परवल रूप तथा आकार में कूँदरू के समान होता है। बीमार व्यक्तियों के लिए यह अत्यंत गुणकारी है। अन्य फलों की अपेक्षा परवल का साग विशेष पथ्य है, अतः इसका अधिक महत्त्व आँका गया है।
परवल के किस्मे
परवल की दो किस्में होती हैं-मीठे, परवल और कड़वे परवल। रंग-भेद से भी परवल की दो अन्य किस्में होती हैं-भूरे (आसमानी) और पतले परवल तथा हरे रंग के बड़े परवल ।
परवल का उपयोग
परवल का उपयोग पित्त प्रधान रोगों में विरेचन के लिए होता है। पित्तज्वर, जीर्णज्वर, पीलिया, सूजन और उदररोग में इससे विरेचन होकर पाचनक्रिया सुधरती है। यह पांडुरोगी के लिए पथ्य, कृमिरोग में अत्यंत हितकर एवं बलवर्धक और कामवर्धक है।
परवल का साग खाने से पाचनशक्ति बढ़ती है एवं खाँसी, बुखार और रक्तविकार मिटते हैं। घी में तलकर बनाया हुआ परवल का साग बहुत पौष्टिक होता है।
आसमानी व पतले कटु परवल का क्वाथ विष को उतारता है। सिर के गंजेपन के रोग पर भी इसे लगाते हैं। कड़वे परवल जंगल में अपने आप ऊग जाते हैं। गाँवों में उन्हें ‘पंडोले’ या ‘पटोले’ कहते हैं। इनके फल और बेल भी ज्वरनाशक माने जाते है। कड़वे परवलों को काटकर, अच्छी तरह निचोड़कर, कडुआपन निकालकर, करेले की तरह उनकी – तरकारी बन सकती है।
परवल पाचक, हृदय के लिए हितकारी, वीर्यवर्धक हल्के, अग्नि को प्रदीप्त करनेवाले, स्निग्ध और गर्म हैं। ये खाँसी, रक्तविकार, बुखार, त्रिदोष और कृमि को मिटाते हैं।
कड़वे परवल चरपरे (तिक्त) और गर्म होते हैं। ये रक्तपित्त, वायु, कफ, खाँसी, खुजली, कुष्ठरोग, रक्तविकार, बुखार और दाह को मिटाते हैं। इसके गर्भ का चूर्ण एक-दो रत्ती इलायची, तज (दारचीनी), लौंग आदि के साथ दिया जाता है।
परवल का मूल सुखपूर्वक रेच लगानेवाला, इसके बेल की टहनी (डांडी) कफ को हरनेवाली, इसके पत्ते पित्त को हरनेवाले और फल त्रिदोष-नाशक होते हैं।
कड़वे परवल, वच और चिरायता का काढ़ा सभी प्रकार के बुखार पर दिया जाता है। ज्वर के साथ मलावरोध (कब्ज) हो तो यह ज्यादा गुणकारी है।
मीठे परवल के टहनी-सहित पत्ते छः माशा और सोंठ छः माशा का क्वाथ बनाकर, उसमें शहद मिलाकर, सुबह-शाम पीने से कफ-ज्वर मिटता है, कफ सरलता से निकलता है, आम का पाचन होता है और मलावरोध मिटता है।
कडुवे परवल और जौ का काढ़ा शहद डालकर पिलाने से पित्तज्वर, तृषा और दाह को मिटाता है। कड़वे परवल के मूल का पानी शर्करा के साथ देने से भी पित्तज्वर में लाभ होता है।
कड़वे परवल के पत्ते और धनिया का काढ़ा पित्तज्वर में दिया जाता है। बुखारवाले रोगी के शरीर पर उसके पत्तों के रस का मर्दन किया जाता है।
कड़वे परवल, कड़वा नीम और अडूसा के पत्तों का चूर्ण ठंडे पानी में देने से उल्टी होकर पित्त-विकार दूर होता है।
कड़वे परवल का क्वाथ यकृद्राल्युदर (एक उदररोग), प्लीहोदर, पीलिया और अन्य उदररोगों में दिया जाता है।
कड़वे परवल के पत्ते एक तोला और धनिया एक तोला रात में दस-बारह तोला पानी में भिगोकर रखिए। प्रातः छानकर, उसमें शहद मिलाकर, तीन हिस्से बनाकर, दिन में तीन बार देने से कृमि मिटते हैं।
परवल का सेवन करने से त्वचारोग में लाभ होता है। त्वचारोग में परवल के साथ गिलोय का उपयोग अत्यंत हितकारी है एवं उसके पत्तों के स्वरस की मालिश भी की जाती है।
कड़वे परवल और कड़वे नीम के क्वाथ से फोड़ों को धोने से फोड़ों का शोधन होता है।
कड़वे परवल का क्वाथ और कल्क सरसों के तेल में मिलाकर, उसमें सरसों के तेल से चार-गुना पानी डालकर उबालिए। पानी जल जाए तब उतारकर छान लीजिए। इसे अग्निदग्ध व्रण पर लगाने से पीड़ा, स्राव, दाह और फोड़े मिटते हैं।
कड़वे परवल के पत्तों का रस सिर के गंजेपन के रोग (इन्द्रगुप्त) पर लगाने से लाभ होता है।
कड़वे परवल को पीसकर पिलाने से वमन होकर पेट का विष बाहर निकल जाता है।