नेनुआ के फायदे

नेनुआ के फायदे

नेनुआ यूरोप तथा अमेरिका में ज्यादा उगाया जाता है। भारत में भी यह सर्वत्र होता है। करीब-करीब सभी प्रकार की जमीन में यह होता है। नेनुआ वर्षा के आरंभ में और माघ मास में बोया जाता है। तुरई की तरह इसकी भी खेती होती है। तुरई की अपेक्षा इसकी फसल पन्द्रह दिन देर से उतरती है। नेनुए की बेल को मंडपों पर चढ़ाने से फल अच्छे लगते हैं।

नेनुए की बेल खूब फैलती है। उस पर गहरे पीले रंग के फूल आते हैं। इसके फलों को ‘नेनुआ’ या ‘घिया तोरी’ कहते हैं।

नेनुआ और उसके बीज दो प्रकार के होते हैं-सफेद और काले काले बीज से हरे रंग के और डेढ़ से पौने दो फीट लंबे नेनुए होते हैं। सफेद बीज से होनेवाले नेनुए का रंग धुँधला सफेद और उसकी लंबाई करीब पौना फीट होती है। काले बीज का उपयोग अधिक मात्रा में होता है। कुछ लोग नेनुआ को ‘पारोस’ भी कहते हैं।


तुरई की तरह नेनुआ भी मीठा और कड़वा होता है। कडुवे बीज का नेनुआ कड़वा होता है। मीठे नेनुए की तरकारी और पकौड़े स्वादिष्ट तथा रुचिकर बनते हैं। नेनुए की तरकारी तुरई की तरकारी की अपेक्षा अच्छी होती है।

पके हुए नेनुए के भीतरी रेशायुक्त हिस्से का उपयोग स्नान करने तथा बर्तन माँजने के लिए एवं फैक्टरी में छलनी के रूप में होता है। उसके बीज में से निकाले हुए तेल का औद्योगिक उपयोग होता है।

बड़ा नेनुआ मधुर, शीतल, वातल, अग्निदीपक तथा कफकारक एवं दमा, खाँसी, बुखार तथा कृमि का नाश करनेवाला है। वैदक शास्त्र ने ज्वररोगी के लिए भी इसे हितकारी माना है। नेनुआ स्निग्ध है। यह रक्तपित्त और वायु को मिटाता है। निघंटुकार इसे पित्त और वायु को नष्ट करनेवाला मानते हैं।

नेनुआ सेंककर, उसका एक पैसेभर रस निकालकर बच्चे को पिलाने से उसकी छाती का दर्द मिटता है।

नेनुए के पत्तों का दो तोला रस पीने से तथा पत्तों को पीसकर, रस निकालकर, पेट की सूजन पर लगाने से ‘शोफोदर’ नामक उदररोग मिटता है।

नेनुए के पत्तों के रस में गोमूत्र मिलाकर, गर्म करके लगाने से सूजन मिटती है।

नेनुए के हरे पत्तों को कूटकर, उसका एक सेर स्वरस निकालकर कलईवाले बर्तन में लीजिए। उसमें गाय अथवा बकरी का अत्यंत पुराना घी एक सेर मिलाइए। धीमी आँच पर रखकर सारा रस जला डालिए और घी को सिद्ध कीजिए। इसके बाद उसमें शुद्ध मोम पाँच तोला मिलाकर मरहम बनाइए और एक डिब्बे में भरकर रख दीजिए। यह मरहम बद, फूले हुए फोड़े, गर्मी का उपदंश, घाव-व्रण आने पर लगाने से जल्दी रुझान आती है।

नेनुआ तुरई के जितना वातकारक नहीं है, फिर भी शरद ऋतु-भाद्रपद में उसका अत्यधिक सेवन हितावह नहीं है। शरद में नेनुए का अत्यधिक सेवन करने से पित्त-प्रकोप होकर बुखार आता है। नेनुआ और तुरई ज्वर के निवास स्थान हैं

“ज्वर कहता-मैं तुरई में बसता,
नेनुआ देख करता अट्टहास,
दही, भुट्टे, जहाँ खट्टी छाछ,
उसके घर है मेरा वास।”