जामुन खाने के फायदे
जामुन दो किस्म के होते हैं-छोटे और बड़े। बड़े जामुन को ‘राज-जामुन’ और छोटे जामुन को ‘क्षुद्र-जामुन’ कहते हैं। बड़े जामुन देखने में सुंदर और गुण की दृष्टि से श्रेष्ठ माने जाते हैं। जामुन में ‘गुलाब जामुन’ नामक एक विदेशी किस्म होती है। इसके फल बीज-रहित, गोलाकार और गुलाबी रंग के होते हैं तथा इसमें से गुलाब-सी सुगंध आती है। ये विशेषतः ब्रह्मदेश (बर्मा) और बंगाल में होते हैं।

जामुन के रस से आसव और शरबत बनते हैं। इसका शरबत पेट के दर्द तथा पुराने दस्तों को मिटाता है। तिल्ली और लिवर-संबंधी रोगों में जामुन अकसीर माने जाते हैं। ‘लिवर एक्सट्रेट’ सदृश अत्यंत मूल्यवान द्रव्य इंजेक्शनों के द्वारा शरीर में दाखिल किये जाते हैं, उसके बदले सस्ते जामुन का उपयोग किया जाए तो यह अधिक लाभप्रद सिद्ध हो जाता है। जामुन हृदय के लिए भी हितकारी है।
जामुन दीपक, पाचक, यकृत-उत्तेजक तथा स्तंभक हैं। ये अनेक रंगों में उपयोगी हैं। यकृत (लिवर) बिगड़ने से शरीर में रक्तविकार उत्पन्न होता है, फलतः कभी-कभी पांडुरोग या पीलिया भी हो जाता है। पांडुरोग और पीलिये में लौहतत्त्व की विशेष जरूरत पड़ती है। जामुन में लौहतत्त्व पर्याप्त मात्रा में होता है, अतः पांडु या पीलिये के रोगियों के लिए जामुन का सेवन हितकारी है।
जामुन खाने से खून शुद्ध तथा लालिमायुक्त बनता है। इससे पांडु और पीलिया दूर होकर शरीर में लालिमा आती है। जामुन के उपयोग से मूत्र-नलिका या बस्ति की सूजन मिटती है। जामुन प्रमेह व मधुमेह की एक उत्तम और अकसीर दवा है।
मधुमेह (डायाबिटीस) के रोगियों के लिए जामुन के बीज का चूर्ण अमृत के समान है। इनके लिए जामुन-फल का सेवन भी गुणकारी है। जामुन अतिसार, रक्तातिसार, पेचिश, संग्रहणी, रक्तपित्त, यकृत के रोगों और रक्तजन्म विकारों को दूर करते हैं।
जामुन-वृक्ष की लकड़ी लाल-भूरी, चिकनी, साधारण सख्त और
शाधारण टिकाऊ होती है। यह मकान-निर्माण व खेती के औजार बनाने मैं उपयोगी है। यह पानी में सड़ता नहीं, इसीलिए कुएँ की भीतरी चाखरे बनाने में इसी का उपयोग होता है। जामुन के वृक्ष की छाल का कपड़े व चमड़े रंगने में उपयोग होता है। जामुन, जामुन के बीजों, पर्ण और छाल का औषधि के रूप में उपयोग होता है।
राज-जाम्बू (बड़े जामुन) मधुर, मल को रोकनेवाले, भारी और रुचि उत्पन्न करनेवाले हैं।
छोटे जामुन मल को रोकनेवाले, रुक्ष एवं कफ एवं पित्त, रक्तविकार या रक्तपित्त तथा दाह को मिटाते हैं। जामुन स्वादु, अम्ल, श्रमहर, शीतल, तृषाशामक, पाचक, मल-पेशाब का निष्कासन रोकनेवाले, कंठ को नुकसान करनेवाले और कफ तथा पित्त को मिटानेवाले हैं। इनका ज्यादा सेवन करने से ये वातल हैं। ये अतिसार, श्वास, कफ-प्रकोप, खाँसी और उदरकृमि दूर करते हैं।
