सेब खाने के फायदे

An apple a day keekps doctor away-रोजाना एक सेब खाइए और डॉक्टर से पिंड छुड़ाइए।

To eat an apple before going to bed will make the doctor beat his heart. -सोते समय रोज एक सेब खाते रहें तो डॉक्टर छाती पीटकर रह जाए।

सेब की कई किस्में होती हैं। इनमें गोल्डन डिलीशम, प्रिन्स आल्बर्ट, चार्ल्स रोस, न्यूटन बन्डर, ब्रेमले सीडलिग, लेक्स्टन सुपर्ब, ब्लेनहीम ऑरेंज, ऑरेंज पिपिन, रेड़ सोल्जर और अमेरिकन मधर-ये दस किस्में मुख्य एवं प्रसिद्ध हैं। सेब का अचार, मुरब्बा, चटनी और शरबत बनता है।

Benefits Of Apple


आजकल हम जो सेब खाते हैं वह तो अनेक जंगली किस्मों से परस्पर कलम करके निष्पन्न की हुई हैं। सेब की उत्पत्ति बड़ी मेहनत से हुई है। जंगल की अनेक अच्छी-अच्छी किस्मों को परस्पर मिलाकर, कई वर्षों तक बोने के बाद सेब मिठासवाला बना है। आज तक जंगली सेब की बाईस किस्मों की खोज हो चुकी है। आजकल उनके मिश्रण द्वारा लगभग दो हजार उपकिस्में उगाई जाती हैं। प्राकृतिक ढंग से उगे हुए पेड़ों के फल खट्टे, कसैले और छोटे होते हैं। ये फल खाने के लिए उपयोगी नहीं होते, परंतु इनका उपयोग मुरब्बा बनाने में होता है।

सेब का स्वाद खटमीठा होता है। ऐसे स्वादवाले सेब ही उत्तम गिने जाते हैं, क्योंकि ये सेब ही पित्तवायु को शांत करते हैं, तृपा मिटाते हैं और आँतों को मजबूत करते हैं। आमयुक्त पेचिश मिटाने का गुण भी इसी में है।

सेब का ऊपरवाला छिलका निकालकर, सेब खाने से मीठे लगते हैं, परंतु सेब को छीलकर नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इसके छिलके में क豬 महत्त्वपूर्ण क्षार होते हैं। सेब के टुकड़ों को शक्कर में रखने के बाद खाने से वे बहुत मीठे लगते हैं। प्रातः खाली पेट खाने पर सेब अधिक गुणप्रद है। रक्तचाप को कम करने में यह उत्तम माना जाता है। यह शरीर में स्थित विषाक्त तत्त्व नाबूद करता है। इसके सेवन से दाँत के मसूड़े मजबूत बनते हैं। जठर की खटाई को दूर करने में तो यह अमृत के समान माना गया है। सोते समय सेब खाने से मस्तिष्क शांत होता है और अच्छी नींद आती है।

थोड़ी-सी ठंडी या गर्मी लगने से अथवा थोड़ा-सा श्रम करने से बुखार आ जाता हो, बार-बार पलटी मारकर थोड़े-थोड़े दिनों में बुखार आ जाता हो, तो रक्तादि धातुओं में अवस्थित ज्वर के विष को जलाने के लिए अन्न का त्याग कर दें और ‘सेब-कल्प’ शुरू करें अर्थात् केवल सेब का ही सेवन करें। ऐसा करने पर, थोड़े ही दिनों में, सदा के लिए बुखार से मुक्ति मिल जाती है और शरीर बलवान बनता है।

