बच्चों को होने वाले कुछ सामान्य बीमारियां

सभी पालकों को अपने बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर चिंता रहती है। तो हम आपको बताते हैं कि बच्चों को होने वाले कुछ सामान्य बीमारियां को समय रहते उसका उपचार कैसे किया जाए।

वायरस जनित रोग :-

खसरा माता (मीजिल्स) :-

‌‌ यह संक्रमण रोग बच्चों में सबसे अधिक होता है। इसके होने के बाद बच्चों को क्षयरोग एवं कुपोषण होने की विधि अवसर होते हैं। यह मीजिल्स नामक वायरस के द्वारा होता है। क्योंकि यह संक्रमण रोग है यो छिकने खा‌‌‍‌‌सने आदि के समय एक दूसरे की से सीधा अथवा अन्य माध्यमों से रोगी से स्वस्थ बच्चों में लग जाता है।

उपाय :-

रॉकी बच्चे को पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ देना चाहिए और पौष्टिक खुराक देना चाहिए ताकि बच्चे को कुपोषण ना हो। दूध फलों का रस आदि भी पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए। किसी अच्छे विशेषज्ञ से बच्चे को दिखाना चाहिए ताकि रोग का उचित इलाज कराया जा सके। बच्चे का भोजन बंद करना, बच्चे का नहाना बंद, बच्चे को झाड़-फूंक कराना इत्यादि से बचना चाहिए। इस रोग से बचाव के लिए बच्चे को 9:00 12 माह की उम्र के बीच रोग प्रतिरोधक टीका एक बार अवश्य लगाना चाहिए।

रूबैला (जर्मन मीजिल्स) :-

मीजिल्स की तुलना में यह कम संक्रामक होता है। इसके प्रमुख लक्षण कान के पीछे की लसीका ग्रंथियों में सूजन आना है। इसमें बुखार और पूरे शरीर पर दाने आ जाते हैं। 3 दिन में यह दाने समाप्त हो जाते हैं। गर्भवती माताओं को अगर प्रथम या द्वितीय माह में औरों को तो उसके शिशु में विभिन्न प्रकार के जन्मजात रोग और संरचना त्रुटि होती है। इसको कन्जैनाइटिल रूबैला सिंड्रोम कहते हैं। जिसका कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। बच्चों को 15 माह की उम्र में एम. एम. आर. का टीका लगवाने से इस रोग से बचाव किया जा सकता है।

कनफेड (मम्प्स) :-

यह वायरस से होने वाला संक्रमण है। इस रोग में कर्ण पूर्णा ग्रंथियों मैं सूजन हो जाती है। इसके अलावा अन्य लार ग्रंथियों में भी सूजन आ सकती है। रोग जटिल होने पर पुरुषों को वृषण कोष हो सकता है। इसमें पुरुषों के अंडकोष में असहनीय दर्द होता है और उसमें सूजन आ जाती है, तेज बुखार हो जाता है और अपुष्टि के कारण बंध्यपन हो जाती है। यह विशेष रूप से ठंड और बसंत में होता है एवं शहरों में गांव की अपेक्षा अधिक होता है। बच्चे को 15 माह की उम्र में एम. एम. आर. का टीका लगाने से इस रोग से बचाव होता है।

चिकन पॉक्स या छोटी माता (वेरीसेला) :-

चिकन पॉक्स या छोटी माता हरपीज वायरस वेरी सैला से होने वाला संक्रमण रोग है। इसके जीवाणु श्वास नली के द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं और विभिन्न अंगों में रोक पैदा करते हैं। प्रारंभ में बुखार, सिर दर्द, शरीर दर्द और मामूली ठंड लगती है और यह 24 घंटे तक रहता है। इसके बाद त्वचा में दाने दिखाई देती है और खुजली होती है। दाने धार में होते हैं तथा चेहरे में कम और हल्की तथा तलवे में नहीं होती है। रोग जटिन होने पर व्यक्ति रिया संक्रमण, पूरे शरीर में संक्रमण, जोड़ों का दर्द, फेफड़े में सूजन, या मस्तिष्क में सूजन हो सकता है।

