पालक एक प्रसिद्ध भाजी है। युरोप, अमेरिका और एशिया के अनेक हिस्सों में साग के लिए पालक की फसल होती है। भारत में प्राचीन काल में इसको उगाया जाता है। रेतीली जमीन को छोड़ बाकी सभी प्रकार की जमीन इसके लिए अनुकूल रहती है। इसके पौधे करीब एक बालिश्त से एक फीट तक ऊँचे होते हैं। इसका तना पोला और कोनेवाला होता है। इसके पत्ते मुलायम, मोटे, मांसल, हरे रंग के, सामान्यतः त्रिकोणाकार और कुछ शिगाफदार होते हैं। इसके पत्तों की सलाई लंबी होती है और फूल अत्यंत छोटे और गुच्छेदार होते हैं। जिन प्रदेशों में तापमान सम रहता हो वहाँ करीब बारहों मास पालक हो सकता है।

पालक की बोआई वर्ष में अनेक बार होती है। आश्विन-कार्तिक मास में इसके बीज हाथ से छिड़ककर बोये जाते हैं। बोने के बाद तीन-चार सप्ताह में भाजी तैयार होती है। बार-बार बोने से चैत्र-वैशाख तक भाजी मिलती रहती है। गर्मियों में बोयी हुई फसल को बीजदंड जल्दी आता है और पत्तों की एक ही फसल मिलती है।

Benefits Of Spinach

पालक खाने के फायदे [Benefits Of Spinach]

पालक की अनेक किस्में होती हैं। जिसके कोमल पत्तों में अधिक गुण हों, प्रत्येक कटाई के बाद जिसके नये पत्तों की फसल अच्छी और तेजी से प्राप्त होती हो तथा जिसमें बीजदंड देरी से निकलता हो, ऐसे लक्षणोंवाली किस्म अच्छी मानी जाती है। हरे पत्तों की तरकारियों में पालक के पत्तों की तरकारी अधिक पथ्य और उपयोगी है। पालक के पत्तों की तरकारी स्वतंत्र रूप से तथा सोए की भाजी या अन्य पत्तोंवाली भाजी मिलाकर भी होती है। कहीं-कहीं सुकोमल बीजदंड का भी साग के लिए उपयोग किया जाता है।

पालक की भाजी बनाने के लिए अत्यंत थोड़ा पानी लें, ताकि भाजी पक जाने के बाद जरा भी पानी निकाल देना न पड़े। यदि पत्ते पहले से ही धोये गये हों तो पत्तों में लगा हुआ पानी ही इसके पकने के लिए पर्याप्त होता है। पालक के पान में पर्याप्त औषधीय गुण विद्यमान हैं। इसमें सज्जीखार और चिकनापन अधिक है। ये पथरी को पिघलाकर बाहर निकालते हैं। यह इसका सबसे बड़ा गुण है। यह फेंफड़े की सड़न को भी सुधारती है उपरांत आँतों के रोग, दस्तें संग्रहणी आदि में भी यह लाभदायक है। टमाटर के बाद साग-भाजियों में पालक की भाजी ही सर्वाधिक शक्तिदायक है। पालक की भाजी में लोह और ताँबे के अंश होने के कारण यह पांडुरोगी के लिए पथ्य है। इसमें रक्त बढ़ाने का गुण ज्यादा है। यह रक्त को शुद्ध करती है और हड्डियों को मजबूत बनाती है। पालक के हरे पत्ते जीवन-शक्ति का मूल है। दूध पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न हो सके तब पालक के हरे पत्तों का रस बच्चों को देने से पर्याप्त लाभ मिल सकता है। गुणों की दृष्टि से पालक की भाजी सभी भाजियों में श्रेष्ठ है। इसके बीज का भी औषधि के रूप में उपयोग होता है।

पालक वायु करनेवाला, शीतल, कफ करनेवाला, मल को मुक्त करनेवाला, भारी और मल को रोकनेवाला है। यह मद, साँस, पित्त, रक्तविकार और कफ को नष्ट करता है।

सुश्रुत पालक को रुक्ष एवं पित्त तथा कफ पर हितकारी मानते हैं। पालक शीतल, स्नेहन, रोचन, मूत्रल, शोथहर और शामक है। इसके गुणधर्म सामान्यतः सोड़ा-सदृश हैं। इसका साग रुचिकर और शीघ्र पचनेवाला है। पालक आँतों को क्रियाशील रखता है। एवं आँतों में स्थित मल का निःसारण करने में सहायक बनता है। यह मधुमेह के रोग में भी अत्यंत गुणकारी है। इसके बीज सारक व शीतल हैं तथा यकृतरोग, पीलिया और पित्तप्रकोप को मिटाते हैं। कफ और श्वास संबंधी रोगों में भी ये हितकारी हैं। इनमें से चरबी जैसा गाढ़ा तेल निकलता है। यह तेल कृमि और मूत्ररोगों पर लाभदायक है।

पालक के पत्तों और बीज का क्वाथ अथवा पालक के पंचांग का क्वाथ कंठ, फेफड़ों और श्वासनलिका के दाहवाले बुखार में दिया जाता है।

गले की जलन (कंठ-प्रदाह) में पालक के पत्तों के रस के कुल्ले करवाये जाते है। पालक में आँतों को कष्ट देनेवाला कोई द्रव्य नहीं है, अतः यह आँतों के रोग में अत्यंत हितकारी है।

पालक के पत्तों का स्वरस अथवा क्वाथ देने से पथरी पिघल जाती है और मूत्रवृद्धि होकर इसके कण बाहर निकल जाते हैं।

पालक के पत्तों को पीसकर, पुल्टीस बनाकर अथवा उसके बीजों को कूटकर, उबालकर, पुल्टीस बनाकर अपक्व गाँठ पर बाँधने से गाँठ जल्दी एक जाती है और यदि बुखार आता हो तो कम हो जाता है। पालक की भाजी वायुकारक है, अतः वर्षाऋतु में इसका सेवन न करें। इसमें जन्तु होते हैं, अतः गर्म पानी से धोने के बाद ही इसका उपयोग करें।

वैज्ञानिक मतानुसार पालक में विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ और ‘इ’ तथा प्रोटीन, सोडियम, कॅल्शियम, फॉस्फोरस, क्लोरिन और लोह है। यह खून के रक्ताणुओं को बढ़ाता है। पालक में प्रोटीन-उत्पादक एमिनो एसिड अधिकतम है। इसके हरे पत्तों में एक ऐसा तत्त्व है जो प्राणिमात्र की वृद्धि और विकास करता है। यह बुद्धि बढ़ाने में सहायक बनता है। दूध विटामिन ‘ए’ का भंडार माना जाता है, परंतु हरी साग-भाजियों में दूध का कुदरती मूल तत्त्व है। द्विदल भी प्रोटीन-प्राप्ति का एक साधन है। उस प्रोटीन को पचाने के लिए आवश्यक विटामिन ‘ए’ और ‘बी’ पालक से उपलब्ध होते हैं। दाल में से मिलनेवाले प्रोटीन में एमिनो एसिड नहीं होते। अतः दाल के साथ हरे पत्तों की भाजी मिलाकर खाने से इस त्रुटि की पूर्ति हो जाती है।