नारियल खाने के फायदे


नारियल की मुख्य दो किस्में हैं-मोहानी नारियल और सादा नारियल । मोहानी नारियल का खोपरा मोटा तथा शक्कर के समान मीठा होता है। खाते समय उसकी सीठी नहीं निकलती। जबकि सादा किस्म के नारियल का खोपरा बहुत मिठासवाला नहीं होता। सादा किस्म के नारियल के अनेक उप-प्रकार हैं। सुकोमल अवस्था में कुछ नारियल के पौधे हरे होते हैं तो कुछ पौधे लाल होते हैं। उसकी भिन्न-भिन्न किस्म के अनुसार उसके फल के कद और आकार भी भिन्न-भिन्न होते हैं। कुछ गोल तो कुछ लंबे, कुछ छोटे तो कुछ बड़े होते हैं। कुछ दोनों सिरों से नॉकदार तो कुछ एक सिरे पर नोंकदार और दूसरे सिरे पर कुंद होते हैं। कुछ नारियल का खोपरा मोटा तो कुछ का पतला होता है। कुछ नारियल का पानी मीठा और खोपरा फीका होता है। गर्भ के रंग भी एकदम सफेद से लेकर हरे रंग तक के भिन्न-भिन्न पाये जाते हैं। गर्भ में खोपरे की मात्रा भी कम-ज्यादा होती है। नारियलों की नरेली भी मोटी या पतली होती है।

coconut

नारियल की उपर्युक्त दो किस्मों के अलावा एक तीसरी ठिगनी किस्म भी होती है। सामान्यतः नारियल के पेड़ पर फल आने में सात-आठ वर्ष लग जाते हैं, जबकि इस ठिगनी किस्म पर दो-तीन वर्ष में ही फल आ जाते हैं।

खोपरा शरीर को हृष्टपुष्ट बनाने के लिए अकसीर है। अतः मिठाइयों और पाकों में इसका यथेष्ट उपयोग होता है। खोपरे का ढोपरापाक या नारिकेल-पाक भी बनता है। श्रीलंका (सिलोन) के सिंहाली लोगों का मुख्य आहार तरोताजा खोपरा है, अतः उनके शरीर खूब मजबूत होते हैं।

हरे नारियल को ‘तरोफा’ अथवा ‘त्रोफा’ कहते हैं। उसके भीतर का पानी अत्यंत मधुर एवं स्वादिष्ट होता है। हरे नारियल का पानी आरोग्य व पौष्टिकता की दृष्टि से बहुत लाभदायक है। मुंबई की चौपाटी पर चूमते-घूमते प्यास लगने पर लोग पानी के बदले हरे नारियल का पानी खूब आनंद से पीते हैं और उसके भीतर का नरम खोपरा खाते हैं।



नारियल के एक से तीन पेड़ के तनों पर चीरे लगाते हैं। ज्यादा तनों
को नहीं काटते। तने में से पंद्रह से चालीस दिनों तक रस बहता है। माड़ी दिन में तीन बार निकाली जाती है और प्रत्येक बार नया चीरा लगाने से रस वेग से निकलता है। तने को काटने के बाद-माड़ी निकाल लेने पर नारियल के वृक्ष पर फूल या फल नहीं लगते। नारियल के वृक्ष में मारिखनेवाले इस रस (माड़ी) को कुछ लोग ‘नीरा’ भी कहते हैं। नीरा भी एक विशेष प्रकार का लिज्जतदार पेय माना जाता है। यह ठंडक देनेवाला है, अतः बुखार में इसका सेवन किया जाता है।

खोपरे से जो तेल निकाला जाता है वह खाने और तलने के काम आता है। श्रीलंका (सिलोन), कोंकण और मलबार के प्रदेशों में तो घी के स्थान पर खोपरे के तेल का ही उपयोग होता है। सिर में डालने का तेल, मोमबत्ती और साबुन बनाने में इसका बहुत उपयोग होता है। यह दीया जलाने के काम भी आता है। खोपरे के तेल से विशेष प्रकार का मक्खन बनाया जाता है। यह गाय-भैंस के दूध से बनाये हुए मक्खन तथा अन्य चरबी की अपेक्षा अच्छा होता है, क्योंकि यह बिगड़ता नहीं और लंबे अर्से तक टिकता है। खोपरे के तेल से हाइड्रोजन तथा रासायनिक क्रियाओं द्वारा वनस्पति-घी (वेजिटेबल घी) बनाया जाता है। खोपरे में से तेल निकाल लेने के बाद जो खली बच जाती है उसे ‘पूनाक’ कहते हैं। खली का उपयोग बैल जैसे मेहनती पशुओं एवं दुधारू चौपायों के आहार (सानी) के लिए होता है।

