अमरूद खाने के फायदे

अमरूद खाने के फायदे

अमरूद ठंडी की ऋतु का एक लोकप्रिय और सस्ता फल है। इसमें पित्तनाशक गुण है, अतः यह अत्यंत उपयोगी है।
बीज से पनीरी कर उगाये हुए अमरूद के फल छोटे, अधिक बीजवाले और कम गर्भवाले होते हैं, जबकि कलम करके बोये गये अमरूद अतिशय बड़े, कम बीजवाले और ज्यादा तथा मुलायम गर्भवाले होते हैं। पनीरी करके उगाया हुआ पौधा तीन-चार वर्षों में फल देता है, जबकि कलम करके उगाया हुआ पौधा दूसरे वर्ष ही फल देने लगता है और ये फल भी ज्यादा मीठे होते हैं। इस प्रकार आर्थिक दृष्टि से भी कलम करके तैयार किए हुए पौधे ही अधिक लाभकारक हैं।

अमरूद की दो किस्में होती हैं- सफेद गर्भवाली और लाल-गुलाबी गर्भवाली। सफेद किस्म अधिक मीठी होती है। कलमी अमरूद में एक अच्छी किस्म के अमरूद भी होते हैं। वे बहुत बड़े होते हैं। और उसमें से मुश्किल से चार-पाँच बीज निकलते हैं। इलाहाबाद और बनारस में इस प्रकार के अमरूद पाये जाते हैं।
अमरूद का साग भी होता है। पके अमरूद ताजे मेवे के रूप में खाये जाते हैं। लोग अमरूद के टुकड़े कर, उन पर जीरा-नमक की बुकनी डालकर खाते हैं। इसमें काली मिर्च का चूर्ण डालने से इसका वातल गुण कम हो जाता है। अमरूद से जाम और मुरब्बा एवं चटनी और रायता भी बनता है। अमरूद के बीज निकालकर, उसके गर्भ के रस में गुलाब-जल और शक्कर मिलाने से स्वादिष्ट शरबत बनता है।

अमरूद सात्त्विक और मेध्य-बुद्धिवर्धक है, अतः विद्यार्थियों तथा मस्तिष्क से काम लेने वाले बौद्धिकों को इसका सेवन करना चाहिए। विषमज्वर से पीड़ित व्यक्तियों को अमरूद खाने से लाभ होता है। चातुर्थिक ज्वर में भी इसके सेवन से लाभ होता है। कब्जियत के कायमी रोगियों के लिए तो अमरूद आशीर्वाद समान है।

अमरूद रेचक हैं। अमरूद के पत्तों के काढ़े से कुल्ले करने से मसूड़ों की सूजन और मुखपाक दूर होता है। ये पत्ते रुचि उत्पन्न करनेवाले और ग्राही हैं। तीव्र अतिसार में गुदाभ्रंश होने पर बाह्यरूप में इसके पत्तों की पुलटीस बनाकर बाँधने से गुदा की सूजन कम होती है तथा आंतरिक रूप में अमरूद के पत्तों और नागकेसर की उड़द के बराबर गोलियाँ बनाकर औषध के रूप में खिलाई जाती हैं।

अमरूद के मूल और छाल में टेनिन एसिड अधिक मात्रा में होता है। इसके मूल की छाल अति संकोचक, ज्वरहर और हिचकी को दूर करनेवाली है। जीर्ण अतिसार में अमरूद के पेड़ की छाल का क्वाथ विशेष गुणकारी है।

सौराष्ट्र में बाबरियावाड़ और नाघेर में अमरूद को ‘सदाफल’ कहते हैं। इसकी मिठास के कारण इसे ‘मधुफल’ या ‘अमृतफल’ भी कहते हैं। इसके फल, मूल और पर्ण का औषधि के रूप में उपयोग होता है।

अमरूद कसैला, मीठा, कभी खारा, वीर्यवर्धक, कफकारक एवं वात और पित्त का नाशक है। यह अत्यंत शीतल है। इसका अधिक सेवन करने से यह वायु, दस्त और बुखार करता है। यह स्वादिष्ट, मधुर, ग्राही, कुछ खारा, कुछ कसैला, अत्यंत शीतल, तीक्ष्ण, गुरु, कफनाशक, उन्मादनाशक, पित्तशामक, वीर्यवर्धक, रुचिकारक, त्रिदोषनाशक तथा दाह, भ्रम और मूर्छा को मिटानेवाला है। विषमज्वर में यह हितकारक है। दाह कृमि, वात, तृषा और शोष को मिटाता है। अमरूद के बीज कन करते हैं।

