• बच्चों के सही विकास के लिए जरुरी बातें

    बच्चों के सही विकास के लिए जरुरी बातें

    हर पालक के मन में यह सवाल उठता रहता है कि बच्चों के सही विकास कैसे हो , तो आइये इस पर हम चर्चा करते हैं ,

    बच्चों के सही विकास संबंधित जानने योग्य बातें :-

    बच्चों के सही विकास

    बच्चों के विभिन्न आयु स्तरों के साथ उनमें में होने वाली शारीरिक व मानसिक परिवर्तनों की जानकारी माता पिता के लिए आवश्यक है ताकि विकास की किसी भी तरह की अवरुद्धता का पता तुरंत लगाया जा सके तथा आवश्यक कदम उठाया जा सके क्योंकि ऐसा ना करने से स्थाई हो सकती है

    शारीरिक विकास के लिए आवश्यक अवयव :-

    1‌) गर्दन संभावना ; गर्दन ऊपर उठाना।

    2) बैठना , करवट लेना

    3) पेट के बल से रखना

    4) घुटने चलना, खड़ा होना

    5) चलना शुरू करना

    6) भागना, सीढ़ियां चढ़ना, कूदना

    7) अपने कपड़े पहनने में मां की सहायता लेना

    दिमागी विकास :-

    1) मुस्कुराना

    2) माता-पिता की आवाज पहचानना

    3 अजनबीयो से डरना

    4) बोलने का प्रयास करना

    5) जानवरों को पहचानना

    6) रिश्तेदारों को पहचानना

    7) आदेशों को पूरा करना

    8) अपने आप से कुछ निर्णय लेना

    बच्चों के विकास के महत्वपूर्ण स्तर

    1 माहरंगीन वस्तुओं पर आंखें स्थिर करना, आवाज करने पर आंखें घुमा लेना या हाथ पैर सिकोड़ लेना।
    1.5 माहहाथ पैर उठाना
    3 माह –देख कर मुस्कुराना
    6 माह –सिर को गर्दन पर संभाल लेना वह आवाज होने पर सिर घुमा कर देखना, मां को पहचान लेना
    9 माह –सारे के साथ बैठना, एक हाथ से दूसरे हाथ वस्तु बदलना और हंसना
    1 वर्ष –बिना सहारे के बैठ जाना, गर्दन को इधर-उधर घुमा लेना, किसी वस्तु को पकड़ लेना, टाटा या बाय बाय कर लेना
    1.5 वर्ष –स्वयं खड़े हो जाना है व चलना, छोटे-छोटे शब्द बोल लेना, स्वयं चम्मच पकड़ कर खा लेना।

    बच्चों के विकास संबंधी जिज्ञासा :-

    बच्चे ने चलना शुरू नहीं किया

    बच्चे आमतौर पर 12 से 14 महीने पर चलना शुरू कर देते हैं। बच्चे की चलने में देर होने से तात्पर्य उसकी शारीरिक विकास का ठीक नहीं होना है।कुछ बच्चों में चलने की प्रक्रिया कुछ देर से भी शुरू हो सकती है। इसके लिए बच्चों के पैरों की ताकत सामान्य बच्चों के बराबर होनी चाहिए। यह इस चीज से पता लगेगा कि बच्चे पैरों को अच्छी तरह से आगे पीछे चला सकता है। बच्चा किसी चीज का सहारा लेकर खड़ा हो सकता है। दोनों हाथ पकड़ कर चलने की कोशिश करे तो कोई चिंता की बात नहीं है।

    कब्ज की समस्या :-

    बच्चों में कब्ज की समस्या केवल दूध पीने से हो सकती है। बच्चे की खुराक में भूत मात्रा में दाल, चावल,खिचड़ी, सूजी, साबूदाना और चावल की खीर मौसमी फल और सब्जियां उपयोग करें।

    बच्चा कमजोर हो गई है :-

    बच्चे का शारीरिक विकास नहीं हो रहा है। इस तरह के बच्चों में वजन और लंबाई के विस्तार पूर्वक विवरण (जन्म से लेकर अब तक की आयु) की जरूरत है ताकि यह पता चल सके कि बच्चे का विकास की दर कैसी है और उसी के अनुसार आवश्यक जांच पड़ताल करने की जरूरत है

    बच्चे की आंख में फर्क है :-

    मेरी बच्ची की आंख में फर्क है और डॉक्टर कहते हैं कि ऑपरेशन जल्द से जल्द कराएं या सात आठ साल का होने के पश्चात आराम से ऑपरेशन कराएं। इस तरह की स्थिति में आंखों में फर्क का ऑपरेशन सामान्यतः बच्चे की स्कूल जाने से पूर्व की उम्र 4 से 5 वर्ष में करा लेना चाहिए क्योंकि इस उम्र के बाद बच्ची चीजों को समझने लगता है और अगर कोई उसे उसके लिए टोकेगा तो उसे बुरा लगेगा और उसमें हीन भावना उत्पन्न होगी।

    बच्चों का आहार :-

    बच्चों को दुधारू पशुओं से प्राप्त आहार जैसे दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे पनीर, दही आदि प्रदान करना लाभदायक होता हैं। साथ ही इस आयु-अवधि के दौरान बच्चों को ताजे फल, फलों का रस, दाल, दाल का पानी, हरी पत्तेदार सब्जियां, दलिया आदि देने से उनकी पोषक संबंधी जरूरते पूरी होती हैं।

    बीमारी के दौरान बच्चों का आहार :-

    स्तनपान करने वाले बच्चे कम बीमार होते हैं और पोषित होते हैं। छः माह से अधिक आयु के शिशुओं के लिए बीमारी के दौरान स्तनपान एवं पूरक पोषण दोनों ही जारी रहने चाहिए। आहार में आने वाली कमी को रोकना चाहिए। बीमार बच्चे द्वारा पर्याप्त भोजन करने में सहायतार्थ समय एवं ध्यान देना चाहिए।

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  • बच्चों को होने वाले कुछ सामान्य बीमारियां

    बच्चों को होने वाले कुछ सामान्य बीमारियां

    सभी पालकों को अपने बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर चिंता रहती है। तो हम आपको बताते हैं कि बच्चों को होने वाले कुछ सामान्य बीमारियां को समय रहते उसका उपचार कैसे किया जाए।

    वायरस जनित रोग :-

    खसरा माता (मीजिल्स) :-

    ‌‌ यह संक्रमण रोग बच्चों में सबसे अधिक होता है। इसके होने के बाद बच्चों को क्षयरोग एवं कुपोषण होने की विधि अवसर होते हैं। यह मीजिल्स नामक वायरस के द्वारा होता है। क्योंकि यह संक्रमण रोग है यो छिकने खा‌‌‍‌‌सने आदि के समय एक दूसरे की से सीधा अथवा अन्य माध्यमों से रोगी से स्वस्थ बच्चों में लग जाता है।

    उपाय :-

    रॉकी बच्चे को पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ देना चाहिए और पौष्टिक खुराक देना चाहिए ताकि बच्चे को कुपोषण ना हो। दूध फलों का रस आदि भी पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए। किसी अच्छे विशेषज्ञ से बच्चे को दिखाना चाहिए ताकि रोग का उचित इलाज कराया जा सके। बच्चे का भोजन बंद करना, बच्चे का नहाना बंद, बच्चे को झाड़-फूंक कराना इत्यादि से बचना चाहिए। इस रोग से बचाव के लिए बच्चे को 9:00 12 माह की उम्र के बीच रोग प्रतिरोधक टीका एक बार अवश्य लगाना चाहिए।

    रूबैला (जर्मन मीजिल्स) :-

    मीजिल्स की तुलना में यह कम संक्रामक होता है। इसके प्रमुख लक्षण कान के पीछे की लसीका ग्रंथियों में सूजन आना है। इसमें बुखार और पूरे शरीर पर दाने आ जाते हैं। 3 दिन में यह दाने समाप्त हो जाते हैं। गर्भवती माताओं को अगर प्रथम या द्वितीय माह में औरों को तो उसके शिशु में विभिन्न प्रकार के जन्मजात रोग और संरचना त्रुटि होती है। इसको कन्जैनाइटिल रूबैला सिंड्रोम कहते हैं। जिसका कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। बच्चों को 15 माह की उम्र में एम. एम. आर. का टीका लगवाने से इस रोग से बचाव किया जा सकता है।

    कनफेड (मम्प्स) :-

    यह वायरस से होने वाला संक्रमण है। इस रोग में कर्ण पूर्णा ग्रंथियों मैं सूजन हो जाती है। इसके अलावा अन्य लार ग्रंथियों में भी सूजन आ सकती है। रोग जटिल होने पर पुरुषों को वृषण कोष हो सकता है। इसमें पुरुषों के अंडकोष में असहनीय दर्द होता है और उसमें सूजन आ जाती है, तेज बुखार हो जाता है और अपुष्टि के कारण बंध्यपन हो जाती है। यह विशेष रूप से ठंड और बसंत में होता है एवं शहरों में गांव की अपेक्षा अधिक होता है। बच्चे को 15 माह की उम्र में एम. एम. आर. का टीका लगाने से इस रोग से बचाव होता है।

    चिकन पॉक्स या छोटी माता (वेरीसेला) :-

    चिकन पॉक्स या छोटी माता हरपीज वायरस वेरी सैला से होने वाला संक्रमण रोग है। इसके जीवाणु श्वास नली के द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं और विभिन्न अंगों में रोक पैदा करते हैं। प्रारंभ में बुखार, सिर दर्द, शरीर दर्द और मामूली ठंड लगती है और यह 24 घंटे तक रहता है। इसके बाद त्वचा में दाने दिखाई देती है और खुजली होती है। दाने धार में होते हैं तथा चेहरे में कम और हल्की तथा तलवे में नहीं होती है। रोग जटिन होने पर व्यक्ति रिया संक्रमण, पूरे शरीर में संक्रमण, जोड़ों का दर्द, फेफड़े में सूजन, या मस्तिष्क में सूजन हो सकता है।

