चौलाई खाने के फायदे
शरीर के लिए उपयोगी तत्त्व एवं विटामिन ‘सी’ प्राप्त करने के लिए हरी साग-भाजी खाना आवश्यक है। हरी भाजी में मूर्धन्य स्थान प्राप्त करनेवाली चौलाई एक श्रेष्ठ भाजी है। यह भारत में सर्वत्र होती है। चौलाई की भाजी वर्षाऋतु में प्राकृतिक ढंग से उग आती है। खेतों या बाड़ियों में भी यह बारहों मास बोई जाती है। चौलाई सभी प्रकार की जमीन में होती है। सामान्यतः लाल या नदी की तटवर्ती जमीन इसे अधिक अनुकूल पड़ती है। यह विशेषतः गर्मियों और वर्षाऋतु में बोई जाती है। कभी-कभी चौलाई सर्दियों की गेहूँ आदि रबी फसलों के साथ अपने आप भी उग जाती है। इसके पौधे एक डेढ़ फीट ऊँचे होते हैं और इसके पत्ते छोटे होते हैं। चौलाई एक बार कटाई कर लेने के बाद पुनः पनपती जाती है। बोआई के बाद तीन-चार सप्ताह में भाजी की कटाई हो सकती है। चौलाई की छोटी किस्म की लगभग छः और बड़ी किस्म को दो-तीन किश्तें उतरती हैं। चौलाई प्रति बीघा करीब दस हजार पौंड होती है।

चौलाई की दो मुख्य किस्में होती हैं-लाल और हरी। लाल चौलाई के पौधे का तना लालिमा लिए हुए रहता है। इसके पत्रवृन्त एवं पत्तों की रेखाएँ भी लाल होती हैं। हरी किस्म की चौलाई के पौधे की डाँड़ी और पत्रवृन्त का संपूर्ण हिस्सा हरा होता है और पत्ते बड़े होते हैं। जल-चौलाई की एक काँटेदार किस्म होती है। इसे ‘काँटे चौलाई’ कहते हैं। इसके गुण कुछ अंशों में बढ़कर परंतु चौलाई के समान ही होते हैं। औषधरूप में इसके पंचांग, मूल और पत्तों का उपयोग होता है। दोनों किस्मों में लाल किस्म की चौलाई अधिक अच्छी और ज्यादा गुणवती होती है। सभी प्रकार की चौलाई गर्मियों तथा वर्षाऋतु में अच्छी तरह होती है। ग्रीष्मकालीन भाजियों में चौलाई का सर्वाधिक प्रचार है। यह पाचन में लघु-हल्के प्रकार का आहार है। चौलाई की भाजी में अनेक गुण समाविष्ट हैं, अतः यह एक उत्तम औषधि का काम देती है। चौलाई के कोमल पत्तों का साग शीतल, दस्त साफ लानेवाला, रक्त को सुधारनेवाला और पथ्यकारक है। चौलाई की भाजी में कच्चा आम डालने से अथवा दही या छाछ का छिड़काव देने से वह बहुत स्वादिष्ट बनती है। उसके पत्तों की कढ़ी भी बनती है। चौलाई की भाजी अनेक रोगों पर गुणकारी है। शरीर में गर्मी के कारण या रक्त-विकार से खुजली आती हो तब इसकी भाजी गुणकारी बनती है। गर्मी के पुराने से पुराने रोग भी यह भाजी खाने से दूर होते हैं। स्त्रियों के रोगों में भी चौलाई हितकारी है। चौलाई स्त्रियों का स्तन्य (दूध) बढ़ाती है। कुष्ठ, जलन, यकृत और प्लीहा संबंधी रोगों में भी यह गुणकारी है। चौलाई की भाजी बीमार व्यक्तियों को भी निर्भयता से दी जा सकती है। अनुकूल हो तो चौलाई की भाजी का प्रतिदिन सेवन हो सकता है। चौलाई को ‘विषघ्न’ नाम दिया गया है और यह यथार्थ है। चौलाई लगभग सभी प्रकार के विष का सस्ता, सरल और अकसीर इलाज है। इतना ही नहीं, यह एक श्रेष्ठ पथ्य और अनेक रोगों का सस्ता घरेलू औषध भी है।
