गोभी के फायदे
गोभी शीतकालीन तरकारियों में बहुत ही लोकप्रिय तरकारी है। प्राचीन काल में ग्रीक और रोमन लोग गोभी का उपयोग करते थे। अर्थात् गोभी प्राचीनतम साग-भाजियों में से एक है।
गोभी को भारत में यूरोपियन लोग लाये हैं। इसके पहले यह साग हमारे यहाँ प्रचलित नहीं था, ऐसा कहा जाता है। यद्यपि पंडित भावमिश्र ने ‘भावप्रकाश’ में गोभी के संस्कृत नाम गुण बताये हैं। रेतीली, चूनेवाली या चिकनी जमीन इसके लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। अम्लतावाली जमीन में गोभी ठीक से नहीं होती। गोभी के मूल छिछके होते हैं। इसके पौधे जमीन में से अधिक मात्रा में पोषक तत्त्व चूस लेते हैं।
भारत में गोभी सर्वत्र होती है। भाद्रपद से कार्तिक मास तक उसके बीज की पनीरी बनाकर शीतकालीन फसल के रूप में इसकी बोआई होती है। इसके पौधे फीट-फीट ऊँचे होते हैं। पत्ते पर पत्ता चढ़कर पत्ते मुड़कर गोभी के पिंड़े बनते हैं।
भारत के उष्ण प्रदेशों में गोभी के बीज नहीं होते, ठंडे प्रदेशों में होते हैं। इसके बीज का उत्पादन कश्मीर, कुलु, शिमला, दार्जिलिंग, नीलगिरि आदि स्थानों पर होता है। हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश के पहाड़ी भागों में भी इसके बीज का उत्पादन हो सकता है। इसके बीज में से तेल निकलता है।
गोभी की तीन किस्में होती हैं-फूल गोभी, पातगोभी और गाँठगोभी (नोलकोल)। एक किस्म, जो मूलतः चीन की निवासी है ‘चायनीज़ गोभी’ कहलाती है। यूरोप में गोभी के अनेक उप-प्रकार होते हैं। भारत में इसके चार छः उप-प्रकार प्रचलित हैं। पत्तों का अलग-अलग कद, आकार और रंग, पिड़े का भिन्न-भिन्न आकार, रंग-रूप, चुस्तता से चिपके हुए या पोले पत्तोंवाली इस प्रकार गोभी की अनेक किस्में पाई जाती हैं।
गोभी के नरम पिंड़े की अपेक्षा सख्त पिंड़े अच्छे माने जाते हैं। गोभी को उबालकर रसपूर्ण साग एवं बिना पानीवाला सूखा साग भी बनाया जाता है। कच्ची गोभी का कचूमर बनता है। इसकी भाजी श्रेष्ठ टॉनिक है।
फूलगोभी और गाँठगोभी (नोलकोल) का भी सारा होता है। सुकोमले फूलगोभी साग बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है। फूलगोभी के साग में गर्म मसाला मिलाकर तेल में बघारने से वह रुचिकर और गुणकारी बनता है।
पातगोभी और गाँठगोभी (नोलकोल) का भी साग होता है। सुकोमल फूलगोभी साग बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है। फूलगोभी के साग में गर्म मसाला मिलाकर तेल में बघारने से वह रुचिकर और गुणकारी बनता है।
पातगोभी के पिंडे में पत्तों की परत पर परत चढ़ती है, इसलिए इसे ‘शतपर्वा’ कहते हैं।
गोभी स्तन्य (दूध) बढ़ानेवाली, मधुर, वीर्यवर्धक, शीतल, गरिष्ठ, दीपन, पाचन, वातल तथा पित्त और कफ का नाश करनेवाली है।
पातगोभी और फूलगोभी रस में मधुर, विपाक में तिक्त, शीतवीर्य, लघु, दीपन-पाचन, कामोत्तेजक, हृद्य, मल-मूत्रप्रवर्तक और वातकारक है। यह कफ, पित्त, ज्वर, प्रमेह, मूत्रकृच्छ्र, कुष्ठ, खाँसी, श्वास, रक्तविकार, व्रण, विद्रधि, यकृतवृद्धि और पित्तप्रकोप को दूर करती है। पातगोभी की अपेक्षा फूलगोभी अधिक पौष्टिक है। यह गर्भाशय को अधिक बल देती है।
गाँठगोभी (नोलगोल) रस में मधुर, उष्णवीर्य, सारक, रुचिकर, गुरु, कफनाशक, वातकारक और पित्तप्रकोपक है। यह प्रमेह, श्वास और कफ-खाँसी का नाश करती है।
गोभी के बीज सारक, दीपन-पाचन और कृमिघ्न हैं।
कच्ची गोभी को कुतरकर, कचूमर बनाकर खाने से विटामिन ‘सी’ अधिक मात्रा में मिलता है।
गोभी का साग रक्तपित्त के रोगी के लिए हितकर है।
गोभी के पत्ते वातरक्त और आमवात के सूजन पर बाँधे जाते हैं। गोभी शीतकाल में अच्छी होती है। ग्रीष्म शुरू होने पर इसमें जंतु पड़ने लगते हैं। अतः गर्मियों में इसका सावधानी से उपयोग करें। कभी-कभी फूलगोभी में भी जंतु होते हैं। अतः स्वच्छ, जंतुरहित, ताजा फूलगोभी का ही उपयोग करें। पातगोभी-फूलगोभी में वातगुण होने से इनका साग गर्म मसाले के साथ तेल में बघारकर करना चाहिए। पातगोभी और फूलगोभी का साग अधिक मात्रा में खाने से वृक्क-दोष के रोगियों को मूत्रावरोध होता है। अतः उन्हें दिन में पेशाब नहीं होता, परंतु रात को बारबार पेशाब के लिए उठना पड़ता है।
वैज्ञानिक मत के अनुसार पातगोभी, फूलगोभी और गाँठगोभी (नोलकोल) में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, कॅल्शियम, फॉस्फरस और लोह है। उसमें से विटामिन ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ एवं अल्प मात्रा में ताँबा, आयोडिन और पोटेशियम उपलब्ध होता है। पातगोभी या गाँठगोभी (नोलकोल) की अपेक्षा फूलगोभी में पोषक तत्त्वों की मात्रा ज्यादा होती है।