खोपरे और खोपरे के तेल का उपयोग जर्मनी व फ्रान्स में खूब होता है। नारियल के वृक्ष का तना बँडेर और बाँस के रूप में उपयोग में आता है। पत्तों का टट्टर बनाकर छप्पर बनाया जाता है। तने को दो भागों में चीरकर उसमें से गर्भ निकाल लेने पर पानी के बहने की परनाल बनती है एवं छोटी-छोटी नौकाएँ भी बनती हैं। इसके पत्तों के बीच में जो सलाखें होती हैं उनसे ब्रश बनते हैं और पत्तों से झाड़ बनाये जाते हैं।

नारियल के ऊपर के छिलके गादी-तकियों में भरते हैं और उनके रेशों से रस्सियाँ बनती हैं। मूल और शिखर के हिस्से जलाने के काम आते हैं। नारियल के पानी, दूध और तेल के अनेक उपयोग हैं। उपरांत, नारियल से हुक्के, छोटे-छोटे बरतन, बटन वगैरह कई चीजें भी बनती हैं।
नारियल के पेड़ के फल, पत्ते, तने और रेशे-सभी अंग उपयोगी हैं। अतः इसे ‘गरीबों के कल्पतरु’ की उपमा दी जाती है।

नारियल के तीन आँखें होती हैं, अतः इसे ‘त्र्यंबक’ की संज्ञा प्राप्त हुई है। नारियल, खोपरे और खोपरे के तेल का औषधि के रूप में उपयोग होता है। उपरांत, नारियल की उपयोग किया जाता है। नरेली के तेल का भी औषधि के रूप में

नारिवल ठंडा, दुर्जर (मुश्किल से पचनेवाला), मूत्राशय को साफ करनेवाला, मल को रोकनेवाला, पुष्टिदायक, बलप्रद एवं वायु, पित्त, रक्तविकार, रक्तपित्त और दाह को मिटानेवाला है। नारियल हृदयरोगी के लिए अत्यंत पथ्य है।

सुकोमल नारियल पित्तज्वर तथा पित्त के दोषों को दूर करता है। जीर्ण नारियल भारी, पित्तकारक, दाह-उत्पादक और मलावष्टंभक है।

नारियल का पानी ठंडा, हृदय के लिए हितकारी, अग्नि को प्रदीप्त करनेवाला, वीर्यवर्धक, पचने में हल्का, तृषा तथा पित्त को मिटानेवाला, मधुर और मूत्राशय को एकदम साफ करनेवाला है। ऑपरेशन के बाद या कुछ रोगों में, जबकि रोगी को पानी देना ठीक नहीं माना जाता है तब, नारियल का पानी दिया जाता है।

खोपरे का तेल शीतल, मधुर, गुरु, ग्राहक, पित्तशामक, कफकारक, हृद्य और बालों को बढ़ानेवाला है। यह सिर के बालों को चमकदार एवं मुलायम बनाता है। केशतेल के रूप में इसका उपयोग लाभप्रद है। खोपरे का ताजा तेल हृद्य और रुचिकारक है। यह घावों-जख्मों को रुझाता और दाह को मिटाता है। खोपरे का तेल दीर्घकाल तक पड़ा रहता है तो बेस्वाद बन जाता है और उसकी बास बिगड़ जाती है। यह गर्मियों में प्रवाही रहता है और सर्दियों में जम जाता है। भिलावाँ कूटने के पहले खोपरे का तेल हाथों पर लगा देने से, उसके तेल के छींटे उड़ने पर भी दाह नहीं होता एवं भिलावाँ उठ आने पर खोपरे का तेल लगाने से लाभ होता है।

