खरबूजा खाने के फायदे और नुकसान

खरबूजा खाने के फायदे और नुकसान


जो वर्षाऋतु में होते हैं और जिनका स्वाद अम्लमधुर, क्षारयुक्त, फीका होता है उन्हें सामान्यतः ‘फूट’ कहा जाता है।

खरबूजे या फूट गोल और लंबगोल इस प्रकार दो किस्म के होते हैं।
खरबूजे या फूट के गुण समान हैं। ग्रीष्म ऋतु-गर्मियों के शीतल फलों में खरबूजे की विशेष गणना होती है। खरबूजा कच्चा होने पर एकदम हरे रंग का होता है और उस पर काली पट्टियाँ होती हैं। पकने पर इसकी छाल हरापन लिए हुए किंतु कुछ पीली बनती है तथा इसके ऊपस्नाली पट्टियाँ सफेद हो जाती हैं। खरबूजे का वजन एक पौंड से लेकर दस-पौंड तक का होता है।

खरबूजा बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान में विपुल मात्रा में होता है। गुजरात में साबरमती व सरस्वती नदियों के तट में खरबूजे भारी तादाद में उगाये जाते हैं। मेहसाना जिले के लाकरोड़ा गाँव में साबरमती नदी के तट में उत्पन्न होनेवाला खरबूजा खूब प्रसिद्ध है।

गर्मियों में प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होनेवाले खरबूजे और तरबूज के विषय में आरोग्य की दृष्टि से ज्ञान प्राप्त कर लेना आवश्यक है। गर्मियों में बार-बार तृषा (प्यास) लगती है और पानी पीने पर भी तृषा शांत नहीं होती, तब लाल गर्भवाले तरबूज काटकर खाने से तृषा का शमन होता है। गर्मियों में ठंडक प्रदान करनेवाले तरबूज राजस्थान, मथुरा और गुजरात में काफी तादाद में होते हैं। तरबूज के बीज काले रंग के होते हैं और गर्भ के भीतर रहते हैं। तरबूज ग्रीष्मऋतु की गर्मी से बचने व ठंडक लाने के लिए खाये जाते हैं, परंतु इनका अधिक मात्रा में सेवन हितावह नहीं है। तरबूज ज्यादा खाने से मस्तिष्क में शिथिलता आ जाती है। इसीलिए कुछ लोग तरबूज को ‘कुमतिए’ (मति बिगाड़नेवाले) मानते हैं। इसके बीज ठंडे और पौष्टिक होते हैं। कुछ लोग तरबूज को ‘तलिया खरबूजा’ भी कहते हैं, परंतु तरबूज खरबूजे या फूट से एकदम भिन्न जाति का फल है। ग्रीष्मऋतु में जब शरीर में शोष पड़ रहा हो, पानी से भरपूर तरबूज, फूट या खरबूजा सदृश फलों का सेवन फायदेमंद होता है।

फूट दीपक, पाचक, रुचिकर, मधुराम्ल, ग्राही एवं कफ, वात और अरुचि का नाश करती है। फूट कोमल होने पर वातकर और कफ-पित्तनाशक है। कच्ची फूट का साग भी होता है फूट तम्बाकू पीने वाले के लिए हितावह मानी जाती है।

खरबूजा कब्ज दूर करनेवाला और पौष्टिक माना जाता है। गर्मी की
ऋतु में खरबूजे का सेवन शक्तिप्रद रहता है। इसमें मिठास होने से इसे ‘अधुरफला’ या ‘मधुफला’ कहते हैं। इसके फल (खरबूजे), बीज और मूल का औषधि के रूप में उपयोग होता है।

खरबूजा मधुर, शीतल और बलप्रद है। यह पित्त, दाह, वायु, प्रमेह आदि को दूर करता है।

पकी फूट गर्म और पित्त करनेवाली तथा कच्ची फूट मधुर, रुक्ष, पित्त-कफ नाशक है। यह गर्म नहीं है, परंतु मल को रोकनेवाली है।

खरबूजे की छाल निकालकर, छोटे-छोटे टुकड़े कर, उस पर आवश्यकतानुसार चीनी और इलायची-दानों का चूर्ण छिड़ककर खाने से, ग्रीष्म की गर्मी से शरीर के अत्यंत तप जाने से आनेवाली व्याकुलता (बेचैनी) दूर होती है। यह गर्मी में अत्यंत हितकारक है। (स्वस्थ व्यक्तियों को इसका उपयोग करने से डरने की जरूरत नहीं है। सर्दी की प्रकृतिवाले इसका उपयोग न करें।)

खरबूजे या फूट के मूल (जड़) को ठंडे पानी के साथ भाँग की तरह पीसकर, छानकर सात दिन तक, बड़े सवेरे पीने से पथरी मिटती है।

खरबूजे या फूट के बीज के गर्भ को पानी में पीसकर, छानकर पीने से मूत्रकृच्छ्र और पथरी मिटती है।

खरबूजा और फूट सभी फलों में निम्न कक्षा के फल हैं। ये तीनों दोषों को उत्पन्न करते हैं। इसके कच्चे फल वायु तथा कफ करते हैं और पके फल वायु और कफ को बढ़ाते हैं। खरबूजा खाँसी और जुकाम भी करता है। अतः कफ के रोगी इसका उपयोग न करें। इसी प्रकार सूजन, आमवात और जलोदर के रोगियों को भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए। खरबूजा पचने में भारी है, अतः जिनकी जठराग्नि मंद हो उन्हें भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

वैज्ञानिक मत के अनुसार खरबूजे या फूट के बीज के गर्भ में पौष्टिक व मूत्रल गुण है।