प्याज के फायदे

प्याज बहुत ही प्रसिद्ध है। भोजन में अति प्राचीन काल से इसका उपयोग होता रहा है। भारत में सर्वत्र इसकी बोआई होती है। प्याज
किसी भी प्रकार की जमीन में हो जाता है। फिर भी रेतीली बेसर जमीन इसे ज्यादा अनुकूल आती है। सर्दियों के प्रारंभ में इसके ताजा बीजों की पनीरी करके इसकी बोआई की जाती है। पुराने बीज नहीं उगते। इसके पौधे हाथ-सवा हाथ ऊँचे होते हैं। इसके पौधे को शाखाएँ नहीं होतीं, परंतु बीज में से सीधे ही पते निकलते हैं। इसके पत्ते सीधे, लंबे, पाइप की तरह पोले और नोकदार होते हैं। जमीन में रहा हुआ प्याज का बीज ज्यों-ज्यों खुराक मिलती है त्यों-त्यों बढ़ता जाता है और पर्त पर पर्त चढ़कर उसकी डली (गाँठ) बनती है। उसे ‘कांदा’ या ‘प्याज’ कहते है।

onion

प्याज की दो किस्में होती हैं- सफेद और लाल । सफेद प्याज गुण में बढ़-चढ़कर माना जाता है। औषध के रूप में भी इसका उपयोग होता है। कुछ लोग सफेद प्याज को तो कुछ लाल प्याज को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। लाल प्याज में लोहतत्त्व अधिक होता है। बैंगन, आलू, करेले वगैरह के साथ प्याज की मिश्र तरकारी स्वादिष्ट बनती है। हरे प्याज की भी तरकारी बनती है। प्याज को तेल या घी में भूनकर भी साग बनाया जाता है। बधार करने में भी प्याज का उपयोग होता है। खिचड़ी या ढीली दाल में प्याज का छौंक देने से उसका स्वाद और गुण बढ़ता है। प्याज की अच्छी चटनी बनती है। साग के उपरान्त कढ़ी, कचूमर और अचार बनाने में भी प्याज का उपयोग होता है। प्याज को कच्चे आम के साथ मिलाकर और गुड़ वगैरह मसाले डालकर कचूमर के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है। कुछ लोग प्याज का कच्चा कचूमर भी खाते हैं। परंतु इसे थोड़े-से तेल में बघारकर इसमें नमक, मिर्च, हरा धनिया डालने से यह अधिक स्वादिष्ट लगता है। प्याज के पकौड़े भी अच्छे बनते हैं। प्याज को ‘गरीबों की कस्तूरी’ कहा है। सर्दियों में अपनी रुचि के अनुसार प्याज और घी का पाक बनाकर खाने से पौष्टिक तत्त्व सरलता से मिल जाते हैं। कच्चे प्याज का कचूमर बारिश के दिनों में भी पाचक माना जाता है। इससे मंदाग्नि नहीं होता। प्याज में लू न लगने देने का विशेष चमत्कारिक गुण है। इसलिए ग्रीष्म ऋतु में आम और प्याज का कचूमर खानेवाले को लू नहीं लगती एवं सूर्य की तीव्र धूप का शरीर पर खराब असर नहीं होता।
प्याज प्रत्येक ऋतु में समान रूप से उपयोगी है। यह खाँसी, साँस-दमा के वेग को कम करता है तथा मस्तिष्क और हृदय-दोनों के लिए हितकारी है। वृद्धों के लिए भी प्याज अत्यंत लाभदायक है। शरीर की दुर्बलता के कारण यदि सिर चकराता हो तो प्याज से लाभ होता है। प्याज वायु को मिटाता है। अतः वात-व्याधिवालों के लिए प्याज रामबाण औषधि है। यदि अदरक की तरह प्याज का भी रोजाना थोड़ा-थोड़ा उपयोग किया जाए तो वायु-संबंधी रोग बहुत कम हो जाते हैं। प्याज लंबे अरसे तक नहीं बिगड़ता ।