चरक ने जामुन को तथा उसके वृक्ष की छाल को मूत्र-संग्रहण (पेशाब का वहन कम करने वाले), पुरीष-विरजनीय (मल को रंग देनेवाले अथवा उसके रंग को बदलनेवाले) एवं वातजनन कहा है।
सुश्रुत जामुन को रक्तपित्तहर (रक्तस्थित पित्त को निकालनेवाले), दाहनाशक, योनि दोषहर, वर्ण्य (शरीर की कांति सुधारनेवाले) और संग्राही मानते हैं। सुश्रुत के मतानुसार जामुन ‘अत्यर्थवातलं ग्राही’ अर्थात् अतिशय वायु करनेवाले और मलमूत्र को रोकनेवाले हैं।
जामुन के रस में से सरस आसव भी बनाया जा सकता है। यह आसव मधुमेह, संग्रहणी और अतिसार (दस्तों) में उत्तम लाभ देता है। जामुन के बीज, पर्ण और वृक्ष की छाल में कसैला रस है, अतः ये सब मधुमेह पर बहुत हितकारी हैं। जामुन के कोमल पत्तों का पुटपाक विधि से निकाला हुआ रस उत्तम ग्राही है, अतः यह पेचिश (रक्तमिश्रित प्रवाहिका) पर दिया जाता है। जामुन-वृक्ष की छाल तीक्ष्ण, मधुर, पाचक, बाधक और जंतुनाशक मानी जाती है। यह कसैली और स्तंभक होने से, क्वाथ के रूप में, संग्रहणी और अतिसार, प्रवाहिका-पेचिश पर दी जाती है।
जामुन-वृक्ष की छाल का उपयोग अन्य औषधियों के साथ कुल्ले करने की दवाइयों में तथा घावों-जख्मों को धोने का मिश्रण बनाने में होता है। बच्चों को दस्तें लगने पर इसकी छाल का ताजा रस बकरी के दूध के साथ मिलाकर दिया जाता है। इसके मूल भी ग्राही हैं।
अच्छे, पके हुए जामुन लेकर, मसलकर, उनसे 320 तोला रस निकालिए। उसमें 120 तोला गुड़ मिलाइए। हर्र, बहेड़ा, आँवले, नागरमोथा, बायबिंडग, सोंठ, काली मिर्च, पीपर, निसोथ, पीपरामूल, सेंधा नमक, काला नमक, नमक और अजवाइन-ये चौदह औषधियाँ दो-दो तोला लेकर उनका अघकूटा चूर्ण बनाकर उसमें मिलाइए। इसे चीनी मिट्टी के बर्तन में भरकर, उसका मुँह बंद कर, एक महीने तक रख छोड़िए। इसके बाद आसव परिपक्व हो जाने पर छान लीजिए। यह ‘जांबवासव’ पीने से शूलरोग एवं सभी उदररोग शान्त होते हैं।
पके जामुन को अच्छी तरह धोकर साफ कपड़े से पोंछ डालिए। इन्हें मसलकर एक लीटर रस निकालिए। यह रस चीनी मिट्टी के बर्तन में भर लीजिए और रोज छानते रहिए। दूसरे सप्ताह के दौरान केवल दो बार छानिए। तीसरे सप्ताह के दौरान सिर्फ एक बार छानिए। चौथे सप्ताह ऊपर फफूँदी-सा मालूम पड़े तो छान लीजिए। रस निकालने से लेकर एक महीने तक यह क्रिया चलती रहे इसके दौरान छानने का कपड़ा या बर्तन जरा भी पानी के अंशवाले न हों, इसकी पूरी सावधानी बरतें। अन्यथा सिरका बिगड़ जाने की संभावना रहती है। इस प्रकार जामुन का सिरका तैयार करें। यह सिरका आधी-आधी छटाँक लेकर, पानी मिलाकर, एक-एक घंटे के अंतर से दो-तीन बार देने से अपच, उदरशूल, अफरा, अपचजन्य विषूचिका (हैजा), दूषित डकारें आदि रोग दूर होते हैं। यह सिरका पेट का शूल मिटाता है और पेशाब अधिक लाता है। उदररोग, तिल्ली, लीवर अजीर्ण, मंदाग्नि और गुल्म पर भी यह लाभकारक है। यह सिरका वातहर है।
