सूरन, जिसे अंग्रेजी में Elephant Foot Yam भी कहा जाता है, एक पौधा है जिसके अनेक औषधीय गुण होते हैं। यह भारतीय रसोई में एक प्रमुख स्थान रखता है और इसे विभिन्न तरीकों से खाया जाता है। यहां कुछ सूरन के फायदे हैं:

  1. पाचन के लिए लाभकारी: सूरन में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो पाचन को सुधारने में मदद करती है। इसका सेवन अच्छी डाइजेस्टिव सिस्टम को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
  2. विटामिन स्रोत: सूरन में विटामिन C, विटामिन B6, और फोलेट जैसे महत्वपूर्ण विटामिन्स होते हैं, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते हैं।
  3. मधुमेह के लिए उपयोगी: सूरन में अंतिम्ल, जिसे इंसुलिन के स्तर को नियंत्रित करने के लिए जाना जाता है, मात्रा में अच्छी होती है। इसलिए, डायबिटीज के मरीज इसे सेवन कर सकते हैं।
  4. स्वास्थ्यवर्धक गुण: सूरन में अनेक औषधीय गुण होते हैं जैसे कि एंटीऑक्सिडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी, और एंटीमाइक्रोबियल गुण, जो विभिन्न बीमारियों से लड़ने में मदद कर सकते हैं।
  5. कैलोरी कम: सूरन में कम कैलोरी होती है, इसलिए वजन नियंत्रण में सहायक हो सकता है।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि सूरन को कभी भी पकाकर खाया जाना चाहिए, क्योंकि यह भ्रमित करने वाला हो सकता है। इसके अलावा, इसे सेवन करने से पहले ठीक से पकाने की जरूरत होती है, क्योंकि यह खासकर अनपके होने के कारण कई बार कड़ा हो सकता है और इसके सेवन से कुछ लोगों को त्वचा पर खुजली या चकत्ते हो सकते हैं। अत: सूरन का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना उचित होता है।

सूरन के फायदे

सूरन जमीन में होनेवाला कंद है, इसलिए इसे ‘जमीकंद’ भी कहते हैं। इसके पौधे बिना तने के और बड़े-बड़े पत्तों वाले होते हैं। कंद में से डंडियाँ बाहर निकलती हैं और ऊपर जाते-जाते इसके पत्ते छाते की तरह विस्तार धारण करते हैं। इसकी डंडियों का रंग सफेद होता है और उस पर शुभ्र बिन्दु होते हैं। पत्तों की डंडियाँ लंबी होने से पौधा तीन-चार फीट ऊँचा दिखाई देता है। इसकी फसल उपजाऊ बलुई जमीन में अच्छी होती है।

सूरन के कंद पर छोटी-छोटी गाँठें होती हैं, उन्हें बोया जाता है। पाँच-पाँच तोले की गाँठें एक-एक फुट के अंतर पर बोई जाती हैं। जब पत्ते सूख जाते हैं तब गाँठें निकालकर हवादार मकान में रख दी जाती हैं। ये गाँठें दस से पन्द्रह तोले की होती हैं। उन्हें पुनः दूसरे वर्ष सवा से डेढ़ फीट के अंतर पर बोते हैं। दूसरी फसल के समय गाँठें एक-सवा पौंड़ की होती हैं। उन्हें दो-दो फीट के अंतर पर पुनः बोने से पाँच-पाँच पौंड की गाँठें होती हैं। उन्हें फिर साढ़े तीन से चार फीट के अंतर पर बोने से पन्द्रह से बीस पौंड की होती हैं। सामान्यतः सूरन की गाँठ जितने वजन की बोई जाती है उससे चौगुनी वजन की हो जाती है। ज्येष्ठ-वैशाख में उसकी बोआई होती है और मार्गशीर्ष-पोष में उसे खोदकर निकाल लेते हैं। सूरन भारत में सर्वत्र होता है।