प्याज की गंध से दूसरों को अरुचि न हो, इसलिए इसका सेवन रात्रि में करना अधिक हितावह है। प्याज का साग या कचूमर खाने के बाद गुड़ की डली खा लेने से अथवा धनिया के दाने खा लेने से प्याज की दुर्गंध दूर होती है। हमारे दैनिक आहार में उपयुक्त ऐसे अत्यंत सस्ते पदार्थों का मूल्य जरा भी कम नहीं आँकना चाहिए। आयुर्वेद प्याज को एक अत्युत्तम रसायन, परम औषधि और अति पौष्टिक आहार मानता है। प्याज जठराग्नि और धात्वग्नि का वर्धक है।

प्याज गर्म नहीं है। यह पाक तथा रस में मधुर, कफकारक, ज्यादा पित्त न करनेवाला, वीर्यवर्धक और गरिष्ठ है। प्याज वायुजनित शूल का शमन करता है।

सफेद प्याज बलप्रद, तिक्त, वृष्य, मधुर, रुचिकर, गरिष्ठ, स्निग्ध, धातुवर्धक, निद्राप्रद, दीपन और कफकारक है। यह क्षय, हृदयरोग, उल्टी, अरुचि, वात, पित्त, वातार्श, रक्तपित्त, पसीना, सूजन, हैजा आदि को मिटाता है।

लाल प्याज शीतल, अग्निदीपक, गुरु, कुछ उष्ण, वृष्य और बल्यकारक है। यह वायु, कफ, सूजन अर्श और कृमि का नाश करता है। प्याज के बीज दृष्य हैं। ये प्रमेह और दाँत के कृमि का नाश करते हैं।

हरा प्याज स्निग्ध रुचिप्रद, धातु को स्थिर करनेवाला, बलप्रद, बुद्धिवर्धक, कफकारक, पुष्टिदायक, मधुर और गरिष्ठ है। यह रक्तपत्ति पर अच्छा असर करता है।

चरक तथा सुश्रुत प्याज को शक्तिदाता, शरीर को पुष्ट बनानेवाला
और मेध्य-बुद्धिवर्धक मानते हैं। वाग्भट्ट इसे कफजन्य और वातजन्य अर्श रोग में तथा सेंक करने में हितावह मानते हैं।

प्याज वात, पित्त और कफ-इन तीनों विकारों पर गुणकारी है। इसके सेवन से वातप्रकोप शांत होता है। पित्त बाहर निकल जाने से कम होता है और कफ का नाश होता है। प्याज किंचित् कफ करता है, अतः कुछ वैद्य कफ रोगों में इसे निषिद्ध मानते हैं। वास्तव में बूढ़े लोगों एवं छोटे बच्चोंवाली माताओं के लिए कफप्रकोप पर प्याज हितावह है। प्याज के सेवन से आँतों की क्रियाशक्ति बढ़ती और शौचशुद्धि होती है। अतः अर्श, अपच, विषूचिका, गुदभ्रंश और पीलिए पर प्याज दिया जाता है। प्याज गर्म होने पर भी भोजन के बाद आंतरिक शीतलता प्रदान करता है। यह विषशामक है, अतः पेट के अंदर रहे हुए नाना रोगों के जंतुओं का नाश करता है।

यह शरीर के भीतरी जुकाम को नष्ट करता और उदरस्थ गर्मी को शांत करता है। प्याज कुछ रेचक है, अतः पेट तथा आँतों में एकत्रित मल को बाहर निकालकर पेट व आँतों को साफ करता है। इसके सेवन से दूषित पित्त मलमार्ग द्वारा बाहर निकल जाता है और फिर नया अच्छा पित्त उत्पन्न होता है। गर्मियों में लू लगने पर प्याज का रस शरीर पर लगाने से ज्ञानतंतु शांत होते हैं। गर्मियों में पाचन की अस्थिरता के कारण दस्त-पेचिश, अजीर्ण और हैजे सदृश व्याधि होते हैं। गर्मियों में पाचन की अस्थिरता के कारण दस्त-पेचिश, अजीर्ण और हैजे सृदश व्याधि होते हैं। ऐसे व्याधियों में प्याज का रस दही के साथ देने से काफी राहत होती है। प्याज का रोज सेवन करने से आँख की शक्ति बढ़ती है, क्योंकि यह आलोचक पित्त को बढ़ाता है। प्याज खानेवाले की आँखें सदा चमकनेवाली तेजस्वी दिखाई देती हैं। त्वचा के रोगों में भी प्याज उत्तम सिद्ध हुआ है। फोड़े-फुन्सियाँ, मुहाँसे, नहरुआ, कंठमाल आदि रोगों पर प्याज को घी में सेंककर उसकी पुल्टीस बाँधने या प्याज का रस लगाने से फायदा होता है।