    पीलिया (वायरल ऐपेटाइटिस) :-

    पीलिया यकृत को प्रभावित करने वाला प्रमुख वायरस रोग है। यह दो प्रकार का होता है – इनफेक्टिव हेपिटाइटिस और सीरम हेपेटाइटिस। इनफेक्टिव हेपिटाइटिस में वायरस भोजन और पानी के द्वारा और पानी द्वारा जबकि सीरम हेपेटाइटिस मैं खून चढ़ाने या इंजेक्शन आदि से रोगी के शरीर में पहुंचते हैं। इन रोगियों के रक्त में ऑस्ट्रेलिया एंटीजन पाया जाता है। इसमें प्रारंभ में रोगी को बुखार आता है, भूख कम हो जाती है, जिमी चलाता है और उल्टी भी हो सकती है, साथ में सिर दर्द और पेट दर्द भी हो सकता है। इसके बाद यकृत बढ़ जाता है, आंखों में पीलापन दिखाई देने लगता है, फिर बुखार आदि ठीक होने लगता है। पेशाब पीला आती है, मल का रंग बदल जाता है, कभी-कभी तिल्ली बढ़ जाती है यह 3 से 4 सप्ताह में ठीक हो जाता है। रोग पड़ते जाने पर यकृत फेल हो जाता है। इसका कोई विशेष उपचार नहीं है। रोगी को पूर्ण विश्राम करना चाहिए। भोजन में अधिक कार्बोहाइड्रेट जैसे – ग्लूकोज, गन्ने का रस, शहजादी देना चाहिए। कम से कम चर्बी खाना चाहिए और घी, तेल आदि का सेवन नहीं करना चाहिए समय-समय पर योग्य चिकित्सक से परामर्श करते रहना चाहिए।

    मस्तिष्क शोथ या मस्तिष्क ज्वर (एन्कोफैलाइटिस) :-

    यह रोग प्रायः जापानीस बी वायरस के द्वारा होता है। यह कोकसकि ,इसको, पोलियो वायरस,हर्पीज, खसरा और जर्मन मीजिल्स से भी होता है। इस रोग में मस्तिष्क में संक्रमण के कारण सूजन आ जाता है यह रोग धीरे-धीरे अचानक हो सकता है। पहले रोगी को बेचैनी रहती है, उसके बाद सुस्ती रहती है और बेहोशी आ जाती है प्रणाम मस्तिष्क में स्वसन केंद्र प्रभावित होने के कारण स्वसन तेजी से हो जाता है और उसके बाद अनियमित हो जाता है। इसके अलावा शरीर में क्रेनियल नर्वस का लकवा भी हो सकता है

    पोलियो :-

    यारों बच्चों में विकलांगता का प्रमुख कारण है। यारों पोलियो वायरस इस ट्रेन 1,2,3 के द्वारा होता है। इस रोग में पक्षाघात लकवा से लेकर मृत्यु तक संभव है। या रोग विश्व के सभी देशों में होता है और 2 वर्ष से 80 वर्ष के उम्र के इससे अधिक प्रभावित होते हैं। रोगाणु मुंह से सांस के द्वारा शरीर में पहुंचते हैं। हाथों की अंदर की झिल्ली और लसीका ग्रंथियों में वृद्धि करके यह रक्त में पहुंचते हैं जहां तंत्रिका तंत्र में जाकर जो पैदा करते हैं।

    जुकाम (कॉमन कोल्ड) :-

    यह प्राया वायरस के कारण होता है। इसमें स्वसन तंत्र के ऊपर भागों में सूजन आ जाती है। नाक बहती है, पहले स्वास पानी जैसी आती है जो बाद में म्यूकस की तरह हो जाता है। रोग बढ़ने पर बुखार, बदन दर्द और भूख कम हो जाती है एवं वास्को निकलने के कारण दस्त हो जाती है इसमें पानी की भाव बहुत लाभदायक होती है। बुखार होने पर पेरासिटामोल देना चाहिए।

    बैक्टीरिया जनित रोग :-

    न्यूमोनिया :-

    यारों प्राया बैक्टीरिया, वायरस एवं फंगस के कारण होता है। कभी-कभी फेफड़े में उल्टी, मिट्टी का तेल अभी जाने से भी हो सकता है। यह लोग प्रायः अचानक प्रारंभ होता है प्रोग्राम अब कभी के साथ तेज बुखार, खांसी और सांस लेने में तकलीफ होती है। कभी-कभी सीने में दर्द हो सकता है, उल्टी और दस्त अथवा झटके भी आ सकते हैं एवं नीलापन भी हो सकता है। निमोनिया का संदेह होने पर तुरंत योग्य चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।।

    बच्चों में क्षय रोगी (ट्यूबरक्लोसिस) :-

    यह संक्रमण माइक्रो बैक्टीरिया ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के द्वारा फैलता है। प्रिया रोग रोगी के साथ रहने से फैलता है प्रोग्राम रोही केतु मल मूत्र उल्टी या भिन्न मार्गो से निकले मवाद रोग फैलने से सहायक होते हैं । यह रोग कुपोषित बच्चों में अधिक मिलता है। आरंभ में बच्चों में यह रोग बिना लक्ष्मण के हो सकता है अथवा हल्का, बुखार, थकान, कमजोरी, भूख ना लगना, वजन कम होना अथवा शारीरिक वृद्धि में रुकावट आदि लक्षण हो सकता है। इस रोग का आरंभिक अवस्था में ही इलाज प्रारंभ हो जाए व नियमित इलाज करवाया जाए तो बीमारी का पूर्ण निदान संभव है परंतु देर होने पर वह गंभीर रूप ले लेती है और बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है।

    बच्चों में कुष्ठ रोग :-

    यह रोग माइक्रो बैक्टीरिया लेप्रे नामक जीवाणु के द्वारा होता है। बच्चों में यह 4 से 5 वर्ष की उम्र तक यह अक्सर छिपा रहता है जिसके कारण इसका पता देर से चल पाता है । यह बीमारी पुरुषों में अधिक होती है। अधिकांशत रोगी के शरीर पर उपस्थित जख्मों से निकलने वाले तरल पदार्थ द्वारा यह रोज पहनता है। इसके अलावा रोगी द्वारा प्रयोग की जा रही वस्तुओं से भी रोग फैलने की संभावना रहती है। मां के दूध के द्वारा भी जीवाणुओं के फैलने का संभावना होती है ।

    काली खांसी, कुकुर खांसी (परट्यूसिस) :-

    इस रोग में रुक-रुक कर खांसी के दौरे आते हैं। एक बार होने के बाद यह जीवन भर नहीं होती पूर्णविराम यह इमो फिनिश परट्यूसिस नामक बैक्टीरिया से होता है प्रोग्राम रोगी प्रोग्राम रोगी के पुणे राम रोगी के चीखने खांसने से जीवाणु थूक के कणों के साथ वायुमंडल में फैल जाते हैं और जब स्वस्थ बच्चा सांस लेता है तो जीवाणु उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं यह 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को होता है।

    टाइफाइड या मियादी बुखार :-

    इसमें दीर्घकालिक बुखार आता है। यह सालमोनेला टाइफोसा नामक बैक्टीरिया के द्वारा होता है । यह गंदगी के कारण होता है। या गर्मी और बरसात में अधिक होता है क्योंकि इन दिनों मक्खियों की संख्या अधिक रहती है जो रोग फैलाने का काम करती है पूर्णविराम भोजन के साथ या पानी के साथ इसके कीटाणु शरीर में पहुंचते हैं। पहले वे आंतों की लिम्फ उसको में वृद्धि करते हैं जहां से खून में पहुंचकर शरीर के विभिन्न भागों में रोग पैदा करते हैं।

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  • बच्चों में स्वर विकास कैसे करे

    बच्चों में स्वर विकास कैसे करे

    सभी पालको को यह चिंता रहती है कि उनका बच्चा बोलता नहीं,तुतलाता है, कम बोलता है तो आज हम इसके बारे में चर्चा करेंगे कि बच्चों में स्वर विकास कैसे करें।

    बच्चों के स्वर विकास संबंधित समस्याओं का निवारण :-

    बच्चों में स्वर विकास

    बच्चा बोलता नहीं :-

    बच्चे के मानसिक और शारीरिक आज का पता लगना जरूरी है। अगर बच्चे की मानसिक एवं शारीरिक विकास ढाई वर्ष की उम्र में संतुल्य है और बच्चा अगर नहीं बोलता है तो यह एक सामान्य प्रक्रिया हो सकती है क्योंकि कुछ बच्चे 3 से 4 वर्ष की उम्र तक बोलना शुरू कर देते हैं। इसके अलावा बच्चे में कुछ हैबिट प्रॉब्लम भी लगती है। आप अपने बच्चे की किसी योग्य विशेषज्ञ से पूरी तरह से जांच पड़ताल कराएं ताकि आपको सही वजह का पता लग सके

    बच्चा बोलना कब सीखेगा :-

    16 महीने के बच्चे के लिए एक सामान्य बात है। बच्चे अक्सर 13 माह से 3 या 4 वर्ष की उम्र तक बोलना सीखते हैं। कोई बच्चा डेढ़ व्हाट्सएप पर ही अच्छी तरह से बोल सकता है तो कोई बच्चा यह काम ढाई वर्ष या 3 वर्ष पर भी कर सकता है। यहएक सामान्य विविधता है। बच्चे के विकास की दर ठीक होनी चाहिए। अगर बच्चा इशारे से सब कुछ समझता है। इसलिए यह सामान्य रूप होना चाहिए प्रोग्राम वैसे इस उम्र में बच्चे की हर दो या तीन माह के बाद किसी बाल रोग विशेषज्ञ से जांच पड़ताल करते रहना चाहिए प्रोग्राम आज का जुबान पर तेंदुआ जैसी किसी भी परिस्थिति को मान्यता नहीं है