Benefits of Suran

सूरन में दो किस्में होती हैं-एक मीठी और दूसरी खुजलीवाली। खुजलीवाला सूरन खाने से मुँह में चरचराहट होती है और मुँह सूज जाता है। इस किस्म का सूरन का कंद चिकना होता है और उसका संवर्धन कंद के छोटे-छोटे टुकड़े करके होता है। यह किस्म मुँह और गले में चरचराहट करती है। इसका उत्पादन अधिक होता है। उबालने से उसकी चरचराहट कम होती है। मीठी किस्म का संवर्धन उपकंदों से होता है। मीठी किस्म गुण की दृष्टि से ज्यादा अच्छी है। इससे चरचराहट नहीं होती। इसके गर्भ का रंग सफेद अथवा फीका गुलाबी होता है। मीठी किस्म का साग के लिए तथा चरचराहटवाली किस्म का औषध के रूप में उपयोग होता है। सूरन की फसल मलबार में विशेष मात्रा में होती है। सूरत जिले में भी सूरन बहुत होता है। यहाँ इसकी बीस-बीस पौंड़ वजन तक की गाँठें

होती हैं। सूरन का साग स्वादिष्ट और रुचिकर होता है। सभी प्रकार के कंद-सागों में सूरन का साग सर्वोत्तम है। इस साग में घी का बघार होता है। साग के उपरांत इससे पूड़ी, हलुवा, खीर आदि चीजें भी बनती हैं। कहीं-कहीं इसका अचार भी बनता है। इसके फूलों, कोमल पत्तों तथा डंडियों से भी तरकारी बनती है। सूरन को पानी में अच्छी तरह धोकर, आग की धीमी आँच पर उबालकर, घी या तेल में तलकर, उसमें काली मिर्च-नमक आदि डालकर खाया जाता है। इस प्रकार सूरन का सेवन करने से भी यह स्वादिष्ट लगता है और शरीर को पुष्ट करता है।

*सूरन को ज्यादा समय तक रखा जा सकता है। अर्श-मस्से के रोग में यह बहुत गुणकारी है, इसीलिए संस्कृत में इसे ‘अर्शघ्न’ कहा गया है। सूरन का साग अर्शवालों के लिए बहुत पथ्य है।
सूरन अग्नि को प्रदीप्त करनेवाला, रुक्ष, खुजली करनेवाला, कटु, मल को रोकनेवाला, स्वच्छ, रुचि उत्पन्न करनेवाला, हल्का और कफ तथा अर्श को काटनेवाला है। यह अर्श पर पथ्य है और प्लीहा तथा गुल्म भी मिटाता है। मीठा या सफेद सूरन तीखा, उष्ण, रुचिकर, अग्निदीपक, छेदक, लघु, रुक्ष, कसैला, मल को रोकनेवाला, वायुनाशक, कफनाशक, पाचक तथा रक्तपित्त का प्रकोप करनेवाला है।

खुजलीवाला या लाल सूरन कसैला, लघु, विष्टंभी, विशद, तीखा, रुचिकर, दीपन, पाचन, पित्त करनेवाला तथा दाहक है। यह खाँसी, उल्टी, गुल्म और शूल में गुणकारी तथा कृमिनाशक है।

सूरन का कंद सुखाकर, उसका चूर्ण कर, घी में सेंककर, शक्कर डालकर खाने से आम मिटता है।

सूरन के टुकड़े घी में तलकर खाने से अर्श-मस्से मिटते हैं।

सूरन के कंद को सुखाकर बनाया हुआ चूर्ण बत्तीस तोला, चित्रक सोलह तोला और काली मिर्च दो तोला- इन सबका चूर्ण कर, उसमें दुगुना गुड़ डालकर बड़े बेर जितनी गोलियाँ बनाकर खाने से सभी प्रकार के अर्श-मस्से मिटते हैं।

सूरन दद्रू, कुण्ठ और रक्तपित्त के रोगियों के लिए हितकारी नहीं है। अतः उन्हें इसका सेवन नहीं करना चाहिए। सूरन का साग कच्चा-सख्त न रहे इसकी सावधानी रखनी चाहिए। अशक्त व्यक्ति के लिए उबाला हुआ सूरन पथ्य होने पर भी इसका ज्यादा मात्रा में निरंतर सेवन करने से हानि करता है।

वैज्ञानिक मत के अनुसार सूरन में प्रोटीन, कॅल्शियम, फॉस्फरस, लोह एवं काफी मात्रा में विटामिन ‘ए’ है।