सीताफल खाने के फायदे
सीताफल की एक बड़ी किस्म को ‘रामफल’ भी कहते हैं। फलाहार या आंशिक फलाहार के रूप में सीताफल का उपयोग किया जा सकता है। पूरक आहार के रूप में भी इसका उपयोग हो सकता है। शरीर में अशक्ति आ गई हो, रोग के बाद शरीर में दुर्बलता महसूस हो रही हो, काम करने से थकान लगती हो तो सीताफल खाने से अशक्ति दूर होती है और बल बढ़ता है। शरीर की मांस-पेशियाँ क्षीण हो गई हों, शरीर पतला व कृश हो गया हो, टाइफोइड-मलेरिया सदृश ज्वर के पश्चात् वजन कम हो गया हो तो सीताफल खाने से मांसवृद्धि होती है।

जिनका वजन बढ़ता न हो उनके लिए सीताफल अत्यंत श्रेष्ठ है। जिनका हृदय दुर्बल हो गया हो, हृदय की धड़कनें बढ़ जाती हों, हृदय में घबराहट होती हो, हृदय की मांस-पेशियाँ शिथिल हो गई हों, उनके लिए भी सीताफल लाभदायक है। सीताफल हृदय की मांस-पेशियों का बल बढ़ाकर हृदय की क्रिया को स्वाभाविक बनाता है। खूब भूख लगी हो, आहार लेने पर भूख शांत न होती हो, इस प्रकार के भस्मक रोग में भी सीताफल के सेवन
से लाभ होता है।
लामीताफल अत्यंत शीतल हैं और ज्यादा खा लेने पर जुकाम करते हैं। इसके इस गुण के कारण ही इसका नाम ‘शीतफल’ पड़ा होगा, जो बाद मैं ‘सीताफल’ के रूप में प्रचलित हुआ होगा। सूरत के आसपास कुछ लोग इसे ‘अन्नुस’ भी कहते हैं।
सीताफल शीतल (अत्यंत ठंडा), वृष्य, वातल, पित्तशामक, कफकारक, तृषाशामक और वमन-निरोधक है। सीताफल स्वाद में मीठे व पौष्टिक हैं। ये तृप्ति करनेवाले, मांसवृद्धि करने वाले, रक्तवृद्धि करनेवाले, बलवर्धक और हृदय के लिए हितकारी हैं। ये पित्तशामक, वातशामक, कफवर्धन और कफ निःसारक भी हैं। सीताफल शरीर के भीतरी मांस को पुष्ट बनाते हैं।
इसके कच्चे फल अतिसार और पेचिश में उपयोगी हैं। इसके बीज पशुओं के घाव में रुझान लाते हैं। कुछ स्त्रियाँ गर्भपात के लिए इसके बीज के चूर्ण का उपयोग करती हैं। सीताफल के बीज का चूर्ण सिर में डालने से, बालों में पड़ी हुई जूँ मर जाती हैं। पके सीताफल की छाल में जख्म को रुझाने और कीटाणुओं को नष्ट करने का गुण है। इसके पत्ते पीसकर फोड़ों पर बाँधते हैं।
पके सीताफल बड़े सवेरे ओस (शबनम) में खुली जगह में रखकर, प्रातः खाने से पित्त का दाह शान्त होता है।
सीताफल के मूल का चूर्ण उन्माद-पागलपन में दिया जाता है। इससे रेच लगकर उन्माद की विकृति निकल जाती है। (ये मूल तीव्र रेचक हैं, अतः इनका उपयोग सावधानी से करें।)
है। सीताफल के मूल पानी में घिसकर पीने से रुका हुआ पेशाब छूटता
सीताफल के पत्तों को पीसकर, उनका रस निकालकर, उसकी बूँदें नाक में डालने से हिस्टीरिया से मूर्च्छित व्यक्ति होश में आता है। इसके बीज के गर्भ को पीसकर, कपड़े में डालकर, उसकी बत्ती बनाकर, सुलगाकर, नाक से इसका धुआँ लेने से भी हिस्टीरिया और मिरगी से आयी हुई बेहोशी दूर होती है।
सीताफल के बीज के गर्भ की वर्ति (बत्ती) बनाकर योनि में रखने से बंद पड़ा हुआ मासिक धर्म चालू होता है।
कच्चे सीताफल का चूर्ण अथवा उनके बीज का चूर्ण रात में सोने समय सिर के बालों में भरकर, ऊपर कपड़ा बाँध लें। इससे सिर के बालों में पड़ी जूँ और लीख मर जाती हैं।
सीताफल के पत्तों को कूटकर चटनी बनाइए। उसमें सेंधा नमक मिलाकर पुलटीस बनाइए। यह पुलटीस घाव पर बाँधने से उसमें पड़े हुए कीड़े मर जाते हैं। कीड़ों को मारने के लिए कुछ लोग सीताफल के पते, तमाखू और सूखा चूना शहद में मिलाकर घाव पर बाँधते हैं। कच्चे अपक्व फोड़ों पर उसकी पुलटीस बाँधने से फोड़ों को वह जल्दी पकाता है और भीतरी पीव को बाहर निकालकर घाव का शोधन करता है। पके सीताफल की छाल में भी घाव का शोधन करने और कीड़ों का नाश करने का उत्तम गुण है।
अत्यधिक मात्रा में सीताफलों का सेवन करने से ठंडी लगकर बुखार आता है। सीताफल शीतल हैं, अतः पित्त को मिटाते हैं। किंतु अत्यधिक खाने से व्यक्ति निश्चित ही बीमार पड़ता है।
जिनकी जठराग्नि मंद हो, जिनको जुकाम हो, जिनका जीवन श्रम-रहित हो, उन्हें सीताफल का उपयोग विवेकपूर्वक करना चाहिए। न पचने पर सीताफल लाभ के बदले नुकसान करते हैं। सीताफल के बीज आँख में जाने पर दाह-जलन करते हैं। इससे आँखें खराब होती हैं। अतः जूँ मारने के लिए उनके बीज सिर में भरते समय वे आँख में न चले जाएँ इसका खास ख्याल रखें।
वैज्ञानिक मत के अनुसार सीताफल में कॅल्शियम, लौह, थायामिन, रीबोफ्लेविन, नियासिन और विटामिन ‘बी’, ‘बी’ तथा विटामिन ‘सी’ एवं काफी मात्रा में शर्करा है।