कद्दूकश पर घिसा हुआ तरोताजा खोपरा सोलह तोला लेकर उसे चार तोला घी में अच्छी तरह सेंकिए। उसमें सोलह तोला चीनी और एक सौ अठ्ठाईस तोला नारियल का पानी डालकर, गुड़ के पाक-सा बनने तक उबालिए। फिर उसमें धनिया, पीपर, नागरमोथा, बाँस कपूर, जीरा, काला जीरा, हारचीनी, तमालपत्र, इलायची और नागकेसर आधा-आधा तोला लेकर चूर्ण करके डालिए और पाक बनाइए। इस पाक को ‘नारिकेल-खंडपाक कहते हैं। इस पाक के सेवन से अम्लपित्त, अरुचि, क्षय, रक्तपित्त, शूल और उल्टी का नाश होता है एवं धातु की वृद्धि होती है।

कडूकश पर घिसा हुआ तरोताजा खोपरा चौसठ तोला लेकर उसमें नारियल का पानी बत्तीस तोला, गाय का घी बत्तीस तोला और शर्करा चौसठ तोला डालकर धीमी आँच पर पकाइए। कलछी पर चिपकने लगे तब उसमें दारचीनी, तमालपत्र, इलायची; जायफल, जावित्री, काली मिर्च, सोंठ, जीरा, वायबिडंग और सौंफ एक-एक तोला लेकर, चूर्ण बनाकर डालिए और पाक बनाइए। यह पाक हृदय के लिए हितकर, शीतल, तृप्तिकारक, गुरु, स्निग्ध, वीर्यवर्धक, बस्तिशोधक, अग्निवर्धक और मधुर है। यह रक्तपित्त विषदोष, वातरक्त, कंठरोग, अर्श, उन्माद, प्रदर, पादशूल नेत्ररोग आदि का नाश करता है। जिस पुरुष की मैथुन-शक्ति अति मैथुन से नष्ट हो चुकी हो, उसे वह इस पाक से पुनः प्राप्त होती है। यह पाक स्त्री, बालक और वृद्ध-सबके लिए हितकारी है एवं जरा-व्याधि-नाशक होने के कारण अमृत के समान गुणकारी है।

मार्गशीर्ष, पौष और माघ-इन तीन महीनों में प्रतिदिन प्रातः खोपरा और गुड़ ठीक से चबाकर खाने से उन युवक-युवतियों का शारीरिक विकास होता है, जो शारीरिक विकास के अभाव में दुबले-पतले, अस्थिपंजरमात्र रह गये हों, वक्षःस्थल विशाल बनता है और शरीर हृष्टपुष्ट बनता है तथा रक्त में गर्मी बढ़ती है।

छोटे बच्चों को शक्कर या गुड़ के साथ खोपरा खिलाने से उनका दुबला-पतला शरीर हष्टपुष्ट बनता है, शरीर में चरबी बढ़ती है।

नारियल के ऊपर के छिलके को जलाकर, राखकर, शहद में चाटने से उल्टी और हिचकी बंद होती है।

ताजा नारियल से सात तोला अंगरस निकालकर, उसमें त्रिफला का चूर्ण तीन माशा और काली मिर्च की बुकनी दो माशा डालकर सुबह-शाम खाने से वातरोग मिटता है।

ताजा नारियल का बिना पानी डाले निकाला हुआ पाँच तोला रस लेकर, उसमें सेंकी हुई हल्दी की गाँठ घिसकर, उसमें दो तोला घी मिलाकर पीने से हृदय रोग मिटता है।

ताजा नारियल का दस सेर पानी निकालकर, उसे शहद जैसा गाढ़ा बनने तक उबालिए। फिर उसमें जायफल, सोंठ, काली मिर्च, पीपर और जावित्री की थोड़ी-सी बुकनी डालकर काँच के बर्तन में भर दीजिए। उसमें से एक-डेढ़ तोला, सुबह-शाम, चौदह दिन तक लेने से अम्लपित्त, उदरशूल और यकृतवृद्धि दूर होती है।

पानीवाला एक नारियल लेकर, उसकी एक आँख में छेद बनाकर, उसमें नमक भर दें। फिर उसके बाहर मिट्टी लगाकर उसे सुखा दीजिए। सूख जाने के पश्चात् अग्नि में उसे पकाइए। फिर खोपरे का नमक के साथ चूर्ण बनाइए। यह चूर्ण पीपर के चूर्ण के साथ खाने से सर्व प्रकार के शूल मिटते हैं।

