खजूर खाने के फायदे

प्राचीन काल से हमारे देश में खजूर का उपयोग होता रहा है। चरक के समय से खजूर श्रमहर पदार्थ के रूप में प्रसिद्ध है।

खजूर के वृक्ष भारत में समुद्र की तटवर्ती रेतीली जमीन में बड़ी तादाद में होते हैं। उन पर खजूर जैसे फल लगते हैं, परंतु उन फलों को पकाने की पद्धति की जानकारी के अभाव में अथवा फलों को पकाने के लिए आवश्यक तापमान या वातावरण की प्रतिकूलता के कारण भारत में खजूर के फल नहीं पकते । भारत में खजूर के वृक्ष केवल छुहारे जैसे फल देते हैं। यहाँ खजूर के वृक्ष का उपयोग ताड़ी-नारी निकालने में तथा झाडू बनाने या चटाइयाँ गूँथने में होता है। वास्तविक खजूर को उत्पन्न करनेवाली पिंड-खजूरी भारत में नहीं होती। पिंडखूजरी को काँटे नहीं होते, जबकि यहाँ होनेवाली खजूरी को काँटे होते हैं। खजूर को वृक्ष पर पकने के लिए सूर्य की प्रखर धूप आवश्यक मानी जाती है। खजूर के वृक्ष बहुत ऊँचाई तक बढ़ते हैं। भूमि-खजूरिका, पिंड-खजूरिका और छुहारा, सुलेमानी या गोस्त की खजूरी-इस प्रकार खजूर के वृक्ष तीन किस्म के होते हैं। नीचे (छोटे) कद के वृक्ष को ‘भूमि-खजूरिका’ कहते हैं।

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हम जो खजूर खाते हैं वह बसरा और अरबस्तान से आती है।
अरबस्तान, इजिप्त और अफगानिस्तान में खजूर का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता है। अरबी लोग सिर्फ खजूर खाकर ही कई दिन व्यतीत कर सकते हैं। माघ महीने का प्रारंभ होते ही यहाँ नयी खजूर चटाई की बोरियों में भर-भरकर आने लगती है। खजूरी के पूर्ण रूप से पके हुए, गीले, रसदार फलों को ‘खजूर’ कहते हैं और खजूरी के अधपके, सूखे फलों को ‘छुहारा’ कहते हैं। भारत में छुहारा भी अरबस्तान और ईरान से आता है।

खजूर की दो किस्में जायदी खजूर और पिंड खजूर बाजारों में बिकती है। जायदी सुंदर किस्म है। यह कुछ पीलापन लिए हुए-सुनहले रंग की, खुली और पेशीदार होती है। पिंड खजूर अधिक लाल (एकदम कालापन लिए हुए लाल), अधिक रसदार और अधिक मधुर मिठासवाली होती है। रस, स्वाद और गुण में पिंड-खजूर बढ़कर होती है।

खजूर अतिशय पौष्टिक, वीर्यवर्धक और बलवर्धक है। यह हृदय के लिए हितकारी, शीतल, तृप्तिकर और भारी है। खजूर क्षतक्षयहर (क्षत और क्षय को मिटानेवाली) है। घाव लगने पर खजूर हितकारी है। धातुपुष्टि के लिए यह उपयोगी है। शारीरिक दुर्बलता और वजन की कमी में खजूर को दूध में उबालकर खाने से बहुत लाभ होता है। खजूर गर्म नहीं है, वरन् ठंडी है।

खजूर पोषक, बल्य और मूत्रल है। यह पुष्टि प्रदान कर धातु की वृद्धि करती है, कृमि का नाश करती है। छाती में व्रण (उपदंश) पड़ा हो तब खजूर का सेवन अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। खून जम गया हो तो उसमें भी खजूर हितावह है। शरीर में दाह होने पर खजूर का प्रयोग प्रशस्त है। यह वातपित्त के विकारों में उपयोगी और तृप्तिजनक है। रक्तपित्त में यह उपयोगी है।

खजूर में कफ-निःसारक गुण है, अतः क्षय में यह उत्तम लाभ देती है। खजूर सभी धातुओं को पुष्ट करती है, अतः क्षयरोग में इसका उपयोग हितकारक है। क्षयरोगियों को अन्य दवाइयों के साथ-साथ खजूर की दस-दस पेशियाँ प्रतिदिन खानी चाहिए।

गाँधीजी ने खजूर, बकरी के दूध और फलों से ही अपना स्वास्थ्य अच्छी तरह सुरक्षित रखा था।