पीलिया (वायरल ऐपेटाइटिस) :-

पीलिया यकृत को प्रभावित करने वाला प्रमुख वायरस रोग है। यह दो प्रकार का होता है – इनफेक्टिव हेपिटाइटिस और सीरम हेपेटाइटिस। इनफेक्टिव हेपिटाइटिस में वायरस भोजन और पानी के द्वारा और पानी द्वारा जबकि सीरम हेपेटाइटिस मैं खून चढ़ाने या इंजेक्शन आदि से रोगी के शरीर में पहुंचते हैं। इन रोगियों के रक्त में ऑस्ट्रेलिया एंटीजन पाया जाता है। इसमें प्रारंभ में रोगी को बुखार आता है, भूख कम हो जाती है, जिमी चलाता है और उल्टी भी हो सकती है, साथ में सिर दर्द और पेट दर्द भी हो सकता है। इसके बाद यकृत बढ़ जाता है, आंखों में पीलापन दिखाई देने लगता है, फिर बुखार आदि ठीक होने लगता है। पेशाब पीला आती है, मल का रंग बदल जाता है, कभी-कभी तिल्ली बढ़ जाती है यह 3 से 4 सप्ताह में ठीक हो जाता है। रोग पड़ते जाने पर यकृत फेल हो जाता है। इसका कोई विशेष उपचार नहीं है। रोगी को पूर्ण विश्राम करना चाहिए। भोजन में अधिक कार्बोहाइड्रेट जैसे – ग्लूकोज, गन्ने का रस, शहजादी देना चाहिए। कम से कम चर्बी खाना चाहिए और घी, तेल आदि का सेवन नहीं करना चाहिए समय-समय पर योग्य चिकित्सक से परामर्श करते रहना चाहिए।

मस्तिष्क शोथ या मस्तिष्क ज्वर (एन्कोफैलाइटिस) :-

यह रोग प्रायः जापानीस बी वायरस के द्वारा होता है। यह कोकसकि ,इसको, पोलियो वायरस,हर्पीज, खसरा और जर्मन मीजिल्स से भी होता है। इस रोग में मस्तिष्क में संक्रमण के कारण सूजन आ जाता है यह रोग धीरे-धीरे अचानक हो सकता है। पहले रोगी को बेचैनी रहती है, उसके बाद सुस्ती रहती है और बेहोशी आ जाती है प्रणाम मस्तिष्क में स्वसन केंद्र प्रभावित होने के कारण स्वसन तेजी से हो जाता है और उसके बाद अनियमित हो जाता है। इसके अलावा शरीर में क्रेनियल नर्वस का लकवा भी हो सकता है

पोलियो :-

यारों बच्चों में विकलांगता का प्रमुख कारण है। यारों पोलियो वायरस इस ट्रेन 1,2,3 के द्वारा होता है। इस रोग में पक्षाघात लकवा से लेकर मृत्यु तक संभव है। या रोग विश्व के सभी देशों में होता है और 2 वर्ष से 80 वर्ष के उम्र के इससे अधिक प्रभावित होते हैं। रोगाणु मुंह से सांस के द्वारा शरीर में पहुंचते हैं। हाथों की अंदर की झिल्ली और लसीका ग्रंथियों में वृद्धि करके यह रक्त में पहुंचते हैं जहां तंत्रिका तंत्र में जाकर जो पैदा करते हैं।

जुकाम (कॉमन कोल्ड) :-

यह प्राया वायरस के कारण होता है। इसमें स्वसन तंत्र के ऊपर भागों में सूजन आ जाती है। नाक बहती है, पहले स्वास पानी जैसी आती है जो बाद में म्यूकस की तरह हो जाता है। रोग बढ़ने पर बुखार, बदन दर्द और भूख कम हो जाती है एवं वास्को निकलने के कारण दस्त हो जाती है इसमें पानी की भाव बहुत लाभदायक होती है। बुखार होने पर पेरासिटामोल देना चाहिए।