जिस रोगी को बुखार के साथ सूजन हो, अग्निमांद्य हो, पतले दस्त होते हों, दस्त के साथ कच्चा आम निकलता हो, पेट भारी लगता हो, पेट को दबाने से दर्द महसूस हो, ऐसे रोगी को सिर्फ सेब पर रखा जाए तो धीरे-धीरे रोग दूर हो जाता है। जीर्ण रोग दीर्घकाल से त्रासदायक हो गया हो, आमातिसार जीर्ण होकर पुनः-पुनः लागू पड़ जाए और प्रतिदिन पाँच-सात दस्त लगे, पाचनक्रिया खराब हो जाए, बार-बार थोड़े-थोड़े दस्त हों अथवा मलावरोध हो, पेट भारी लगता हो, शरीर में आलस्य रहता हो और ज्यादा दुर्बलता आ गई हो तब अन्न का त्याग कर केवल सेब का सेवन किया जाए तो कुछ ही दिनों में सर्व प्रकार के विकार दूर होते हैं, पाचन किया बलवान बनती है, स्फूर्ति आती है और मुख तेजस्वी बनता है। जिन रोगियों के पेशाब में यूरिक एसिड अधिक मात्रा में निकलता हो, जोड़ों में दर्द हो, पाचनक्रिया दूषित हो, उन्हें भी सिर्फ सेब पर रखने से छोड़े ही दिनों में उनकी यकृत-क्रिया सुधरती है और मूत्राम्ल की मात्रा कम होती है।

मेदवृद्धि के कारण थोड़ा-सा परिश्रम भी असह्य हो जाए, भूख-प्यास का वेग सहन न हो, प्यास लगने पर तुरंत पानी पीना पड़े, अन्यथा चबराहट हो, थोड़ा-सा चलने पर भी साँस भर जाए, ऐसे मेदवाले लोगों को अन्न त्याग करने और केवल सेब खाने से बहुत लाभ होता है।

रक्तविकार के कारण बार-बार फोड़े-फुन्सियाँ हों, जीर्ण त्वचारोग के कारण चमड़ी शुष्क हो गई हो, रात में खुजलाहट अधिक सताती हो, उँगलियों और नितंब पर खुजली की पीली-पीली फुन्सियाँ परेशान करती हों और शांत नींद न आती हो तो अन्न त्याग कर केवल सेब का सेवन करने से लाभ होता है।

सेब-कल्प करनेवाले-केवल सेब का सेवन करनेवाले को यदि दूध अनुकूल हो तो सुबह-शाम दूध और दोपहर को सेब लेना चाहिए। दूध और सेब के बीच तीन घंटों का अंतर रखें। एकबारगी दूध या सेब उतनी ही मात्रा में लिया जाए कि उसका पाचन तीन घंटों में हो सके। जिन्हें दूध प्रतिकूल हो वे गाय के दूध से बना ताजा मट्ठा ले सकते हैं। यदि मल का रंग सफेद हो तो दही के ऊपर से मलाई निकाल कर मट्ठा बनावें। यदि रोगी को सूजन हो तो मट्टे में नमक बिलकुल ही न डालें।

दवाइयाँ बनाने में भी सेब का उपयोग होता है। औषधि के रूप में सेब के फल, उसके पेड़ और मूल की छाल का उपयोग होता है।

सेब वायु तथा पित्त को मिटानेवाला, पुष्टिदायक, कफकारक, भारी, रस तथा पाक में मधुर, ठंडा, रुचिकारक और वीर्यवर्धक है। सेब
कामोत्तेजक, हृदय के लिए हितकर और ग्राही है। यह अतिसार में पथ्य है। सेब पाचनशक्ति बढ़ानेवाला और रक्त सुधारनेवाला है।

आयुर्वेद के शास्त्रीय प्रयोगों में रोब का उपयोग नहीं होता। परंतु अनेक रोगों में पथ्य के रूप में इसका उपयोग होता है। अतिसार, अर्थ, प्रवाहिका, मलावरोध, मोतीझरा, पित्तम्बर, जीर्णज्वर, प्लीहावृद्धि, अरुचि, अजीर्ण, शारीरिक दुर्बलता, उन्माद, सिरदर्द, स्मरणशक्ति का हास, घबराहट, यकृतवृद्धि, हृदयविकार, पथरी, मेदवृद्धि, रक्तविकार, शुष्क श्वास, सूखी खांसी और वात-विकारों में यह हितावह है।