खजूर रेचक भी है। इसे रात में भिगोकर और प्रातः अच्छी तरह मसलकर पीने से यह दस्त साफ लाती है। खजूर में से बननेवाला आसव संग्रहणी के रोगियों के लिए हितकारक है। बुखार में मुँह सूखता हो-ह में शोष पड़ता हो तो खजूर या द्राक्ष मुँह में रखनी चाहिए।

खजूर के बीज तृषा को रोकते हैं, इसीलिए असमय गर्भस्राव होने पर, जबकि स्त्री को पानी नहीं देना चाहिए, खजूर का एक-एक बीज उसे मुँह में रखने के लिए दिया जाता है। इससे मुँह में अमृत-सा अनुभव होता है। खजूर के वृक्ष में से निकलनेवाला रस मद और पित्त करनेवाला है। यह वायु तथा कफ को हरनेवाली, रुचि उत्पन्न करनेवाली, अग्निप्रदीपक और बल-वीर्यवर्धक है। खजूरी की ताड़ी में से गुड़ और शक्कर बनती है। खजूरी का रस ठंडा और लिज्जतदार होता है। खजूरी का नीरा आरोग्य के लिए फायदाकारक है। खजूर अथवा छुहारे के बीज दवा के काम में आते हैं। इसके बीज को जलाकर, राख बनाकर, कपूर और घी के साथ खरल करके खर्जू पर लगाते हैं। इसके बीजों से तेल भी निकाला जाता है। इस तेल का जलाने और दवा में उपयोग होता है।

खजूर की उत्पत्ति सुलेमान नामक देश (अरबस्तान) में हुई है, अतः इसे ‘सुलेमानी’ कहते हैं। इसके फलों-खजूर या छुहारा, बीजों, फूलों और पत्तों का औषधि के रूप में उपयोग होता है। एक वर्ष की उम्र तक एक पेशी, दो से पाँच वर्ष तक दो से चार पेशी, छः से सोलह वर्ष तक पाँच से दस पेशी और सोलह वर्ष उपरांत की उम्रवालों के लिए पंद्रह से बीस पेशी तक खजूर की मात्रा है। (फिर भी पाचन हो इसके अनुसार ही खूजर का सेवन करना चाहिए ।)

खजूर वृष्य, स्वादु, शीत और गुरु है। यह अग्निमांद्य करनेवाली, कृमिनाशक, धातुवर्धक, तृप्ति और पुष्टि करनेवाली, हृद्य, बल्य, दुर्जर, स्निग्ध तथा रसकाल और पाककाल में मधुर है। खजूर का सेवन करने से कफवाला जुकाम, कमर-दर्द और संधिवात में लाभ होता है।

तीनों किस्म की खजूर शीतल, रस तथा पाक में मधुर, स्निग्ध, रुचि-उत्पादक, हृदय के लिए हितकारी, भारी, तृप्ति-पृष्टिकारक, मल को रोकनेवाली, वीर्यवर्धक और बलप्रद है। यह क्षत, क्षय, रक्तपित्त, उदरवात, अमन, वयु, कफ, बुखार, अतिसार, भूख, तृषा, खाँसी, श्वास, दमा, मूच्छा, हातपित्त और शराब से होनेवाले रोगों को मिटाती है। सुलेमानी खजूर थकान, भ्रांति, दाह, मूर्च्छा और रक्तपित्त को

मिटाती है। चरक और सुश्रुत के मतानुसार खजूर रस और विपाक में मधुर, जारीर को हृष्टपुष्ट बनानेवाली, वाजीकरण करनेवाली, पचने में भारी और शीत है। खजूर को चरक बृंहण, वृष्य और श्रमहर एवं सुश्रुत क्षयक्षतहर मानते हैं। आयुर्वेद खजूर को मधुर, बृहंग, तर्पण, गुरु और शुक्रवर्धक मानता है। खजूर में अत्युत्तम पोषकतत्त्व हैं।

बीज निकाली हुई खजूर चालीस तोला, इमली पाँच तोला (पानी में मसलकर), द्राक्ष दो तोला, मिर्च एक तोला, अदरक एक तोला, आवश्यकतानुसार नमक और चार तोला चीनी डालकर बनाई हुई चटनी स्वादिष्ट और गुणकारी होती है। इस चटनी का सेवन करने से रुचि उत्पन्न होती है, आहार का पाचन होता है और भूख लगती है।

