आँवले खाने के फायदे
आँवला हमारे देश में श्रेष्ठ फलों में से एक है। आँवलों के सेवन से अनेक रोग मिटाये जा सकते हैं।
आँवलों की दो किस्में होती हैं-सफेद आँवले और जंगली आँवले । आँवलों की बोआई की जाती है। आँवलों का मुरब्बा, अवलेह और कद्दूकश पर कसकर अचार भी बनाया जाता है। आँवले ज्यों बड़े और दलदार त्यों अधिक गुणकारी माने जाते हैं। सूखे आँवलों की अपेक्षा हरे आँवले ज्यादा गुणकारी माने जाते हैं।
आयुर्वेद ने आँवलों को श्रेष्ठ माना है। किसी भी ऋतु, प्रकृति, देश, काल और वय के लिए आँवले पथ्य हैं। वेदकाल से आँवलों का उपयोग होता रहा है। च्यवन ऋषि आँवलों से बनी औषधि (च्यवनप्राशावलेह) का सेवन कर वृद्ध से युवा हुए थे, ऐसा कहा जाता है। च्यवनप्राशावलेह में मुख्य भाग आँवलों का होता है। यद्यपि उसमें जीवनीय गण आदि अन्य द्रव्य भी होते हैं। बहुत-से लोग आँवलों का मुरब्बा बनाते हैं। वैद्य उसका जीवन (च्यवनप्राशावलेह) बनाते हैं। हरीतकी (हर), बहेड़ा और आँवला-इन तीनों फलों को समभाग में एकत्र करने पर ‘त्रिफला चूर्ण’ बनता है। त्रिफला आयुर्वेद का सुपरिचित औषध है। त्रिफला कफ और पित्त का नाश करता है, प्रमेह तथा कुष्ठ को मिटाता है मल उतारता है, नेत्र के लिए हितकारी है, अग्नि को प्रदीप्त करता है, रुचि उत्पन्न करता है और विषमज्वर का नाश करता है। हर्र की अपेक्षा आँवले पौष्टिक गुण में बढ़कर हैं। आँवले वीर्य की भारी वृद्धि करते हैं। सूखे आँवले केश बनाते हैं, भग्न अस्थियों को जोड़ते हैं, शरीर पर लगाने से शरीर की कान्ति बढ़ाते हैं। संक्षेप में, आँवले तीनों दोषों को नष्ट करनेवाले और उत्तम रसायन हैं। आँवले रक्तशुद्धि करनेवाले, मूत्रल, पित्तशामक, सारक और रुचिकर हैं। रक्तपित्त को ये तत्काल दूर करते हैं।
आँवले शीतवीर्य हैं अतः रक्त में बढ़ी हुई उष्णता और तीक्ष्णता को कम करते हैं। आँवलों में शोधन गुण है, अतः ये रक्त में एकत्रित विष, मल वगैरह दोषों को दूरकर, रक्त को शुद्ध करते हैं तथा रक्त धातु के वर्ण को लाभ पहुँचाते हैं। यह रक्त के अनुरूप मांस धातु में प्रवेश का मांसस्थ अग्नि को प्रदीप्त कर, मांस के मल को जलाते और पेशीकोषों को शुद्ध करते हैं। इस प्रकार आँवले अस्थि में प्रविष्ट होकर मज्जा और वीर्याशय तक पहुँचकर शुक्र धातु को शुद्ध करते हैं। इस प्रकार आँवलों का कार्य-प्रभाव शरीर की समस्त धातुओं पर पड़ता है। अतएव इन्हें उत्तम रसायन गुणवाले माना गया है।
सामान्यतः खट्टे पदार्थ से पित्त की वृद्धि होती है। परंतु आँवले खट्टे होने पर भी इनका विपाक मधुर होता है। इसके मधुर, शीतल गुण के कारण पित्त की वृद्धि नहीं होती, अपितु पित्त की शांति होती है। आँवलों का यह एक विशिष्ट गुण है। हर प्रकार के दाह में आँवलों का रस उपयोगी है। स्त्रियों का रक्तवात, नाक में से खून गिरना, अर्शमस्सों से खून पड़ना, रक्तातिसार और पेचिश आदि तकलीफों में आँवले खूब उपयोगी हैं। सुश्रुत इन्हें ‘फलेभ्योऽभ्यधिकं च तत्’ अर्थात् सभी फलों में श्रेष्ठ मानते हैं।
