रतालू के फायदे [Benefits of yam]
रतालू भारत में लगभग सर्वत्र होता है। चीन में भी रतालू की फसल अच्छी मात्रा में होती है। रतालू गुजरात के सूरत जिले में खूब ज्यादा होते हैं। अमेरिका और एशिया खंड के विषुवृत्तीय प्रदेशों में रतालू के वर्ग की वनस्पति आहार के रूप में महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इस वनस्पति में कार्बोहाइड्रेट अधिक मात्रा में होता है। इसकी किस्मों में मूल, कंद और रंग की दृष्टि से काफी फर्क पड़ता है। कुछ का रंग सफेद तो कुछ का पीला होता है। कुछ जामुनी गर्भवाली किस्में दक्षिण भारत में अधिक लोकप्रिय हैं।
रतालू जमीन में होनेवाला कंद है। इसकी बेल होती है। इसकी फसल के लिए गहरी उपजाऊ, भरभरी और अच्छे निथारवाली जमीन उत्तम मानी जाती है। रेतीली बेसर या बेसर जमीन इसके लिए अधिक अनुकूल रहती है। जमीन ज्यादा नरम हो और देखभाल अच्छी हो तो रतालू अच्छे होते हैं।
चैत-बैशाख से लेकर आषाढ़ मास तक रतालू की बोआई होती है। अच्छी आँखोंवाले कंद के टुकड़े करके इनको बोया जाता है। इसके दो पौधों के बीच तीन-तीन फीट का अंतर रखकर क्यारी की पालियों पर इसे रोपा जाता है।
इसके पत्तों का आकार अंशतः नागरबेल के पत्तों से मिलता-जुलता हैं। रतालू की बेल जमीन पर फैलती है, परंतु मंडप पर चढ़ाने से अधिक अच्छा रहता है। माघ-फाल्गुन महीने में रतालू निकाले जाते हैं। एक एकड़ में करीब चार सौ मन रतालू उत्पन्न होते हैं।
रतालू की दो किस्में हैं-लाल और सफेद । इसमें लंबे और गोल इस प्रकार के दो भेद हैं। सफेद रतालू को ‘गराडु’ कहते हैं। छिलने पर यह सफेद दिखता है। ये रतालू भी लंबे और गोल-इस प्रकार दो किस्म के होते हैं। गराडु की अपेक्षा लाल रतालू अधिक मीठे व स्वादिष्ट होते हैं। इसकी कीमत भी ज्यादा होती है।
रतालू को छीलकर उसका साग बनाया जाता है। इससे पूड़ी, पकौड़े, खीर वगैरह भी बनते हैं। उपवास में फलाहार के रूप में भी इसका उपयोग होता है। सूरत में रतालू की स्वादिष्ट पूड़ियाँ बनाई जाती हैं। उत्तर प्रदेश में भी रतालू का साग तथा आहार के रूप में बहुतायत से उपयोग होता है। रतालू को उबालकर, सुखाकर, बनाया हुआ आटा अन्य आटों आदि में मिलाया जाता है।
रतालू की बेल के पत्तों का साग भी बनता है। साग बनाने से पूर्व पत्तों को तवे पर सेंक लेने पड़ते हैं।
रतालू बलप्रद, स्निग्ध, गरिष्ठ, हृदय के कफ का नाशक और मल को रोकनेवाला है। तेल में तलने पर यह बहुत ही कोमल और रुचिप्रद बन जाता है।
सफेद रतालू मधुर, शीतल, वृष्य और गरिष्ठ है। यह मूत्रकृच्छ्र प्रमेह, दाह तथा शोष को मिटाता है। लाल रतालू मधुर, शीतल, वृष्य, भारी और पौष्टिक है। यह श्रम, दाह और पित्त का नाश करता है।
सुश्रुत रतालू को कफ करनेवाला, भारी और वायु का प्रकोप करनेवाला मानते हैं। वाग्भट्ट इसे तीखा, गर्म एवं वायु तथा कफ को मिटानेवाला मानते हैं। सामान्यतः रतालू बलप्रद, स्निग्ध, भारी, हृदय के कफ को नष्ट करनेवाला और मन को रोकनेवाला है।
रतालू की बेल के पत्तों को पीसकर बिच्छू के डंक पर लगाने से बिच्छू का विष उतर जाता है। सूखा रतालू भी घिसकर बिच्छू के डंक पर लगाया जाता है।
श्रम-मेहनत करनेवाले लोगों को रतालू जल्दी पचता है और अनुकूल पड़ता है, परंतु निर्बल तथा निरुद्यमी लोगों के लिए यह प्रतिकूल है। सामान्यतः रतालू वायु कारक है।