खजूर पाँच तोला, जीरा एक तोला, सेंधा नमक एक तोला, काली मिर्च एक तोला, सोंठ एक तोला, पीपरामूल आधा तोला और नीबू का रस (साइट्रिक एसिड) एक आनीभर-इन सब चीजों को बारीक पीसकर अवलेह बनाकर सेवन करने से वायु शांत हो जाता है। (यह अवलेह अत्यंत स्वादिष्ट और पाचक है।)

खजूर, द्राक्ष, शर्करा, घी, शहद और पीपर समभाग लेकर उसका अवलेह बनाकर, प्रतिदिन दो-तीन तोला सेवन करने से क्षय, क्षयजनिन खाँसी, श्वास और स्वर भेद में अच्छा लाभ होता है। बालकों के लिए भी यह अवलेह स्वादिष्ट, रुचिकर और बलप्रद है।

प्रतिदिन थोड़ी खजूर खाने के बाद चार-पाँच घूँट गर्म पानी पीने से कफ पतला बनकर खैखार के रूप में बाहर निकलता है, फेफड़े साफ होते हैं, सर्दी-जुकाम, खाँसी और दमा मिटता है तथा रक्त की शुद्धि होती है।

खजूर, आँवले, पीपर, शिलाजीत, छोटी इलायची के दाने, मुलेठी का सत्त्व, पाषाणभेद, सफेद चंदन, ककड़ी के बीज का गर्भ और धनिया-इन इस औषधियों को समभाग लेकर, उनके वजन के बराबर शक्कर इस औप प्रथम खजूर और शिलाजीत को छोड़ बाकी चीजों का चूर्ण बनाकर, उसे कपड़े से छान लें। खजूर को अलग से कूटकर उसमें शक्कर, शिलाजीत और तैयार चूर्ण मिलाकर एकत्र करें। प्रतिदिन सुबह आघा त्तोला चूर्ण गाय के दूध के साथ सेवन करने से प्रमेह और स्वप्नदोष दूर होते हैं। बल, वीर्य तथा ओज बढ़ाने में यह प्रयोग अद्वितीय है।

प्रतिदिन बीस-पच्चीस खजूर खाकर ऊपर एक प्याला गर्म दूध पीने से थोड़े ही दिनों में शरीर में स्फूर्ति आती है, बल बढ़ता है, नया खून पैदा होता है और क्षीण वीर्य बढ़ने लगता है।

खजूर दस तोला और किसमिस द्राक्ष पाँच तोला प्रतिदिन खाने से सूखे, लकड़ी-से शरीर वाले रोगियों के शरीर में नया खून उत्पन्न होता है। दुर्बल शरीर-मनवाले एवं जिनका वीर्य क्षीण हो गया है, ऐसे लोगों के लिए प्रतिदिन प्रातः पिंड-खजूर का नाश्ता लाभदायक है।

पाँच खजूर के बीज निकालकर भैंस के घी में पाँच मिनट तक सेंककर, दोपहर को चावल के साथ मिलाकर खा जाइए। इसके बाद आधा घंटा नींद लीजिए। इससे सूखे-लकड़ी जैसे व्यक्तियों के वजन एवं बल में वृद्धि होती है।

शीतकाल में सुबह खजूर को घी में सेंककर खा लीजिए। इस पर इलायची, शक्कर तथा कौंच डालकर उबाला हुआ दूध पीने से उत्तम
धातुपुष्टि होती है।

अच्छा छुहारा लेकर, बीज निकालकर थोड़ा-सा कूटकर उसमें बादाम, बलदाने, पिश्ता, चिरौंजी, शक्कर की बुकनी आदि मिलाइए। इसे आठ दिन तक घी में मिलाकर रख दीजिए और खमीर उठने दीजिए। उसमें से रोज दो-दो तोला खाने से धातुपुष्टि होती है और पित्त का शमन होता है।

एक खजूर एक तोला चावल के माँड के साथ मिलाकर, अच्छी तरह पीसकर, थोड़ा पानी मिलाकर प्रवाही बनाकर, छोटे बच्चे को दो-तीन बार देने से दुर्बल, सूखे शरीरवाले बच्चे हृष्टपुष्ट बनते हैं। (इस प्रयोग से बच्चों को अच्छे से अच्छा टॉनिक-आहार उपलब्ध होता है।)
घाव पड़ने या घाव में से अत्यधिक खून निकल जाने-खून की कमी के कारण आयी हुई दुर्बलता, खजूर खाने और ऊपर से घी मिलाया हुआ गर्म दूध पीने से, दूर होती है।

छुहारा, सोंठ, द्राक्ष, शर्करा और घी को दूध में डालकर, खूब उबालकर पीने से जीर्णज्चर में लाभ होता है।

