रसोत को स्त्री के दूध में घोलकर कान में बूंद-बूंद डालने से जीर्ण कर्णस्राव के साथ दुर्गंध भी नष्ट होती है।
जामुन और आम के कोमल पत्तों का रस मधु मिलाकर कान में डालने से (बूंद-बूंद) कर्णस्राव विकृति नष्ट होती है। कर्णस्त्राव की विकृति में कर्ण को हाइड्रोजन पर-आक्साइड से साफ करके प्याज के ताजे रस की बूंदें टपकाने से स्राव नष्ट होता है।
चमेली के पत्तों का एक सेर रस लेकर एक पाव तिल में मिलाकर विधिवत तेल पाक करके बूंद-बूंद कान में डालने से कर्णस्राव विकृति नष्ट होते हैं। बच के चूर्ण के सरसों के तेल में पकाकर बूंद-बूंद कान में डालने से स्राव बंद होता है।
शम्बूक तेल- घोघे के मांस के कल्क के सरसों का तेल सिद्ध करके कान में बूंद-बूंद डालने से कर्णस्राव की विकृति नष्ट होती है।
मालती के पत्तों का रस मधु में मिलाकर कान में बूंद-बूंद डालने से पित्त विकृति से उत्पन्न पूर्ति कर्णस्राव नष्ट होता है। निर्गुण्डी तेल बूंद-बूंद कान मे सुबह-शाम डालने से कर्णस्राव नष्ट होता है। यह तेल व्रज शोधक होता है और नाड़ी व्रण विकृति को नष्ट करता है।
बन कपास के फल से रस में शाल के छाल का चूर्ण और मधु मिलाकर कान में बूंद-बूंद डालने से कर्णस्राव नष्ट होता है।
मंजिष्ठादि चूर्ण का 5 ग्राम मात्रा में दिन में दो बार जल के साथ सेवन करने से कर्णस्राव नष्ट होता है। मंजिष्ठादि क्वाथ भी गुणकारी होता है।
नीम के तेल में मधु मिलाकर स्वच्छ रूई की बत्ती उसमें डुबोकर कान में लगाने से पूयस्राव बंद होता है।
आरोग्यवर्द्धिनी वटी की एक या दो गोली जल या त्रिफला के क्वाथ से सेवन करने पर कर्णस्राव व विकृति नष्ट होती है।
कफकेतु रस एक रत्ती मात्रा को दिन में तीन बार अदरक के रस के साथ सेवन करने से कर्णस्राव और दर्द की विकृति नष्ट होती है।