    बच्चा साफ नहीं बोलता :-

    बच्चे का साथ तरह से बोलना तकरीबन 4 वर्ष की आयु तक हो सकता है अगर बच्चा इस उम्र के बाद भी ठीक से नहीं बोल पाता तो बाल रोग विशेषज्ञ एवं स्पीच थेरेपिस्ट से परामर्श करना चाहिए।

    बच्चा तूतलाता है :-

    बच्चे में तूतलाने के प्रमुख कारण – बच्चे में आत्मविश्वास की कमी, सख्त अध्यापक या माता-पिता, बच्चे की सही तरह से देखभाल का भाव, बच्चे को अधिक लाड प्यार, बच्चे में अपने आप को अन्य सपाटी और भाई-बहन की तुलना में निम्न समझना। अगर आपके बच्चे में ऐसा कुछ है तो किसी विशेषज्ञ की मदद से इस को दूर करना होगा। इसमें आपको किसी स्पीच थैरेपिस्ट की मदद भी लेनी चाहिए। दूसरे समस्या के लिए यह जानना जरूरी है कि बच्चे का वजन और लंबाई कितना है। अगर यह बच्चे की उम्र के अनुपात में है तो कोई चिंता की बात नहीं है। बच्चे की खुराक में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और मिनरल उपयुक्त मात्रा में होनी चाहिए प्रोग्राम इसके लिए बच्चे को दूध फल सब्जियां आदि उपयुक्त मात्रा में लेनी चाहिए ।

    बच्चा हकलाता है :-

    बच्चे में शब्दों का सही उच्चारण 4 वर्ष की उम्र तक होता है। क्योंकि बच्चे की उम्र अगर इससे कम है तो इसे हकलाना नहीं कहेंगे। इससे कम उम्र की अधिकतर बच्चे हकला कर ही बोलते हैं। तकरीबन 4 वर्ष की आयु तक बच्चे का बोलना ठीक हो जाएगा अगर तब भी बच्चा का कल आता है तो किसी स्पीच थैरेपिस्ट की मदद लेनी जरूरी है।

    आवाज फट गई है :-

    आवाज का फटना एक गंभीर समस्या है इसका तात्पर्य है कि बच्चे की सांस की नली में या नली के मुंह के आसपास कुछ गड़बड़ है। बच्चे को तुरंत किसी योग्य विशेषज्ञ से जांच कराना जरूरी है। विशेष उम्र की ज्यादातर बच्चे में ज्यादा चीखने चिल्लाने की वजह से भी सांस की नली में सूजन आ जाती है जो कि बच्चे को बाप इत्यादि दिलाने से 7 से 8 दिन में समाप्त हो जाती है।

    बच्चा हकलाने लगा है :-

    कई बार बच्चे सफ बोलने के बाद भी हकलाते हैं। इसका कारण संगति से हो सकता है यदि कोई उसके साथ खेलने वाला व्यक्ति अगर आता है तो बच्चा उसकी नकल करने लगता है जिससे वह भी हकलाने लगता है इसके लिए बच्चे को उस व्यक्ति के साथ खेलने से रोकना चाहिए तथा किसी स्पीच थैरेपिस्ट की मदद लेनी चाहिए।

    बच्चा अक्ल आता है :-

    स्कूल जाने वाले बच्चे मित्र बनाना या हकलाना बच्चे के विकास के लिए एक समस्या बन सकती है। सर्वप्रथम आप बच्चे को किसी स्पीच थैरेपिस्ट को दिखाएं ताकि जिस शब्दों को बोलने में समस्याएं वह उसकी सही तरह से अभ्यास करा सके। ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। था आपको यह ध्यान रखना होगा कि बच्चे की आदत का जिक्र पड़ोसियों के सामने ना करें। बच्चे को कभी भी इस आदत के लिए डांटना नहीं चाहिए। बच्चे को हमेशा प्रेरित करना चाहिए कि इस तरह की समस्या एक सामान्य चीज है और कुछ महीनों में यह ठीक हो जाएगी । इसके अलावा बच्चे को समझाएं कि कोई भी वह वाक्य आराम से धीरे धीरे बोले क्योंकि कई बार जल्दी बोलने के चक्कर में भी हकलाना शुरू हो सकता है।

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  • बच्चों की बुरी आदतों का निवारण :-

    बच्चों की बुरी आदतों का निवारण :-

    बच्चों की आदतें कई बार माता-पिता के लिए परेशानियों का सबब बन जाती है। यहाँ बच्चों की बुरी आदतों का निवारण बताने की कोशिश करेंगे

    बच्चों में स्वर विकास
    बच्चों की बुरी आदतों का निवारण

    बच्चों की बुरी आदतों का निवारण – रात को दांत किटकिटाता है [Bites teeth at night] :-

    बच्चे का दांत किटकिटाना एक आदत है। बच्चे गहरी नींद में सोते समय दांत किटकिटाना है लेकिन यह तथ्य सभी माता-पिता को मालूम होना चाहिए कि दांत का किटकिटाना कीड़े की वजह से नहीं होता है। यादव जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है कम होती जाती है। इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं है।

    किसी का कहना नहीं मानता [no one obeys] :-

    बच्चों की जिद्दी स्वभाव बच्चों में ज्यादा लाड प्यार करने की वजह से होता है। ऐसे बच्चों की काउंसलिंग करने की जरूरत पड़ती है। यह काम बच्चे के अध्यापक या नियमित डॉक्टर के द्वारा किया जा सकता है। ऐसे बच्चों को अनुशासित रखने की जरूरत है। उसकी केवल जायज मांगों को ही मानना चाहिए। अगर बच्चा कोई गलत काम करता है तो उसे डांटना चाहिए । डॉक्टर समय आपको गंभीर रहना है ताकि बच्चा इसकी अहमियत को महसूस कर सके।

    बच्चा शैतानी करता है [child is evil] :-

    अगर बच्चे को ज्यादा लाड प्यार किया जाए तथा उसकी हर बात को माना जाए तो इन बच्चों की माता-पिता से अपेक्षा काफी बढ़ जाती है। इसलिए जरा जरा सी बात नहीं मानने पर भी यह गुस्सा हो जाएंगे और चीजों को इधर-उधर फेंक कर घर वालों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करेंगे। अगर इन बच्चों को प्यार के साथ-साथ थोड़ा सा अनुशासन मेरा जाए तो सही रहता है। माता-पिता और दादा-दादी बच्चों की हरकतों के बारे में अन्य लोगों को बहुत खुशी के साथ बच्चे के सामने बताते हैं इससे बच्चे को प्रोत्साहन मिलता है। आवश्यकतानुसार बच्चे को ऐसी हरकतों के लिए डांटना भी चाहिए तथा किसी भी हालत में इस तरह की बातों की प्रशंसा पड़ोसियों या रिश्तेदारों में नहीं करनी चाहिए। कुछ बच्चों में इस तरह का व्यवहार एक बीमारी होती है जो हाइपर एक्टिव सिंड्रोम की वजह से भी हो सकती है। इन बच्चों में दिमागी कमजोरी के भी लक्षण होते हैं। ऐसे बच्चों के बारे में किसी विशेषज्ञ से अवश्य विचार विमर्श करना चाहिए।

    बेटी मिट्टी खाती है [daughter eats clay] :-

    लोगों में यह अंधविश्वास है कि बच्चे कैल्शियम की कमी की वजह से मिट्टी खाते हैं। ऐसा सर्वथा गलत है। इसमें कैल्शियम देने से कोई फायदा नहीं होगा। बच्चे में मिट्टी खाने की सबसे प्रमुख वजह है – मनोवैज्ञानिक कारण जैसे बच्चे का अकेलापन, माता-पिता द्वारा बच्चे का अपेक्षित महसूस करना, माता-पिता या अन्य किसी परिवारिक सदस्य का बच्चे के साथ शक्ति से बर्ताव करना, भाई बहन या दोस्त से अनबन। दूसरे वजह है बच्चे में आयरन की कमी से एनीमिया, जिससे बच्चे को खाने की आदत में विकार हो जाता है, बच्चे मिट्टी, काजल, कपड़ा इत्यादि खाने लगता है। धीरे धीरे राजा बढ़ जाती है। आप अपने बच्चों को पूरी तरह से जांच पड़ताल करके या निश्चित करें की क्या वजह है। उसके अनुसार ही बच्चे के इलाज की दिशा तय होगी।

    बच्चा नाखून खाता है :-

    बच्चे में मिट्टी या नाखून खाने की आदत के प्रमुख कारण है – एनीमिया और मनोवैज्ञानिक कारण है जैसे बच्चे का अकेलापन, बच्चे का अपने आप को उपेक्षित महसूस करना, भाई बहन या दोस्तों से अनबन इत्यादि। बच्चे की पूरी जांच पड़ताल करने के पश्चात ही कुछ निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। आपके द्वारा बताई गई बच्चे की अन्य समस्या उसकी प्रतिरोधक क्षमता कम होने की तरह इशारा करती है। इस उम्र के बच्चों का हर एक तीन माह पर किसी विशेषज्ञ द्वारा परीक्षण होना चाहिए