चौलाई हल्की, ठंडी, रुक्ष, मल-मूत्र की प्रवृत्ति करानेवाली, रुचि उत्पन्न करने वाली अग्नि को प्रदीप्त करनेवाली, विष को दूर करनेवाली और पित्त, कफ तथा रक्त-विकार को मिटानेवाली है। पानी में होनेवाली जल-चौलाई कटु और लघु है। अतः रक्तपित्त तथा वायु को मिटाती है। सुश्रुत चौलाई को अत्यंत शीतल, रस और पाक में मधुर, रक्तपित्त, मद और विष को मिटानेवाली मानते हैं।
आयुर्वेद में चौलाई का उपयोग प्राचीन काल से होता रहा है। विष-प्रकोप, चूहे का विष, पारद या कच्ची धातुओं से उत्पन्न रक्तविकार नेत्ररोग, उदररोग, अतिसार, संग्रहणी, रक्तपित्त, प्रदर, अर्श, कब्जियत, बेडरोग कादर ऐतीहावृद्धि और जीर्णज्वर में बोलाई कर खिलनितलब है। सुजाक-प्रमेह की तीव्र वेदनावाले रोगी को इसका साग खिलाने से वेदना शांत होती है। जीर्ण फिरंगरोग, वातरक्त, त्वचारोग, शीतपित्त एवं प्रसूता, सगर्भा और छोटे बच्चे की माता के लिए चौलाई लाभदायक है। चौलाई नाजुक प्रकृतिवाले को भी दी जा सकती है। चौलाई का अच्छी मात्रा में सेवन करने से आँखों की गर्मी, आँखों की जलन, आँखों में मैल जमा होना, आँखें चिपक जाना आदि आँखों की शिकायतें दूर होती हैं और आँखों का तेज बढ़ता है। चौलाई का रस मधुर, विपाक में भी मधुर, शीतवीर्य तथापि अग्निप्रदीपक एवं मलमूत्र की शुद्धि करनेवाला है। रोगी और नीरोगी सभी के लिए यह हितावह है।
चौलाई की भाजी पित्तज्वर में गुणकारी है।
चौलाई मधुर रसवाली और शीतवीर्य है तथा उसमें रेशे और क्षारद्रव्य हैं, अतः यह नर्म पड़ी हुई आँतों में रुझान लाती है, आँतों में चिपके हुए मल को अलग करती है, मल को बाहर धकेलने में मदद करती है और कब्ज मिटाती है। यदि कब्जियत से पीड़ित वृद्ध लोग चौलाई का सेवन करें तो मल साफ आता है और पोषण मिलता है। चौलाई का चम्मच-दो चम्मच पानी स्तन्यपान करनेवाले बच्चे को देने से उसकी दैनिक कब्ज दूर होती है।
चौलाई का रस निकालकर पीने से अथवा चौलाई की भाजी खाने से उदररोग में लाभ होता है।
चौलाई के स्वरस में शक्कर मिलाकर पीने से खुजली और गर्मी मिटती है।
चौलाई का रस, कल्क या क्वाथ शहद में मिलाकर सुबह-शाम पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है तथा नाक-गुदा आदि स्थानों से निकलनेवाला खून बंद होता है। चौलाई की भाजी भी रक्तपित्त में हितकारी है।
चौलाई की भाजी खाने से कोढ़, वातरक्त और विकार मिटते हैं एवं
खराब गर्मी दूर होती है और पित्तप्रकोप शान्त होता है। चौलाई का रस थोड़ी शक्कर मिलाकर पीने से हाथ-पैर के तलुवों
की जलन, पेशाब की जलन और बार-बार होनेवाला उष्ण-वात मिटता है। चौलाई या कँटीली चौलाई के मूल को पीसकर क्वाथ बनाकर, उसमें रसवंती-रसांजन मिलाकर, शहद और चावल का पसावन चारगुना डालकर पिलाने से स्त्रियों के सभी प्रकार के प्रदर मिटते हैं। चौलाई के मूल के कल्क में चावल का पसावन तथा शहद मिलाकर पिलाने से भी प्रदररोग मिटता है।
