस कुछ समय तक मुँह में रखने से, जीभ के फट जाने पर, लाभ होता है।

कुंदरू के पत्तों का रस अथवा पत्तों की पुल्टीस बनाकर बाँधने से फोड़ों की वेदना शांत होती है और फोड़े पककर फूट जाते हैं। त्रासदायक व्रण-घाव पर कुंदरू के पत्तों का रस लगाया जाता है।

कडुवे कुंदरू के पत्तों का रस बिच्छू के डंक पर लाभकारी सिद्ध होता है।

वैज्ञानिक मत के अनुसार कुंदरू का असर जननेन्द्रिय एवं मूत्रेन्द्रिय पर होता है। यह स्नेहन, मूत्र-संग्राहक, रक्त-संग्राहक और व्रण का रोपण करनेवाला है। इसके वर्ग के अन्य शाकों की अपेक्षा कुंदरू का पोषण-मूल्य अधिक है।

By Free Ilaj

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