बैक्टीरिया जनित रोग :-

न्यूमोनिया :-

यारों प्राया बैक्टीरिया, वायरस एवं फंगस के कारण होता है। कभी-कभी फेफड़े में उल्टी, मिट्टी का तेल अभी जाने से भी हो सकता है। यह लोग प्रायः अचानक प्रारंभ होता है प्रोग्राम अब कभी के साथ तेज बुखार, खांसी और सांस लेने में तकलीफ होती है। कभी-कभी सीने में दर्द हो सकता है, उल्टी और दस्त अथवा झटके भी आ सकते हैं एवं नीलापन भी हो सकता है। निमोनिया का संदेह होने पर तुरंत योग्य चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।।

बच्चों में क्षय रोगी (ट्यूबरक्लोसिस) :-

यह संक्रमण माइक्रो बैक्टीरिया ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के द्वारा फैलता है। प्रिया रोग रोगी के साथ रहने से फैलता है प्रोग्राम रोही केतु मल मूत्र उल्टी या भिन्न मार्गो से निकले मवाद रोग फैलने से सहायक होते हैं । यह रोग कुपोषित बच्चों में अधिक मिलता है। आरंभ में बच्चों में यह रोग बिना लक्ष्मण के हो सकता है अथवा हल्का, बुखार, थकान, कमजोरी, भूख ना लगना, वजन कम होना अथवा शारीरिक वृद्धि में रुकावट आदि लक्षण हो सकता है। इस रोग का आरंभिक अवस्था में ही इलाज प्रारंभ हो जाए व नियमित इलाज करवाया जाए तो बीमारी का पूर्ण निदान संभव है परंतु देर होने पर वह गंभीर रूप ले लेती है और बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है।

बच्चों में कुष्ठ रोग :-

यह रोग माइक्रो बैक्टीरिया लेप्रे नामक जीवाणु के द्वारा होता है। बच्चों में यह 4 से 5 वर्ष की उम्र तक यह अक्सर छिपा रहता है जिसके कारण इसका पता देर से चल पाता है । यह बीमारी पुरुषों में अधिक होती है। अधिकांशत रोगी के शरीर पर उपस्थित जख्मों से निकलने वाले तरल पदार्थ द्वारा यह रोज पहनता है। इसके अलावा रोगी द्वारा प्रयोग की जा रही वस्तुओं से भी रोग फैलने की संभावना रहती है। मां के दूध के द्वारा भी जीवाणुओं के फैलने का संभावना होती है ।

काली खांसी, कुकुर खांसी (परट्यूसिस) :-

इस रोग में रुक-रुक कर खांसी के दौरे आते हैं। एक बार होने के बाद यह जीवन भर नहीं होती पूर्णविराम यह इमो फिनिश परट्यूसिस नामक बैक्टीरिया से होता है प्रोग्राम रोगी प्रोग्राम रोगी के पुणे राम रोगी के चीखने खांसने से जीवाणु थूक के कणों के साथ वायुमंडल में फैल जाते हैं और जब स्वस्थ बच्चा सांस लेता है तो जीवाणु उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं यह 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को होता है।

टाइफाइड या मियादी बुखार :-

इसमें दीर्घकालिक बुखार आता है। यह सालमोनेला टाइफोसा नामक बैक्टीरिया के द्वारा होता है । यह गंदगी के कारण होता है। या गर्मी और बरसात में अधिक होता है क्योंकि इन दिनों मक्खियों की संख्या अधिक रहती है जो रोग फैलाने का काम करती है पूर्णविराम भोजन के साथ या पानी के साथ इसके कीटाणु शरीर में पहुंचते हैं। पहले वे आंतों की लिम्फ उसको में वृद्धि करते हैं जहां से खून में पहुंचकर शरीर के विभिन्न भागों में रोग पैदा करते हैं।

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