    अंगूठा चूसने की आदत है:-

    1 वर्ष के बच्चे में अंगूठा चूसने की आदत सामान्य है। यह आदत प्राकृतिक प्रक्रिया की तरह विकसित होती है क्योंकि बच्चा 4 या 5 माह की उम्र के बाद अंगूठे और उंगलियों को मुंह में ले जाता है। अगर उस समय बच्चे का उचित ध्यान न रखा जाए तो बचा अधिक से अधिक समय अंगूठा और उंगली को मुंह में रखकर एक आदत का महसूस करता है। प्राचीन काल से इस आदत को छुड़ाने के लिए माता-पिता बहुत तरह के उपाय करते आए हैं जैसे अंगूठे पर कड़वे पदार्थ का तेल रखना, अंगूठे पर पट्टी बांधना आदी। लेकिन इन सब पायो शिवबचा अंगूठा सूचना नहीं छोड़ता बल्कि इससे बच्चे के विकास पर प्रतिकूल असर भी पड़ सकता है। इसलिए यह सब नहीं करना चाहिए पूर्णविराम इससे प्रमुख बात यह है कि इस तरह के बच्चों को सारा दिन किसी न किसी खेल प्रक्रिया में व्यस्त रखना चाहिए ताकि बच्चा अंगूठा चूसने के बारे में सोच ही ना पाए प्रोग्राम इसके बावजूद अगर कभी कभार अंगूठा मुंह में जाता है तो उसे प्यार से निकाल देना चाहिए। इस तरह अगर बच्चे की बोरियत दूर कर दी जाए तो बच्चा कुछ समय में अंगूठा जोशना छोड़ देगा।

    बच्ची बाल खाती है :-

    बच्चों में या आजाद ट्रकाकेटिलो मेनिया का लाती है । यह परेशानी यह आदत की वजह से बच्चे को है। इसका मुख्य कारण है भावनात्मक रूप से बच्चे को संतुष्ट ना मिलना। माता-पिता दोनों घर से बाहर काम करते हैं और बच्चे को समय नहीं दे पाते, आप माता पिता मैं अनबन की वजह से बच्चे की सभी देखभाल नहीं होती किसी बीमारी की वजह से किसी दो दोस्त भाई बहन के बिछड़ने से जरूरत की चीजें ना मिल पाने से उपेक्षित बच्चे एकाकीपन अध्यापक या माता-पिता का बहुत सख्त व्यवहार आदि। अब आपके कुछ ही सावधानीपूर्वक यह देखना है कि इसमें से कौन सा कारण है और फिर उस वजह को ठीक करना है । किसी बाल रोग विशेषज्ञ से मिलकर बच्चे की पूरी जांच पड़ताल भी करा ले क्योंकि कई बार इस तरह के बच्चे में और भी कोई बीमारी हो सकती है।

    बेटा कागज खाता है :-

    बच्चे में कागज खाना एक आदतन समस्या है पूर्णविराम आपके बच्चे की उम्र और बच्चे कागज कितने समय से खा रहा है इसका जिक्र नहीं किया है पूर्णविराम इससे आदत की गंभीरता का पता चल सकता है पूर्णविराम इस तरह के कागज खाने वाले बच्चों में कुछ मनोवैज्ञानिक समस्या होती है। जैसे माता-पिता द्वारा ध्यान ना दें या या अधिक लाड प्यार, भाई बहन या दोस्त से अनुबंध अध्यापक का अधिक यदि सख्त होना बच्चे का अकेलापन आदि।

    बच्चा उखड़ा उखड़ा रहता है :-

    जेअधिकतर बच्चे जो किसी लंबी बीमारी से गुजरती है जिद्दी स्वभाव के हो जाते हैं। क्योंकि बीमारी के समय घर घर वाले बच्चे की हर फरमाइश को तुरंत पूरा कर देते हैं प्रोग्राम उस समय यह आदत एवं सामान्य सी चीज लगती है। लेकिन बीमारी ठीक हो जाने के बाद यह आदत असमान लगती है। या आपके बच्चे के साथ है। सर्वप्रथम बच्चे को थोड़ा अनुशासन में रखें पूर्णविराम अगर बच्चा कुछ गलती करता या आपके बच्चे के साथ है। सर्वप्रथम बच्चे को थोड़ा अनुशासन में रखें पूर्णविराम अगर बच्चा कुछ गलती करता है तो उसे डांटे फोटोग्राफी से बच्चे का यह आभास होगा कि क्या गलती, क्या सही है। आवश्यकता से ज्यादा लाड प्यार बच्चे को जिद्दी बनाता है।

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  • सिरदर्द का इलाज / headache treatment

    सिरदर्द का इलाज / headache treatment

    सिरदर्द का इलाज कैसे करें सिरदर्द बीमारी के अलावा अन्य कारणों से भी हो सकता है। इनमें से कुछ कारण नींद की कमी, चश्मे का गलत नंबर, तनाव, तेज शोर वाली जगह पर समय बिताना या सिर को कसकर दबाने वाले तंग कपड़े पहनना हो सकते हैं।

    सिर दर्द का उपचार कैसे करें

    सिरदर्द का इलाज कैसे करें और हर दिन सिरदर्द क्यों होता है?

    इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, स्लीप एपनिया और ब्रेन ट्यूमर के कारण भी सिरदर्द हो सकता है। बुखार के साथ सिरदर्द या गर्दन में अकड़न- बुखार के साथ सिरदर्द या गर्दन में अकड़न भी एन्सेफलाइटिस या मेनिनजाइटिस का संकेत हो सकता है. एन्सेफलाइटिस में मस्तिष्क की झिल्ली में सूजन आ जाती है जबकि मेनिनजाइटिस में।

    सिरदर्द कितने प्रकार के होते हैं?

    5 प्रकार के सिरदर्द और उनका स्थान

    • माइग्रेन क्लस्टर सिरदर्द
    • नाव सिरदर्द
    • साइनस का सिरदर्द
    • विशाल कोशिका सूजन
    • निष्कर्ष

    सिरदर्द को तुरंत कैसे ठीक करें?

    इन 7 घरेलू उपायों को अपनाकर सिरदर्द से पाएं छुटकारा

    • एक्यूप्रेशर का प्रयोग करें, नींबू और गर्म पानी पियें
    • एक सेब नमक के साथ खाएं
    • लौंग की थैली को सूंघें
    • तुलसी और अदरक का रस
    • लौंग के तेल से मालिश करें
    • चाय में नींबू मिलाकर पिएं
    • स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य खबरों के लिए यहां पढ़ें-

    किसकी कमी से होता है सिरदर्द?

    मैग्नीशियम की कमी से सिरदर्द होता है। यह खनिज शरीर को तंत्रिका और मांसपेशियों के कार्यों को विनियमित करने में मदद करता है। जिससे ब्लड प्रेशर का स्तर बना रहता है। माइग्रेन का एक कारण मैग्नीशियम की कमी भी है।

    पुराने सिरदर्द का आयुर्वेदिक इलाज

    पुदीने की पत्तियों को पीसकर उसका रस माथे पर लगाएं या फिर पुदीने की चाय बनाकर पिएं। तुलसी सिरदर्द का अचूक इलाज है। तुलसी की कुछ पत्तियों को पानी में उबालें और छानकर पियें। तुलसी को सामान्य तरीके से चबाने से भी सिर दर्द चक्कर आने लगता है।

    सिरदर्द एक्यूप्रेशर बिंदु

    • कान से कुछ दूरी पर आंख की ओर नाजुक क्रीज को दबाएं।
    • सिर के दोनों तरफ के गड्ढों को अंगूठों से दबाएं
    • सिर पर जिस स्थान पर शिखा रखी जाती है उस स्थान पर दबाने से आराम मिलेगा।
    • सिर के पीछे के गड्ढे को हल्के से दबाने से लाभ होगा।
    • दोनों हाथों की अनामिका उंगली के ऊपर दबाएं

    एक तरफा सिरदर्द

    माइग्रेन अक्षम कर देने वाले सिरदर्द का सबसे आम प्रकार है। यह एक रुक-रुक कर होने वाला सिरदर्द है जो 72 घंटों तक रहता है और सिर के एक तरफ और आंख के पीछे गंभीर, धड़कते हुए दर्द का कारण बनता है। माइग्रेन का सिरदर्द सिर के पिछले हिस्से तक फैल सकता है।

    उपचार

    • एक्यूप्रेशर के माध्यम से, वर्षों से लोग सिरदर्द से राहत पाने के लिए एक्यूप्रेशर का उपयोग करते आ रहे हैं। ,
    • पानी से…
    • लौंग द्वारा…
    • तुलसी के पत्तों से…
    • सेब पर नमक डालकर खाने से…
    • पुदीना और पुदीना चाय

    कारण –

    सिरदर्द थकान, आंखों की कमजोरी, मानसिक तनाव, धूप, सर्दी और गर्मी के कारण हो सकता है।

    उपचार:-

    1. ठंडे पानी की लपेटें करना सीखें
    2. प्याज को पीसकर तलवे के नीचे लगाएं
    3. बादाम की गिरी को घी में पीसकर माथे पर लगाएं।
    4. अगर दर्द का कारण सर्दी है तो इसका इलाज करें – 3 लौंग लें और उन्हें पत्थर पर रगड़ें। दो-तीन बूंद पानी डालें. इस कद्दूकस की हुई लौंग के पेस्ट को एक चम्मच में डालकर गर्म कर लीजिए. अब इसे अपने माथे पर लगाएं और कम्बल ओढ़कर लेट जाएं। कुछ ही देर में सिरदर्द ठीक हो जाएगा।
    5. ठंड के कारण होने वाले सिरदर्द का एक और उपाय है – अदरक, काली मिर्च, तुलसी के पत्ते, दाल और चीनी डालकर चाय बनाएं। सिरदर्द नहीं होगा.