चौलाई के मूल पीसकर चावल के पसावन में पीने से प्रसूता और सगर्भा का रक्तस्राव बंद होता है। ऋतुकाल में चौलाई के मूल चावल के पसावन में पीसकर पीने से भी गर्भ स्थिर होता है, गर्भ रहता है।
कँटीली चौलाई के पत्तों का साग खाने से प्रमेह या मूत्राघात में होनेवाली जलन (दाह) मूत्रवृद्धि होकर दूर होती है। रक्तविकार और पित्तविकार में भी उसका साग हितकारी है।
कँटीली चौलाई के क्षार का सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र, मूत्राघात और पथरी मिटती है। पथरी की तीव्र वेदना होने पर चौलाई के क्षार को, उसके चार-चार तोला रस के साथ, एक-एक घंटे पर, दो-तीन बार देने से पथरी टूटकर निकल जाती है।
चौलाई का रस घी मिलाकर आठ दिन तक पीने से, पारस या अन्य धातुओं के सेवन के कारण यदि शरीर में उनका विकृत असर हुआ हो तो संबंधित धातु स्राव होकर बाहर निकल जाता है और आराम होता है। चौलाई की भाजी को उबालकर खाने से और उसका रस शरीर पर
लगाकर स्नान करने से भी लाभ होता है।
चौलाई का रस अग्निदग्ध व्रण पर लगाने से आराम होता है।
चौलाई के पत्तों की पुल्टीस बनाकर फोड़े-फुन्सियों पर बाँधने से फोड़ा पककर जल्दी फूट जाता है। सूजन कर उसका लेप करने से रक्त बिखर जाता है और सूजन मिटती है।
चौलाई के मूल की पुल्टीस बनाकर नारू पर बाँधने से नारू जल जाता है।
चौलाई के मूल को स्त्री के स्तन्य (दूध) में घिसकर आँख में अंजन करने से आँखों की जलन, लालिमा और नेत्रव्रण मिटता है।
• चौलाई का रस गाय के दूध के साथ पीने से बछनाग का विष एवं शर्करा के साथ पीने से घुँघची का विष उत्तर जाता है।
चौलाई के मूल का तीन-तीन माशा चूर्ण दिन में दो बार शहद के साथ चाटने से चूहे का विष दूर होता है।
चौलाई का रस शर्करा के साथ मिलाकर पीने से बिच्छू का विष उत्तर जाता है। एवं सोमल (संखिया) के विष में भी लाभ होता है।
चौलाई के रस में या उसके मूल के क्वाथ में काली मिर्च डालकर पिलाने से, साथ ही रोगी को चौलाई की भाजी भी खूब खिलाने से सभी प्रकार के स्थावर-जंगम विष दूर होते हैं।
चौलाई की भाजी को केवल उबालकर या घी का बघार देकर तैयार करें। उसको ज्यादा देर तक न उबालें और यदि संभव हो तो उसमें तेल न डालें। पारदयुक्त दवाओं (पारदमिली भस्म, रसायन आदि) के सेवन-काल में चौलाई खाना बंद कर दें, क्योंकि चौलाई इन दवाओं का स्राव करवाकर इनका गुण कम करती है।
वैज्ञानिक मत के अनुसार चौलाई में विटामिन ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ है। अतः इसका सेवन करने से रक्तशामक, रक्तवर्धक रक्तशोधक, जंतुनाशक और पाचन गुण प्राप्त होते हैं। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फॉस्फरस, पोटॅशियम, गंधक, ताँबा आदि द्रव्य भी हैं। चौलाई के पत्ते और कोमल डंडियों में प्रोटीन, खनिज और विटामिन ‘ए’ तथा ‘सी’ भरपूर मात्रा में होता है।