अमरूद के पत्तों की पुलटीस बनाकर फोड़ों पर बाँधी जाती है। अच्छी किस्म के तरोताजा, बड़े-बड़े अमरूद लेकर चाकू से उसके छिलके निकालकर टुकड़े कीजिए और धीमी आँच पर पानी में उबालिए। आधे पककर नरम हो जाने पर नीचे उतारकर, कपड़े में डालकर पानी निकाल लीजिए। फिर उससे तीन गुना शक्कर लेकर उसकी चासनी बनाइए और अमरूद के टुकड़े उसमें डाल दीजिए। उसमें इलायची-दानों का चूर्ण तथा केसर इच्छानुसार डालकर मुरब्बा बनाइए। ठंडा होने पर इस मुरब्बे को चीनी मिट्टी के बर्तन में भरकर, उसका मुँह बंदकर, थोड़े दिन तक रख छोड़िए। यह मुरब्बा दो-ढाई तोला खाने से कोष्ठबद्धता (कब्जियत) दूर होती है।

अमरूद के बीज पीसकर, पानी के साथ मिलाकर, उसमें चीनी डालकर पीने से पित्त का विकार शांत होता है।

अमरूद का साग बनाकर खाने से कब्जियत मिटती है।

अमरूद का कुछ दिनों तक नियमित सेवन करने से, तीन-चार दिन में ही मलशुद्धि होने लगती है, कोष्ठबद्धता (कब्जियत) मिटती है एवं कब्जियत के कारण होनेवाला नेत्रदाह और शिरःशूल दूर होता है।

हरे कच्चे अमरूद को थोड़े से पानी के साथ पत्थर पर पीसकर सुबह माथे पर, जहाँ दर्द होता हो, लेप करने से, दो-तीन घंटों में ही आधासीसी मिट जाता है। किसी को यदि एक दिन में पूरा फायदा न हो तो दूसरे दिन सुबह फिर से लेप करें। (अनेक रोगियों पर इसकी आजमाईश की गई है। आधासीसी के लिए यह एक उत्तम प्रयोग है।)

अमरूद के पत्तों की पुलटीस बनाकर रात को सोते समय आँख पर बाँधने से दुखती आँखें अच्छी होती हैं, आँखों की लालिमा-आँख का सूजन और वेदना फौरन मिट जाती है।

दो-चार अमरूद खाने से या उसके पत्तों का ढाई तोला रस पीने से भाँग का नशा उतर जाता है।
अमरूद खाने का सबसे अच्छा समय दोपहर के भोजन के बाद का है। दोपहर का भोजन लेने के पश्चात्, एक-दो घंटों के बाद, एक-दो बड़े अच्छे अमरूद खाइए। इससे शरीर को आवश्यक तत्त्व उपलब्ध हो जाते हैं। अमरूद को प्रातः खाली पेट खाने से या अधिक मात्रा में खाने से वायु करते हैं, दस्त लगते हैं और बुखार आता है।

यूनानी हकीम उन्माद-पागलपनवालों को अमरूद विशेष रूप से खिलाते हैं। उन्माद का रोगी अपनी इच्छा के अनुसार जितने अमरूद खा सकता है उतने उसे खाने के लिए दिये जाते हैं।

वैज्ञानिक मत के अनुसार अमरूद में विटामिन ‘सी’, कैल्शियम,
फॉस्फोरस, लौह, ग्लुकोज, टेनिन एसिड और ऑक्झेलेट के कण हैं।
अमरूद में टमाटर, मोसंबी, नारंगी, पपनस और नीबू सदृश फलों की अपेक्षा विटामिन ‘सी’ अधिक मात्रा में होता है। विटामिन ‘सी’ दाँतों के रोगों, पाचनतंत्र की कमजोरी, उच्च रक्तचाप, सगर्भावस्था में होनेवाली उल्टी तथा रक्तविकारों को दूर करता है। अमरूद से प्राप्त होने वाले अन्य द्रव्य भी इन उपद्रवों को दूर करने में सहायता करते हैं।