    सिरदर्द का इलाज

    सिरदर्द एक सामान्य विकार है। इसके सटीक कारणों का पता लगाना बहुत मुश्किल है. इस रोग में सिर की त्वचा में दर्द होता है। सिर और गर्दन की मांसपेशियों में तनाव उत्पन्न हो जाता है।

    anxiety chinta sirdard

    सिरदर्द का इलाज

    • गर्म पानी में थोड़ा सा नमक मिलाकर उसमें कुछ देर तक पैर रखने से सर्दी आदि के कारण होने वाले सिरदर्द में आराम मिलता है।
    • गर्मियों में ताजे शंखपुष्पी को ठंडा करके दूध में मिलाकर पीने से चमत्कारिक लाभ मिलता है।
    • जो लोग दिमागी काम अधिक करते हैं उन्हें सुबह के समय भीगे हुए बादाम की चार गिरी छीलकर खूब चबा-चबाकर गर्म दूध पीना चाहिए।
    • बिना दूध वाली नींबू की चाय भी सिरदर्द से तुरंत राहत दिलाती है।
    • सिरदर्द का रोगी यदि भोजन से पहले एक सेब पर थोड़ा सा नमक मिलाकर चबाकर खाए और उसके बाद थोड़ा गर्म पानी या गर्म दूध पी ले तो बहुत लाभ होता है। इस रोग से पीड़ित रोगी के लिए दालें, फलियां तथा तली हुई चीजें हानिकारक होती हैं। इसलिए इनसे बचना चाहिए. इस रोगी को तीखा तथा कसैला भोजन भी नहीं करना चाहिए।
    • नींबू के पत्तों को पीसकर या पीसकर उसका रस निकालकर सूंघने से भी फायदा होता है। जिन लोगों को अक्सर सिरदर्द की शिकायत रहती है उनके लिए यह इलाज एक चमत्कार की तरह है। इसके साथ एक कप नींबू की चाय पीने से तुरंत राहत मिलती है।
    • नारियल की सूखी गिरी और मिश्री मिलाकर चबाने से भी सिरदर्द ठीक हो जाता है।
    • यूकेलिप्टस तेल को माथे पर लगाने या सूंघने से सर्दी के कारण होने वाले सिरदर्द से तुरंत राहत मिलती है।
    • गर्मियों में ताजे शंखपुष्पी का काढ़ा बनाकर ठंडा करके या दूध में मिलाकर पीने से चमत्कारिक लाभ होता है।
    • कुछ लोग गाजर, चुकंदर और जीरा मिलाकर जूस पीने से सिरदर्द से दूर रहते हैं।
    • सर्दी, घबराहट, रात में जागना और मस्तिष्क के किसी भाग में खून जमा होने के कारण होने वाले सिरदर्द में रोगी को ऐसी चीजें खाने को देनी चाहिए जिससे रुका हुआ बलगम निकल जाए और मस्तिष्क को ताकत मिले। ऐसे में दूध, मक्खन, घी, खीर आदि वसायुक्त पदार्थ खाने से लाभ होता है, इससे मस्तिष्क को शक्ति मिलती है।

    आंवले का मुरब्बा उपचार

    आँवला
    • आंवले का मुरब्बा दूध के साथ लेना भी बहुत फायदेमंद होता है। गर्मियों में यह विशेष लाभकारी है।
    • आंवले को चांदी के वर्क में लपेटकर खाने से दिमाग की कमजोरी या चक्कर आने की शिकायत दूर हो जाती है। आंवला आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
    • कई लोगों को सुबह के समय सिरदर्द होता है और चक्कर आते हैं। ऐसे व्यक्तियों को अगर आंवले का मुरब्बा चांदी के वर्क में लपेटकर दूध के साथ नाश्ते में दिया जाए तो बहुत लाभकारी होता है।

    सिरदर्द (आधा सीसी)

    यह दर्द सिर की रक्त वाहिकाओं में एक विशेष प्रकार की अनुभूति के साथ शुरू होता है। यह रोग आंतों का भी हो सकता है। यह दर्द सिर के एक हिस्से में होता है।

    यह दर्द आंखों की कमजोरी, मतली और उल्टी से भी संबंधित है।

    सिरदर्द का इलाज

    रात को सोते समय पैरों के तलवों में, विशेषकर बीच में दर्द होना
    मालिश करने से अचानक होने वाला सिरदर्द ठीक हो जाता है। कई रोगियों में सिरदर्द धूप के साथ घटता-बढ़ता रहता है। ऐसे रोगियों को सूर्योदय से पहले गर्म दूध पिलाने से लाभ होता है।

    सिर के जिस हिस्से में दर्द हो, उस तरफ की नाक में सबसे पहले घी की चार बूंदें टपकानी चाहिए। गर्म और ठंडा सरसों का तेल उस तरफ की नाक में डालने या सूंघने से दर्द दूर हो जाता है।

    लौंग या पुदीना को पीसकर दर्द वाली कनपटी पर लगाने से सिर दर्द से राहत मिलती है। यदि सर्दी के कारण सिर, माथे या कनपटी में दर्द हो तो जायफल को पीसकर लगाने से लाभ होता है।

    छाया में सुखाए गए तुलसी के पत्तों को कुचलकर रोगी को सुंघाने से भी सिरदर्द से राहत मिलती है। सिरदर्द के मरीज नियमित रूप से सुबह के समय देसी घी में काली मिर्च और मिश्री मिलाकर खाएं, इससे उन्हें फायदा होता है।

    इस रोग में गाय का दूध और घी बहुत उपयोगी है। दही तथा खट्टे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए तथा कड़वे तथा मसालेदार भोजन भी इस रोग में हानिकारक होते हैं।

    इसकी गंध के लिए अजवाइन को कोयले या तवे पर भूनना
    चूर्ण को नसवार की तरह लेना भी गुणकारी बताया गया है।

    पिसी हुई लौंग में थोड़ा सा नमक मिलाकर दूध में पेस्ट बनाकर सिर पर लगाने से सिर दर्द में राहत मिलती है।

    पान के पत्ते को हल्का गर्म करके सिर के उस हिस्से पर जहां दर्द हो, लगाने से फायदा होता है।

    → अदरक का रस भी कई प्रकार के दर्द को शांत करने में बहुत उपयोगी है। सिर दर्द में अदरक के रस को मलहम की तरह लगाने या सोंठ के चूर्ण को पानी में गूदा बनाकर लगाने से लाभ होता है।

    → रात को सोते समय पैरों के तलवों पर, विशेषकर मध्य भाग पर
    इसकी मालिश करने से अचानक होने वाला सिरदर्द ठीक हो जाता है।

    तुलसी के पत्तों के चूर्ण में शहद मिलाकर सुबह-शाम लेने से सिर दर्द से राहत मिलती है।

    ● सुबह देसी घी को हल्का गर्म कर लें। जब रोगी सहनीय स्थिति में आ जाए तो रोगी को लिटाकर मुंह को थोड़ा ऊपर उठाएं और साफ औषधीय रुई से उसकी नाक में दो-चार बूंदें टपका दें। रोगी को आराम मिलेगा. ऐसा कुछ दिनों तक करें
    इससे यह रोग हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है।

    अक्सर सिरदर्द या माइग्रेन के दर्द में

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  • संतुलित आहार के लाभ / Benefits of a balanced diet

    संतुलित आहार के लाभ / Benefits of a balanced diet

    संतुलित आहार के फायदे हमारे शरीर को ऊर्जा देते हैं। शरीर का निर्माण एवं विकास ठीक प्रकार से होता है। इससे सुरक्षा में कोई कमी नहीं आती और शरीर का प्रत्येक अंग अपना कार्य ठीक से कर पाता है। जब यह संभव हो तो इसे संतुलित आहार कहा जाता है।

    सन्तुलित आहार के फायदे

    संतुलित आहार के लाभ

    मुख्य बातें

    1. इसमें प्रोटीन और खनिज लवण उचित मात्रा में मौजूद होने चाहिए।
    2. न अधिक, न कम – सही मात्रा में ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।
    3. आवश्यकतानुसार भोजन में विटामिन भी शामिल करना चाहिए।
    4. प्रत्येक पुरुष/महिला/बच्चे के लिए उम्र, लिंग, कार्य और मानसिक आवश्यकताओं के अनुसार संतुलित आहार अलग-अलग होता है। इसे उस व्यक्ति विशेष की सभी ज़रूरतें पूरी करनी चाहिए।

    संतुलित आहार में कैलोरी की मात्रा

    1. 11 साल तक के बच्चे को 100 से 1100 कैलोरी की आवश्यकता होती है।
    2. 1 साल से 3 साल तक के बच्चे के लिए 1100 से 1200 कैलोरी की जरूरत होती है।
    3. 4 साल से 6 साल के बच्चे के लिए 1200 से 1600 कैलोरी की जरूरत होती है।
    4. 7 साल से 12 साल के बच्चे के लिए 1600 से 2000 कैलोरी की जरूरत होती है.
    5. 13 से 15 साल के बच्चे के लिए 2000 से 2200 कैलोरी की जरूरत होती है.
    6. 16 से 18 साल के बच्चे के लिए 2200 से 2800 कैलोरी की जरूरत होती है.

    कार्यक्षमता बनाए रखने के लिए

    1. साधारण काम करने वाले आदमी के लिए 2400 से 2500 कैलोरी।
    2. थोड़ा अधिक काम करने वाले आदमी को 2500 से 2700 कैलोरी।
    3. थोड़ी मेहनत करने वाले आदमी के लिए 3000 से 3500 कैलोरी। 2.3.
    4. एक मेहनती आदमी के लिए 4000 से 5000 कैलोरी।

    महिलाओं का वर्गीकरण

    1. सामान्य कामकाज करने वाली महिला को 1800 से 2200 कैलोरी।
    2. थोड़ा अधिक काम करने वाली महिला को 2500 से 3000 कैलोरी।
    3. थोड़ी सी मेहनत करने वाली महिला को 3000 से 3200 कैलोरी।
    4. एक गर्भवती महिला के लिए 3300 से 3400 कैलोरी। कौन 3500 से 4000 कैलोरी वाला स्तनपान कराना चाहता है?

