करेले स्वाद में कड़वे परंतु गुण में परम हितकारी हैं। अत्यंत प्राचीनकाल से साग के रूप में इनका उपयोग होता है। भारत में सभी स्थानों में करेले उगाये जाते हैं। इसकी बेल को ‘करेली’ और फल को ‘करेला’ कहते हैं। बेल को पीले फूल लगते हैं।
करेले हरे रंग के होते हैं। पकने पर लाल रंग के होते हैं। कड़वा रस करेलों की खास विशेषता है। हमारे आहार-योग्ध पदार्थों में कड़वे रसवाले पदार्थ बहुत ही कम हैं। नीरोगी शरीर के लिए छहों रस उचित मात्रा में अनिवार्य हैं। एकाध रस कम उपलब्ध हो या बिलकुल उपलब्ध न हो तो शारीरिक क्षमता नहीं रहती और विषमता के कारण शरीर में विकृति उत्पन्न होती है। युक्त और संतुलित आहार में जिस प्रकार खट्टे, खारे, तीखे, कसैले और मीठे रस की आवश्यकता है उसी प्रकार कड़वे रस की भी आवश्यकता रहती है।
करेला खाने के फायदे [Benefits of Bitter gourd]
करेले दो किस्म के होते हैं-बड़े करेले और छोटे करेले । रंगभेद से करेले की सफेद और हरी ये दो किस्में होती हैं। बाड़ी या खेत में उगाये। जानेवाले लंबे करेलों का साग में खूब उपयोग होता है। दूसरी एक गोल फलोंवाली करेलों की बेल अपने आप उगती है और बाड़ के ऊपर फैल जाती है। उन्हें ‘बाड़-करेले’ कहते हैं। गाँवों में इनका भी साग होता है। बड़े-लंबे करेलों की अपेक्षा ये बाड़-करेले ज्यादा कड़वे होते हैं शाक बनाते समय करेलों को छीलकर छाल निकाल दी जाती हैं। करेलों की कड़वाहट कम करने के लिए, उन्हें काटकर, नमक में मसलकर, निचोड़कर उसका रस निकाल दिया जाता है। किन्तु करेलों की छाल निकाल देने से तथा नमक मसलकर रस निचोड़ देने से उनका गुण कम हो जाता है। आम के मौसम में रस-रोटी के साथ करेले का साग स्वादिष्ट और रुचिकर लगता है। करेलों के साथ प्याज मिलाकर उनका साग बनाने से करेलों की कडुवाहट कम हो जाती है और साग भी स्वादिष्ट बनता है।
बुखार और सूजन में करेले का साग पथ्य है। करेले का साग आमवात, वातरक्त, यकृत प्लीहावृद्धि और जीर्ण त्वचारोग में भी हितकारी है। मधुमेह (डायाबिटिस) के रोगियों के लिए करेले हितकारी हैं। प्रतिदिन सुबह करेले का रस लेने से इस रोग में निश्चित लाभ होता है। कड़वाहट निकाले बिना किया हुआ साग भी हितकारी है। आहार की दृष्टि से करेले का साग परम पथ्य है।
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में साग के रूप में करेले का उल्लेख हुआ है, परंतु ऐसा लगता है कि औषधि के रूप में इसका प्रयोग अत्यंत कम हुआ है। करेले के मौसम में यथासंभव अधिक से अधिक करेले का सेवन कर लेना हितावह है। खाद्य-साग होने पर भी करेले एक परम औषध है। करेली के पत्तों के स्वरस की मात्रा एक से दो ग्राम तथा बच्चों के लिए चौथाई हिस्से की है।
करेले शीतल, मल को तोड़नेवाले, हल्के, कटु और वायु न करने वाले हैं। ये वात, पित्त, रक्तविकार, पांडु, प्रमेह और कृमि को मिटाते हैं। छोटी करेली (कारवेल्ली) भी उसके समान गुणवाली होती है। विशेषकर यह अग्नि को प्रदीप्त करनेवाली एवं हल्की है। बड़े करेलों की अपेक्षा छोटे करेले ज्यादा गुणकारी हैं। बड़े करेले प्रमेह, अफरा और पीलिया मिटाते
करेली के पत्ते ज्वरनाशक, मूत्रल और कृमिनाशक हैं। सुश्रुत करेले के पत्तों के रस को वमन-विरेचन करानेवाले मानते हैं।
वस्तुएँ
ल, पत्तिया
श्री मदद से है।
मशीनों के