प्याज में मसाले भरकर, प्रति पंद्रह दिनों में ताजा अचार बनाकर खाने से रुचि उत्पन्न करता है, अग्नि प्रदीप्त करता है, अच्छी निद्रा लाता है, थकावट दूर करता है, आहार हजम करता है और दस्त साफ लाता है।

सफेद प्याज लेकर उस पर आँवलों की तरह बाँस के सूए से कोचे कर, कुछ भाप देकर, कपड़े से पोंछकर, बर्तन में रखकर, उसका मुँह बंदकर, चार महीनों तक ऊपर लटकाकर रख दीजिए। फिर उसमें से एक-एक प्याज चौदह दिन तक खाने से वीर्यवृद्धि होती है तथा शरीर पुष्ट बनता है।

“हर दिन पावभर प्याज, पाव घृत के साथ, श्वेत प्याज प्रभात में सेवे, पुष्ट हो धात। पुष्टि होती धातु की, होता शरीर बलवान, सात दिन सेवन करे, तो अंग-अंग बलवान । कहे प्रागजी इस भाँति, रोग से बचता रोगी, श्वेत प्याज घी साथ, जो सेवे हर दिन नर-नारी।।”

पावभर सफेद प्याज पाव भर घी में भूनकर सेंककर इक्कीस दिन तक खाने से क्षयरोगी के सड़े-गले फेंफड़े मजबूत होते हैं और फेंफड़ों के जंतु नष्ट होकर सड़न मिटती है। नीरोगी व्यक्ति भी यदि यह प्रयोग करता है तो धातुपुष्टि होती है और शरीर बलवान बनता है।

उड़द की दाल चालीस तोला लेकर उसे प्याज के रस में अच्छी तरह भिगोइए और फिर धूप में सुखा दीजिए। बीस दिन तक लगातार उड़द की दाल को इस तरह प्याज का रस पिलाइए। इसके पश्चात् इस दाल का आटा बनाकर स्वच्छ काँच के बर्तन में भर लीजिए। प्रातः इस आटे में से दो तोला आटा लेकर, दूध में मिलाकर पी जाइए । आहार में घी-दूध का सेवन रखिए और गर्म मसालों का त्याग कीजिए। चार-पाँच सप्ताह तक यह प्रयोग करने से शरीर में काफी शक्ति उत्पन्न होती है।

सफेद प्याज का रस, शहद, अदरक का रस और घी एक-एक तोला लेकर, एकत्र कर, इक्कीस दिन तक रोज प्रातःकाल में पीने से पुरुषत्व प्राप्त होता है।

प्याज का रस छः माशा, घी तीन माशा और शहद तीन माशा एकत्र कर, रोज सुबह-शाम पीकर ऊपर से शक्कर डालकर गर्म किया हुआ आधा सेर दूध पीने से वीर्यवृद्धि होती है। यह प्रयोग एक-दो माह तक कीजिए। इससे उरःक्षत में भी लाभ होता है।

प्याज का रस आधा तोला, गाय का घी पाँच तोला, शहद आधा तोला और अदरक का रस आधा तोला मिलाकर पीने से सौन्दर्य, शक्ति और उत्साह में वृद्धि होती है एवं रात में थकावट लगकर होनेवाला पैरों का दर्द-कनकूत बंद होता है।

प्याज का रस और शहद एक-एक तोला मिलाकर इक्कीस दिन तक रोज सुबह चाटने से वीर्यवृद्धि होती है।

प्याज को पकाकर खाने से जीर्णज्वर में हितकारी बनता है।

प्याज के टुकड़े कर, उबालकर पीने से कफ दूर होता है।

सफेद प्याज बारीक पीसकर, शुद्ध दही और शक्कर मिलाकर खाने से अम्लपित्त और गले की जलन मिटती है। प्याज का कचूमर दही में मिलाकर रात को खाने से अच्छी नींद आती है।