आयुर्वेद ने भोजन के आरंभ, मध्य तथा अंत में आँवलों का नित्य उपयोग करने के लिए कहा है। आँवलों में अमृत सदृश गुण होने से इन्हें ‘अमृतफल’ तथा मनुष्यों के लिए माता के समान उपकारी होने से ‘धात्रीफल’ कहा गया है।
आँवले खट्टे, मधुर रसवाले, कटु, कषाय और सारक हैं। ये नेत्रों के लिए हितकारी, सर्व दोषों को नष्ट करनेवाले और वीर्यवर्धक हैं। हरे
के फल समान गुणवाले आँवले विशेषतः रक्तपित्त तथा प्रमेह को है यमेवाले उत्तम रसायन हैं। आँवले त्रिदोष को दूर करते हैं। चरक आँवलों को ‘वय-स्थापन’ कहते हैं। इनके सेवन से उम्र मालूम नहीं होती, उम्र कम दीखती है। वाग्भट्ट भी यौवन को स्थिर करनेवाल पदायों में आँवलों को श्रेष्ठ मानते हैं।
ताजे, अच्छे, पके, हरे आँवलों का पच्चीस से तीस ग्राम रस निकालकर प्रातः खाली पेट पीने से शरीर पुष्ट होता है और उसमें स्फूर्ति रहती है।
“ताजे, पके, बड़े एक सेर आँवले लेकर, बाँस की शलाख अथवा स्टेनलेस स्टील की सलाख से उसमें खूब छेद बनाइए। (आँवलों को यदि लोहे का स्पर्श होता है तो वे काले पड़ जाते हैं और उनका गुण कम हो जाता है।) छेद बनाने के बाद कुछ समय तक उन्हें चूने के निथारवाले पानी में रखिए। फिर दो सेर उबलते पानी में डालकर उन्हें पकाइए। फिर बाहर निकालकर कपड़े से पोंछकर सूखे कर लीजिए। दो-ढाई सेर शक्कर या चीनी की तीन तारवाली चासनी में इन आँवलों को डुबो दीजिए। इस प्रकार मुरब्बा तैयार होता है। आँवलों का यह मुरब्बा दो-तीन बर्ष तक अच्छा रह सकता है। आँवलों का मुरब्बा पित्तशामक होता है और शरीर को बलवान बनाता है।
हरे, बहेड़ा और आँवला (सूखा), इन तीनों फलों की गुठलियाँ निकालकर, सम भाग लेकर, बारीक पीसकर, कपड़े से छान लें। इसको ‘त्रिफला चूर्ण’ कहते हैं। त्रिफला चूर्ण रसायन है। यह चूर्ण कफ तथा पित्त को मिटाता है, प्रमेह कब्ज कोढ़ को दूर करता है। अधकुटे त्रिफला चूर्ण को रात में पानी में भिगोकर रख दें। प्रातः इस पानी को छानकर आँखों पर छिड़कने से आँखों का तेज बढ़ता है।
आँवलों के रस में चंदन अथवा पीपर का चूर्ण डालकर, शहद में चाटने से उल्टी बंद होती है।
आँवले, दारूहल्दी, गिलोय और मुलेठी समभाग में लेकर, क्वाथ बनाकर, सुबह-शाम, दिन में दो बार पीने से, अत्यंत पतला कफ निकलता हो, नाक से भारी मात्रा में कफस्राव होता हो, प्रमेह या प्रदररोग के कारण कफस्राव होता हो तो, मिटता है। (कफस्राव में यह क्वाथ उत्तम लाभ देता है।)
आँवलों का रस एक तोला, काली द्राक्ष पानी में मसली हुई एक तोला और शहद आधा तोला एकत्र कर पीने से अम्लपित्त मिटता है।
