ग्वार या ग्वारफली के फायदे

ग्वार या ग्वारफली भारत के कई प्रदेशों में होती है। ग्वारफली का उपयोग हरी तरकारी के रूप में होता है। ग्वार विशेषतः गर्मी की ऋतु की फसल है, परंतु सामान्यतः यह वर्षाऋतु और वसंतऋतु में, इस प्रकार वर्ष में दो बार होती है। अच्छे निथारवाली बेसर या लाल जमीन इसके लिए ज्यादा अनुकूल रहती है। इसके पौधे दो-तीन हाथ ऊँचे बढ़ते हैं। ग्वार को बाजरे के साथ मिश्र फसल के रूप में भी बोया जाता है। हरी पडवाश की खाद के लिए भी ग्वार बोई जाती है। एक बीघा जमीन में अनुमानतः तीन हजार पौंड ग्वारफलियाँ उत्पन्न होती हैं।

ग्वार की कई किस्में होती हैं। इनमें तरडिया या फटकनिया ग्वार को छोड़ अन्य किस्मों की फलियों का साग बनाने में उपयोग होता है। नरम फलियों वाली अच्छी किस्म की ग्वार को ‘मक्खनिया ग्वार’ कहते हैं। इसकी फलियाँ सुकोमल और चार-पाँच इंच लंबी होती हैं। कुछ लोग इसे ‘विदेशी ग्वार’ भी कहते हैं। साग के अलावा इसकी फलियों का अचार भी होता है। देशी या सोटिया ग्वार की फलियाँ तीन-साढ़े तीन इंच लंबी होती हैं। इनका भी साग बनता है। ग्वार की कुछ किस्में हरे पड़वाश के लिए अथवा चौपायों के चारे के लिए ज्यादा अनुकूल रहती हैं, जबकि बाकी की हरी फलियाँ शाक-सब्जी के लिए बोई जाती हैं।

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मुलायम फलियोंवाली ग्वार का साग-भाजी में महत्त्वपूर्ण स्थान है। मक्खनिया ग्वारफली का साग खूब स्वादिष्ट बनता है। इस साग में अजवाइन और लहसुन डालने से उसके गुण और स्वाद तीनों बढ़ते हैं। ग्वार की हरी फलियाँ उपलब्ध न होने पर सुखाई हुई फलियों से साग बनाया जाता है। ग्वारफली का पोषण-मूल्य फनसी (फ्रेन्चबीन) जितना ही समृद्ध माना जाता है।
सामान्यतः ग्वार चौपायों का आहार माना जाता है। यह विशेषकर बैलों को खिलाया जाता है। इससे बैलों की ताकत बढ़ती है। दुधारू पशुओं को ग्वार खिलाने से दूध बढ़ता है गोंद (गम) बनाने के लिए भी ग्वार की कुछ किस्मों का उपयोग होता है।

ग्वारफली मधुर, रुक्ष, शीतल, भारी, अग्निदीपक, पौष्टिक, सारक, पित्तहर और कफकारक एवं वायुकारक है। इसका साग पौष्टिक माना जाता है।

ग्वार के मुलायम पत्तों का साग खाने से रतौंधापन दूर होता है। ग्वार के पत्तों का रस व्रण (घाव) पर लगाने से घाव पकता नहीं और जल्दी रुझान आती है।

ग्वार के पत्तों का रस और लहसुन का रस एकत्र कर दाद पर लगाया जाता है।

ग्वार की पकी फलियों का साग अधिक मात्रा में खाने से दर्द होता है और सिर चकराता है। स्तनपान करानेवाले बच्चों की माताओं को ग्वारफली का साग नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इससे बच्चे को मरोड़ (आंत्र-पीड़ा) होने की संभावना रहती है। सगर्भा स्त्रियों एवं वात-प्रकृतिवालों के लिए भी ग्वारफली का साग हितावह नहीं है।