शहद के साथ खजूर खाने से रक्तपित्त मिटता है।

पाँच खजूर उबालकर, उसमें आधा तोला मेथी डालकर पीने से कमर-दर्द मिटता है।

टस तोला खजूर भिगोकर, मसल-छानकर पीने से आमवात में लाभ होता है।

खजूर का कुछ महीनों तक नियमित रूप से आहार के तौर पर सेवन करने से, उन स्त्रियों का हिस्टीरिया मिट जाता है, जिन्हें बार-बार मूर्च्छा आत्ती हो।

खजूर को रात में पानी में भिगोकर रखें। सुबह मसल-छानकर पीने से रेच लगता है और मलशुद्धि होती है।

चार-पाँच खजूर रात पानी में भिगोकर रखें। प्रातः उन्हें मसलकर, शहद मिलाकर सात दिन तक पीने से यकृत-प्लीहा की वृद्धि रुकती है, दाह मिटता है और दस्त साफ आता है।

खजूर की गुठली को जलाकर उसकी दो-दो माशा राख दिन में दो-तीन बार ठंडे पानी के साथ लेने से दस्त बंद होते हैं।

खजूर या छुहारे की गुठली को जलाकर उसकी राख कपूर और घी मिलाकर, खरल करके लगाने से खर्जु मिटता है।

खजूर को पानी में भिगोकर, मसलकर पीने से शराब का नशा उतरता है।

खजूर अग्निमांद्य करनेवाली है, अतः अग्नि-बल देखकर, पाचनशक्ति का पूर्णतः विचार कर उसका उचित मात्रा में ही उपयोग करना हितावह है। एकबारगी ज्यादा खजूर खा ली जाए तो उसे पचाना मुश्किल होता है। खजूर का अमर्याद सेवन करने से गुदाद्वार के अवयव फूल जाते हैं, फलतः मल के साथ खून गिरने की संभावना रहती है। प्रथम खजूर को धोकर, गुठली निकालकर, घी में सेंककर खाना हितावह है। कर यूनानी चैदक के मतानुसार खजूर के पत्ते कामोद्दीपक और यकृत के

लिए लाभदायक हैं। इसके फूल कटु, विरेचक, कफ-निःसारक और यक्त के लिए पुष्टिकारक हैं। ज्वर और रक्तसंबंधी रोगों में इसका सेवन अत्यंत लाभकारक है। इसका फल अर्थात् खारिक (छुहारा) भी कामोत्तेजक और पौष्टिक है। खजूर गुदा और मूत्राशय को मजबूत करती और रक्त बढ़ाती है। लकवे और फेफड़ों के रोगों में खजूर आश्चर्यजनक लाभ देती है। खजूर के पेड़ का गोंद अतिसार का रामबाण इलाज है।

वैज्ञानिक मत के अनुसार खजूर में 75 प्रतिशत प्राकृतिक शर्करा (ग्लूकोज) होती है। यह फौरन रक्त में घुल-मिलकर सरलता से पच जाती है। सामान्यतः मीठे पदार्थ पोषण और गर्मी देते हैं। खजूर में पोषक, पाचक और शक्तिदायक तत्त्व सर्वाधिक मात्रा में हैं। खजूर में कार्बोहाइड्रेट और खनिज द्रव्य प्रचुर मात्रा में हैं। खजूर में अधिकांश भाग 60 से 70 प्रतिशत शर्करा (ग्लूकोज) है, उपरांत चूना, मात्रा में है। फॉस्फोरस और लोह भी अच्छी

खजूर में विटामिन ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ अत्यधिक मात्रा में हैं। इसमें लौह, कैल्शियम, ताँबा, फॉस्फोरस होने के कारण आहार के रूप में यह पौष्टिक है। खजूर खाने में विटामिन ‘ए’ के कारण शरीर में अवयवों का अच्छी तरह विकास होता है। विटामिन ‘बी’ के कारण हृदय, शरीर और इन्द्रियाँ स्वस्थ रहती हैं। पाचनतंत्र के स्वस्थ बनने पर भूख खुलती है, शरीर और आँतों की मांस-पेशियाँ बलिष्ठ बनती हैं एवं शरीर में से मल आदि का सरलतापूर्वक निष्कासन हो जाता है। इस प्रकार खजूर आँतों व शरीर को स्वच्छ करती है। विटामिन ‘सी’ के कारण शरीर में ऐसी शक्ति का सृजन होता है, जिससे किसी भी बाह्य रोग के विषाक्त जंतुओं का शरीर पर कोई असर नहीं होता, जंतु शरीर में प्रवेश नहीं कर सकते।