    Who gets how many calories

    शाकाहारी भोजन से:

    चावल (350 कैलोरी), गेहूं (352 कैलोरी), बाजरा (362 कैलोरी), मक्का (348 कैलोरी), मसूर चना (370 कैलोरी), मसूर अरहर (336 कैलोरी), मसूर मूंग (350 कैलोरी), मसूर उड़द (348 कैलोरी) ) ), दूध (120 कैलोरी)। यह दूध के प्रकार के अनुसार कम या ज्यादा हो सकता है। हरी पत्तेदार सब्जियाँ (52 कैलोरी), अन्य सभी सब्जियाँ (42 कैलोरी), जड़ कंद (98 कैलोरी), केला (102 कैलोरी), चीकू (100 कैलोरी), अन्य फल

    मांसाहारी भोजन:

    मछली (205 कैलोरी), मांस (175 कैलोरी)।

    पोषक तत्वों के रूप में वर्गीकरण

    On the basis of nutrients, we can classify foods as follows

    1. गेहूँ, मक्का, बाजरा, चावल, ज्वार आदि ‘अनाज’ कहलाते हैं और इन्हीं से बनते हैं
    2. हमारे शरीर को विटामिन, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट मिलते हैं।
    3. मूंग, राजमा, अरहर, उड़द और मसूर को ‘दालें’ कहा जाता है और इनका सेवन किया जाता है
    4. प्रोटीन एवं विटामिन ‘बी’ मुख्य रूप से उपलब्ध होते हैं।
    5. मूंगफली, काजू, अखरोट, बादाम, किशमिश आदि को ‘नट्स’ कहा जाता है जिनसे प्रोटीन और विटामिन ‘बी’ पाया जा सकता है।
    6. आलू, अरबी, शकरकंद, हरी और पत्तेदार सब्जियाँ ‘सब्जी वर्ग’ में आती हैं।
    7. आम, पपीता, संतरा, अनार, आंवला, सेब और अमरूद को ‘फल’ कहा जाता है। इन्हें खाने से हमारे शरीर को कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज लवण, विटामिन सी, आयरन आदि मिलते हैं।
    8. क्रीम, मक्खन, दही, मट्ठा, पनीर आदि दूध से बने उत्पाद हैं। इनके सेवन से हमें प्रोटीन, कैल्शियम राइबोफ्लेविन आदि मिलते हैं।
    9. तिल, डालडा, घी, मक्खन और विभिन्न अन्य वनस्पति तेलों को ‘वसा और तेल’ की श्रेणी में गिना जाता है। इनसे शरीर को वसा और विटामिन ‘ए’ उपलब्ध होता है।
    10. सभी प्रकार के मांस, मछली और अंडे को ‘मांसाहारी भोजन’ में गिना जाता है और इन्हें खाने से शरीर को प्रोटीन और कैल्शियम मिलता है।

    संतुलित आहार के विभिन्न साधन

    महंगे संसाधन:

    प्रोटीन

    इसे आप दूध, दही, पनीर, अंडे, मछली और मांस से प्राप्त कर सकते हैं।

    मोटा

    दूध, मक्खन, घी, क्रीम, मलाई, अंडे, मछली का तेल आदि से प्राप्त किया जा सकता है।

    कार्बोहाइड्रेट

    आप गेहूं, चावल, शहद, मुरब्बा, चीनी, मिठाई, सूखे मेवे, जेली, जैम आदि खाकर अपनी कार्बोहाइड्रेट की आवश्यकता को पूरा कर सकते हैं।

    खनिज लवण:

    आप दूध, विभिन्न फल, मेवे, अंडे, मछली और मांस खाकर सभी आवश्यक खनिज प्राप्त कर सकते हैं।

    विटामिन

    दूध, मक्खन, सब्जियाँ, क्रीम, अंडे, मांस और मछली महंगी श्रेणी में आते हैं। इनके सेवन से आपको लगभग सभी विटामिन मिल सकते हैं जिनकी शरीर को जरूरत होती है।

    सस्ते साधन

    प्रोटीन

    छाछ, दालें, लस्सी मठा, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, चौलाई का साग, चना और सोयाबीन।

    मोटा

    सरसों का तेल, मूँगफली, तिल, अलसी

    कार्बोहाइड्रेट

    जौ, चना, बाजरा, आलू, शकरकंद, गुड़, पत्तागोभी, गन्ना, चावल, प्याज आदि।

    खनिज लवण

    खीरा, ककड़ी, खरबूजा, पत्तेदार सब्जियां तरबूज, केला, पालक, आम, अमरूद, जामुन फालसा आदि।

    विटामिन

    दाल, मट्ठा, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अमरूद, गाजर, टमाटर, मेथी, हरी मिर्च, आंवला आदि।

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  • शरीर में फास्फोरस की कमी / Phosphorus Deficiency In The Body

    शरीर में फास्फोरस की कमी / Phosphorus Deficiency In The Body

    शरीर में फास्फोरस की कमी दूर करें फास्फोरस एक प्रकार का खनिज है। यह दूसरा ऐसा खनिज है, जो शरीर में सबसे ज्यादा मौजूद होता है। यह शरीर की हर कोशिका में मौजूद होता है। फास्फोरस की अधिकता से शरीर में विषैले तत्व पैदा होते हैं। इस खनिज (फास्फोरस) की अधिक मात्रा के कारण आपको दस्त की समस्या हो सकती है।

    शरीर में फास्फोरस की कमी से दूर करें
    शरीर में फास्फोरस की कमी से दूर करें

    कौन सा भोजन फास्फोरस बढ़ाता है?

    सोयाबीन के दूध का सेवन किया जा सकता है।
    सोयाबीन को भूनकर खाया जा सकता है.
    सोयाबीन के दूध से बने टोफू का सेवन किया जा सकता है।

    शरीर में कितना फास्फोरस होना चाहिए?

    फास्फोरस हमारे शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अगर इसकी मात्रा शरीर में बराबर बनी रहे तो शरीर ठीक से काम कर पाता है। इसकी कमी से शरीर को कई तरह के नुकसान होने लगते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि एक व्यक्ति को अपने बेहतर स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन 700 मिलीग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती है।

    फास्फोरस की अधिकता से कौन सा रोग होता है?

    यदि गुर्दे के माध्यम से फॉस्फेट का निष्कासन कम हो जाता है, खासकर जब खाद्य पदार्थों में फॉस्फेट का अधिक सेवन होता है, तो हाइपरफोस्फेटेमिया हो सकता है। यह किडनी की समस्याओं जैसे तीव्र या क्रोनिक किडनी विफलता के मामले में देखा जा सकता है।

    फास्फोरस का स्रोत

    सोयाबीन – सोयाबीन फॉस्फोरस और प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। ,
    अलसी के बीज- अलसी के बीज में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। ,
    दालें- दालों में फास्फोरस के अलावा प्रोटीन, फाइबर, पोटैशियम और फोलेट उच्च मात्रा में पाया जाता है। ,

    • जई
    • राई
    • मूंगफली
    • अंडे
    शरीर में फास्फोरस की कमी से दूर करें

    high in phosphorus

    • चिंता
    • भूख में कमी
    • सांस की तकलीफ
    • अंगों का सुन्न होना
    • चिड़चिड़ापन
    • कमजोरी और थकान.
    • जोड़ों की कठोरता
    • हड्डियों का कमजोर होना

    फास्फोरस की खुराक

    14 से 18 वर्ष के किशोर1,250
    वयस्क 19 वर्ष और उससे अधिक700
    गर्भावस्था 19 वर्ष और उससे अधिक700
    19 वर्ष और उससे अधिक आयु वालों को स्तनपान कराना700

    शरीर में फास्फोरस का क्या कार्य है?

    यही वह तत्व है जिसके कारण हमारी किडनी बेहतर काम करती है। इतना ही नहीं, यह हड्डियों और दांतों की मजबूती के लिए भी बेहद जरूरी तत्व है। शरीर में इसकी कमी होने पर हड्डियां कमजोर होने के साथ-साथ गठिया, दांतों का कमजोर होना और मसूड़ों में परेशानी जैसी समस्याएं होने लगती हैं।

    शरीर में फास्फोरस की कमी के लक्षण

    शरीर में इसकी कमी होने पर हड्डियां कमजोर होने के साथ-साथ गठिया, दांतों का कमजोर होना और मसूड़ों में परेशानी जैसी समस्याएं होने लगती हैं। फास्फोरस की कमी से भूख न लगना और सामान्य संक्रमण भी हो सकता है। यदि भोजन ठीक से न पकाया जाए तो फास्फोरस युक्त खाद्य पदार्थ भी अपना पोषण मूल्य खो देते हैं।

    फॉस्फोरस के फायदे –

    • हड्डियों और दांतों के निर्माण में मदद करता है…
    • किडनी की कार्यप्रणाली में सुधार…
    • मांसपेशियों को चुस्त रखता है…
    • हृदय गति को नियंत्रित करता है…
    • दिमाग के लिए उपयोगी…
    • एटीपी बनाने में मदद करता है…
    • पाचन के लिए उपयोगी…
    • वसा जलाने में सहायता

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  • शरीर में कैल्शियम की कमी / Calcium deficiency in the body

    कैल्शियम एक रासायनिक तत्व है. यह आवर्त सारणी के दूसरे मुख्य समूह का एक धात्विक तत्व है। यह एक क्षारीय पृथ्वी धातु है और शुद्ध रूप में उपलब्ध नहीं है। … खाने योग्य कैल्शियम दूध सहित कई खाद्य पदार्थों में पाया जाता है।

    कैल्शियम

    कौन से खाद्य पदार्थ खाने से कैल्शियम बढ़ता है

    1- दूध, दही और पनीर- कैल्शियम की कमी को दूर करने के लिए खाने में दूध, दही और पनीर को जरूर शामिल करें. कैल्शियम की दैनिक आवश्यकता को पूरा करने के लिए दूध और इसके उत्पाद एक अच्छा स्रोत हैं। 2- सोयाबीन- सोयाबीन कैल्शियम और आयरन से भरपूर होता है. सोयाबीन में पाए जाने वाले तत्वों से हड्डी रोग में लाभ मिलता है।

    कैसे जानें इसकी कमी

    • शरीर में कैल्शियम की कमी होने से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और उनमें दर्द होने लगता है।
    • कैल्शियम की कमी होने पर मांसपेशियों में ऐंठन होने लगती है।
    • याददाश्त में भी कमी आती है।
    • शरीर सुन्न होने लगता है और हाथ-पैरों में झुनझुनी होने लगती है।
    • इस अवधि में अनियमितताएं होने लगती हैं.
    • दांत कमजोर हो जाते हैं.