करेली के पत्तों के रस का सेवन करने से वमन और रेच होता है एवं पित्त का नाश होता है। घी और चावल से उसका प्रभाव शांत होता है। पत्ति-प्रकोप में वमन-विरेचन के लिए इसके पत्तों का रस सेंधा नमक मिलाकर दिया जाता है।
`परानी तस्वार
बच्चे
करेली के साढ़े तीन पत्तों और काली मिर्च के साढ़े तीन दानों को एक साथ पीसकर देने से विषमज्वर (मलेरिया बुखार) मिटता है। इस ज्वर में करेली के पत्तों का रस शरीर पर लगाया जाता है।
करेलों के फूल अथवा पत्तों को घी में सेंककर (स्वाद के लिए) सेंधा नमक मिलाकर खाने से, अम्लपित्त के कारण यदि भोजन करते ही उल्टी हो जाती हो तो, बंद होती है।
करेलों के तीन बीज और तीन काली मिर्च को पानी के पत्थर पर पीसकर बच्चों को पिलाने से उल्टी बंद होती है।
करेली के पत्ते पीसकर, उनका रस निकालकर, प्रथम एक तोला और बाद में दो-दो तोला देने से, जीर्ण विषमज्वर, उसके कारण कुछ मात्रा में तिल्ली-लीवर में वृद्धि और पेट में पानी का संग्रह जलोदर का प्रारंभ हो चुका हो तो, रोगी को पेशाब बहुतायत से होता है, एक-दो दस्त लगते
हैं, भूख लगती है, आहार का पाचन होता है तथा रक्त में वृद्धि होती है। करेली के पत्तों का रस कुछ अधिक मात्रा में देने से वमन-विरेचन होता है और श्वासनलिका की प्रारंभिक जलन शांत होती है। इस रस में बचा और शहद भी मिलाया जा सकता है।
करेली के पत्तों का रस हल्दी मिलाकर पीने से चेचक के रोग में फायदा होता है।
करेली के पत्तों का रस पाँच तोला लेकर, उसमें एक पैसे भर हींग मिलाकर देने से पेशाब बहुतायत से होता है और मूत्राघात मिटता है।
कोमल करेलों के टुकड़े पर उन्हें छाया में सुखा दीजिए। फिर बारीक पीसकर एक-एक तोला सुबह-शाम चार महीने तक सेवन करने से पेशाब के साथ शर्करा का जाना एकदम बंद होता है और मधुमेह मिटता है। करेली के पत्तों अथवा फलों का एक छोटी चम्मच रस शर्करा मिलाकर देने से रक्तार्श में लाभ होता है।
करेली के पत्तों का रस कुछ-कुछ गर्म पानी के साथ देने से कृमि मर जाते हैं।
करेली के मूल को पानी में घिसकर पिलाने से, शरीर में पारा फूट निकला हो तो आराम होता है।
करेली के पत्तों को पीसकर उसकी मालिश करने से जीर्ण त्वचारोग
में लाभ होता है। करेलों को पीसकर उसके रस का अग्निदग्ध व्रण पर
लेप करने से फायदा होता है।
करेले के मूल को पीसकर खुजली और फुंसियों पर लेप करने से फायदा होता है।
करेले के मूल को पीसकर सेंधा नमक मिलाकर व्रणशोध पर बाँधा जाता है।
करेले के पत्तों के रस में जंग लगे लोहे पर काली मिर्च घिसकर आँख में लगाने से फूली, जाले और रतौंध मिटते हैं।
वैज्ञानिक मतानुसार करेले आनुलोमिक, पित्तशामक, कृमिघ्न और मूत्रजनन हैं। टेंप-सहित कोमल पत्ते आमाशय-पौष्टिक, मूत्रल, वामक और विरेचन हैं। इनसे कभी-कभी खूब कै और विरेचन होता है। इसके शमन के लिए घी-चावल खिलाइए।
करेले में विटामिन ‘ए’ अधिक मात्रा में, विटामिन ‘सी’ अल्प मात्रा में एवं लोह और फॉस्फरस हैं। बड़ों की अपेक्षा छोटे करेलों में लोह का अंश ज्यादा होता है। यह यकृत और रक्त के लिए विशेष उपयोगी है। फॉस्फरस अस्थियों, दाँत, मस्तक और अन्य अवयवों के लिए अत्यंत उपयोगी है। प्राकृतिक चिकित्सक करेलों को रक्त-शोधक, यकृत और प्लीहारोग में लाभदायक, बहुमूत्र करनेवाले, पांडु और कब्ज दूर करनेवाले, पेट के कृमि को नष्ट करनेवाले, पौष्टिक, गर्म असर उत्पन्न करनेवाले, ज्यादा दिनों तक निरंतर सेवन करने से बुखार, चेचक एवं खसरे से बचानेवाले मानते हैं।