पाँच सौ ग्राम पके जामुन को मसलकर रस निकालें और उसे कपड़े से छान लें। इसमें छठवाँ भाग सेंधा नमक मिलाएँ। फिर एक बोतल में भरकर, मजबूत ढक्कन लगाकर एक सप्ताह तक रख छोड़ें। इससे जामुन का द्वाव तैयार होगा। यह जाम्बू-दाव आधा-आधा छटाँक दिन में तीन बार पीने से अफरा, उदरशूल, अपच और अपचजन्य अतिसार मिटता है। यह जाहेद्राव एक-एक दिन के अंतर से कुछ दिनों तक देने से यकृत की क्रिया नियमित बनती है तथा यकृत की सूजन, यकृतवृद्धि, प्लीहोदर और पीलिया मिटता है।
जामुन के एक सेर रस में छाई सेर शर्करा मिलाकर, अग्नि पर रखकर उबालिए। चासनी करके शरबत बनाइए और कपड़े से छानकर बोतल में भर लीजिए। दो-ढाई तोला शरबत चारगुने पानी में मिलाकर पिलाने से अपच और उल्टी में बच्चों को लाभ होता है।
जामुन के वृक्ष की छाल का रस दूध में मिलाकर पिलाने से उल्टी होकर पित्तविकार दूर हो जाता है। फिर घी-चावल खिलाने से उल्टी बंद होती है।
जामुन के वृक्ष की छाल की राख शहद के साथ देने से खट्टी उल्टी बंद होती है।
एके जामुन खाने से पित्त के दस्त मिटते हैं।
जामुन के वृक्ष की छाल का दो-दो तोला काढ़ा शहद मिलाकर पीने हे अतिसार और पेचिश मिटते हैं।
जामुन और आम की गुठलियों का समभाग चूर्ण छाछ के साथ, एक-एक चम्मच दिन में तीन बार (प्रातः, मध्याह्न और साय) लेने से पेट का झूल तथा जीर्ण पेचिश मिटता है।
जामुन के वृक्ष की छाल दूध में पीसकर, उसमें शहद मिलाकर पीने से अथवा जामुन के पत्तों के रस में शहद, घी और दूध मिलाकर पीने से रक्तातिसार (पेचिश) मिटता है।
जामुन के कोमल पत्तों का एक तोला रस, पाव तोला शहद मिलाकर, दिन में तीन बार देने से अतिसार मिट जाता है, आम का पाचन होता है और खून गिरता हो तो बंद होता है।
जामुन के बीज, सेमल का गोंद, आम की गुठली और खस के मूल मीर इन चार चीजों को समान मात्रा में लेकर पीसिए और चूर्ण बनाए। यह चूर्ण, दिन में तीन बार छाछ के साथ लेने से दस्त (अतिसार) मिटते हैं।
जामुन और आम के वृक्ष की छाल दो-दो तोला सोलह गुना पानी में उबालिए और चतुर्थांश क्वाथ बनाइए। उसके तीन हिस्से कर, उसमें जीरा-धनिया का चूर्ण दो-दो माशा मिलाकर, दिन में तीन बार देने से सगर्भा स्त्री का अतिसार मिटता है।
प्रतिदिन सात-आठ तोला अच्छे, पके जामुन लेकर उन्हें उबलते पानी में डालिए और पंद्रह मिनट तक ढँककर रखिए। फिर उन्हें हाथ से मसल, कपड़े से छान, तीन हिस्से कर, दिन में तीन बार, कुछ दिनों तक पीने से, पेशाब में जानेवाली शर्करा की मात्रा घटती है, यकृत (लीवर) कार्यक्षम बनता है और मधुमेह में खूब लाभ होता है।