प्याज खाने से कंठ-गला और मुँह चिकनाहट-रहित बनता और साफ होता है, दाँत सफेद दूध के समान बनते हैं, स्मरणशक्ति बढ़ती है और निर्बल बने स्नायु मजबूत होते हैं।

प्याज का कचूमर, जीरा और सेंधा नमक डालकर, आहार के साथ खाने से गला साफ रहता है, कफ की पपड़ी नहीं जमती और उदरस्थ विषाक्त तत्त्वों का नाश होता है।

घी में भुना हुआ प्याज और दो-दो ग्रास हलुआ खाने से बीमारी के उठने के बाद आयी हुई अशक्ति दूर होती है और जल्दी शक्ति आती है। प्याज को गर्म राख में दबाकर रोज प्रातः खाने से आँतें बलवान बनती हैं, अच्छी तरह शौचशुद्धि होती है और जल्दी शक्ति बढ़ती है। प्याज के रस में करेले का रस मिलाकर पिलाने से भयंकर अजीर्ण मिटता है।

प्याज का रस एक तोला, अदरक का रस आधा तोला, हींग एक रत्ती, नमक और थोड़ा पानी मिलाकर पिलाने से अपच दूर होता है। आवश्यक हो तो यह मिश्रण दो घंटे के बाद पुनः दिया जा सकता है। प्याज के रस में सेंकी हुई हींग और नमक मिलाकर पिलाने से अफरा
दूर होता है।

सफेद प्याज, गुड़ और थोड़ी-सी हल्दी मिलाकर सुबह-शाम खाने से पीलिया मिटता है।

एक बड़ा प्याज लेकर उस पर गीला कपड़ा लपेटिए। फिर उसे कोयले की गर्म राख में पकाकर रातभर रख दीजिए। प्रातःकाल उसमें नौसादर और हल्दी दो-दो रत्ती मिलाकर, खाली पेट खाने से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक हो जाती है।

प्याज और गुड़ प्रतिदिन खिलाने से बच्चे की लंबाई शीघ्र बढ़ती है। एक सेर पानी को अच्छी तरह उबालकर नीचे उतार लें। उसमें पाँच तोला कद्दूकश पर घिसा हुआ प्याज डालकर पाँच-दस मिनट रहने दें। ठंडा होने पर छान लें। इसमें से एक चम्मच पानी लेकर उसमें पाँच बूँद शहद मिलाकर बच्चों को पिलाने से वे गहरी नींद सो जाते हैं।

एक चम्मच प्याज का रस देने से अन्नाहार करनेवाले बच्चों के सूक्ष्म कृमि मर जाते हैं। और दोबारा नहीं होते एवं बदहजमी भी दूर होती है। सफेद प्याज को कुचलकर सुँघाने से बच्चों की हिचकी नसों के तनाव में लाभ होता है।

प्याज को पत्थर पर बारीक पीसकर, दो-चार बार पानी से धोकर, दही मिलाकर, दिन में तीन बार खिलाने से आम और रक्त के दस्त बंद होते हैं।

प्याज का रस दो-दो तोला एक-एक घंटे के अंतर से पानी मिलाकर पिलाने से अपच के कारण होनेवाले दस्त और उल्टी में फायदा होता है। हैजे का उपद्रव चल रहा हो तब रात में भोजन करने के बाद प्याज के रस में चने के बराबर हींग घिसकर उसमें सौंफ और धनिया एक-एक माशा मिलाकर पिलाने से हैजे का उपद्रव नहीं होता।

हैजे का आक्रमण होने पर रोगी को बार-बार प्याज का रस देने से आराम होता है। हैजे के आरंभ में ही एक-एक रत्ती हींग मिलाया हुआ प्याज का रस आधे-आधे घंटे के अंतर से पिलाते रहने से हैजा मिटता है। हैजे में शरीर यदि ठंडा पड़ जाए तो प्याज के रस में अदरक का रस तथा काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर देने से शरीर में पुनः गर्मी आती है और दर्द का वेग कम होता है।

प्याज का रस एक तोला, शक्कर आधा तोला और घी पाव तोला मिलाकर पीने से तथा पेट साफ करने के लिए रोज रात में ईसबगूल सत्त्व लेने से अर्श की बीमारी शांत होती है।

