मूत्र प्रणाली की पथरियों का निर्माण ज्यादातर कैल्शियम फॉस्फेट या ऑक्सेलेट से होता है।रोगी की पीठ में गुर्दे, कटि प्रदेश (कमर वाले भाग) में दर्द महसूस होता है।। यह दर्द जनन अंगों की ओर फैलता है। इसके अतिरिक्त बुखार, उल्टी, मूख न लगना, नींद न आना तथा मूत्र त्यागते समय दर्द होना आदि लक्षण भी हो। सकते हैं।
मूत्र प्रणाली में पथरी का उपचार

- हल्दी का चूर्ण 20 माशे, गुड़ 40 माशे, इनको 10 माशे कांजी में डालकर पीने से पथरी दूर होती है।
- गुर्दे की पथरी के लिए सबसे महत्वपूर्ण औषधि शिलाजीत है। पेठे के रस में भुनी हींग और जवाखार डालकर पीने से भी पेडू की पीड़ा और पथरी दूर हो जाती है। एरण्ड ककड़ी की जड़ 20 ग्राम लें। उसे रात को भिगोकर प्रातःकाल उसे पानी में पीसकर 7 दिन तक पीने से पथरी निकल जायेगी।
- अरण्डी की छाल, पाषाण भेद, सौंठ, गोखरू – इनका काढ़ा बनाकर जवाखार के साथ लें।
- अदरक का रस, जवाखार, हरड़ की छाल, चन्दन- इन सबका काढ़ा बनाकर दही डालकर पीने से पत्थरी रोगी चला जाता है। काला नमक, दूध तिलेटी की राख में मदिरा मिलाकर 3 दिन पियें ती पथरी निश्चय ही निकल जायेगी।
- मूत्र की पथरी, के रोगी के लिए सफेद पेठा और लौकी बहुत लाभदायक हैं। जबकि पीली पेटा, भिण्डी ओर अरबी बहुत हानिकारक हैं। दालें और सेम आदि फलियों का सेवन रोगी को नहीं करना चाहिए।