सेब के छोटे-छोटे टुकड़े कर, काँच या चीनी मिट्टी के बर्तन में, ओल (शबनम) पड़े इस तरह खुली जगह, चाँदनी रात में रखकर, रोज सुबह, एक महीने तक सेवन करने से शरीर तंदुरुस्त बनता है।

सेब के पेड़ की चार माशा छाल और बीस तोला पत्ते उबलते पानी में डालकर, दस-पंद्रह मिनट तक बैंककर रखें। फिर उसे छान लें। उसमें एक टुकड़ा नीबू का रस और एक-दो तोला चीनी मिलाकर पीने से बुखार की घबराहट, प्यास, थकान और दाह दूर होते हैं। यकृत के विकार से आनेवाले बुखार में भी यह लाभ करता है। इससे बुखार उतर जाता है और मन प्रसन्न होता है।

सेब को अंगारों पर सेंककर खाने से, अत्यंत बिगड़ी हुई पाचनक्रिया भी सुधरती है।

रात में सेब खाने से जीर्ण मलावरोध एवं जरावस्था का मलावरोध मिटता है और उदरशुद्धि होती है। मलावरोध के रोगियों के लिए सेब का सेवन आशीर्वाद सिद्ध होता है।

सेब का रस सोड़ा के साथ मिलाकर दाँतों पर मलने से, दाँतों से निकलनेवाला खून बंद होता है एवं दाँतों पर जमी हुई पपड़ी दूर होती है और दाँत स्वच्छ बनते हैं।

सेब को अंगारों पर सेंककर, मसलकर, पुलटीस बनाकर, रात में आँखों पर बाँधने से, थोड़े ही दिनों में आँखों का भारीपन, दृष्टिमंदता, दर्द वगैरह मिटता है।

सेब शीतल है, अतः इसके सेवन से कुछ लोगों को सर्दी-जुकाम हो
जाता है। किसी को इससे कब्जियत भी होती है और अधिक मात्रा में खाने से नुकसान भी होता है।

यूनानी मतानुसार सेब हृदय, मस्तिष्क, लिवर तथा जठर हो बल देता है, भूख लगाता है, खून बढ़ाता है और शरीर की कान्ति में वृद्धि करता है।

वैज्ञानिक मत के अनुसार सेब में ग्लूकोज, कार्बोहाइड्रेट, फॉस्फोरस, पोटेशियम, लौह, ईथर, मेलिक एसिड, लिसिथिन, खनिज आदि क्षार हैं। इसमें विटामिन ‘बी’ और विटामिन ‘सी’ हैं। इसमें टार्टरिक एसिड होने के कारण आमाशय में यह एकाध घंटे में पच जाता है और खाये हुए अन्य आहार को भी पचा देता है।

सेब के गर्भ की अपेक्षा उसके छिलके में विटामिन ‘सी’ अधिक मात्रा में होता है। अन्य फलों की तुलना में सेब में फॉस्फोरस की मात्रा सबसे अधिक होती है। शरीर को यह बल और गर्मी अच्छी मात्रा में प्रदान करता है। सेब में लौह का अंश भी ज्यादा होता है। उसके टुकड़े करके खाते वक्त वायु में अवस्थित ऑक्सीजन मिलने से उसका लौहतत्त्व खूब बढ़ जाता है। सेब के अंदर नाशपाती के फल की अपेक्षा फॉस्फोरस दुगुना और लौह डेढ़गुना है। अतः यह रक्त और मस्तिष्क संबंधी दुर्बलताओं वाले लोगों के लिए हितकारी है। इसमें अवस्थित लौह और फॉस्फोरस मानसिक अशान्ति की उत्तम दवा है। ज्ञानतंतु और मस्तिष्क की दुर्बलता के लिए यह उत्तम पुष्टिकारक फल माना जाता है।