    मानव शरीर में कैल्शियम का क्या महत्व है?

    कैल्शियम कई जगहों पर अहम भूमिका निभाता है। हड्डियों और दांतों को मजबूती देने के अलावा, नसों और मांसपेशियों के सुचारु रूप से काम करने और रक्त के थक्के जमने में भी कैल्शियम की बड़ी भूमिका होती है। इसके अलावा यह सभी कोशिकाओं के अंदर कई रासायनिक प्रतिक्रियाओं में भी भाग लेता है।

    इसे शरीर में कैसे बढ़ाया जाए

    कैल्शियम की कमी को दूर करने के लिए रोजाना अधिक से अधिक डेयरी उत्पादों का सेवन करें। इसके लिए डाइट में दूध, दही, पनीर, मक्खन आदि चीजें शामिल करें। साथ ही बच्चों को रोजाना एक गिलास दूध पीने की सलाह दें. समुद्री भोजन में भी कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

    सबसे अच्छा कैल्शियम कौन सा है?

    रेमिल्की फोर्टे पशुओं के लिए कैल्शियम है जो दूध बढ़ाने का काम करता है। यह दूध उत्पादन और दूध में वसा प्रतिशत बढ़ाने में मदद करता है।

    शरीर में कैल्शियम की कमी से कौन सा रोग होता है?

    ऑस्टियोपोरोसिस- कैल्शियम की कमी के कारण शरीर में हड्डियों से जुड़ी बीमारी हो जाती है। जिन लोगों के शरीर में लंबे समय तक कैल्शियम की कमी रहती है उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा होता है। इसमें हड्डियां बहुत पतली और कमजोर हो जाती हैं और एक-दूसरे से चिपकी नहीं रह पातीं। इससे हड्डियां टूटने का खतरा रहता है.

    शरीर में कितना कैल्शियम होना चाहिए?

    महिलाओं में कैल्शियम की मात्रा 1200 से 1500 मिलीग्राम के आसपास होनी चाहिए। बुजुर्गों में कैल्शियम की मात्रा 1200 से 1500 मिलीग्राम और पुरुषों में 1000 से 1200 मिलीग्राम प्रतिदिन होनी चाहिए।

    यह रक्त को कैसे नियंत्रित करता है?

    कैल्सीटोनिन एक हार्मोन है जो मनुष्यों में थायरॉयड ग्रंथि की पैराफोलिक्युलर कोशिकाओं (सी-कोशिकाओं) द्वारा निर्मित होता है। कैल्सीटोनिन पैराथाइरॉइड हार्मोन की क्रिया का विरोध करके रक्त में कैल्शियम और फॉस्फेट के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।

    बच्चों में किस रोग की कमी

    कैल्शियम की कमी के सबसे आम लक्षणों में चिड़चिड़ापन, मांसपेशियों का हिलना, कंपकंपी, कम खाना, थकान, दौरे, सांस लेने में तकलीफ और चलने या हाथों का उपयोग करने में परेशानी शामिल है।

    रक्त में इसकी उच्च बन्धुता क्या कहलाती है?

    कैल्शियम हड्डियों के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है, लेकिन शोधकर्ताओं ने यह भी साबित किया है कि कैल्शियम के अधिक सेवन से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कैल्शियम सप्लीमेंट के अधिक सेवन से कैल्शियम क्षार या दूध-क्षार नामक समस्या हो सकती है।

    अंतर कैसे पूरा करें

    कैल्शियम की कमी को दूर करने के लिए रोजाना अधिक से अधिक डेयरी उत्पादों का सेवन करें। इसके लिए डाइट में दूध, दही, पनीर, मक्खन आदि चीजें शामिल करें। साथ ही बच्चों को रोजाना एक गिलास दूध पीने की सलाह दें. समुद्री भोजन में भी कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

    हड्डी हानि के लक्षण

    • शरीर में कैल्शियम की कमी होने से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और उनमें दर्द होने लगता है।
    • कैल्शियम की कमी होने पर मांसपेशियों में ऐंठन होने लगती है।
    • याददाश्त में भी कमी आती है।
    • शरीर सुन्न होने लगता है और हाथ-पैरों में झुनझुनी होने लगती है।
    • इस अवधि में अनियमितताएं होने लगती हैं.
    • दांत कमजोर हो जाते हैं.

    इसकी जांच – पड़ताल करें

    कैल्शियम रक्त परीक्षण रक्त में कैल्शियम की मात्रा को मापता है। कैल्शियम शरीर में सबसे महत्वपूर्ण खनिजों में से एक है, जो हड्डियों और दांतों को स्वस्थ और मजबूत बनाता है। … शरीर का 99 प्रतिशत कैल्शियम हड्डियों में होता है और शेष 1 प्रतिशत रक्त में होता है।

    किसे प्रतिदिन कितने कैल्शियम की आवश्यकता है

    जन्म से 1 वर्ष तक के बच्चे600 milligrams
    1 से 10 वर्ष तक के बच्चे450 milligrams
    11 से 14 साल के बच्चे680 milligrams
    15 से 18 साल के बच्चे600 milligrams
    आम आदमी को450 milligrams
    एक गर्भवती महिला को1000 milligrams
    स्तनपान कराने वाली महिला1100 milligrams
    50 की उम्र के बाद500 milligrams

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  • शरीर में कार्बोहाइड्रेट की कमी को दूर करें / Remove carbohydrate deficiency in the body

    शरीर में कार्बोहाइड्रेट की कमी को दूर करें / Remove carbohydrate deficiency in the body

    कार्बोहाइड्रेट – शरीर में कार्बोहाइड्रेट की कमी को दूर करें

    कार्बोहाइड्रेट

    कार्बोहाइड्रेट का स्रोत क्या है?

    कार्बोहाइड्रेट शरीर को दो तरह से मिलता है, पहला माडी यानी स्टार्च और दूसरा चीनी यानी चीनी। गेहूं, ज्वार, मक्का, बाजरा, मोटे अनाज चावल दालों और जड़ वाली सब्जियों में पाए जाने वाले कार्बोहाइड्रेट को माड़ी कहा जाता है।

    एक दिन में कितने कार्बोहाइड्रेट

    सरल शब्दों में कहें तो यदि कोई व्यक्ति एक दिन में आहार के माध्यम से 2000 कैलोरी लेता है तो उसमें 1000 कार्बोहाइड्रेट होना चाहिए।

    कार्बोहाइड्रेट की कमी से कौन सा रोग होता है?

    अगर आप कार्बोहाइड्रेट से परहेज करते हैं तो आपको इन समस्याओं से जूझना पड़ सकता है।
    कब्ज़ – फाइबर एक प्रकार का कार्बोहाइड्रेट है।
    वजन घटाना – कार्बोहाइड्रेट ऊर्जा का एक समृद्ध स्रोत हैं।
    थकान – कार्बोहाइड्रेट की कमी के कारण शरीर को ऊर्जा की आपूर्ति बहुत कम हो जाती है।

    कार्बोहाइड्रेट कितने प्रकार के होते हैं

    • मोनोसैकेराइड
    • शर्करा
    • फ्रुक्टोज
    • गैलेक्टोज
    • डिसैक्राइड
    • माल्टोस
    • सुक्रोज

    1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट में कितनी कैलोरी होती है?

    आवश्यक कैलोरी नियम
    प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट में प्रति ग्राम 4 कैलोरी होती है, जबकि वसा में 9 कैलोरी होती है।

    कार्बोहाइड्रेट का सबसे अच्छा स्रोत क्या है?

    तरबूज, रसभरी, अंगूर, ब्लूबेरी, नाशपाती और आलूबुखारा जैसे ताजे फल आपको फाइबर, ढेर सारा पानी और प्राकृतिक शर्करा प्रदान करते हैं। तो इन फाइबर युक्त फलों का सेवन करें। परिष्कृत अनाज की तुलना में साबुत अनाज खाना बेहतर है

    यदि आप बहुत अधिक कार्बोहाइड्रेट खाते हैं तो क्या होता है?

    वैसे ज्यादातर लोग वजन बढ़ने का कारण कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों को मानते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जब आप रात में कार्बोहाइड्रेट खाते हैं, तो आपका शरीर उन्हें वसा में बदल देता है। हालाँकि, मानव शारीरिक प्रक्रियाएँ और चयापचय गतिविधियाँ इस तरह से काम नहीं करती हैं।

    मनुष्य में कार्बोहाइड्रेट कैसे पचते हैं?

    पेट में पाचन के बाद जब भोजन ग्रहणी में पहुंचता है तो यकृत से आने वाला पित्त भोजन के साथ प्रतिक्रिया करके वसा का उत्सर्जन करता है और माध्यम को क्षारीय बना देता है, जिससे अग्न्याशय से आने वाले पाचक रस में मौजूद एंजाइम सक्रिय हो जाते हैं और वे भोजन में मौजूद हैं. प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट और वसा को पचाते हैं।

    कार्बोहाइड्रेट का पाचन कहाँ होता है?

    मौखिक गुहा में: कार्बोहाइड्रेट का पाचन मुंह में शुरू होता है। लारयुक्त एमाइलेज़ या टायलिन एंजाइम तटस्थ या हल्के क्षारीय माध्यम में स्टार्च को माल्टोज़, आइसोमाल्टोज़ और डेक्सट्रिन में पूरी तरह से तोड़ देता है। लगभग 30% स्टार्च मुँह में ही जल-अपघटित हो जाता है।

    कौन सा परीक्षण कार्बोहाइड्रेट को पचाता है

    सुक्रोज एन्जाइम- इसके द्वारा सुक्रोज का पाचन होता है। लैक्टेज एंजाइम – यह दूध में पाई जाने वाली लैक्टोज शर्करा को पचाता है। माल्टेज़ एंजाइम – इसके द्वारा बीजों में पाई जाने वाली माल्टोज़ शर्करा का पाचन होता है।

    कार्बोहाइड्रेट के फायदे

    • पीछे के लिए ऊर्जा…
    • मनोदशा में सुधार…
    • आपको बेहतर नींद में मदद करता है…
    • शरीर को फाइबर प्रदान करता है…
    • बीमारियों को रोकने में मदद करता है…
    • रक्त का थक्का जमने से रोकता है…
    • वजन नियंत्रित करने के लिए उपयोगी…
    • पाचन तंत्र को बेहतर बनाता है

    कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थ क्या हैं?