आँवलों के चूर्ण को आँवलों के रस की इक्कीस भावना दीजिए। (आँवलों के चूर्ण को इक्कीस बार आँवलों के रस में भिगोइए और सुखाइए ।) इसका सेवन करने से सिर के बाल काले होते हैं, शरीर की कांति बढ़ती है और बल की वृद्धि होती है।
आँवले और असगंध समान भाग लेकर, बारीक चूर्ण बनाकर, दूध के साथ लेने से बल, कांति तथा वीर्य की वृद्धि होती है।
आँवले और काले तिल समभाग लेकर, बारीक चूर्ण कर, घी या शहद में चाटने से वृद्धत्व दूर होता है और शक्ति आती है।
हरे, बहेड़ा, आँवले, कड़वे नीम की अंतरत्वचा, मामेजक और जामुन की गुठली समभाग में लेकर, चूर्ण बनाकर, सुबह-शाम लेने से मधुमेह (डायाबिटीस) मिटता है।
आँवलों और गन्ने का रस एकत्र कर पीने से मूत्रकृच्छ्र मिटता है। आँवले और हल्दी एक-एक तोला लेकर, कूटकर, क्वाथ बनाकर पीने से गुदामार्ग और मूत्रमार्ग का दाह शांत होता है और पेशाब साफ आता है।
आँवलों के स्वरस में हल्दी का चूर्ण मिलाकर शहद में चाटने से सब प्रकार के प्रमेह मिटते हैं।
आँवलों का चूर्ण शर्करा के साथ खाने से स्त्रियों का प्रदर रोग और सोमरोग (बहुमूत्र-रोग) मिटते हैं।
आँवलों के दो तोला रस में एक पका हुआ केला मसलकर, उसमें आधा तोला शर्करा डालकर खाने से स्त्रियों का सोमरोग (बहुमूत्र-रोग) मिटता है। आँवलों का रस शहद के साथ लेने से स्त्रियों का योनिदाह शांत होता है।
आँवलों का चूर्ण, घी और शर्करा समभाग में लेकर, एकत्र कर, प्रातः खाने से सिर का शूल मिटता है।
आँवले और द्राक्ष समभाग में लेकर, पीसकर, घी मिलाकर, गोली बनाकर मुँह में रखने से ज्वर में होनेवाला जीभ, गले और तालु का शोष दूर होता है।
आँवले का रस घी मिलाकर पिलाने से मूर्छा दूर होती है।
आँवलों के चूर्ण को दूध में मिलाकर रात को सोते समय सिर पर मस्तिष्क के हिस्से में बाँधने से बाल बढ़ते हैं, मस्तिष्क की गर्मी कम होती है और बार-बार नाक में से होनेवाला खून का स्राव रुकता है। आँवलों को जलाकर, तिल के तेल में खरलकर लगाने से खुजली मिटती है।
आँवले के पेड़ के मूल को पानी में घिसकर बिच्छू के डंक पर लगाने से जलन दूर होती है। सूजन में जलन होती हो तो आँवले के पेड़ के मूल को पानी में घिसकर लगाने से फायदा होता है।
ठंडी से होनेवाले रोगों में या अत्यधिक ठंडी पड़ने पर कच्चे आँवले नहीं खाने चाहिए। मंद जठराग्निवालों तथा शीतल प्रकृतिवालों को आँवलों का उपयोग विचारपूर्वक करना चाहिए।
वैज्ञानिक मत के अनुसार आँवलों में विटामिन ‘सी’ भारी मात्रा में है। नारंगी (संतरे) और मुसम्मी की तुलना में आँवलों में विटामिन ‘सी’ बीस गुना अधिक है। उपरान्त, आँवले लोहतत्त्व से भरपूर हैं। इसलिए शरीर में नया रक्त उत्पन्न करने में ये बहुत उपयोगी हैं। कृत्रिम विटामिन की दवाइयाँ खाने से तो प्राकृतिक ढंग से विटामिन ‘सी’ की पूर्ति करनेवाले आँवले अधिक उपयोगी हैं।