एक सुकोमल नारियल लेकर, उसमें छेद बनाकर, पावभर पानी और तीन-चार वाल फिटकरी का चूर्ण डालकर छेद को बंदकर, रात में छत पर ओस (शबनम) में रखकर, सुबह हिलाकर पीने से रक्तप्रमेह मिटता है। नारियल का पानी, निर्मली के बीज, शक्कर और इलायची एकत्र करके पानी से रक्तपित्त और मूत्रकृच्छ्र मिटते हैं।

नारियल के पानी में गुड़ और धनिया मिलाकर पीने से दाहयुक्त मूत्रकृच्छ मिटता है।

खोपरा खाने और शरीर पर घिसने से खाज-खुजली कम होती है। ताजा नारियल के खोपरे का रस निकालकर, अग्नि पर उबालने से तेल निकलता है। इस तेल में काली मिर्च की बुकनी डालकर शरीर पर लगाने से वायु से जकड़े हुए अंग वायुमुक्त होते हैं और वातरोग दूर होता

एक नारियल लेकर उसके खोपरे को कद्दूकश पर कसकर, उसके पानी के साथ मिलाकर, उसमें दो भिलावाँ बारीक करके डालकर उबालिए। ऊपर तेल आ जाए और सीढ़ी नीचे बैठ जाए तब तेल को
ऊपर-ऊपर से निकाल लें। इस तेल का वातरोगी के शरीर पर मर्दन को और नीचे जमी हुई राख उसे खिलाएँ। सात से चौदह दिनों तक यह प्रयोग करने से हर प्रकार का वातविकार मिटता है।

सूखे नारियल के खोपरे को कूटकर सुखा दें। उसमें इमली के बीज़ की छाल की दो पैसे भर बुकनी मिलाकर खूब मसलें। तेल निकलने पर जिस अंग पर घाव पड़ा हो वहाँ लगा दें। इससे खून साफ होगा और घाव में रुझान आएगी।

अच्छे और पके हुए जीर्ण नारियल लेकर उसके खोपरे की बुकनी बनाइए। इस बुकनी को पेलकर, पाँच सेर रस निकालकर, कलईवाले बर्तन में अग्नि पर रखकर उबालिए। उबालते समय उसमें चार रत्तीभर नमक और दो माशा हल्दी की बुकनी डालिए। पाक बर्तन के तले चिपक जाए और ऊपर केवल तेल रह जाए तब तक उसे उबालें। इस तेल को बोतल में भरकर रख दें। इस तेल में रुई के पोल को भिगोकर गर्मी से होनेवाले उपदंश पर रखने से व्रण में जल्दी रुझान आ जाती है। घाव या जख्म को रुझाने में खोपरा श्रेष्ठ है।

नारियल की नरेली का पाताल-यंत्र से तेल निकालकर लगाने से खुजली और दाद मिटते हैं।

चूहे ने काट खाया हो तो उतरे हुए-बेस्वाद खोपरे को मूली के रस में घिसकर लेप करने से फायदा होता है।

सूखा खोपरा गर्म, रुक्ष और पित्तकारक है। यह खाँसी करता है। अत्यधिक सेवन करने से यह दाह और श्वास उत्पन्न करता है। ज्यादा खोपरा खाने से विकृति उत्पन्न हो तो ऊपर शर्करा खाएँ और फिर ताजा दूध पीएँ। खोपरे के साथ दूध का सेवन हितावह नहीं है।

वैज्ञानिक मत के अनुसार नारियल लाइसिन और ट्रीप्टोफेन एबेमाइनो एसिडों (प्रोटीन के घटकों) से समृद्ध है। उपरांत इसमें कार्बोहाइड्रेट और खनिज क्षार भी काफी हैं। ताजी नारियल केलरी से भरपूर है एवं उसमें सभी आरोग्यदायक तत्त्व और विटामिन हैं। सूखे नारियल में इनकी मात्रा कम पाई जाती है। नारियल के पानी में मैग्नेशियम और कैल्शियम की मात्रा भी रहती है।