    ब्राउन चावल की मात्रा: / Brown Rice Quantity:100 ग्राम
    अनाज की मात्रा: / Buckwheat Quantity:100 ग्राम
    राजमा (राजमा): मात्रा: / Kidney Beans (Rajma): Quantity:100 ग्राम
    मसूर दाल की मात्रा: / Masoor Dal Quantity:100 ग्राम
    आलू की मात्रा: / Potato Quantity:100 ग्राम
    केले की मात्रा: / Banana Quantity:100 ग्राम
    क्विनोआ मात्रा: / Quinoa Quantity:100 ग्राम
    जई की मात्रा: 100 / Oats Quantity: 100100 ग्राम

    हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा

    विभिन्न अनाजों से63.80%
    अलग-अलग लोगों से56.60%
    विभिन्न फलों से10.25
    अलग दूध से4.55%
    अच्छे से95.00%
    शहद के साथ80.00%
    चीनी से89.50%
    विभिन्न सूखे मेवों से67.80%
    अखरोट के साथ85.80%
    जड़ों से22.35%
    साबूदाना से88.00%
    गिरे हुए मेवों से10.22%

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  • प्रोटीन की कमी दूर करें / Overcome Protein Deficiency

    प्रोटीन की कमी दूर करें / Overcome Protein Deficiency

    प्रोटीन की कमी को कैसे दूर करें प्रोटीन अणुओं का एक जटिल समूह है जो शरीर में सभी आवश्यक कार्य करता है। यह बाल, नाखून, हड्डियाँ और मांसपेशियाँ बनाता है। प्रोटीन ऊतकों और अंगों को उनका आकार देता है और उन्हें अपना काम करने में मदद करता है। आइए जानते हैं प्रोटीन शरीर के लिए क्यों जरूरी है और यह शरीर को कैसे फायदा पहुंचाता है।

    प्रोटीन [ protein ]
    protein

    प्रोटीन शरीर के लिए क्यों जरूरी है?

    प्रोटीन मनुष्यों के लिए महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत हैं और लगभग एक ग्राम प्रोटीन चार कैलोरी ऊर्जा प्रदान करता है। प्रोटीन आपके शरीर के ऊतकों के निर्माण और मरम्मत के लिए आवश्यक है। प्रोटीन हड्डियों, मांसपेशियों, उपास्थि, त्वचा और रक्त का एक महत्वपूर्ण निर्माण खंड है।

    प्रोटीन हमारे शरीर में कैसे काम करता है?

    प्रोटीन का सेवन शरीर के ऊतकों के निर्माण में मदद करता है। अगर शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाए तो आपको दिनभर थकान, शरीर और जोड़ों में दर्द महसूस होता है। प्रोटीन की कमी से भी बालों और नाखूनों से जुड़ी समस्याएं हो जाती हैं। प्रोटीन हमारे शरीर में कई एंजाइम, रसायन और हार्मोन बनाने में भी मदद करता है।

    हमारे शरीर में प्रोटीन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्या है?

    प्रोटीन हमारे शरीर के लगभग हर हिस्से के लिए जरूरी है। यह न केवल हमारी त्वचा कोशिकाओं और शरीर की कोशिकाओं के निर्माण में मदद करता है बल्कि याददाश्त को बचाने और पाचन को स्वस्थ रखने में भी मदद करता है।

    प्रोटीन का मुख्य स्रोत क्या है?

    मांस, मछली, अंडा और पनीर प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं, लेकिन इसका विकल्प शाकाहारी भोजन में भी है। इस तरह इसके सेवन से आप शरीर के लिए जरूरी मात्रा में प्रोटीन प्राप्त कर सकते हैं। हमारे शरीर की हर कोशिका में एक प्रोटीन होता है। यह शरीर के हर हिस्से से लेकर त्वचा, हड्डी और बालों के निर्माण में मदद करता है।

    क्या होता है जब शरीर में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है?

    प्रोटीन का अधिक सेवन किडनी में पथरी का कारण बन सकता है। रेड मीट जैसे उच्च प्रोटीन खाद्य पदार्थ शरीर में संतृप्त वसा की खपत को बढ़ा सकते हैं, जिससे हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन वास्तव में शरीर के लिए आवश्यक प्रोटीन की मात्रा क्या है, यह हर किसी को जानना जरूरी है।

    प्रोटीन का पाचन कहाँ से शुरू होता है?

    प्रोटीन का पाचन मुख्यतः पेट में होता है। साधारण शर्करा, शराब और नशीली दवाएं भी पेट में अवशोषित हो जाती हैं। काइम ग्रहणी में प्रवेश करता है जहां कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा का पाचन अग्नाशयी रस, पित्त और अंत में आंतों के रस के एंजाइमों द्वारा पूरा किया जाता है।

    कौन सा एंजाइम प्रोटीन को पचाता है?

    ट्रिप्सिन अग्न्याशय द्वारा स्रावित होता है। यह एक प्रोटीन-पाचन एंजाइम है जो भोजन के दौरान छोटी आंत में स्रावित अग्नाशयी रस में मौजूद होता है।

    प्रोटीन की कमी को पूरा करने के लिए क्या खाएं?

    प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत मांस, डेयरी, अंडे और मछली हैं। इसके अलावा बीन्स और बीजों में भी प्रोटीन मौजूद होता है। प्रोटीन की कमी से सेहत से जुड़ी कई परेशानियां हो सकती हैं. इसके साथ ही कम मात्रा में प्रोटीन लेना भी आपके लिए हानिकारक साबित होता है क्योंकि यह आपके शरीर में बदलाव लाता है।

    प्रोटीन की अधिकता से कौन सा रोग होता है?

    प्रोटीन की अधिक मात्रा शरीर में हड्डियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है, जिसके कारण ऑस्टियोपोरोसिस या हड्डियों में दर्द जैसी शिकायत हो सकती है। कई अध्ययनों से यह भी पता चला है कि प्रोटीन की अधिक मात्रा शरीर में कैल्शियम को कम कर देती है।

    • वजन बढ़ना
    • कब्ज और सूजन…
    • निर्जलीकरण…
    • किडनी को नुकसान…
    • हड्डियों को कमजोर बनाते हैं

    दिन में कितना प्रोटीन खाना चाहिए?

    जो लोग ज्यादा मेहनत नहीं करते, उन्हें हर दिन अपने वजन के प्रति किलोग्राम 0.75 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए। एक पुरुष को रोजाना कम से कम 55 ग्राम और महिला को 45 ग्राम प्रोटीन खाना चाहिए।

    प्रोटीन प्राप्त करना:

    वनस्पति द्वारा :

    प्रोटीन दालों, सोयाबीन, बादाम, मटर, चना, गेहूं, मूंगफली और सभी हरी सब्जियों से प्राप्त होता है। साबुत दालों और सोयाबीन में प्रोटीन सबसे अधिक होता है।

    जानवरों द्वारा:

    पशुओं से प्राप्त दूध से हमें प्रोटीन मिलता है। यह दही, मट्ठा, पनीर और खोया जैसे दूध उत्पादों से प्राप्त किया जाता है। यह हमें अण्डे, मांस आदि से भी प्राप्त होता है।

    दूध और दूध उत्पादों में प्रोटीन की मात्रा

    protein from breast milk1.11 प्रतिशत
    protein from cow’s milk3.30%
    protein from buffalo milk4.40%
    protein from yogurt3.30%
    Protein from khova20.00%

    विभिन्न नाना जोज़ से प्रोटीन का सेवन (प्रति 100 ग्राम)

    from wheat12.10%
    semolina10.30%
    from flour10.20%
    from rice07.30%
    from corn11.10%
    Bajra Singh11.50%

    विभिन्न अनाजों से प्रोटीन का सेवन (प्रति 100 ग्राम)

    from black gram24.20%
    from beans23.30%
    from soybeans43.40%
    from urad dal24.30%
    from pigeon pea22.20%
    from lentils25.00%
    from mung beans24.60%

    सब्जियों की प्रोटीन सामग्री

    from spinach2.01%
    from fenugreek4.50%
    from cauliflower2.50%
    from radish2.80%
    from beet1.75%
    from potatoes1.65%
    from peas1.85%
    from onions1.30%
    from carrots0.93%
    anxiously0.45%

    फलों में प्रोटीन की मात्रा

    banana1.20%
    Apple0.35%
    Mango0.65%
    Guava0.85%

    सूखे मेवों में प्रोटीन

    Walnut5.50%
    Cashew21.10%
    Almond20.75%
    mole18.00%
    Coconut6.75%

    किसे कितना प्रोटीन चाहिए? प्रति दिन

    1to the common man2 to 3-year-old baby
    2to a normal woman16.25 Gram
    3even the baby16.25 Gram
    42 to 3-year-old baby17.50Gram
    51 year to 2 year old baby18.50Gram
    610 to 12-year-old child3 to 6-year-old baby
    76 to 9-year-old child22.50Gram
    810 to 12-year-old child32.50Gram
    910 to 12 year old child40.00Gram
    10boys from 13 to 15 years55.50Gram
    1113 to 15 year old girls50.50Gram
    1216 to 18 year old boys61.00Gram
    1316 to 18 year old girls51.00Gram
    14to pregnant women62.00Gram
    15lactating women72.00Gram

    इन्हें भी पढ़े :प्राथमिक उपचार के महत्व को जाने

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