प्याज के छोटे-छोटे टुकड़े कर उन्हें धूप में सुखा दीजिए। उन्हें एक तोलाभर घी में तलकर, उसमें एक माशा काले तिल और दो तोला शक्कर का चूर्ण मिलाकर, रोज प्रातः सेवन करने से अर्श-मस्से मिटते हैं।

प्याज की बारीक कतरन कर, दही में मिलाकर, उसमें आवश्यकतानुसार नमक मिलाकर, रोज सुबह खाने से मस्सों का रक्तस्त्राव बंद होता है, शौचशुद्धि होती है और रक्तार्श मिटते हैं। प्याज, जीरा और शर्करा पीसकर खाने से, लू लगी हो तो वह मिटती

है। सेंका हुआ आम और प्याज पीसकर देने से भी लू मिट जाती है।

प्याज की कतरन कच्ची खाने से स्त्रियों को ऋतुस्राव यथेच्छ आता है और दर्द नहीं होता।

प्याज को कुचलकर उसका रस सुँघाने से अथवा नाक में उसके रस की बूँदें डालने से नाक में से निकलनेवाला खून बंद होता है।

प्याज पर चार चीरे लगाकर तुरंत ही बेहोश व्यक्ति की नाक के आगे धरने से उसे सुँघाने से बेहोशी दूर होती है। हिस्टीरिया का दौरा पड़ने पर कटा हुआ प्याज सुँघाने से चमत्कारिक फायदा होता है। नाक में प्याज के रस की बूँदें डालने से भी मृगी, हिस्टीरिया और बेहोशी एवं सर्दी-जुकाम मिट जाते हैं।

गर्मी के कारण सिर में दर्द होता हो तो प्याज को काटकर सुँघाने

से या बारीक पीसकर पैर के तलुवे में घिसने से आराम होता है। प्याज का रस दाद या खुजली पर लगाने से फायदा करता है।

प्याज का रस राई के तेल के साथ मिलाकर लगाने से संधिवात का दर्द मिटता है।

प्याज का रस सिर में डालने से जू मर जाती हैं।

उबाले हए प्याज में नमक मिलाकर, पुल्टीस बनाकर कच्चे फोड़े पर बाँधने से फोड़ा पकता है और रुझान आती है।
प्याज को कतरकर, घी या तेल में सेंककर, उसमें हल्दी मिलाकर पुल्टीस बनाकर फोड़े, पर बाँधने से फोड़े जल्दी पकते हैं। घाव पर बाँधने से दर्द मिटता है।

प्याज पर गीला कपड़ा लपेटकर, अँगारों में रखिए। पक जाने पर बाहर निकालिए। फिर उसे कुचलकर, उसमें थोड़ी हल्दी डालकर कँखवारी या बद की गाँठ पर बाँधने से गाँठ दूर होती है अथवा शीघ्र फूट जाती है।

प्याज की एक डली, लहसुन की एक डली, थोड़ा-सा साबुन, एक भिलावाँ और दस माशा बनारसी राई लेकर, इन सभी चीजों को बारीक कूटकर गोलियाँ बनाइए। इन गोलियों को बाईस घंटे नहरुए पर बाँधने से और इस प्रकार तीन दिन तक करने से नहरुआ बाहर निकल जाता है।

प्याज का रस आँखों में डालने से दुखती आँखें अच्छी होती हैं। प्याज के रस में थोड़ा-सा नमक मिलाकर उसकी बूँदें डालने से रतौंधापन दूर होता है। उन्माद-रोग में सफेद प्याज के रस का आँखों में अंजन किया जाता है।

प्याज के रस में शक्कर मिलाकर उसकी बूँदें आँखों में डालने से आँखों की गर्मी दूर होती है एवं दुखती आँखों में अंजन करने से फायदा होता है।

