नाशपाती खाने के फायदे
नाशपाती को भावमिश्र ने अमृतफल माना है।
भारत में आजकल जो नाशपाती होती है यह उसकी कलम की हुई, भारतीयले किस्म है। देहरादून में नाशपाती पर मार्च-अप्रैल में फूल और जुलाई-सिंतबर में फल लगते हैं।
ई-शिवाती की अनेक किस्में होती हैं। इनमें खट्टी और मीठी-ये दो प्रकार की किस्में मुख्य हैं। नाशपाती की एक किस्म ‘गुलाबी’ नाम से भवानी जाती है। गुलाबी नाशपाती गुलाबी आभावाली होती है। अव भारत में पश्चिमी देशों से नाशपाती की श्रेष्ठ कलमें आ गई हैं। पंजाब में विदेशी नाशपाती में से एक अच्छी किस्म उगाई जाती है। भारत के ठंडे पर्वतों पर नाशपाती उगाई जाती है। हिमालय और उसकी तलहटी के क्षेत्र के उपरांत दक्षिण भारत में नीलगिरि और बैंगलोर में नाशपाती होती है। कुछ नाशपाती के फल सरस दानेदार होते हैं, जबकि कुछ नाशपाती के फल में रस और फुजला होता है। नाशपाती के मीठे फल खाये जाते हैं और खट्टे फलों का औषधि के रूप में उपयोग होता है। दानेदार मीठी नाशपाती लिज्जतवाली लगती है। इसे खाने पर तबियत खुश हो जाती है। नाशपाती का मुरब्बा भी बनता है। यह दस्त साफ लाता है।

नाशपाती तृषा का शमन करती है और छूट से पेशाब लाती है। बीमारों के लिए इसके फल पथ्य माने जाते हैं। खट्टी नाशपाती जठर और यकृत को बल प्रदान करती है, भूख लगाती है और उबकाई को रोकली है। यह पित्तप्रकोप तथा खून की गर्मी को शांत करती है और नया खून उत्पन्न करती है।
नाशपाती के फल से शराब बनाया जाता है। यह शराब पेरी (Perry) के नाम से पहचाना जाता है। नाशपाती का शराब सेब के शराब (Bider) की अपेक्षा कम स्वाद और गुणवाला है। नाशपाती का शराब अतिसार, प्रवाहिका (पेचिश) आदि में उपयोगी है। नाशपाती के बीज बिही दानों से बड़े होते हैं। ये पौष्टिक हैं। नाशपाती के बीज और बिही दाने गुण में समान हैं। अतः बिही दानों के स्थान पर भी इनका इस्तेमाल किया जाता है। नाशपाती को काबुल में ‘बकदसान’ कहते हैं। नाशपाती की लकड़ी काली और बहुत अच्छी मानी जाती है। उससे गृहोपयोगी वस्तुएँ बनती हैं।
नाशपाती लघु-हल्की, मधुर, वीर्यवर्धक और तीनों दोषों को मिटानेवाली है। इसका रस मधुर, अम्ल, रुचिकर, कामोत्तेजक, धातुवर्धक, वातशामक, रसायन और उष्णवीर्य है। श्वेत प्रदरवाली स्त्रियों के लिए यह हितकारी है। नाशपाती प्रवाहिका, अतिसार और रक्तातिसार में सेब की अपेक्षा अधिक गुणकारी है, क्योंकि इसमें गैलिक और टार्टरिक एसिड सेब की अपेक्षा अधिक मात्रा में हैं।
नाशपाती के फल को आग में सेंककर, उसके टुकड़े कर, उस पर जीरा, काली मिर्च और नमक छिड़ककर खाने से अरुचि और अग्निमांद्य दूर होते हैं।
मीठी नाशपाती का सेवन करने से फेफड़े, हृदय और मस्तिष्क की दुर्बलता दूर होती है।
खट्टी नाशपाती खाने से रक्तातिसार, जीर्ण अतिसार, प्रवाहिका, संग्रहणी, तृषा, दाहजलन, उल्टी, मस्तिष्क की गर्मी और अग्निमांद्य में लाभ होता है।
नाशपाती ज्वरावस्था में अहितकर मानी जाती है। अतः बुखार के रोगियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
यूनानी मत के अनुसार मीठी नाशपाती गर्म तथा चिकनाहटवाली और खट्टी नाशपाती कुछ नीरस होती है। मीठी नाशपाती गुरु और ग्राही है। यह हृदय के लिए हितकारी और जठर के लिए बल्य, उन्मादहर, तृषाशामक, वातहर, रक्तप्रसादन, मूत्राशय के प्रदाह और जलन की शामक है। सिर चकराने तथा फेफड़ों की निर्बलता पर यह लाभदायक है। छुट्टी नाशपाती जठर और यकृत को बल देनेवाली है।