अच्छे पके जामुन सुखाकर, बारीक कूटकर चूर्ण बनाइए । प्रतिदिन दो-दो तोला पन्द्रह दिनों तक इस चूर्ण का सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।
जामुन के बीज के गर्भ का एक-एक माशा चूर्ण शहद या पानी के साथ दिन में दो बार दस-पंद्रह दिनों तक देने से मधुमेह मिटता है।
जामुन के बीज दो सौ ग्राम, नीम की गिलोय पचास ग्राम, हल्दी पचास ग्राम और काली मिर्च पचास ग्राम कूटकर वस्त्र से छान डालिए। इस चूर्ण को जामुन के रस में खूब घोंटकर सुखा दीजिए और एक बोतल में भरकर रख दीजिए। पाव-आधा तोला चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ दीर्घकाल तक लेने से मधुमेह (डायाबिटीस) में निश्चित रूप से फायदा करता है।
जामुन-वृक्ष की छाल का क्वाथ शहद मिलाकर पाँच-सात दिन तक, दिन में दो बार, देने से स्त्रियों का प्रदररोग मिटता है।
जामुन-वृक्ष के मूल को चावल के माँड में घिसकर एक-एक चम्मच सुबह-शाम देने से स्त्रियों का पुराना प्रदर मिटता है।
दीर्घकाल तक जामुन खाते रहने से पेट में गया हुआ बाल या लोहा पिघल जाता है।
जामुन के बीज को पानी में घिसकर लगाने से युवानी के कारण मुँह पर होनेवाले मुँहासे मिटते हैं।
जामुन-वृक्ष की छाल की राख तेल के साथ मिलाकर अग्नि-दग्ध भाग पर लगाई जाती है।
जामुन-वृक्ष की छाल के क्वाथ से कुल्ले करने से गले की सूजन पर लाभ करता है।
जामुन-वृक्ष की छाल के क्वाथ के कुल्ले दिन में दो बार करने से दाँतों के मसूढ़ों की सूजन मिटती है और हिलते दाँत मजबूत बनते हैं।
जामुन सदा भोजनोपरान्त ही खाने चाहिए। भूखे पेट जामुन बिलकुल न खाएँ। जामुन अतिशय वातदोष करनेवाले हैं, अतः वायुप्रकृतिवालों तथा वातरोग से पीड़ित व्यक्तियों को नहीं खाने चाहिए। जिनके शरीर पर सूजन आई हो उन रोगियों, उल्टी के रोगियों, प्रसूति से उठी हुई स्त्रियों और दीर्घकालीन उपवास करनेवाले व्यक्तियों को जामुन नहीं खाने चाहिए। नमक छिड़ककर ही जामुन खाइए, कभी नमक छिड़के बिना जामुन न खाएँ। ज्यादा जामुन खा लेने पर साँसत होती है। ऐसा होने पर छाल में नमक डालकर पीएँ।
वैज्ञानिक मत के अनुसार जामुन में लौह, फॉस्फोरस और चूना प्रचूर मात्रा में होता है। उपरांत, कोलीन तथा फॉलिक एसिड भी होता है। जामुन के बीज में ग्लुकोसाइड, जम्बोलिन फेनोलयुक्त द्रव्य (फेनिलयुक्त एत्ताजिक एसिड), पीलापन लिये सुगंधित तेल काफी मात्रा में उपलब्ध होता है। जामुन मधुमेह, पथरी, लीवर, तिल्ली और रक्त की अशुद्धि को दूर करते हैं और पेशाब की शुद्धि करते हैं। जामुन में रहे अम्ल तत्त्व (एसिड) मूत्राशय में जैसा पथरी को पिघलाते हैं। जामुन और उसके बीज पाचक और स्तंभक हैं। शरीर में बढ़ी हुई शर्करा को पचाने के लिए इनका अयोग होता है।