प्याज का आधा सेर रस निकालें। उसमें कपड़ा भिगोकर उसे छाया

में सुखा दें। इस कपड़े की बत्ती बनाकर उसे तिल के तेल में जलायें और

उस पर काजल बनावें। यह काजल आँख में लगाने से फ्लू मिटता है। सफेद प्याज के रस की बूँदें प्रतिदिन दो बार कान में डालने से बहरापन दूर होता है। प्याज का रस और शहद की बूँदें कान में डालने से कान का शूल मिटता है और पीव निकलता हो तो बंद होता है। प्याज की कतरन को तेल में मिलाकर, एक कटोरे से भरकर, आग पर रख दीजिए और उस पर छेदवाली मटकी उल्टी रखिए। उस छेद में पोली नली बिठाकर, उससे धुआँ लेने से दाँतों के कीड़े मर जाते हैं और दंतशूल मिटता है। प्याज के बीज चिलम में भरकर धूम्रपान करने से भी दाढ़ का दर्द दूर होता है।
प्याज का रस और शहद मिलाकर, पागल कुत्ते के काटने से पड़े घाव पर लगाने से जल्दी रुझान आती है और विष नष्ट होता है। बंदर के काटने से पड़े घाव पर प्याज और नमक घिसकर लगाने से

आराम होता है।

प्याज और लहसुन को पीसकर लगाने से कानखजूरे का विष नष्ट होता है।

प्याज के रस में नौसादर मिलाकर बिच्छू के डंक पर लगाने से विष उतर जाता है। प्याज का रस भ्रमरी के डंक पर लगाने से भी राहत होती है।

कुछ व्यक्ति प्याज के पोषक तत्त्वों को पचा नहीं सकते, अंतः प्याज से उन्हें गैस हो जाता है। उन्हें प्याज को पचाने के लिए ज्यादा श्रम करना चाहिए अथवा प्याज की मात्रा कम करनी चाहिए। पाचनशक्ति और प्रकृति का ख्याल रखकर ही प्याज का उपयेग करना चाहिए। प्याज का अत्यधिक और निरंतर सेवन करने से रक्त तप जाता है और फोड़े-फुन्सी होने की संभावना रहती है, वीर्य पतला पड़कर स्खलित हो जाता है। प्याज और दूध का साथ-साथ सेवन विरुद्ध आहार है। प्याज और दूध-इन दोनों के सेवन के बीच कम से कम तीन-चार घंटे का अंतर हो यह आवश्यक है। दूध पीने से पहले या बाद में तुरंत ही प्याज खाने से कोढ़, रक्तदोष आदि विकार होते हैं। आँखें दुखती हों तब प्याज खाने से आँखों की पीड़ा और बढ़ जाती है। प्याज तीखा और चरचराहटवाला होता है, अतः उसे खाने से मुँह और जीभ में चरचराहट होती है। उबाले हुए या साग बनाये गये प्याज में से चरचराहट कम हो जाती है। प्याज को वायुनाशक माना गया है, परंतु उसको पकाने-उसका साग बनाने से वह वायुकारक बन जाता है। कच्चा प्याज वायु नहीं करता। प्याज को काटकर तुरंत ही खाना चाहिए। काटकर रख छोड़ने पर उसमें रहा हुआ ऊर्ध्वगमनशील तत्त्व उड़ जाता है।

वैज्ञानिक मत के अनुसार प्याज उष्ण, हल्का, कड़वा, उत्तेजक, सारक, कफघ्न और मूत्रल है। यह वायु का अनुलोमन करनेवाला एवं कफ-निःसारक है। इसके सेवन से कफ पतला होता है, घबराहट कम होती है और नये कफ की उत्पत्ति नहीं होती। प्याज का ऊर्ध्वगमनशील तेल फेंफड़ों द्वारा बाहर निकलने लगता है तब प्याज की कफघ्न-क्रिया होती है। यह खाँसी और साँस दोनों पर उपयोगी है। क्षयरोग में यदि बुखार ज्यादा न आता हो तो प्याज दिया जा सकता है। प्याज में ऊर्ध्वगमनशील तेल रहता है। यह तेल हृदय को उत्तेजित करता है और नाड़ी की गति बढ़ाता है। जिनका सिस्टोलिक प्रेशर कम हो, वे यदि प्याज का सेवन करें तो प्रेशर बढ़ता है। इससे कोरोनरी धमनियों का रक्त-संचार भी बढ़ता है। यह तेल उत्तेजक, कफ-निःसारक और मूत्रल है। यह ज्वर, जलोदर, जुकाम, जीर्णकफ-काँस, उदरशूल और रक्तपित्त में लाभकारक है। इसका बाह्य उपयोग करने से शरीर पर लगाने से चमड़ी लाल हो जाती है। नाक में से खून गिरता हो तो प्याज के रस की बूँदें नाक में डालने से खून बंद होता है।